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ताज़ा टिप्पणियां

Albela Khatri

मुझे इसका गहरा अवसाद है, फिर भी आपका धन्यवाद है



जैसे

उजाला

छूने की नहीं, देखने चीज़ है


वैसे

आनन्द

देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है


और

हम मानव

अनुभव की नहीं, आज़माइश की चीज़ हैं

यदि आपको इस प्रकार की तमीज़ है

तो शेष सभी बातें बेकार हैं, नाचीज़ हैं


क्योंकि

व्यक्ति एक ऐसी इकाई है

जो दहाई से लेकर शंख तक विस्तार पा सकती है


इसी प्रकार

आस्था एक ऐसी कली है

जो कभी भी सतगुरु रूपी भ्रमर का प्यार पा सकती है


धर्म और धार्मिकता

एक नहीं

दो अलग अलग तथा वैयक्तिक उपक्रम हैं

जिन्हें लेकर समाज में बहुत सारे भ्रम हैं

जब तक इन पर माथा नहीं खपाओगे

जीवन क्या है ? कभी नहीं जान पाओगे


तुमने अनुभव किया है मानव को, आज़माया नहीं

इसलिए

मुझ मानव का वास्तविक रूप समझ में आया नहीं


काश तुम ज़ेहन से नहीं, जिगर से काम लेते

तो आज ज़िन्दगी में यों खाली हाथ नहीं होते

मुझे इसका गहरा अवसाद है

फिर भी आपका धन्यवाद है



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10 comments:

Arvind Mishra December 5, 2010 at 7:58 PM  

खाली हाथ तो सभी को ही हो जाना है ,केवल एक की बात क्यों ? दार्शनिक भाव की रचना ...सारी कविता !

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι December 5, 2010 at 8:25 PM  

काश ज़ेहन से नही जिगर से काम लेते तो,
आज ज़िन्दगी में खाली हाथ न होते।

सुन्दर अभिव्यक्ति।

परमजीत सिहँ बाली December 5, 2010 at 11:03 PM  

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं। बधाई।

केवल राम December 6, 2010 at 8:56 AM  

आनन्द
देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है
xxx
अलबेला जी
दर्शन समाहित कर दिया आपने ...क्या कहें ...शुक्रिया

Urmi December 6, 2010 at 9:07 AM  

काफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ! देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार कविता लिखा है आपने! आनन्द देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है..ये बात आपने बिल्कुल सही कहा है!
आपकी टिपण्णी और उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

Aruna Kapoor December 6, 2010 at 11:48 AM  

....बहुत ही सुंदर शब्दों में आपने विचार व्यक्त किए है!..पढ कर बहुत अच्छा लग रहा है!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " December 6, 2010 at 1:23 PM  

sampoorn manav jeeva ka hi vishleshan kar diya apne..
rachnadarm ki vividhta to aapki vishishtata hai hi ...

निर्मला कपिला December 6, 2010 at 3:29 PM  

सुन्दर अभिव्यक्ति।ापका भी धन्यवाद है।

Anonymous December 7, 2010 at 6:29 AM  

sundar kavita

Radhika Gupta December 7, 2010 at 6:32 AM  

alfaz nahin mere pas aapko shukriya kahne bke liye lekin itna zarur kahungi ki sukoon mila ek achi nazm padh kar

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