"चोर की दाढ़ी में तिनका" होता है, ये तो मैंने सुना था परन्तु कुछ लोगों
की पूरी दाढ़ी ही तिनकों की होती है जिसकी झाड़ू बना कर "वे" लोग
अपने घर की सफाई करने के बजाय दूसरों के घोच्चा करने में ज़्यादा
मज़ा लेते हैं, ये मुझे तिलियार ब्लोगर्स मीट के बाद ललित शर्मा की पोस्ट
पर आई टिप्पणियों से ही पता चला . और ये सारा बखेड़ा इसलिए खड़ा
होगया क्योंकि मैंने उसमे अपनी टिप्पणी में स्वीकार किया था कि मैंने
रात भर रचना का मज़ा लिया . अब न तो रचना कोई बुरी चीज़ है, न ही
मज़ा लेना कोई पाप है, लेकिन चूँकि मज़ा मैंने लिया था और रात भर
लिया था सो कुछ अति विशिष्ट ( आ बैल मुझे मार ) श्रेणी के गरिमावान
( सॉरी हँसी आ रही है ) लोगों को अपच हो गया और उन्होंने आनन्द
जैसी परम पावन पुनीत और दुर्लभ वस्तु को भी अश्लील कह कर 'आक थू'
कर दिया । ये देख कर ललित जी की बांछें भी उदास हो गईं होंगी चुनांचे
मेरा धर्म है कि मैं बात स्पष्ट करूँ । लिहाज़ा ये पोस्ट लिख रहा हूँ ताकि
सनद रहे और वक्त ज़रूरत प्रमाण के तौर पर काम ( काम से मेरा मतलब
कामसूत्र वाला नहीं है ) ली जा सके :
तो जनाब ! सबसे पहले तो मैं धन्यवाद देता हूँ उन लोगों का जिन लोगों
ने तिलियार में मुझ से मिल कर, प्रसन्नता प्रकट की और मेरी "रचना"
को झेला अथवा मेरी प्रस्तुति का आनन्द लिया । तत्पश्चात ये भी स्पष्ट
कर दूँ कि मैं एक रचनाकार हूँ और रचनाकारी करना मेरा दैनिक कार्य
है, कार्य क्या है कर्त्तव्य है और मुझे गर्व है कि न केवल मैं अपनी रचना
की सृष्टि कर सकता हूँ अपितु दूसरों की रचनाएं सुधारने का काम भी
बख़ूबी करता हूँ, जो लोग on line मुझसे सलाह लेते हैं अथवा अपनी
रचना मुझसे सुधरवाते हैं उनमे नर भी कई हैं और नारियां भी अनेक हैं
परन्तु मैं किसी का नाम नहीं लूँगा, क्योंकि ये केवल मैत्रीवश होता है ।
अस्तु-
उस रात 9 बजे जो महफ़िल जमी, वह करीब 3 बजे तड़के तक चली
...........और इस दौरान वो सब हुआ जो यारों की महफ़िल में होता है ।
महफ़िल जब पूरी जवानी पर आ गई, तब ललित जी को अपनी रचनाएं
सुनाने का भूत लग गया । अब लग गया तो लग गया ......कोई क्या कर
सकता है ...कहीं भाग भी नहीं सकते थे..........नतीजा ये हुआ कि ललित
शर्मा एक के बाद एक रचना पेलते गये और हम सहाय से झेलते गये
............जल्दी ही मुझे इसमें आनन्द आने लगा और मैं पूर्णतः सजग
हो कर सुनने लगा । नि:सन्देह ललित जी रात भर सुनने की चीज हैं ।
यह अनुभव मुझे पहली ही रात में हो गया ..हा हा हा
तो साहेब ये कोई ज़रूरी तो नहीं कि परायी रचना" में सभी को उतनी रुचि
हो, जितनी कि मुझे रहती है, इसलिए बन्धुवर केवलराम, नीरज जाट,
सतीश और स्वयं मेज़बान राज भाटिया जी भी एक एक करके निंदिया के
हवाले हो गये, बस..........मैं ही बचा रहा सो मैं ही सुनता रहा और आनन्द
लेता रहा ।
सुबह जब उठा, तो ललितजी फिर जाग्रत हो गये और लिख मारी पोस्ट
..........साथ ही सबसे कह भी दिया कि अपने अपने कमेन्ट दो.........
