चाँद : दो कुंडलिया
कविता लिख दूँ चाँद पर, यदि तुम करो पसन्द
मेरा तो इक लक्ष्य है, उर उमड़े आनन्द
उर उमड़े आनन्द, सुरतिया खिल खिल जाये
काश ! किसी उर्वशी से अपना उर मिल जाये
जीवन के मरुथल में बह जाये रस सरिता
करूँ समर्पित मैं तुमको अपनी हर कविता
चन्दा केवल एक है, अनगिन यहाँ चकोर
सभी ताकते चाँद को हो कर भाव विभोर
हो कर भाव विभोर, इश्क़ में मर जाते हैं
पर दीदारे-यार वो मन भर कर जाते हैं
हाय मोहब्बत ही बन जाती है इक फन्दा
कितने आशिक जीम गया यह ज़ालिम चन्दा
जय हिन्द
-अलबेला खत्री
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आपकी यह रचना कल शुक्रवार (14-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
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