अभी कुछ दिन पहले मैंने एक पोस्ट में हिन्दी कवि सम्मेलनों पर चर्चा करते हुए कुछ विसंगतियों अथवा विकृतियों पर दुःख व्यक्त किया था जिसे कुछ लोगों ने सराहा और कुछ ने कराहा .....लिखा मैंने इसलिए था क्योंकि मैं इसके लिए स्वयं को अधिकृत मानता हूँ और अधिकृत इस बिना पर मानता हूँ कि मैंने कविता के मंच को 27 साल तक जिया है . कविता के मंच पर इससे लेकर उस तक सभी के साथ बैठने और काव्यपाठ करने का अनुभव मेरे मानस पटल पर अंकित है . कविता और कवि सम्मेलन मेरे लिए कोई शगल नहीं बल्कि रोज़ी रोटी है . मेरे घर का चूल्हा शब्द से प्राप्त अर्थ से जलता है इसलिए इसके भले बुरे की चिन्ता करना मेरा परम धर्म है .
देश-विदेश में जहाँ भी जाता हूँ, कवि सम्मेलन को उन्नत बनाने की ही कोशिश करता हूँ . तो क्या मेरा यह दायित्व नहीं कि मैं इसके गुणगान के साथ साथ इसके स्वरूप को सुन्दर रखने का प्रयास भी करूँ ..........मेरे प्रिय मित्र और सुप्रसिद्ध कवि आदरणीय अरुण जैमिनी ने अभी एक भेंट में मुझे समझाया कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए ...क्योंकि कवियों की आपस की बात बाहर जाने से कवि सम्मेलन की शान घटती है ............भाई अरुण जैमिनी अपनी जगह सही है क्योंकि वो मानते हैं कि थोडा बहुत तो चल जाता है परन्तु मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ ...क्योंकि मैं समझता हूँ कि कवि सम्मेलन की शान सच कहने से नहीं, बल्कि अहंकार के नशे में चूर चन्द कवियों की उन ओछी हरकतों से घटती है जिनका मेरे पास पूरा लेखा -जोखा है ....और जिन्हें मैं एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित भी कर रहा हूँ .....किस किस तरह से कवि सम्मेलन को षड़यंत्र पूर्वक पतन के मुंह में धकेला गया है, कितनी प्रकार से घेराबंदी करके कविता और कवि के साथ क्या क्या किया गया है, इसका समूचा नहीं तो न सही, परन्तु थोड़ा सा हिसाब मेरे पास है .......आज से दस साल पहले जब हास्यकवि श्याम ज्वालामुखी ने मुझसे मार खाई थी तो अकारण ही नहीं खाई थी .....इसके अलावा विभिन्न शहरों में जिन जिन कवियों की अन्य कवियों ने, पब्लिक ने और आयोजकों ने जो कुटाई की है वह कोई प्रायोजित कार्यक्रम नहीं थे, बल्कि उन्हीं के कर्म थे जो बर्दाश्त के बाहर हो गए थे ...
हम कलमकार हैं तो हमें सच को स्वीकार करने का हौसला भी दिखाना चाहिए ....अगर हम भी अपने या अपनों के ऐब छुपायेंगे तो फिर नेताओं में और हम में फर्क ही क्या रहेगा ? एक दूसरे की ढांकने का काम तो वे भी कर ही रहे हैं ....क्यों पाठक मित्रो ! क्या मैं ठीक कह रहा हूँ या गलत ?
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
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