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जो खानदानी रईस हैं वो मिज़ाज़ रखते हैं नरम अपना - तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई नई है

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सुप्रसिद्ध शायरा शबीना 'अदीब' की एक ग़ज़ल के दो शे'र बरबस याद

आ गये हैं इसलिए बिना उनकी अनुमति के यहाँ लगा रहा हूँ । अगर वे

ऐतराज़ करेंगी, तो क्षमा मांग लूँगा मिस्टर कुमार विश्वास ! लेकिन शे'र

आप पर फिटिया रहे हैं इसलिए चिपका रहा हूँ :


जो खानदानी रईस हैं वो मिज़ाज़ रखते हैं नरम अपना

तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई नई है


ज़रा सा कुदरत ने क्या नवाज़ा, के आके बैठे हो पहली सफ़ में

अभी क्यों उड़ने लगे हवा में, अभी तो शौहरत नई नई है



इसके अलावा एक और शे'र भी याद आ रहा है जो श्रद्धेय

बालकवि बैरागी जी से कोई बीस साल पहले सुना था :


कितने कमज़र्फ़ होते हैं ये गुब्बारे, चन्द साँसों में ही फूल जाते हैं

ज़रा सा ज़मीन से क्या उठते हैं, अपनी औक़ात भूल जाते हैं


हो सकता है, इन शे'रों में मुझसे कोई लफ्ज़ इधर-उधर हो गया हो,

लेकिन मतलब वही है ठन-ठन गोपाल ! और इनका प्रयोग मैंने इसलिए

किया क्योंकि पिछले 28 सालों में मैंने हिन्दी काव्य-मंचों पर ऐसे

अनेक कवि-कवयित्री देखे हैं जिनकी शौहरत आसमान को छूती थी

परन्तु वे दर्प से अछूते थे । गोपाल दास नीरज, रमानाथ अवस्थी,

काका हाथरसी, सोम ठाकुर, शैल चतुर्वेदी, विमलेश राजस्थानी,

गोपाल प्रसाद व्यास, भरत व्यास, इन्दीवर, कुंवर बेचैन, शरद जोशी,

आत्मप्रकाश शुक्ल, हुल्लड़ मुरादाबादी, ओमप्रकाश आदित्य, उर्मिलेश,

राधेश्याम प्रगल्भ, बालकवि बैरागी, माया गोविन्द, बरखारानी, ज्ञानवती

सक्सेना, इन्दिरा इन्दू और मंच सम्राट रामरिख मनहर जैसे अनेकानेक

लोगों को प्रसिद्धि के आकाश में झूला झूलते मैंने देखा है । अरे उनकी

प्रसिद्धि के आगे तो तुम्हारी प्रसिद्धि पानी भरती है लेकिन उनकी प्रसिद्धि

हवाई नहीं थी, बल्कि कठोर तप की कमाई थी इसलिए उन्होंने सहेज कर

रखी जो आज तक कायम है ।


दौलत और शौहरत के लिए उन्होंने कभी कोई शोर्ट-कट नहीं अपनाया ।

मिसाल के तौर पर :


उन्होंने कभी भी साउंड ओपरेटर को रूपये दे कर अन्य कवियों के लिए

माइक खराब नहीं कराया जैसा कि तुम करते रहे हो ।


उन्होंने अपने वरिष्ठ या कनिष्ठ कलमकारों का अपनी प्रस्तुति के दौरान

कभी मजाक नहीं उड़ाया जैसा कि तुम करते हो ।


उन्होंने कभी भी प्रोग्राम से पहले ही प्रेस रिपोर्टरों को खिला पिला कर,

अपने फोटो और साक्षात्कार छपवाने के लिए अनुबन्धित नहीं किया

जैसा कि तुम करते हो ।


उन्होंने कभी अपने आप को देश का सर्वाधिक लोकप्रिय कलाकार घोषित

अन्य प्रतिभावान लोगों को अपना चिंटू नहीं बताया जैसा कि तुम करते हो ।



अपने आयोजक के लिए उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि उसकी छोकरी या

