स्नेही स्वजनों !
सादर नमस्कार ।
लीजिये एक बार फिर उपस्थित हूँ एक नयी स्पर्धा का श्री गणेश करने के
लिए और आपकी रचना को निमन्त्रण देने के लिए ।
स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए www.albelakhatri.com पर आपकी रचना
सादर आमन्त्रित है । जैसा कि पहले ही बता दिया गया था कि इस बार
स्पर्धा हास्य-व्यंग्य पर आधारित होगी ।
नियम एवं शर्तें :
स्पर्धा क्रमांक -५ का शीर्षक है :
लोकराज में जो हो जाये थोड़ा है
स्पर्धा में सम्मिलित करने के लिए कृपया उपरोक्त शीर्षक के
अनुसार ही रचना भेजें . विशेषतः इस शीर्षक का उपयोग भी
रचना में अनिवार्य होगा अर्थात रचना इसी शीर्षक के इर्द गिर्द
होनी चाहिए .
हास्य-व्यंग्य में हरेक विधा की रचना इस स्पर्धा में सम्मिलित की
जायेगी । आप हास्य कविता, हज़ल, पैरोडी, छन्द, दोहा, सोरठा, नज़्म,
गीत, मुक्तक, रुबाई, निबन्ध, कहानी, लघुकथा, लेख, कार्टून अर्थात कोई
भी रचना भेज सकते हैं
एक व्यक्ति से एक ही रचना स्वीकार की जायेगी ।
रचना मौलिक और हँसाने में सक्षम हो यह अनिवार्य है ।
स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए रचना भेजने की अन्तिम तिथि है
15 दिसम्बर 2010
सभी साथियों से निवेदन है कि इस स्पर्धा में पूरे उत्साह के साथ सहभागी
बनें और हो सके तो अपने ब्लॉग पर भी इसकी जानकारी प्रकाशित करें
ताकि अधिकाधिक लोग लाभान्वित हो सकें
मैं और भी बातें विस्तार से लिखता लेकिन कल कानपुर में काव्य-पाठ
करना है इसलिए थोड़ी नयी रचनाएँ तैयार कर रहा हूँ । इस कारण
व्यस्तता बढ़ गई है । आप सुहृदयता पूर्वक क्षमा कर देंगे ऐसा मेरा
विश्वास है
तो फिर निकालिए अपनी अपनी रचना और भेज दीजिये
........all the best for all of you !
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
-
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
18 comments:
स्पर्धा क्रमांक-5 के लिए ढेरों शुभ-हास्य-कामनाएं!....इस बार प्रतियोगियों की संख्या 111 को पार करें..इसी हास्य-शुभेच्छा के साथ....हा, हा, हा!
रचना जरुर भेजूंगा ....
हम्म!...लगता है कि दिमाग के घोड़े दौडाने ही पड़ेंगे
लीजिए हमारी प्रविष्टि -
लोकराज में जो हो जाए थोड़ा है
राजा भी बन जाए गधा घोड़ा है
अपनी संसद तो अब जैसे कि
नितम्ब में बालतोड़ का फोड़ा है
नेता हो भाजपाई या हो कांग्रेसी
मन्ने तो लागे जैसे वो कोड़ा है
सीवीसी कैग कोर्ट या सीबीआई
सबके सब मेरी राह का रोड़ा है
भारतीय नेता अफसर के लिए
अरबों खरबों रुपया भी थोड़ा है
आज यहाँ कल वहाँ परसों कहीं
हर नेता ने बहुत जोड़ा तोड़ा है
पुजारी पंडित मौलवी पादरी ग्रंथी
सबने मेरे देश को तोड़ा मोड़ा है
रवि की बीवी कांग्रेसी पिता संघी
देखिए क्या बढ़िया कुनबा जोड़ा है
कृपया अंतिम पंक्ति संशोधित ऐसे पढ़ें -
रवि की बीवी कांग्रेसी पिता संघी
कॉमरेड ने बढ़िया कुनबा जोड़ा है
जरूर भेजेंगे
नस्ल भी परखी थी हमने
दाम भी ना दिए थे कम
हर बार की तरह इस बार भी
देखो उल्लू बन गए हम
हर चुना हुआ नेता
बिना लगाम का घोड़ा है
लोकराज में जो मिल जाये थोड़ा है....
गड्डो में सड़के बस मिलती
खातो में बढती शिक्षा दर
दोनों हाथो से लूट के सबको
मनती दिवाली इनके घर
रास्ता भी है ये और ये ही रास्ते का रोड़ा है
लोकराज में जो मिल जाये थोड़ा है....
आँगन में इनके पलती रिश्वत
चौके में पकता भ्रष्टाचार
खुद में इतने व्यस्त है ये
जनता का कैसे करे विचार
बड़ी मेहनत से इन ने स्विस बैंक में अरबो जोड़ा है
लोकराज में जो मिल जाये थोड़ा है...
कथनी इनकी इतनी है की
ग्रन्थ लिखे जा सकते है
करनी के नाम पे घोटालो का
ओस्कर ये जीत सकते है
हर चेहरे के पीछे कोई छुपा हुआ मधु कोड़ा है
लोकराज में जो मिल जाये थोड़ा है ..
