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Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

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Albela Khatri

बलात्कार को पाशविक कृत्य मत कहो .......प्लीज़ !

घृणित कहो
बर्बर कहो
जघन्य कहो
शर्मनाक कहो
अमानुषी कहो
घिनौना कहो

बहुत से शब्द हैं, कुछ भी कहो
लेकिन बलात्कार को पाशविक मत कहो
मुझे दु:ख होता है
बड़ा दु:ख होता है
मैं पशु नहीं

लेकिन पशुओं को जानता हूँ
वे ऐसा नहीं करते
कभी नहीं करते ........................


उन्होंने सीखा ही नहीं ऐसा करना
ये महारत तो केवल मानव ही करता है
और कर सकता है
क्योंकि
अभी केवल मानव ही इतना सभ्य और विकसित हुआ है
इसलिए
देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
पशुओं का नाम बदनाम न करो

19 comments:

ओम आर्य June 16, 2009 at 3:39 PM  

kya baat kahi .......mai to aapke is kawitaa par kurban ho gaya bhai

Anonymous June 16, 2009 at 3:41 PM  

kyaa baat haen itnae ghambhir muddae kaa ek aur pehlu jo satya haen
rachna

cartoonist anurag June 16, 2009 at 3:55 PM  

gsjsb ki rschna hai......
aadmi ka sahi chehra dikhaya hai aapne........

नितिन | Nitin Vyas June 16, 2009 at 4:13 PM  

बढ़िया!!

नितिन | Nitin Vyas June 16, 2009 at 4:14 PM  

बढ़िया!

अजय कुमार झा June 16, 2009 at 4:18 PM  

wah albela bhai..kya gajab kaa fark bataya aapne pashu aur insaan ke beech..

दिगम्बर नासवा June 16, 2009 at 4:25 PM  

वाह.............. कितनी gahri anubhooti से कही है यह बात........... सच कहा ये तो pashoo भी नहीं करते

M Verma June 16, 2009 at 4:53 PM  

वाह अलग ढंग से कहा गया यथार्थ
बहुत ही सुन्दर

ताऊ रामपुरिया June 16, 2009 at 4:56 PM  

बहुत सही कहा आपने.

रामराम.

Udan Tashtari June 16, 2009 at 5:04 PM  

वाकई, बेचारे पशुओं को खामखाँ बदनाम क्यूँ करना!

vijay kumar sappatti June 16, 2009 at 5:09 PM  

ek behad shashakt rachna ....aapki kalam ko salaam

शेफाली पाण्डे June 16, 2009 at 5:43 PM  

sateek likha......

संजीव June 16, 2009 at 5:48 PM  

samsamyik aur sattik .....sadhuvad

Anil Pusadkar June 16, 2009 at 5:59 PM  

अच्छी खबर ली नरपिशाचों की।

रंजन June 16, 2009 at 10:33 PM  

बहुत असरदार..

रूपसिंह चन्देल June 17, 2009 at 6:05 AM  

सुन्दर कविताएं. सुधा जी को समर्पित कविता बहुत ही प्रभावी है. बलात्कार कविता अपनी बात गहनता से सम्प्रेषित कर जाती है.

बधाई

रूपसिंह चन्देल

मुकेश पाण्डेय चन्दन June 17, 2009 at 1:44 PM  

gajab ji
jab janwar koi inshan ko mare wahshi use kahte hai sare .
aaj ek inshan ne janwar ki laj bacha li .
www.bebkoof.blogspot.com

Shruti June 17, 2009 at 5:43 PM  

लेकिन पशुओं को जानता हूँ
वे ऐसा नहीं करते
कभी नहीं करते ........................
देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
पशुओं का नाम बदनाम न करो


bahut sahi aur achha likha hai..

kalaam-e-sajal June 18, 2009 at 12:33 AM  

BILKUL THEEK KAHAA
मृगकन्या
जंगल में अधिक सुरक्षित
महसूस करती है
क्योंकि
वहाँ भेड़िया,
भेड़िया ही नज़र आता है,
उसके आदमी के खाल में होने का
डर नहीं है ,
क्योंकि
जंगल,
जंगल है,
शहर नहीं है।
DR. JAGMOHAN RAI
www.jagmohanrai.blogspot.com

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