लोग कभी कभी पूछते हैं, "हर व्यक्ति के लिए मज़दूरी लाज़िमी क्यों होनी
चाहिये ?" मैं पूछता हूँ, "हर एक के लिए खाना क्यों ज़रूरी होना चाहिए ?"
पूछा जाता है कि ज्ञानी मज़दूरी क्यों करे ? व्याख्यान क्यों न दे ?
मैं पूछता हूँ कि ज्ञानी भोजन क्यों करे ? केवल ज्ञानामृत से ही तृप्त क्यों न
रहे ? उसे खाने,पीने और सोने की क्या ज़रूरत है ?
-विनोबा भावे
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
7 comments:
सत्य वचन महाराज !
प्रिय बंधुवर अलबेला जी
आप हमेशा सच ही कहते हैं …
अच्छा अच्छा ! विनोबा जी फ़रमा गए थे
वे कौनसे आपसे कम थे … :)
~*~ हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bilkul sahi baat kahi vinoba ji ne..
prastuti hetu dhanyavaad
इस वाक्य पर मेरा अभिमत है कि इस में मजदूरी शब्द का प्रयोग किया गया है वह उचित नहीं है। वास्तव में विनोबा जी का आशय ऐसे शारीरिक श्रम से है जिस से कोई सार्थक मूल्यवान वस्तु या सेवा का निर्माण होता हो। जब की मजदूरी का अर्थ है किसी दूसरे के लिए किसी मानदेय के लिए किया गया श्रम है। मजदूरी में शारीरिक और मानसिक श्रम दोनों सम्मिलित हैं। इस तरह यह वाक्य आज भ्रम ही उत्पन्न करेगा। लेकिन इस वाक्यांश में मजदूरी के स्थान पर शारीरिक श्रम को प्रतिस्थापित कर दिया जाए तो यह वाक्यांश सार्थक हो जाता है।
@shridineshrai dwivedi
main bilkul sahamat hoon aapke kathan se, shaaririk shram hi sahi shabd hoga, parantu maine jo padha, use jas ka tas isiliye post kar diya taki is par kisi ka dhyaan ja sake...... aapne dhyaan diya, aapka aabhari hoon
-albela khatri
बहुत सुंदर बात कही जी, बाकी दिनेश जी से भी सहमत हे, धन्यवाद
uttam vichar .....saty vachan.
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