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Albela Khatri

चार कह-मुकरियां



मुख मण्डल उसका सतरंगा 


सबका भेद करे वह नंगा 


आज हि काम का कल बेकार 


क्या वह टीवी ? नहीं अखबार 




देह है भूरी मुख है लाल 


पिछवाड़े से मुँह में डाल


बारिश में हो जाती चीड़ी


क्या वह कीड़ी ? नहिं भाई बीड़ी 




रोज़ रात को मुँह में डालूं


चूस चास के पूरा खा लूँ 


हाय वो मीठे रस की खान 


क्या रसगुल्ला ? नहिं भई पान 




गुड़ से ज़्यादा मीठी लागे


उसके पीछे मनवा भागे 


नूरी नूरी रौशन रौशन 


क्या वह सजनी ? नहीं पड़ोसन

-अलबेला खत्री 

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2 comments:

Ramakant Singh July 24, 2012 at 10:16 PM  

वाह बहुत खूब

pran sharma July 24, 2012 at 10:55 PM  

kavita ke sabhee bandhon ne gudgudaayaa hai .

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