भाटियाजी बोले - मैं तो जर्मनी जा कर करूँगा, तब भी उनसे ज़बरन
टिप्पणी करायी गई क्योंकि पोस्ट को हॉट लिस्ट में लाने का और कोई
उपाय है ही नहीं.......लिहाज़ा मैंने भी अपनी टिप्पणी कर दी जिसमे
स्वीकार किया कि रात भर "रचना" का आनन्द लिया ........अब इस
"रचना" से मेरा अभिप्राय: ललित जी कि काव्य-रचना से था । लिहाज़ा
मैंने कोई गलत तो किया नहीं । गलत तो तब होता जब मैं ये लिखता
कि मुझे "रचना" में कोई मज़ा नहीं आया..........
अब संयोगवश रचना नाम किसी नारी का हो जिसे मैंने कभी देखा नहीं,
जाना नहीं, जिसका मैंने कोई क़र्ज़ नहीं देना और जिससे मुझे कोई
सम्बन्ध बनाने की लालसा भी नहीं, कुल मिला कर जिसमे मेरा कोई
इन्ट्रेस्ट ही नहीं,
वो अगर इस टिप्पणी में ज़बरदस्ती ख़ुद को घुसेड़ ले तो मैं क्या करूँ यार ?
मैंने कोई ठेका ले रखा है सबके नामों का ध्यान रखने का ...और वैसे भी
" रचना " शब्द क्या किसी के बाप की जागीर है ? बपौती है किसी की ?
क्या रचना नाम की एक ही महिला है दुनिया में ? मानलो एक भी है तो
क्या मैंने ये लिखा कि "इस" विशेष रचना का आनन्द लिया ?
जाने दो यार क्या पड़ा है इन बातों में..............मेरी रचनाओं के तो सात
संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, रचनाकारी करते हुए 28 साल हो गये मुझे
जबकि ब्लोगिंग तो जुम्मा जुमा डेढ़ साल से कर रहा हूँ । रचना शब्द
को मैं जब, जैसे, जितनी बार चाहूँ, प्रयोग कर सकता हूँ .....किसी को
ऐतराज़ हो तो मेरे ठेंगे से !
आप भी स्वतन्त्र हैं " अलबेला " शब्द से खेलने के लिए । चाहो तो आप
भी लिखो " रात भर अलबेला का आनन्द लिया " और आनन्द ले भी सकते
हो । "अलबेला " नाम की फ़िल्म चार बार बनी है............उसे रात भर देखो
और सुबह पोस्ट लिखो कि रात भर "अलबेला" का मज़ा लिया .... मैं कभी
कहने नहीं आऊंगा कि ऐसा क्यों लिखा......क्योंकि जैसे "रचना" शब्द
किसी कि बपौती नहीं, वैसे ही "अलबेला" शब्द भी किसी की बपौती नहीं है ।
विनम्रता एवं सद्भावना सहित इससे ज़्यादा नेक सलाह मैं अपने घर का
अनाज खा कर आपको फ़ोकट में नहीं दे सकता ।
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
17 comments:
अलबेला रोज मेरे जूते चाटता है
जब तक दो-चार लाठी न मारूं.. सुधरता ही नहीं
प्लीज डोंट माईंड
इत्तिफाक से अलबेला मेरे डागी का भी नाम है
जनाब बेहूदगी से बचिए.
आपकी बातों से कोई आहत भी हो सकता है.
यही समझाने के लिए मैंने आपके जैसा ही हल्का सा मजाक किया.
...यह बहुत ही अच्छा किया आपने कि स्पष्टिकरण दे दिया!....ब्लोगर संमेलन में आप देर से पहुंचे और हम आपके साथ ज्यादा समय गुजारने से वंचित रह गए...फिर भी बहुत अच्छा अनुभव रहा!...चलिए अगले संमेलन का इंतजार है!
वाह अलबेला जी. क्या धोया है. आपने हमें भी मस्त रचना के मजे दिला दिए.
