पुरूषार्थ  में दरिद्रता नहीं
ईश्वर चिन्तन में पाप नहीं
मौन धरने में कलह नहीं
जागने वाले को भय नहीं
- चाणक्य
मौन धरने में कलह नहीं
Labels: महापुरूषों के अमृत वचन और अनुभव
उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है ?
जिसने इच्छा का त्याग किया
उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है
और जो इच्छा का बन्धुआ है,
उसको वन में  रहने से क्या लाभ  हो सकता है ?
सच्चा त्यागी
जहाँ रहे
वहीँ वन और वहीँ  भजन-कन्दरा है
-महाभारत
तो कौन धनी या विद्वान न बन जाता ?
अगर  इस दुनिया में आलस्य न होता
तो कौन धनी या विद्वान न  बन जाता ?
सिर्फ़ आलस्य के कारण ही
यह सारी पृथ्वी
नर-पशुओं और कंगालों से भरी हुई है
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Labels: अलबेला विचार , आलस्य , कौन , धनी , हिन्दी
कवियों ! अब तुम कविताओं में सिर्फ़ देश की बात करो
बहुत हो चुकी नारी की छीछालेदार  इन मंचों पर
बहुत हो चुका घरवाली का कारोबार इन मंचों पर
बहुत हो चुके सड़े चुटकुले बार-बार  इन मंचों पर
बहुत हो चुके टुच्चे टोटके लगातार इन मंचों पर
बहुत हो चुकी गीत ग़ज़ल छंदों की हार इन मंचों पर
बहुत हो चुका  चीर काव्य का तार तार इन मंचों पर
बहुत हो चुका कविताई से व्यभिचार इन मंचों पर
बहुत हो चुकी सरस्वती माँ शर्मसार इन मंचों पर
अब मंचों पर
राम के मर्यादित परिवेश की बात करो
महावीर की
अहिंसा के शीतल सन्देश की बात करो
जन जन  में
जो उबल रहा है उस आवेश की बात करो
कवियों ! अब
तुम कविताओं में सिर्फ़ देश की बात करो
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Labels: हिन्दी कविता hindi poem
दो ऐसा वरदान प्रभो !
परचिन्तन, परहित, परसेवा, परमार्थ  के काज करूँ
पवन - गति से चलूँ सत्य पे, सदा झूठ से लाज करूँ
वैर - भाव न रखूं किसी से,  दो ऐसा वरदान प्रभो !
झुकूं सदा मैं सभी के आगे,  सबके हृदय पे राज करूँ
Labels: मुक्तक the four line poem
फ़िल्मों में काम पाने के लिए वह किसी का भी बिस्तर गर्म करने को तैयार है, क्या यह चिन्ता का सबब नहीं ?
आज एक ऐसी बात ने झकझोर कर रख दिया है दिमाग़ को कि  न कुछ
कहते बनता है और न कुछ लिखते बनता है......बस, अफ़सोस की एक
लकीर  पूरे ज़ेहन में खिंच गई है कि आखिर क्या हो गया है आज के
इन्सान को ?  दूसरों से आगे निकलने और कामयाब होने की होड़ में
कोई कितना पतित  हो सकता है..इसका  नमूना आज देखने को
मिला । 
हे भगवान ! क्या  ऐसे दिन भी देखने बाकी थे ?
