गरजना
बादल की उकताई और चिल्लाहट है
बरसनाबादल का मदमाना और मुसकाहट है
बादलजब तक बादलों से टकराता है,
बेचारा बोर होता है
लेकिन
बादल जब बादली से मिलता है
तो भाव विभोर होता है
बादल का बादल से घर्षण
दोनों को ही क्या आकर्षण
कितना भी कर लें संघर्षण
किन्तु नहीं हो सकता वर्षण
बादल जब तक आपस में टकराते हैं
केवल बिजलियाँ ही पैदा कर पाते हैं
वे कामाग्नि में दग्ध हो, चिल्लाते हैं
गरज गरज कर अपना रोष दिखाते हैं
तड़प तड़प कर
बिलख बिलख कर
हाहाकार मचाते हैं
भड़क भड़क कर
कड़क कड़क कर
बिजली ख़ूब गिराते हैं
लेकिन जब बादल बादली से मिलता है
तभी हृदय में प्रेम का शतदल खिलता है
चिल्लाना बन्द हो जाता है
बिजली गिरना रुक जाता है
रौद्ररूप को त्याग वो झटपट
विनय भाव से झुक जाता है
दोनों बदन उत्तेजित होते
दोनों मन ऊर्जस्वित होते
चरमबिन्दु पर पहुंचे मिलन जब
बान्ध तोड़, होता है स्खलन जब
बदली तृप्ति से खिल जाती
बादल को तुष्टि मिल जाती
मन भर जाता, भारी हो कर नम हो जाता है
तब आन्सू का क़तरा भी शबनम हो जाता है
बादल-बदली की रूहें
जब हर्षा जाती हैतब वर्षा आती है
तब वर्षा आती है
तब वर्षा आती है
बदरा जब तक बदली से मिलता नहीं है
उसके मन का मोगरा खिलता नहीं है
ये बादल बड़े हठीले हैं
जब तक स्वयं सरसते नहीं हैं
बाहर कितना भी गरजें
पर भीतर से ये बरसते नहीं हैं
इसलिए लोग कहते हैं कि गरजने वाले
बरसते नहीं हैं
बरसते नहीं हैं
बरसते नहीं हैं
-अलबेला खत्री
4 comments:
बादलों पर सुन्दर रचना रची है आपने!
वाह क्या कल्पना की है अलबेला जी बहुत खूब
नमस्कार
आपकी यह रचना कल बुधवार (26-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधार कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य रखें |
सादर
सरिता भाटिया
सुन्दर रचना
सुन्दर रचना रची
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