पूज्य सन्त एवं समाज सुधारक श्रीमान तरुण सागर जी,
जय हिन्द !
शायद आपको याद हो, आज से कोई 7 वर्ष पूर्व सूरत के सिटी लाइट में
श्रीमान बांठिया जी के बंगले पर आप से मेरी भेन्ट हुई थी । समाजसेवी पत्रकार
श्री गणपत भंसाली जी के कहने पर मैं आपसे मिलने और आपके श्रोताओं को
नवकार महामंत्र पर रचित मेरा प्रख्यात गीत सुनाने गया था । वहां आप भी थे,
आपके शिष्य भी थे और अनेक भक्तजन भी थे। मैंने वहां नवकार महामंत्र वाला
गीत तो सुनाया ही जनता की डिमाण्ड पर अपनी विशेष कविता
"जीवन एक क्रिकेट है "
भी पढ़ी जिसे लोगों के साथ साथ आपने भी ख़ूब सराहा था ।
कार्यक्रम के बाद आपने अपनी एक पुस्तक "कड़वे वचन " मुझे प्रदान की थी
और "जीवन एक क्रिकेट है" कविता मुझसे लिखित में चाही थी । सो मैंने
अपनी एक पुस्तक "सागर में भी सूखा है मन" आपको भेन्ट कर दी थी
जिसमे उक्त कविता प्रकाशित है । यहाँ तक मुझे कोई परेशानी नहीं । मेरी
परेशानी उस दिन शुरू हुई जब कवि-सम्मेलन में मेरी इस कविता को
सुन कर लोग कहने लगे कि ये तो तरुण सागर जी की कविता है .
मैं समझ नहीं पाता था कि लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं । तब लोगों ने
बताया कि ये कविता हू बहू ऐसे ही तरुण सागरजी भी सुनाते हैं । मुझे
व्यावसायिक तकलीफ़ हुई लेकिन आत्मिक प्रसन्नता हुई कि किसी
सन्त ने मेरी कविता को इस लायक तो समझा .........सो मैंने इसे बर्दाश्त
कर लिया ।
परन्तु अभी आठ अप्रेल को हिन्दी दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों में
जब यह कविता आपके हवाले से छपी तो मेरे दुःख और क्रोध का कोई
ठिकाना नहीं रहा । क्योंकि मेरी कविता मुझे मेरे बच्चे जैसी प्रिय है
और मैं कतई सहन नहीं करूँगा कि मेरे बच्चों का बाप कोई और कहलाये ।
इसलिए एक अन्य कवि कुमार विश्वास पर लिखते हुए मैंने इस
घटना का ज़िक्र करते हुए आप पर भी कुछ कड़वे वचन लिख दिए थे ताकि
आपकी ओर से कोई स्पष्टीकरण मिले, परन्तु अभी तक आपकी ओर से कोई
उत्तर नहीं आया है इसलिए आज विनम्र निवेदन करता हूँ कि कृपया मुझ
पर दया कीजिये और इस कविता को अपने प्रवचनों में सुनाना या तो बन्द
कर दीजिये या ये कह कर सुनाइये कि ये कविता सूरत निवासी हास्य कवि
अलबेला खत्री की है । मेरा नाम लेने से आपका कुछ घिस नहीं जायेगा जबकि
नहीं लेंगे तो आप पर कविता की चोरी का पाप लगेगा और अचौर्य तो जैन
धर्म का अभिन्न अंग है ये मुझे बताने की ज़रूरत नहीं आप स्वयं जानते हैं ।
सन्त शिरोमणि जी,
मैं एक व्यावसायिक कवि हूँ , कविता मेरी रोज़ी रोटी है और किसी की रोज़ी
रोटी पर चोट पहुँचाना एक सन्त के लिए शोभा नहीं देती । ओशो रजनीश
का कथन है कि सबसे बड़ा चोर वो, जो किसी दूसरे के काम का श्रेय चुराता है
इसीलिए आप स्वयं देख लीजिये ओशो ने हज़ारों कविताओं को अपने
प्रवचनों में स्थान दिया लेकिन बाकायदा उस कविता के कवि का ससम्मान
उल्लेख कर के ही रचना का उपयोग किया ।
अब जो रचना मेरी है, जिसे रचा मैंने है, जिस रचना पर पूरा अधिकार मेरा है
और जिस रचना को सजाया संवारा और लोकप्रिय मैंने बनाया है उस रचना
को आप ले उड़ें वो भी मुफ़्त में.......ये तो कोई न्याय न हुआ । लिहाज़ा मेरी
प्यारी रचना "जीवन एक क्रिकेट है" को भविष्य में जब भी काम लें,
मेरे नाम के साथ लें । वरना दिल यही कहेगा कि "मेहनत करे मुर्गा और अण्डे
खाए फकीर !"