एक  लड़की,  जो मेरी पुरानी परिचित है और  फ़िल्म व टी वी में काम
पाने के लिए प्रयासरत है,  हमेशा मुझे  कहती है कि मैं उसके लिए
कुछ सिफ़ारिश करूँ ।
मैंने आज तक न तो उसे कोई  वादा किया है, न ही आगे किसी को
कहा है उसे काम देने के लिए, क्योंकि  अभिनय उसे आता नहीं,
डांस ठीक ठाक  सा करती है  और  उच्चारण उसका  इतना गलत
है कि  फ़िल्म या टी वी में काम मिलना कतई  नामुमकिन है ।
मैंने उसे  समझाया कि  बेटी !  कम से कम दो साल तक मेहनत कर,
अभिनय  सीख,  आवाज़ सुधार और उच्चारण  के दोष दूर कर, फिर
मैं जिस से बोलूं उस से मिलना,  शायद काम मिल  जाये... लेकिन
उसे इतना सब्र  नहीं है।  वह शोर्टकट  मार कर,  देह समर्पण के ज़रिये
काम पाने को तैयार बैठी है । जब उसने मुझे ये कहा कि काम पाने के
लिए वो  कहीं भी, किसी के भी सामने कपड़े खोलने को तैयार है तथा
कुछ भी करने को  तैयार है,  तो मैं  सन्न रह गया......... यों लगा
जैसे ये शब्द मेरी अपनी बेटी ने मुझसे कहे हों....क्योंकि उम्र के हिसाब
से तो वो मेरी बेटी  जैसी ही है  और वैसे  भी   मैंने उसे बचपन से
किशोरावस्था पार करके जवानी में कदम रखते हुए  देखा है ।
थोड़ी देर तो मैं कुछ न बोला  ----------फिर कहा, "ठीक है,
शाम को अपने पापा को साथ लेकर आना।"
शाम को जब वह अपने पापा के साथ आई और मैंने उसके पापा को
एकान्त में ले जाकर  सावधान किया  कि तुम्हारी बेटी के भटकने
का डर है,  ज़रा  ध्यान रखो............ तो पापा ने जो कहा उसने तो
रही सही  कसर भी पूरी कर दी।  वो बोले, " बहुत सी लड़कियां ऐसे
ही करती हैं, अगर मेरी वाली कर लेगी तो  क्या पहाड़ टूट पड़ेगा  ?
अलबेला जी ! इस जग में मुफ़्त कुछ नहीं मिलता ... मैंने तो ख़ुद
इसे छूट दे  रखी है कि  काम मिलता हो  तो कपड़े उतारने से
परहेज़ न करो।"
याद रहे,  वह लड़की कोई गरीब, कंगाल या मज़बूरी की मारी नहीं है,
बल्कि  एक उच्च  मध्यम वर्ग  घर की  पढ़ी लिखी और समझदार
लड़की है ।
चिन्ता मुझे  इस बात की  नहीं है कि  वह लड़की जल्दी ही  लोगों के
बिस्तर गर्म करती फिरेगी और किसी अश्लील  फ़िल्म में काम करके
किसी प्रकार ख़ुद प़र हिरोइन  का ठप्पा लगवा लेगी........... ये तो
मुम्बई में रोज़ की बात है, चिन्ता इस बात की है कि  ऐसी लड़की
अगर किसी  तस्कर या गद्दार  गिरोह के हाथ लग गई तो क्या क्या
कर सकती है ......... क्योंकि  जो लड़की अपनी स्वयं की इज़्ज़त को
हाथ में लिए घूमती है  नीलाम करने के लिए......वह देश की इज़्ज़त
और इसकी सुरक्षा को  बट्टा लगाने को तैयार होने में कितना वक्त
लगाएगी ? 
चिन्ता का विषय है भाई !
बहुत अफ़सोस हो रहा है ...........आज का दिन खराब हो गया  मेरा
............... छि :  लाहनत है ।
क्षमा करना  बहन - बेटियो !  मैं  ये लिख कर आपका मन दुखाना नहीं
चाहता था लेकिन  ज़माने को सावधान करना भी ज़रूरी है.......ये
इसलिए भी मुझे लिखना पड़ा  कि कदाचित इससे  वह  थोड़ी शर्मसार
हो और मेहनत व  कला के दम पर आगे बढ़ने का प्रयास करे.............ये
गलत और  सस्ता रास्ता  पकड़ कर नहीं । 
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तुम ही बताओ...अब इस चाय को कौन पीयेगा ?
प्यारी गुड्डू की माँ !
ख़ुश रहो !
ऐसा कह कह कर मैं शब्दों का अपव्यय नहीं करना चाहता क्यों
कि मैं जानता हूँ तुम आलरेडी ख़ुश हो और आलवेज़ ख़ुश ही
रहना चाहती हो । न केवल तुम ख़ुश रहना चाहती हो, बल्कि मुझे भी
ख़ुश ही देखना चाहती हो इसलिए 15 दिन के लिए मुझे घर में
अकेला छोड़ कर तुम स्वयं गुड्डू के साथ छुट्टियाँ बिताने
औरंगाबाद चली गई हो.....लेकिन यहाँ तो मुसीबत हो गई है भाई !