लुगाई मुझ पर फ़िदा है इसलिए उनकी सन्तुष्टि के लिए मुझे बुलाया है ।



कविसम्मेलन के निमन्त्रण पत्र में उन्होंने सप्रयास कभी भी अपना नाम

और फोटो बड़ा नहीं कराया जैसा कि तुम करते हो।



और तो और उन्होंने चन्द ठहाकों और तालियों के लिए अन्य कवियों की

कविताओं और चुटकियों व टिप्पणियों को कभी नहीं सुनाया जैसा कि तुम

करते हो ।


चूँकि तुम्हारी भूख बड़ी है, तुम्हारी आकांक्षाएं बड़ी हैं इसलिए तुम पचास

तरह के हथकण्डे अपना कर भी लोगों के प्रोग्राम छीन लेते हो ये सोच कर

कि ये तुम्हारा टेलेंट है जबकि ये तुम्हारा टेलेंट नहीं तुम्हारी तक़दीर है

जिसने तुम्हे वो सब देना ही था जिसके पीछे तुम पागल हुए जा रहे हो ।

ठीक उसी तरह जैसे कौआ जितना ज़्यादा सयाना होता है उतनी ही ज़्यादा

गन्दगी खाता है यह सोच कर कि ये उसकी हुशियारी है जबकि ये उसकी

हुशियारी नहीं उसकी तक़दीर है जिसमे लिखा हुआ भोगना ही पड़ता है ।



मैंने भी भोगा है अपने कुकर्मों का फल, अरे मैंने तो कोई षड़यंत्र भी नहीं

रचा और कोई व्यभिचार भी नहीं किया, केवल 10 दिन तक अमेरिका

के केसिनो में जुआ खेला था जिसके लिए आज तक शर्मिन्दा हूँ और

आर्थिक तंगी में हूँ ।



पोस्ट लम्बी हो रही है इसलिए मिलते हैं ब्रेक के बाद..........क्रमशः


11 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' April 11, 2011 at 9:14 PM  

बहुत बढ़िया!
शेर क्या आपने तो पूरी ग़ज़ल ही लगा दी है!
--
पोस्ट भी बहुत बढ़िया लगाई है आपने!

राज भाटिय़ा April 11, 2011 at 10:10 PM  

अलबेला जी आज तो बहुत गुस्से मे दिख रहे हे, मैने तो हमेशा आप को हंसते, मुस्कुराते देखा हे , लेकिन आप की एक एक बात से सहमत हे जी

DR. ANWER JAMAL April 11, 2011 at 10:57 PM  

आपकी पोस्ट का शीर्षक सच्चाई बयान करता है ।
उम्दा शेर ।
ब्लॉग की ख़बरें फ़ॉलो करने के लिए शुक्रिया !

Udan Tashtari April 12, 2011 at 5:09 AM  

आप जबलपुर के कार्यक्रम में भी थे और आप दोनों अरसों से मंचों से एक साथ काम करते आये हैं, आप बेहतर जानते होंगे... यूँ भी किसी के द्वारा किसी का भी अपमान और उपहास हो तो ऐसे में गुस्सा स्वभाविक है.

आज कुमार की लोकप्रियता का चरम एवं युवावर्ग से उनका जुड़ाव एक गौरव का विषय है किन्तु उसके बाद भी हर बात कहने की अपनी मर्यादायें और सीमा रेखाएँ होती हैं, उसका ध्यान उन्हें देना चाहिये.

कविता का स्तर, चुटुकुले बाजी या अन्य बातचीत पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता क्यूँकि इन्हीं सबने कुमार को यह लोकप्रियता दी है कि आज भारत के सबसे मंहगे कवि होने का उन्हें गर्व हासिल हैं और हर जगह उन्हें बुलाया जा रहा है. आज वह एक यूथ आईकान हैं.

जो जनता आज कलाकार को इतना नाम और शोहरत देती है -वही जनता उस कलाकार के व्यवहार के चलते उसे अपनी नजरों से उतार भी सकती है, यह ध्यान हर कलाकार को रहना चाहिये.

एकबार पुनः, न केवल बुजुर्गों का अपितु हर व्यक्ति के सम्मान का ख्याल रखा जाना चाहिये. संस्कृति का ख्याल रखा जाना चाहिये. उपहास या अपमान कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये. अनेकों अन्य तरीके हैं हँसने हँसाने के.

