आज एक हास्य कवि सम्मेलन की टीम तथा बजट पर बातचीत के दौरान जब
आयोजक ने मुझसे कहा कि "हम आपके कवियों को केवल शाकाहारी भोजन ही
उपलब्ध करा पाएंगे" तो मुझे बड़ी हैरत हुई ...............मैंने कहा, " ऐसा कहने
की आपको ज़रूरत ही क्यों पड़ी ? क्योंकि कवि तो सरस्वती के साधक होते हैं
इसलिए शाकाहारी ही होते हैं और हम लोग शाकाहारी भोजन ही करते हैं"
तब उन्होंने बताया कि वे भी पहले ऐसा ही समझते थे परन्तु गत वर्षों में उन्हें जो
कटु अनुभव हुए हैं उनकी पुनरावृत्ति न हो, इसलिए बात पहले ही स्पष्ट कर रहे हैं कि
उनके परिसर में मांसाहार नहीं मिलेगा ........
मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे गाल पर थप्पड़ मार दिया हो
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
hasyakavi albela khatri |
2 comments:
आपकी यह रचना आज बुधवार (16-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 147 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
एक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
रोचक है।
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