जिस एकान्त और तन्हाई को मैंने नियामत समझ कर
कई रंगीन ख्वाब सजाये थे, साले सब धूल धूसरित हुए पड़े हैं ।
तुम थीं तो घर में मेला लगा रहता था सुन्दर सुन्दर पड़ोसनों का,
तुम क्या गईं, कमबख्त सभी ने आना -जाना छोड़ दिया । कभी
दरवाज़े पे कोई दिख भी जाये तो " कैसे हैं ? ..कब आएगी
आरती दीदी ? " इत्ता भर पूछते हैं ।
पहले रोज़ कभी कोई इडली, कभी कोई हलवा, कभी कोई पुलाव
ले ले कर आती थी और ज़बरदस्ती मुझे खिलाती थी मैंने
समझा तुम्हारे बाद भी मुझे ये सब मिलता रहेगा तो क्यों न
तुम्हें भेज दूँ ..लेकिन यहाँ तो हलवा छोड़ो, लापसी तक
का जलवा नहीं हो रहा .........
खैर ये तो आपस की बात है, बाद में निपट लेंगे, पहले ये
बताओ कि तुमको ये नये नये डिब्बों में सामान भरने
की क्या आदत पड़ी है ? जिसमे पहले दाल होती
थी, उसमें मिर्चें पड़ी हैं , जिसमे मिर्चें होती थीं उसमे माचिस पड़ी हैं,
कल रात को मुझे चाय पीनी थी,
बनाने लगा तो देखा किचन प्लेटफोर्म वाले
डिब्बे में चीनी ख़त्म हो गई है, अब ध्यान
तो मेरा लगा हुआ था
अविनाश वाचस्पति की टिप्पणी में........... सो मैंने ऊपर
चीनी का भारी वाला डिब्बा उतारने की कोशिश की,
अब मुझे क्या पता तुमने उसके ऊपर छोटा डिब्बा रखा है
जिसमे पता नहीं कौन से युग का बचा हुआ तेल भी है, कमबख्त
सारा मुझ पे गिर गया , लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपने आप
पर गुस्सा भी नहीं किया, बल्कि बड़े डिब्बे में से दो चम्मच भर के डाल
ही दिये चाय में क्योंकि चाय पीनी ज़रूरी थी, लेकिन हाय रे किसमत !
वो चीनी नहीं, चावल थे, अब पता नहीं ये चाय की जगह क्या बन गया है,
मुझसे तो पिया नहीं जा रहा है ............तू ही बता अब इस चाय को पिएगा
कौन ? और चूँकि कपड़े सारे तेल में भर गये हैं इसलिए होटल भी
जाना मुश्किल है...तो मुझे चाय पिलाएगा कौन ?
ये अविनाश वाचस्पति भी न...................किसी दिन ऐसी टिप्पणी करूँगा
इनकी पोस्ट पर कि हँस हँस के बावले हो जायेंगे - आये बड़े...एक ज़रा सा
सुझाव क्या दिया उसका भी पैमेंट चाहिए उनको , मनमोहन सिंह से लो न !
दुनिया का सबसे बड़ा अर्थ शास्त्री है............
गुड्डू की माँ !
आजा आजा रे आजा ......... चाय की बड़ी प्रॉब्लम है। बाकी पीना खाना तो शाम
को दोस्तों की महफ़िल में हो जाता है लेकिन चाय...........तौबा तौबा !
ये पोस्ट मैंने कल सुबह 9 बजे लिखी थी, लेकिन ब्लोगर बाबा के अचानक
गायब हो जाने से आज दोपहर २-३० बजे प्रकाशित कर रहा हूँ ।
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Labels: एक तमाशा मेरे आगे क्या
विनम्र श्रद्धांजलि स्वर्गीय राजीव गांधी को...........
काश!
हम इतने समर्थ होते 
काश!