सभी नेताओ को मेरा शत-शत प्रणाम ....
आंगन में उनकी पलती रिश्वत,
चौके में पकता भ्रष्टाचार। अच्छी कविता रचनाकार को बधाई।
कल प्रतियोगिता का अंतिम दिन है। पुष्टि कीजिएगा ताकि ताजा रचना तैयार करके तुरंत हाथों हाथ नहीं, कीबोर्ड पर टाइप करके, मेल नहीं ई मेल से भेजी जाए और विषय में कोई व्यवधान या विषय बदल तो नहीं गया है, क्योंकि देश के हालात रोजाना बदल रहे हैं। पुष्टि करेंगे तभी रचना को कीबोर्ड के माध्यम से जन्म देकर, भेज दूंगा और हां कहां भेजूं, मतलब किस ई मेल पर, किसी फी मेल पर, यह अवश्य बतलाइयेगा।
आपका जवाब नहीं आया
बहुत इंतजार किया है
इसलिए लिखकर भेज दी है
मिलने की सूचना दीजिएगा
ऐसा मत कीजिएगा
कि अपने हंसी के आंसुओं से
समुद्र भर दीजिएगा।
आपकी ही ई मेल पर भेज रहा हूं क्योंकि आपकी फी मेल का पता हीं नहीं मालूम है। वहां पर आप ही भेज दीजिएगा, इतनी हंसीय ईमानदारी का आपसे भरपूर विश्वास है।
मतलब रचना ई मेल से नहीं भेजनी थी। इसी जगह चिपकानी है। कहें तो चिपकाऊं या चिपकायेंगे आप, कहीं आप रचना से ही तो नहीं चिपक जायेंगे, अपना नाम लिखकर ईनाम भी आप ही ले जायेंगे।
विजय जाधव का यूं चले जाना दुखद है
लोक राज में जो हो जाये थोड़ा है
शौहर काला, लेकिन बच्चा गोरा है।
राखी मेरे पीछे पड़ी हाथ धोकर,
यद्यपि स्वयंवर का धनुष मैंने न तोड़ा है।
जंगली भैंसें दूध ज़ियादा देती पर
इनको पालने में संविधान का रोड़ा है।
मनमोहन लौह पुरूष बन चुका है यारो,
गडकरी का गदा नया है पर पोला है।
आज बिहार की ख़बरों में वो मज़ा नहीं,
किस ओर छिपा अपना लालू बड़बोला है।
भारत का आदर्श महान है दुनिया में,
कोई यहां राजा कोई यहां कोड़ा है।
बीवी को दो थप्पड़ आज लगाया हूं,
आज सियार के तन में शेर का चोला है।
हर सरकारी आफ़िस मंदिर अब दिखता है,
कहीं बोरा किसी कमरे में रखा झोला है।
बीवियों को पीठ की सवारी अजीज़ है,
हर घर में पूंछ हिलाता इक घोड़ा है।
रिश्ता पोलिस व सियासतदां का दानी,
ज़हरीले नाग व नगिन का जोड़ा है
लोक राज में जो हो जाये थोड़ा है
शौहर काला, लेकिन बच्चा गोरा है।
राखी मेरे पीछे पड़ी हाथ धोकर,
यद्यपि स्वयंवर का धनुष मैंने न तोड़ा है।
जंगली भैंसें दूध ज़ियादा देती पर
इनको पालने में संविधान का रोड़ा है।
मनमोहन लौह पुरूष बन चुका है यारो,
गडकरी का गदा नया है पर पोला है।
आज बिहार की ख़बरों में वो मज़ा नहीं,
किस ओर छिपा अपना लालू बड़बोला है।
भारत का आदर्श महान है दुनिया में,
कोई यहां राजा कोई यहां कोड़ा है।
बीवी को दो थप्पड़ आज लगाया हूं,
आज सियार के तन में शेर का चोला है।
हर सरकारी आफ़िस मंदिर अब दिखता है,
कहीं बोरा किसी कमरे में रखा झोला है।
बीवियों को पीठ की सवारी अजीज़ है,
हर घर में पूंछ हिलाता इक घोड़ा है।
रिश्ता पोलिस व सियासतदां का दानी,
ज़हरीले नाग व नगिन का जोड़ा है
लोक राज में जो हो जाये थोड़ा है
शौहर काला, लेकिन बच्चा गोरा है।
राखी मेरे पीछे पड़ी हाथ धोकर,
यद्यपि स्वयंवर का धनुष मैंने न तोड़ा है।
जंगली भैंसें दूध ज़ियादा देती पर
इनको पालने में संविधान का रोड़ा है।
मनमोहन लौह पुरूष बन चुका है यारो,
गडकरी का गदा नया है पर पोला है।
आज बिहार की ख़बरों में वो मज़ा नहीं,
किस ओर छिपा अपना लालू बड़बोला है।
भारत का आदर्श महान है दुनिया में,
कोई यहां राजा कोई यहां कोड़ा है।
बीवी को दो थप्पड़ आज लगाया हूं,
आज सियार के तन में शेर का चोला है।
हर सरकारी आफ़िस मंदिर अब दिखता है,
कहीं बोरा किसी कमरे में रखा झोला है।
बीवियों को पीठ की सवारी अजीज़ है,
हर घर में पूंछ हिलाता इक घोड़ा है।
रिश्ता पोलिस व सियासतदां का दानी,
ज़हरीले नाग व नगिन का जोड़ा है
संदेश के लिये धन्यवाद, आपके ब्लाग में अपके पुराने संदेश में भी ई-मेल से बेजने का ज़िक्र है इसलिये इ-मेल किया था , आज पोस्ट किया हूं , हां ये भी बतादूं कि अलबेला खत्री 'काम के पेज खुलने में भी एरर बता रहा है।
'प्रेषित हास्य-व्यंग्य स्वरचित है!...लोक राज में जो हो जाए, थोडा है!...विषय को संकलित किए हुए है!
