सियासत एक की दुल्हन नहीं कइयों की रानी है
ये है बदनामी मुन्नी की तो शीला की जवानी है
सियासी लोगों की आँखों में जो घड़ियाली आँसू हैं
इलेक्शन में तो मोती है, पर उसके बाद पानी है
शरम से दूर हो तुम भी, शरम से दूर हैं हम भी
नशे में चूर हो तुम भी, नशे में चूर हैं हम भी
तमाशातूर हो तुम भी, तमाशातूर हैं हम भी
अतः लंगूर हो तुम भी, अतः लंगूर हैं हम भी
सुअर कोई गन्दगी पर जो जा बैठा तो हंगामा
कुकुर कोई जो हड्डी को चबा बैठा तो हंगामा
था जिसके पास बरसों ताज दिल्ली की सियासत का
उसी पंजे को मैं झाड़ू थमा बैठा तो हंगामा
कोई चालाक कहता है, कोई आड़ू समझता है
मगर पंजे की मजबूरी को बस झाड़ू समझता है
वो उसके साथ कैसी है, वो उसके संग कैसा है ?
ये तो जिह्वा समझती है या बस लाड़ू समझता है
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (03-01-2014) को "एक कदम तुम्हारा हो एक कदम हमारा हो" (चर्चा मंच:अंक-1481) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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ईस्वीय सन् 2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूबसूरती से धरती की बेचैनी को समझा और बताया है आपने, हार्दिक बधाई हो;-))
सादर,
वाह वाह... यह बहुत सुन्दर है!!
Good bless
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