यह हमारे वश में होता
तो वह मनहूस घड़ी
कभी आने नहीं देते
आपको इस तरह,
असमय जाने नहीं देते
भिड़ जाते हम नियति से,
घमासान मचा देते
खेल जाते प्राणों पर...
आपकी जान बचा देते
लेकिन नहीं ...
कोई उपाय नहीं था
इस विडम्बना से बचने का
कोई तोड़ नहीं था हमारे पास
काल रूपी उस काले अजगर का
जो देखते ही देखते
निगल गया,
समूचा निगल गया
लील गया
हमारी आंखों के सपनों को
उन सपनों के
कुशल चितेरे को
सम्भावनाओं के
भव्य सवेरे को
और हम
ठगे से रह गए
कुछ भी न कर सके
सिवा संताप के
सिवा रुदन के
काश!
हमारी भी कुछ चल जाती
काश!
यह दुःखान्तिका टल जाती
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लीजिये चिदम्बरम जी ! फ़ार्मूला हाज़िर है
http://hindihasyakavisammelan.blogspot.com/2010/05/blog-post_19.html
पिछली  पोस्ट में मैंने कहा था कि  नक्सलवाद को ख़त्म करने का
फार्मूला अगली पोस्ट में दूंगा तो  ये लो.....मैंने अपना वादा पूरा किया
ये रहा मेरा  नया  आलेख :
__
लीजिये  चिदम्बरम जी !
फ़ार्मूला हाज़िर है ।
आपको कोई पहाड़ नहीं तोड़ना,  कोई गंगा नहीं लानी स्वर्ग से और
न ही  ख़ून खराबा करना है । आपको अपनी बुद्धि और सामर्थ्य से
केवल इतना करना है कि  आग को बुझाने के लिए पेट्रोल  का प्रयोग
बन्द करके   पानी की धारा बहा दें..........
आपको केवल इतना करना है कि नक्सलवादियों की बन्दूकों का
रुख मोड़ दें ।
आपको केवल इतना करना है कि   सरकार के प्रति नहीं, सत्ता के
प्रति नहीं, बल्कि देश और देश की जनता के प्रति ईमानदार हो
जाएँ । बाकी काम तो चुटकी बजाने जैसा है ।
____
____
ये लोग जिन्हें हम नक्सलवादी कहते हैं,  ये  रोज़ाना कोई न कोई
वारदात कर रहे  हैं  और निर्दोष लोग मर रहे हैं । मैं समझता हूँ
इनकी किसी से कोई ज़ाति रन्जिश नहीं है । ये तो कठपुतलियां हैं
उन ताकतों की  जो इन्हें पैसे के दम पर नचा रही हैं  । अर्थात ये सब
भाड़े के हत्यारे हैं  जो  दुश्मन देशों से मिले हुए हैं  और अपने साथ
हुए शोषण  अथवा अत्याचार अथवा  भेदभाव  का बदला  भी ले रहे
हैं  और रुपया भी कमा रहे हैं । मज़े की बात ये है कि ये कोई पराये
नहीं हैं, अपने ही लोग हैं, इसी माटी के लाल हैं । अब अपने लोगों को
कोई अपने ही खिलाफ इस्तेमाल करके देश में अराजकता और
आतंक  का माहौल बनादे, इससे  ज़्यादा डूब मरने की बात आपके
लिए और आपकी हुकूमत के लिए और क्या हो सकती है ?