@ustadji !
ye hui na baat.....lekin maine koi mazak nahin kiya hai - kyonki mazaak saamne aur jivant hota hai peeth peechhe keval chugli aur ninda hoti hai
mujhe to koi aitraaz nahin aap apne dogy ko chaahe jitni laathi maro, lekin bhai menka gaandhi bura maan jayegi...ha ha ha ha ha
मैं भी रचना पढ़ा पढ़ कर खूब लुफ्त उठा रहा हूँ ....
आपने अपना पक्ष स्पष्ट रखा, सही किया।
मैं तो अलबेला जी आपका आनन्द नहीं ले पाया।
कुछ आप देर से आये, कुछ हम जल्दी निकल लिये। खैर फिर कभी सही।
आपसे मिलकर खुशी हुई।
प्रणाम स्वीकार करें
बोया पेड़ बाबुल का तो आम कहाँ से पायें ?
ये हुई बात। ललित जी की उस पोस्ट की दुर्गति देखकर ही मैं ने भी अपने यहां रचना शब्द का जिक्र नहीं किया।
आनन्द आ गया।
अलबेला जी उस दिन डॉ. दाराल साहब के यहाँ जाना था, इसलिए आप से नहीं मिल पाए, उसका मलाल है.... कुल मिलाकर दो बार यह मौका हमसे छूट गया.. चलिए फिर से मौका अवश्य मिलेगा... जहाँ तक उस पोस्ट की बात है, अगर अनजाने में कुछ हुआ तो कोई बात नहीं, लेकिन जान-बूझ कर किसी के भी खिलाफ अमर्यादित नहीं लिखना चाहिए... मैं जानता हूँ कि आप और ललित जी जानबूझ कर ऐसा कभी नहीं करेंगे.
प्रेमरस
@ शाहनवाज जी
आप समेत जो भी ऐसा सोचता है, सही सोचता है
-अलबेला खत्री
Sachmuch aapki Rachna hamesha great hoti hai, I Like
अलबेला जी ,
उस्ताद एक अच्छा बच्चा है शालीन मजाक करता है :))
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी वास्तव में अत्यधिक दुबले पतले मरियल से दिखते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने असली ब्लॉग में बिजनेसमैन बने हुए हैं ?
क्या आप जानते है कि उस्ताद जी के सच्चे नाम से लाईट का क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी के असली ब्लॉग में उनका साइड पोज वाला फोटो लगा है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी कानों के ऊपर बालों वाला फोटो बहुत पसंद करते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी मोहल्ला होशियारपुर ग्राम लखनऊ में रहते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी बोध कथाओं को हास्य कथा मानते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने फर्जी ब्लॉग में माडरेशन लगाये हुए हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी का गोविन्द से क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी पहेलियाँ किस नाम से बूझते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी फर्जी आई डी क्यों बनाये हुए हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी कुंठित वर्गी रचना के क्या हैं ?
@ustad balgovind ji !
ustad naam bhar rakh lene se koi ustad ho jata to lalkrishna adwani ji bhi lal rang ke hote..ha ha ha ha
naam vaam me kuchh nahin, nam vaam bakvaas
satyanarayan naam ke jhoothe mile pachaas
logon ko maza lene do yaar......jin bechaaron ki itni aukat nahin ki samne aa kar baat kar saken, unhen apne hisaab se santusht ho lene do..apne baap ka kya jata hai
-albela khatri
अलबेला जी बहुत अच्छा किया आपने पोस्ट लगा के साथ ही जैसे ही यात्राओं से मुक्त होगें या यात्रा के दौरान भी ललित भाई आन लाईन हो सकेंगे स्थिति स्पष्ट क देंगे उनका वादा है.
शुक्रिया
स्प्ष्ट क देंगें को
स्प्ष्ट कर देंगें बांचिये
हास्य कथा लिखना जारी है
अलबेला भाई ,
आपसे मिनट भर की मुलाकात याद रहेगी । आपने लिखा कि सतीश ...मगर सतीश सक्सेना भाई तो हमारे साथ ही निकल लिए थे ..फ़िर एक और सतीश कहां से आ गए , आपने बताया नहीं ?????
Nice post .
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