ऊपर मैंने अखबार में छपी कविता भी दर्शा दी है और अपने संकलन
'सागर में भी सूखा है मन' में छपी कविता भी दर्शा दी है । अपना रुदन विलाप
भी ढंग से ही कर लिया है । अब निर्णय आपको करना है ।
- अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
-
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
25 comments:
अफसोसजनक और दुर्भाग्यपूर्ण
संत को स्पष्टीकरण देना ही चाहिए |
@ रतन सिंह शेखावत
धन्यवाद शेखावत साहेब, शुक्र है कि कोई एक बन्दा तो सामने आया जो सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखता हो
आभारी हूँ
क्रान्तिदूत सन्त श्री तरुण सागर जी के प्रवचन मुझे भी बहुत अच्छे लगते हैं!
संत को स्पष्टीकरण देना ही चाहिए
@ सुनील कुमार जी !
धन्यवाद
आभारी हूँ
तरुनसागर जी ने बड़ी गलती की है, वे कड़वे प्रवचन करते है, कम से का कडवा काम तो न करे, उन्हें आपकी कविता का पाठ करते समय यह बताना ही चाहिए,''यह कविता अलबेला खत्री की है''. नाम से परहेज हो तो यह कहना चाहिए, ''किसी कवि ने कहा है'' ओशो यही करते थे. मोरारी बापू भी यही करते है. तरुण सागर भी करे. संत है तो बड़प्पन दिखाएँ...
तरुनसागर जी ने बड़ी गलती की है, वे कड़वे प्रवचन करते है, कम से का कडवा काम तो न करे, उन्हें आपकी कविता का पाठ करते समय यह बताना ही चाहिए की यह कविता अलबेला खत्री की है. नाम से परहेज हो तो यह कहना चाहिए, ''किसी कवि ने कहा है'' ओशो यही करते थे. मोरारी बापू भी यही करते है. तरुण सागर भी करे. संत है तो बड़प्पन दिखाएँ...
संत आ गया है स्पष्टीकरण देने.
सपष्ट किया जाता है कि आचार्य जी ने कविता को पसंद किया और उसे कंठस्थ भी किया . इसके बाद लोगों को सुनाया . प्रवचन कर्ता विषय के अनुसार बहुत से शेर और कविताएँ सुनाते ही हैं , आचार्य जी ने कभी नहीं कहा होगा कि यह रचना मेरी है. पत्रकार अपनी मर्जी से कुछ भी लिख देते हैं , ये न तो जानते हैं और न ही मानते हैं. आप अखबारों से जवाब तलब करें कि जब आचार्य जी ने कहा नहीं है कि यह कविता उनकी रचना है तो आपने लिख कैसे दिया ?
आप शुरू से ही रचना के लिए लड़ते आये हैं , आप लड़िये हम भी आपके साथ है चाहे रचना आपके साथ हो या न हो .
@ मेरे गरीब कवि, आप किसी आचे को कड़वा कसैला न कहें .