लिहाज़ा  अब आप ये कीजिये कि सबसे पहले  खजाने की थैलियाँ
खोलिए.................और तौल दीजिये इन नक्सलवादियों को रुपयों से,
इतना रुपया इन्हें दे दीजिये कि इन्होंने कभी कल्पना भी  न की
हो.... साथ ही  इन सब को  अपनी सशस्त्र सेना के जैसी सुविधाएं,
इज़्ज़त और  राष्ट्र भक्ति  से ओत प्रोत वातावरण दे कर  इस बात
के लिए राज़ी कीजिये कि  ये अब देश में नहीं बल्कि देश के लिए
गोलियां चलाएंगे ।
पैसे में बहुत बड़ी ताकत होती है जनाब !  खरीद लीजिये इनको पैसे
दे कर,  बहुत से लोग  झट से बिक जायेंगे क्योंकि उनको  भरोसा
हो जायेगा कि  अगर देश के लिए लड़ते हुए मर भी गये तो  उनका
परिवार तो आराम की ज़िन्दगी इज़्ज़त के साथ जी सकेगा ।
अब समस्या है वो लोग  जो बिकने को तैयार नहीं होंगे,  तो वो भी
कोई समस्या नहीं ...जो लोग  बिक जायेंगे, वे ही उनसे भी निपट
लेंगे....अर्थात नक्सलवादियों के पास दोनों विकल्प होंगे कि या तो
ख़ूब सारा पैसा लेकर इज़्ज़त के साथ देश के लिए काम करो  या
फिर अपने ही साथियों के हाथों मारे जाओ ।
उनके बाल बच्चों और परिवारजन को कहो कि वे भी उन्हें समझाएं
और एक बार पूरी ईमानदारी से देश की मुख्यधारा में शामिल हो
जाएँ । इन्सान इतनी नरम मिट्टी का बना  है चिदम्बरम जी कि
उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है ।
बस, फिर क्या है...........जो काम वो यहाँ कर रहे हैं वही काम आप
उनसे दुश्मन देश में कराओ...अगर वो दुश्मन को  चोट पहुंचा सके
तो ठीक और  अगर इस लड़ाई में मारे जाएँ तो ठीक ...दोनों ही
तरफ  भारत का भला है ।  इस प्रकार कुछ लोग  दुश्मन  देश में
घुस कर   अपने सैनिक वाला काम करेंगे और बाकी लोग  शहीद
हो जायेंगे...........जय सिया राम !
मैंने  इशारा कर दिया है, अब बाकी सारी बातें सरेआम खोल खोल
कर लिखूं ये मुझे ज़रूरी  नहीं लगता ।
आप समझ सकते हैं  कि  हमारे जवानों को बचाने के लिए पैसा
और  नक्सलवादियों  की जान  अगर पानी की तरह बहाने  पड़ें
तो भी सौदा मंहगा नहीं है ।
जय हिन्द !
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Labels: नक्सलवाद सामयिक आलेख चिदम्बरम
तुम श्लील कहो, अश्लील कहो, जो दिखता है वो लिखता हूँ मन्दिर में नहीं, मण्डी में हूँ , जो बिकता है वो लिखता हूँ
अविनाश वाचस्पति जी !
आज पहली बार आपने एक  ऐसी टिप्पणी की है जो मुझे आपकी नहीं
लग रही बल्कि  किसी  और के  कहने पर अथवा दबाव  पर  की गई 
कुचरनी  लगती  है । जो भी हो,  मुझे अपने लेखन के बारे में कोई
सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है  क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैंने क्या 
लिखा है  यदि पढ़ने वाला उसके मर्म तक न पहुंचे तो  लेखक का
कोई दोष  मैं नहीं समझता ।
पहली बात  तो इकसठ- बासठ  वाली पंक्तियाँ  चेतावनी की
पंक्तियाँ हैं,  हास्य में शिक्षाप्रद  पंक्तियाँ हैं,  दूसरी बात  ये कि 
पंक्तियों में कहीं कोई  बेहूदा या गन्दा शब्द प्रयोग नहीं किया
गया है ।  तीसरी बात .......केवल यही दो पंक्तियाँ समझ में
आयी क्या ?  ग़ालिब और केवट क्या  ऊपर से ही निकल
गये .............?
जाने दीजिये,  क्या रखा है  इन  बातों में..........
आप  मेरे आदरणीय हैं, 
भले ही  आपका नैकट्य  मेरे कुछ  स्पर्धियों से अधिक है, लेकिन
 आप आप ही रहिये, किसी दूसरे  को अपना कन्धा मत दीजिये 
बन्दूक चलाने के लिए........क्योंकि  ये  वो लोग हैं जो कल किसी
और का कन्धा  आप के खिलाफ़ भी कर सकते हैं
बहरहाल.......... 