Unknown April 12, 2011 at 10:10 AM  

जो खानदानी बेफकूफ होते है वो चुप रहते हैं नरम रहते है

तुम्हारा लिखना बता रहा है, तुम्हारी बेफ्कूफी नई नई है

ज़रा सा कुदरत ने क्या नवाज़ा, के आके बैठे हो पहली सफ़ में

अभी अभी क्यों लिखने लगे हवा में, अभी तो शौहरत नई नई है

Sushil Bakliwal April 12, 2011 at 1:27 PM  

अभिव्यक्ति जायज आक्रोश की ।

Asha Lata Saxena April 12, 2011 at 2:25 PM  

बहुत अच्छी लगी पोस्ट |बधाई |
आशा

Aruna Kapoor April 12, 2011 at 3:32 PM  

आपने यहां यह सब जो खुलासा किया है..ऐसा करने वाले भी तो भ्रष्टाचारी ही है!हम आपके साथ मिल कर ऐसे भ्रष्टाचारियों का विरोध करते है!..

..राम-नवमी की हार्दिक शुभ-कामनाएं!

Anonymous April 12, 2011 at 7:03 PM  

Aakhir hua kya hai?? maine to ye sari reports padhi us din ke program ki.. unme to kuchh aisa nahi likha..


http://119.82.71.77/rajexpress/Details.aspx?id=45995&boxid=135248187

http://peoplessamachar.co.in/index.php?/book/816-date/5-jabalpur.html (Plz Go to Page 17)

http://epaper.patrika.com/2884/Jabalpur-Patrika/08-04-2011#p=page:n=20:z=1

http://119.82.71.95/haribhumi/Details.aspx?id=31143&boxid=28744130

http://www.naidunia.com/epapermain.aspx?queryed=9&eddate=4%2f8%2f2011

विजय तिवारी " किसलय " April 12, 2011 at 7:48 PM  

संस्कारों का सन्देश देने वाली संस्कारधानी जबलपुर में विगत ७ मार्च को एक कमउम्र और ओछी अक्ल के बड़बोले लड़के ने असाहित्यिक उत्पात से जबलपुर के प्रबुद्ध वर्ग और नारी शक्ति को पीड़ित कर स्वयं को शर्मसार करते हुए माँ सरस्वती की प्रदत्त प्रतिभा का भी दुरूपयोग किया है. टीनएज़र्स की तालियाँ बटोरने के चक्कर में वरिष्ठ नेताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों एवं कलाप्रेमियों की खिल्लियाँ उड़ाना कविकर्म कदापि कहीं हो सकता... निश्चित रूप से ये किसी के माँ- बाप तो नहीं सिखाते फिर किसके दिए संस्कारों का विकृत स्वरूप कहा जाएगा.
कई रसूखदारों को एक पल और बैठना गवारा नहीं हुआ और वे उठकर बिना कुछ कहे सिर्फ इस लिए चले गए कि मेहमान की गलतियों को भी एक बार माफ़ करना संस्कारधानी के संस्कार हैं. महिलायें द्विअर्थी बातों से सिर छुपाती रहीं. आयोजकों को इसका अंदाजा हो या न हो लेकिन श्रोताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग भविष्य में करारा जवाब जरूर देगा. स्वयं जिनसे शिक्षित हुए उन ही शिक्षकों को मनहूसियत का सिला देना हर आम आदमी बदतमीजी के अलावा कुछ और नहीं कहेगा . इस से तो अच्छा ये होता कि आमंत्रण पत्र पर केप्सन होता कि केवल बेवकूफों और तालियाँ बजाने वाले "विशेष वर्ग" हेतु.
विश्वास को खोकर भला कोई सफल हुआ है? अपने ही श्रोताओं का मजाक उड़ाने वाले को कोई कब तक झेलेगा, काश कभी वो स्थिति न आये कि कोई मंच पर ही आकर नीतिगत फैसला कर दे.

विवेक रस्तोगी April 13, 2011 at 1:16 PM  

बाजार को क्या चाहिये अगर वह पता हो तो भली भांति बिकता है, और जब बिकना चालू हो जाता है तो ब्रांड बन जाता है, फ़िर कुछ भी परोसो कोई फ़र्क नहीं पड़ता, ये तो उपभोक्ता पर निर्भर करता है।

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