सृष्टि के स्टेडियम में,
धरती की पिच पर,
श्वास श्वास ओवर है, प्राण का विकेट है
काल गेंदबाज़ और
देह बल्लेबाज़ है जी,
अम्पायर धर्मराज, कर्म रन रेट है
फ़ील्डिंग बीमारियों ने,
रखी है सम्हाल और
विकेट कीपिंग पर यमराज सेट है
एक दिन गिल्लियों का,
उड़ना सुनिश्चित है,
ऐसा लगता है मानो जीवन क्रिकेट है
-अलबेला खत्री
जय हिन्द
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (24-06-2013) को अनसुनी गुज़ारिश और तांडव शिव का : चर्चामंच 1286 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मंडुक मुख मोरिही मैं, टर टर करत सुहाए ।
बाहन नीच कुचल मरे, गलियन बिच निकसाए ॥
भावार्थ : -- मेडक का मुँह, नाली में ही टर टराते हुवे अच्छा लगता है ।
गली में निकल कर बीच रस्ते उछल कूद करने से वाहन के नीचे आकर
मरने का खतरा रहता है ॥
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