तुम श्लील कहो,  अश्लील कहो,  जो दिखता है  वो लिखता हूँ
मन्दिर में नहीं,  मण्डी में हूँ ,  जो बिकता है वो लिखता हूँ
ये  भी मैंने ही लिखा और पोस्ट किया था ...............देखा नहीं
आपने.......टिपियाया नहीं आपने ...इकसठ -बासठ पर ऐसे
अटके कि आगे गिनती ही भूल गये.................
आपकी जय हो !
जय हो !
एक नज़र मार लीजिये इधर भी :
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http://albelakhatris.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
http://hindihasyakavisammelan.blogspot.com/2010/05/blog-post_17.html
http://albela-khatri.blogspot.com/2010/05/blog-post_18.html
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http://khatrialbela.blogspot.com/2010/05/blog-post_17.html
http://albelakhatrisurat.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
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Labels: एक तमाशा मेरे आगे
देश की चिन्ता करने वाले घर की चिन्ता करना सीख
टिप्पणियों पर मरने वाले  विज्ञापन पे मरना सीख
क्या रखा है वाह वाह में,  नगद  कमाई करना सीख
घण्टों तक कम्प्यूटर से चिपका तो पत्नी उखड़ जाएगी
देश की चिन्ता करने वाले  घर की चिन्ता करना सीख
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Labels: हास्य कविता मज़ाहिया funny poem
इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-हकीम, नियमपूर्वक सुबह -शाम जो इकसठ बासठ करते हैं
महिलाओं से नैन मटक्का लोग फटाफट  करते हैं
नहीं चाहिए ऐसा करना,  जानते हैं, बट  करते हैं
हम पर आँख उठाने वाले याद रखें इस जुमले को
जो हमको ऊँगली करता है, हम उसको लट्ठ करते हैं
इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-हकीम
नियमपूर्वक सुबह -शाम जो इकसठ बासठ करते हैं
सत्य कथा और डेबोनेयर को लोग सफ़र में पढ़ लेते
ग़ालिब का दीवान तो घर में तिलचट्टे चट करते हैं
हो जाते होंगे भवसागर पार राम के सुमिरन से
उसी प्रभु श्रीराम को सरयू पार तो केवट करते हैं
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Labels: हास्य कविता मज़ाहिया funny poem
दिल पे मत लो.......बस..मज़ा लो इस नये ज़माने की नयी बातों का
ज़माना बदल गया है भाई............
पहले बाप के बाप को बाबा कहते थे,
आजकल बेटे के बेटे को बाबा कहते हैं
पहले जीम  के ( खा के ) सेहत बनाते थे
आजकल  जिम में ( जा के ) सेहत बनाते हैं
बदलाव के इस दौर में
संस्कृत के एक श्लोक का नया अर्थ देखिये.......
सर्वे  भवन्तु सुखिनः  सर्वे सन्तु निरामया
____सर्वे करने पर पाया गया कि 
सारे भवन निर्माता  सुखी हैं और सारे  सन्त नीरा पी कर  
माया में  पड़े हैं
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Labels: हास्य-व्यंग्य humor fun
आनन्द दे रहा है मयंक का बुढापा , अंगूर के सारे मज़े किशमिश में आ गये हैं
अब कौन कितना  और क्या  लिखता और सोचता है यह तो मैं
आंकलित नहीं कर सकता , लेकिन एक वर्ष  हो गया  मुझे भी
ब्लोगिंग  में.........इसलिए  मैं  एक बात तो अनुभव के आधार
पर ज़रूर कह सकता हूँ कि  यदि कोई  ब्लोगर  सतत  सेवा कर
रहा है  और न केवल सेवा कर रहा है  बल्कि मज़े ले ले कर सेवा
कर रहा है तो वो है  आदरणीय  रूपचंद्र शास्त्री मयंक..............
इस उम्र में  उनकी ऊर्जा प्रणम्य है
इस उम्र में  उनकी  सृजनशीलता  अनुकरणीय  है
इस उम्र में भी रोज़ नई ?
एक नहीं कई कई  !
कविताओं  के  इस  पवित्र स्रोत को  मेरा नमन ।
सभी को अक्षय तृतीया  की बधाई
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Labels: अपनी बात
जो सुलूक कवि सम्मेलन के आयोजकों ने एक वरिष्ठ शायर के साथ किया क्या वही सुलूक क्रिकेटरों के साथ करने का माद्दा BCCI में है ?
