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Albela Khatri

एक कविता ..... सुधा ओम ढींगरा के लिए

तुम गहरी हो
समन्दर से भी ज़्यादा गहरी
मगर खारी नहीं हो

तुम विराट हो
वसुन्धरा से भी अधिक विराट
मगर भारी नहीं हो

तुम गतिमान हो
पवन सरीखी सतत गतिमान
पर उड़ाती नहीं हो

तुम ओजस्वी हो
अग्नि से भी ज़्यादा ओजस्वी
पर जलाती नहीं हो

तुम असीम हो आकाश की तरह
पर बिजलियाँ नहीं गिराती
तुम उज्ज्वल हो प्रकाश की तरह
किन्तु परछाइयां नहीं बनाती


तुम्हारा स्वभाव नदी सा है
बस ......बहती जाती हो
छुपाती नहीं कभी भी, कुछ भी
सब...... कहती जाती हो

प्रवाह तुम्हारा तटों को तोड़ सकता है
सामर्थ्य तुम्हारा मार्ग मोड़ सकता है
लेकिन मोड़ता नहीं
यही इक अन्तर है तुम में और नदी में
कि तुम्हारा अस्तित्व कभी भी
मर्यादा छोड़ता नहीं

लाख चेहरे बना सकती हो
लेकिन हमेशा एक रखती हो
क्योंकि इरादा नेक रखती हो

मैंने तुम्हें परखा है..
तुम्हें जाना है
और उसके बाद ही
ये माना है
कि जग बदल सकता है
ये सब बदल सकता है
लेकिन तुम न बदलोगी.......................
कभी न बदलोगी .............................

क्योंकि तुम सच हो, सच का चरित्र हो
अमेरिकन फ्रेम में भारत माँ का चित्र हो
माँ ने कहा था
तुम्हारे लिए
तलाश पहचान की
जब पूर्ण होगी
तो
मेरा दावा है
चेतना का स्वर ॐ की ध्वनि में विभु को पुकारेगा
और जालंधर से कैरी तक तुम्हारा रास्ता संवारेगा
तुम यों ही बहती रहो सतत
यही मेरी अन्तर्भावना है
सुधा सदैव सुर्खियों में रहो
यही मेरी शुभकामना है

16 comments:

हरिराम June 16, 2009 at 5:38 PM  

वस्तुत सुधा जी "सुधा" ही हैं, लेश मात्र "गरल" नहीं।

neeraj1950 June 16, 2009 at 5:46 PM  

बहुत सुन्दर विचार...मैं सुधा धींगरा जी से मिला नहीं लेकिन उनके बारे में तेजेंद्र जी प्राण साहेब महावीर जी और मेरे अजीज़ चाँद शुक्ला जी से उनके बारे बहुत सुना है....अब आपकी कविता से उनकी छवि में और निखार ही आया है...
नीरज

ओम आर्य June 16, 2009 at 5:48 PM  

bahut sunda bhai

Udan Tashtari June 16, 2009 at 5:55 PM  

इस सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ सुधा जी के लिए हमारी शुभकामनाऐं भी दर्ज कर ली जायें.

दिनेशराय द्विवेदी June 16, 2009 at 6:12 PM  

सुंदर भेंट!

रंजीत/ Ranjit June 16, 2009 at 6:32 PM  

Bahut badhiyaan . andar tak bhed gayee.

स्वप्न मञ्जूषा June 16, 2009 at 7:31 PM  

wahhh wahhh, bahut khoobsurat, Sudha ji aapko badhai ho aur Albela ji dhanyawaad

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` June 16, 2009 at 8:52 PM  

अमेरिकन फ्रेम में भारत माँ का चित्र हो
अरे वाह ! ये आपने,बहुत अच्छा लिखा है और सुधा जी सचमुच ऐसी ही हैँ जैसा आपने लिखा है

Dr. Sudha Om Dhingra June 16, 2009 at 9:49 PM  

अलबेला भाई,
आपने रुला दिया. ऐसा नहीं करते. भाई को तो बहन अच्छी लगती ही है.इतना मत आसमान पर चढ़ाओ कि वापसी का रास्ता ही न मिले. आप को तो पता ही है कि मैं ज़मीन का प्राणी हूँ और उसी से जुड़ी रहना चाहती हूँ. कविता के बारे में क्या कहूँ?
शब्द नहीं--बस रो रही हूँ.....
इसी तरह स्नेह बनाये रखें...
ढेरों आशीर्वाद...
आपकी दीदी,
सुधा

