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Albela Khatri

सबूत तो उठालो हवलदारजी..............

गणपत भाई को मुफ़्त का माल दबाके खाने की और सुबह सुबह बगीचे में टहलने की आदत हैएक दिन टहलते हुए उन्हें अचानक लगा कि रात का खाया हुआ माल पूरी तरह जाग्रत होगया है और पूर्ण स्वतंत्रता के लिए अड़ गया है , जल्दी ही उसे आज़ादी मिली तो विद्रोह कर देगा इसलिए जल्द से जल्द घर जा कर उसे मुक्ति देनी ज़रूरी है लेकिन संकट ये था कि घर दूर है और देह मजबूर है

जब पेट पूरी तरह बगावत पर उतर आया तो हालत से मजबूर बेचारे वहीं एक कोने में बैठ गए 'गुडमोर्निंग' केलिए, तभी हवलदार ने उन्हें दबोच लिया और वह बोर्ड दिखाया जिस पर लिखा था कि यहाँ यह करना मना है

हवलदार : चलो मेरे साथ......................
गणपत : हाँ हाँ चलो, मैं कपड़े ठीक करता हूँ तब तक तुम सबूत उठालो हवलदारजी ...

5 comments:

संजय बेंगाणी June 9, 2009 at 4:33 PM  

जोर से हँसी आ गई. आस पास के लोग देखने लगे तो मूँह दबा लिया.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" June 9, 2009 at 5:27 PM  

ये नगर पालिका वाले भी बड़े वाहियात किस्म के लोग होते है, दूसरे की मजबूरी क्या है, जब तक इनकी खुद को ना धोनी पड़ जाए नहीं समझते ! बस दीवार पर लिख देंगे, "देखो गधा....."! इन दुर्जनों को कौन समझाए कि केवल गधा ही.... सकता है क्या ? अब भला, बिना सुलभ सौचालय बनाए इन्हें बोर्ड टांगने की जरुरत क्या थी ?

ताऊ रामपुरिया June 9, 2009 at 5:46 PM  

:)

दिनेशराय द्विवेदी June 9, 2009 at 5:46 PM  

हँसी तो बेतहाशा आई, पर नाक पर रुमाल भी रखना पड़ा।

Science Bloggers Association June 9, 2009 at 6:05 PM  

बहुत बढिया।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

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