वे बेचारे तो पहले ही स्वादमुक्त जीवन जी रहे हैं.
http://www.mushayera.blogspot.com/
अगर संत तरुनसागर जी ने इस रचना को खुद अपनी कहा हे तो यह कोई गलती नही बल्कि जान बुझ कर चोरी की हे, ओर अगर अन्य लोग इस रचना को समाचार पत्रो के मध्यम से ओर मुख से भी उन की रचना कहते हे तो भी संत तरुनसागर जी को उन्हे रोकना चाहिये कि भाईयो यह रचना मेरी नही, किसी अन्य कवि की हे(अगर नाम ना बताना चाहते हो) या यह कविता के रचियता अलवेला खत्री जी सुरत वाले हे, बस सारा झगडा खत्म, लेकिन अब उन्हे स्पष्टीकरण तो जरुर देना चाहिये कि उन्होने ऎसा क्यो नही किया ? ओर अगर संत हे तो संतो जैसे काम करे.अलवेला जी एक बार आप खुद फ़ोन पर बात कर के देख ले. धन्यवाद
@ गिरीश पंकज जी !
एक साधारण मंचीय उठाईगीरा ये काम करे तो क्षम्य है परन्तु अपने आप को राष्ट्र सन्त कहलाने वाले लोग भी ऐसा करें तो मेरी वेदना अकारण नहीं है
@ डॉ अनवर जमाल जी !
भले ही संतश्री ने न कहा हो कि ये कविता उनकी है परन्तु जब समाचार पत्र में उनके नाम से किसी ने भेजी हो तो उन्हें इसका खंडन करना ही चाहिए था
@ सुनील व्यास जी !
हिम्मत आपकी और उन अन्य मित्रों की भी कम नहीं है जो इस लड़ाई में मेरा साथ दे रहे हैं
@राज भाटिया जी !
उन्हें स्पष्टीकरण देना ही चाहिए और वे देंगे भी.ऐसा मेरा भरोसा है
आप सभी का हार्दिक हार्दिक धन्यवाद
आभारी हूँ
रचनाकार का नाम यदि ज्ञात हो तो अवश्य लेना चाहिये अन्यथा कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि किसी शायर ने कहा है....ताकि स्पष्ट हो सके कि वक्ता की मौलिक कृति नहीं है.
उक्त के आभाव में यह न कहना कि मेरी है, का अर्थ भी यही माना जायेगा कि यह मेरी है क्यूँकि किसी और का इसे बताया ही नहीं गया.
@ samirlal ji
gyat na ho, ye ho hi nahin sakta
gyat hai bhali bhanti gyat hai unhen.........
aapne meri peeda samjhi..........dhnyavad
kritagya hoon
रचनाकार को बेशक दाम ना मिले लेकिन कम से कम नाम तो मिले...आपकी पीड़ा समझ सकता हूँ..
संत जी को सपष्टीकरण तो देना ही चाहिए
.
.
.
आदरणीय अलबेला जी,
आपके इस आलेख से शत-प्रतिशत सहमत... कवि को हर हाल में श्रेय मिलना ही चाहिये!
...
तरुण सागर जी को कविता के साथ सूरत वाले रचनाकार अलबेला खत्री का नाम अवश्य ही श्रोताओं तक पहुंचाना चाहिए। कवि को नाम और दाम दोनो ही मिलने चाहिए।
अलबेला खत्री जी ,
इस प्रकरण पर हम आपके साथ है , आपको न्याय और नाम मिलना चाहिए .