Unknown June 16, 2009 at 10:15 PM  

sudhaji,
namaskaar.
aap mere blog par aayin aur apni snehil tippani dee,
kritagya hoon.
mere jhooth ko aapne sadaiv asweekrit kiya hai aur sach kahne ki seekh dee hai......isliye mujhe bhrosa hai ki aaj aap is kavita ko avashya sweekar karengi....
maine jo likha hai vah kalpanaa nahin, sach hai aur sach likhna kisi bhi drishti se tyajya nahin hai,chahe vah kisi k samman me hi kyon na ho.........
aapke aane se mera blog dhnya ho gaya ....
aate rahiyega
achha lagta hai
saabhaar,
ALBELA KHATRI

राज भाटिय़ा June 16, 2009 at 10:29 PM  

बहुत ही सुंदर कविता.

pran sharma June 17, 2009 at 1:38 AM  

ALBELA JEE,
AAPNE KAVITA MEIN SUDHA JEE KO BADEE
KHOOBSOORTEE SE CHITRIT KIYAA HAI.SUDHA JEE KEE
KYAA BAAT HAI.JAESAA NAAM HAI UNKAA VAESA GUN
BHEE HAI UNMEIN.ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO
BADHAAEE.

Dr. Om Dhingra June 17, 2009 at 4:16 AM  

अलबेला जी,
आप की कविता पढ़ी, ख़ुशी हुई कि आप सुधा को कितनी अच्छी तरह से समझते हैं.आप तो जानते ही हैं कि मैं ठहरा वैज्ञानिक, महसूस करते हुए भी कुछ कहना और भावनाओं को लिख पाना मेरी सीमाओं से परे है. आज ऐसा लगा कि सुधा और मेरा साथ आप ने अपनी कविता में उड़ेल दिया. मैं जो वर्षों से नहीं कह पाया आप ने कह दिया. अलबेला जी, सुधा ऐसी ही है, मैं तो रोज़ इसके साथ जीता हूँ. बेहद संवेदनशील, बुद्धिमान, सुघड़, सुलझी हुई पर स्वभाव से बेहद सादा. हरेक की अच्छाई अपने साथ रखती है. बाकि उसे कुछ याद नहीं रहता. सुधा के व्यक्तित्व, कृतित्व और अस्तित्व के बारे में सुन्दर कविता लिखने का आभारी हूँ.
सादर,
ओम ढींगरा

Devi Nangrani June 17, 2009 at 7:39 AM  

अलबेला जी,
अल्ब्लेपन का जवाब नहीं, दिल से कही बात में कुछ तो है जो पढ़कर लगा सुधा इन सभी सचाइओं की हक़दार है

सच कहा है:
चेतना का स्वर ॐ की ध्वनि में विभु को पुकारेगा
और जालंधर से कैरी तक तुम्हारा रास्ता संवारेगा
और जालंधर से कैरी तक तुम्हारा रास्ता संवारेगा
तुम यों ही बहती रहो सतत
यही मेरी अन्तर्भावना है
सुधा सदैव सुर्खियों में रहो
यही मेरी शुभकामना है

बहुत ही हार्दिक शुभकामनाओं के साथ यही कह सकती हूँ कि सुधा कल कल बहती एक सरिता का नाम है, जिसमें स्वछता है, पाकीज़गी है और निस्वार्थ भाव है, शायद इसलिए वह फकत सहित्य की सरिता बन कर देश विदेश के बीच का पुल बनी हुई है. नारी जाती के लिए बहुत ही गर्व की बात है,

देवी नांगरानी

अजित वडनेरकर June 17, 2009 at 8:52 AM  

बहुत बढ़िया।

vijay kumar sappatti June 17, 2009 at 2:03 PM  

albela ji ,,

aapne to itna accha likha hai ki l jaise hum sudha ji ko dekh rahe ho.. is kavita ko padhkar unko jaana ab poora ho chuka hai ..

badhai sweekar karen.

aapka
vijay

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