जिस प्रकार  धोनी के धुरन्धर ज़ोरदार तरीके से शानदार  हार  ले कर
वेस्ट इंडीज़  से  आये हैं  उससे  एक बात तो तय हो गई है  कि  भारत
का कोई सानी नहीं दुनिया में...........भारत की पावन परम्परा  के
ध्वजवाहक ये  क्रिकेटर  न केवल सम्माननीय हैं  बल्कि पुरुस्कारनीय
भी हैं ।  इतनी करारी  पराजय के बाद भी पब में जा कर  मस्तीखोरी
और नैन-मटक्का  करके इन्होंने  साबित कर दिया कि सन्तों का
उपदेश व्यर्थ नहीं गया " हानि लाभ, जनम मरण , यश अपयश विधि
हाथ" के सूत्र पर चलते हुए  इन महामनाओं ने  हार-जीत से  कमसे
कम  4-4 बोतल बियर ऊपर उठ कर अपनी ज़िन्दा दिली का
परिचय दिया है ।
मैं तो कहता हूँ ये जितने  भी विदेशी खिलाड़ी  हैं चाहे किसी भी देश के
हों, सब के सब नमक हराम हैं ...जिसके यहाँ जाते हैं, जिसका  खाते
पीते हैं, उसी को हरा के चले आते हैं । अपने भारतीय  खिलाड़ी ऐसे
नमक हराम नहीं हैं , ये जहाँ जाते हैं, जिसका खाते हैं  उसके
मान-सम्मान पर चोट नहीं आने देते........ख़ुद की चाहे  चड्डी भी फट
जाये  लेकिन लोगों की पतलून पर  बुरी नज़र नहीं डालते..........
लेकिन  एक बात है..........ज़रा गौर करना............
अभी  8 मई को  मध्य प्रदेश के  जावरा  नगर में एक विराट कवि
सम्मेलन सम्पन्न हुआ । विराट इसलिए कह रहा हूँ  क्योंकि  उसमें
मैं भी था,,,,,,,,,,,,हा हा हा हा ............... उस कवि सम्मेलन में एक
शायर  आये थे रामपुर से..  ताहिर फ़राज़  जो कि मंच संचालक की
गलत  कारगुजारी के चलते हूट हो गये...........
हालांकि वे एक बेहतरीन  शायर हैं और खूब जमते हैं मंच पर, लेकिन
उस दिन वहाँ उन्हें शुरू में ही खड़ा कर दिया  और वे कोलाहल की
भेन्ट चढ़ गये.. संचालक चूँकि आयोजकों का मित्र था  इसलिए
उसका तो  कुछ बिगड़ा नहीं, लेकिन बेचारे शायर को  बहुत फटकारा
कविसम्मेलन के आयोजकों ने ये कहते हुए कि  आप तो बिलकुल
भी जमे नहीं ।  साथ ही  उसके मानधन में से  आधे रुपये  भी काट
लिए...........
वो शायर कितना  अज़ीम है  ये आप उसका एक शे'र  पढ़ कर
जान जायेंगे...
वो सर भी काट देता तो होता न कुछ मलाल
अफ़सोस ये है उसने मेरी बात काट दी
मैं कहना ये चाहता हूँ  कि  जो रुख  कवि सम्मेलन के आयोजक
संस्कृति संगम  ने एक शायर के साथ अपनाया , क्या वही रुख
BCCI को  अपनी क्रिकेट टीम के साथ अपनाते हुए  उनकी फीस
नहीं काटनी चाहिए और   हार के बदले  जूतों के हार पहना कर
प्रताड़ित नहीं करना चाहिए ताकि भविष्य में  वे हार और जीत में
फ़र्क कर सकें......
हालांकि जो मैं कहना चाहता था वो तो छूट ही गया क्योंकि मैं भी
भटक गया  लेकिन अब चूँकि पोस्ट लम्बी हो गई है सो  फिर
कभी.लेकिन मेरे मन में जो आक्रोश  है..क्या आपके भी मन में है ?
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