वाह रे विष वास !
मेरे मुक्तक को अपने बाप का माल समझ कर बेच रहा है
आज ज़ी न्यूज़ पर DNA कार्यक्रम में कुमार विषवास को नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ में बालकवि बैरागी की एक कविता पढ़ते हुए सबने देखा, साथ ही और भी बहुत कुछ बोलते दिखाया गया - मुझे ये कहना है कि उस बहुत में 'बहुत' तो उसी का था लेकिन 'कुछ' जो था वो अलबेला खत्री था --- उसने मेरा मुक्तक बिना मेरा नाम लिए, यों अधिकारपूर्वक सुना दिया जैसे वो मेरा गोद लिया हुआ बेटा हो और मैं उसका माना हुआ बाप हूँ
नरेन्द्र मोदी के गुजरात की तारीफ़ करते हुए उसने खुद की मातृभूमि उत्तर प्रदेश का कितना मज़ाक और मखौल उड़ाया है, उसका वीडिओ भी मैं आपको दिखाऊंगा लेकिन इस अवसरवादी और कविताचोर को आगे बढ़ाने में नरेन्द्र मोदी का बहुत बड़ा योगदान है, ये बात मुझे तो याद है, भक्कड़जी को भी याद है और गुजरात हिन्दी समाज वालों को भी याद है, लेकिन वो ऐहसानफ़रामोश भूल गया है ---- वो भूल गया है कि कितने प्रोग्राम, कितनी पब्लिसिटी और कितना धन उसे गुजरात से सिर्फ़ इस बिना पर मिला कि उस पर मोदीजी की कृपादृष्टि थी
उसके कई सक्रिय चेले चपाटे जो अक्सर फ़ेसबुक पर मुझे मेरी औक़ात याद दिलाते रहते हैं, मेरा उनसे खुला मशविरा है कि अगर उन्होंने उसके नाम का गंडा न बाँध रखा हो अथवा उससे कोई अनैतिक सम्बन्ध नहीं हों, तो पूछें उससे कि ये मुक्तक किसका है :
निग़ाह उट्ठे तो सुबह हो, झुके तो शाम हो जाए
अगर तू मुस्कुरा भर दे तो क़त्लेआम हो जाए
ज़रूरत ही नहीं तुमको मेरी बाँहों में आने की
जो ख्वाबों में ही आ जाओ तो अपना काम हो जाए
(1998 में प्रकाशित 'सागर में भी सूखा है मन' में शामिल अलबेला खत्री की यह और ऐसी अनेक रचनायें ( जो वह पढता है ) 1993 में फ़िल्म राइटर्स एसोसिएशन में पंजीकृत भी है, कॉपीराइट के बल पर मैंने आज तक कानूनी कार्रवाही केवल इसलिए नहीं की क्योंकि उसके कई चहेते कवि ( जिन्हें वह अपना चिंटू कहता है) मुझ पर आरोप लगाते कि मैं उसकी सफलता और लोकप्रियता से जलता हूँ
__हालांकि इस मुक्तक को एक और कवि बलवंत बल्लू भी सुनाता है परन्तु वो बेचारा विकलांग है, इसलिए मुझे उसके काम आने में कोई आपत्ति नहीं है परन्तु विषवास तो विकलांग नहीं है फिर क्यों औरों के मसाले बेच कर अपना घर भर रहा है ?
नज़ीर अकबराबादी और इकबाल जैसे पुराने शायरों से ले कर कुंवर बेचैन, हस्तीमल हस्ती होते हुए अलबेला खत्री तक सबकी कवितायें धड़ल्ले से सुनाता है कोई उस पर संज्ञान भी नहीं लेता, क्या यह इस बात का द्योतक नहीं है कि मंच पर बैठे बाकी सभी कवि केवल इसलिए खामोश रहते हैं कि सबकी अपनी अपनी व्यावसायिक सैटिंग है
जो आदमी अपनी मातृभूमि का मज़ाक उड़ा सकता है, अपनी बदतमीज़ियों से काव्य मंच को दूषित कर सकता है और जो इतना कुछ हासिल करके भी मोदी का कृतज्ञ न हो पाया, वो किसी केजरीवाल का या अमेठी का हो हितैषी हो जाएगा, ऐसा सोचना ही मूर्खता है
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
2 comments:
उफ़-
सुन्दर प्रस्तुति----
मकर संक्रांति की शुभकामनायें
आभार भाई जी-
उस पर से मेरा तो विश्वास पहले से ही उठ गया है... उसने हिन्दू त्रिमूर्ति की भी हंसी उडाई है.. पर सब चुप हैं!!! क्यों?
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