मैंने तरुण सागर जी को ज्यादा नहीं सुना पर इतना पता है कि वो जो कहानी सुनाते है उनमे खट्टर काका और मुल्ला नसीरुद्दीन दोनों एक साथ उपस्थित होते है , ये दोनों अलग अलग समय काल में लिखी गयी रचनाओ के पात्र है ,कहने का मतलब ये है कि वो रचनाकारों का नाम नहीं लेते |
मुझे लगता है, आपको सीधे उनसे ही संपर्क करने का प्रयास करना चाहिए |(मिलकर या फ़ोन आदि से )
--आशीष
अलबेला जी,
निश्चित ही किसी संत के द्वारा मौलिक लेखक को श्रेय दिये बिना कविता का उल्लेख भी करना चोर्य अनाचार के अन्तर्गत आता है। और एक जैन संत के लिये तो अचोर्य महाव्रत के खंडन का कारण बनता है जो महा-प्रायचित योग्य है।
पर चुकि संत ने उसका व्यवसायिक उपयोग नहीं किया अतः आपके लिये अर्थ-हानि का उनका प्रयोजन नहीं है। पर इस कार्य को सार्वजनिक करने से पहले आपको तरूणसागर जी से व्यक्तिगत सम्पर्क कर वस्तुस्थिति जान लेनी चाहिए थी। इसलिये भी कि आपका उनसे परिचय हो चुका था, और गणपत भंसाली के रूप में आपको सम्पर्कसूत्र भी उपलब्ध था। एक बार सीधी बातचित होनी चाहिए थी, क्योकि आपके उल्लेखों से भी लगता है वे और उनका प्रसंसक वर्ग आपको सम्मान देते है, उनका समर्थक वर्ग आपकी रचनाओं के कायल है। आपको इस वर्ग द्वारा आयोजित कवि सम्मेलनो में आदर सहित आमंत्रित किया जाता है, तो पहले बात-चित का अधिकार तो बनता ही है।
हिन्दी दैनिक भास्कर में भी इतना ही उल्लेख है कि इसे किसी पाठक ने एसएमएस के जरिये भेजा है।
अब भी शायद आपके स्पष्टिकरण की मांग उनके संज्ञान में न आई हो, आप सूचित तो करें।
@ ललित शर्मा जी
आपका धन्यवाद....
@ आशीष जी !
आपके समर्थन और सहयोग के लिए आभारी हूँ
प्रयास रत हूँ कि वे इस पर अपना स्पष्टीकरण दें
@सुज्ञ जी !
आपकी बात से अक्षरश: सहमत हूँ और आपकी राय पर विचार कर रहा हूँ
ध्यान देने के लिए आभारी हूँ
-अलबेला खत्री
यह तो बहुत ही गलत बात है, लोग जिनसे प्रेरणा लेते हैं यदि वही ऐसे कार्य करेंगे तो कैसे चलेगा, उनको स्पष्टीकरण देना चाहिए
sachhai chhup nahi sakti banawat ke usoolon se...
ke khushboo aa nahi sakti kabhi kagaz ke foolon se....
(mera nahi hai, bachpan me kisi kulfi ki rehdi par pada tha, is prakaran par yaad aa gaya)
chinta na karen JEET AAPKI....
sadhuwaad...
अपसे पूरी तरह सहम्त हैं शायद उनको तो पता भी न हो चेले चिमटे ही ऐसे काम करते हैं अगर उन्हें पता है त्5ओ शर्म की बात है।
शायद उनको तो पता भी न हो
अलबेला जी, मुनि ने कविता किसी संग्रह में नहीं छपाई, न ही किसी सम्मेलन में पढ़कर सुनाई... आपकी कविता में निहित संदेश को उन्होंने साधारण शब्दों में ढ़ालकर सुनाये... और कोई भी जब प्रवचन करता है तो तमाम जगहों से उद्धरण देता है, ऐसे में हर जगह संदर्भ और प्रसंग तो नहीं दिया जा सकता.. फिर भी आपको मुनि से सीधे ही बात करना चाहिये थी और उसके बाद ही यहां पर..
..तरुण सागरजी ने गलत काम किया है....उन्हे तुरन्त आपसे माफी मांग लेनी चाहिए!
अलबेला जी ,
आप की चिंता जायज़ है और आक्रोश भी उचित |
संत श्री तरुण सागर जी को आपकी रचना प्रवचन के दौरान पढ़ते समय ठीक उसी प्रकार आप का नाम लेकर , मूल रचनाकार की प्रशंसा करनी चाहिए थी - जैसी कि मुरारी बापू करते हैं | वे अपने प्रवचन के दौरान बहुत से शेर और कवितायें पढ़ते हैं किन्तु सम्बंधित रचनाकार का नाम कई बार ले ले कर उसकी भी प्रशंसा करते हैं | ऐसे संत महात्मा को इस तरह के कृत्य शोभा नहीं देते |
अच्छा होगा कि संत जी आपकी रचना को आपकी बताकर अपनी मर्यादा को कायम रखें |
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