अस्थमा, हार्ट अटैक और मिरगी के रोगियों के लिए जानलेवा साबित होने वाले
धूल, धुंआ, रासायनिक गंध और कानफाड़ू शोर करके पर्यावरण को दूषित और
बच्चों व बुज़ुर्गों को परेशान करने वाले पटाख़े रात भर बजाये जा सकते हैं इन
पर कोई पाबंदी नहीं ... परन्तु सरस, साहित्यिक, सुसांस्कृतिक एवं समाज को सही
दिशा के साथ साथ स्वस्थ मनोरंजन देने वाले कवि सम्मेलन के लिए रात 11 बजे
ही समय सीमा समाप्त ....
जय हो तुम्हारी सरकार वालो !
क्या कविता का स्वर पटाखों के कोलाहल के मुकाबले अधिक असह्य होता है ?
जय हिन्द
-अलबेला खत्री
hasyakavi albela khatri presents hasya kavi sammelan in puruliya |
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2 comments:
कवियों और कवि सम्मेलनों की सीमा निर्धारित न हों।
सरकारें आवाज़ से बहुत डरती हैं
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