अस्पताल!...सस्ता और सरकारी!
पूछो तो वे कहते है कि...
बैग-पाइपर..शराब नहीं,सोडा है!
अजी!..लोक राज में जो हो जाए,
जनाब!.... वो थोडा है!
ऐसा हुआ एक बार!
महा कंजूस चाचाजी हो गए बिमार!
करें तो क्या करें...अब यार!
सिर दर्द से लगे लौटने..कभी सीधे, कभी उलटे!
सिर पर उठा लिया चाचाने छोटासा घर-बार!
हाय तौबा कितनी मची..उसका वर्णन करना तो है बेकार!
चाची मुटल्ली लगी रोने!...दहाड़े मार मार कर....
“मरने ही वाले है तेरे चाचाजी!
..अरे निठल्ले बिल्ले!... अब घडी कुछ तो कर!’
सुपुत्र हमारा अमरिका जा बैठा..
वरना तुज जैसे निकम्मे को क्यों बुलाती मै?
नेक काम करने का मौका मिल रहा है तुझे...
कान खोल कर सुन ले...तेरी माँ जैसी हूँ मै!
पहले तो तू था गधा...पर अब तो घोडा है....
लोक राज में जो जाए..अबे!...वह सब थोडा है!”
जानता हूं मै....सुपुत्र चाचाजी का....
पुलिस का घोषित...भगौड़ा है....
पर भैया!...ऐसा है कि...
लोक राज में जो हो जाए, थोडा है!
मैंने देखा आव ना ताव...चल पड़ा लेकर चाचा को!
भयंकर सिर दर्द के इलाज के लिए...
सुना था भैया!...सरकारी अस्पताल,
होता है ‘स्पेशियल’ गरीबों के लिए....
प्राइवेट वाले लूट्तें है,
सरकारी में होता खर्चा कम..
कुछ भी क्यों ना हो,
सस्ते में निकलता है, गरीबों का दम!
मै खुद महंगाई से ग्रस्त...चाचा भी महा मक्खी चूस!
तो निकला सरकारी अस्पताल की ओर...
ले कर चाचा का जुलूस!
सरकारी अस्पताल में...चाचा को एडमिट कराया...
ना, ना करते भी....बीस हजार का खर्चा आया...
कई टेस्ट..कई दवाइयां..विदेशी इंजेक्शन भी हुए इस्तेमाल!
मेरी जमा पूँजी लग गई...फिर भी चाचा का बांका ना हुआ बाल!
मिली रिपोर्ट..सिर दर्द की वजह यह कि....
चाचाजी की नाक में छोटासा फोड़ा है....
ऐ बिल्लू!...लोक राज में जो हो जाए..बस! थोडा है!
फोड़े का होगा ऑपरेशन...तभी सिर दर्द मिटेगी!
खर्चा आएगा और तीस हजार..और बीमारी हटेगी!.
नाक के फोड़े का इलाज..
कुल मिलाकर ...फ़कत पचास हजार....
चाचाजी बोले... “ऑपरेशन करवा दे बिल्ले!
सौदा सस्ता है..ना मिलेगा मौका बार बार ....
कर दे खर्च!..ओ उल्लू के पठ्ठे!..तुने अब तक जो जोड़ा है...
लोक राज में जो हो जाए...क्या कहते है...बस! थोडा है!”
लो जी!... हो गया ऑपरेशन,
चाचा गा रहे सरकारी अस्पताल के गुण गान..
मै..बिल्लू...बेचारा फटा पाजामा पहने,
चबा रहा हूँ....सुपारी और पान!
बस!..कहने को सस्ता सरकारी अस्पताल...
जिसने जनता की कमर को तोडा है....
मुझ जैसे कई बिल्लू आए चपेट में...
लोक राज में जो हो जाए,भैया!...यक़ीनन थोडा है!
parinam kab denge
..आप के लिए और आप के परिवार के लिए नूतन वर्ष मंगलमय हो!..अनेको शुभ-कामनाएं अलबेला जी!
प्रतियोगिता क्.-5 की समय अवधि कब तक की है?..मैने अपने ब्लोग पर फिर से इस प्रतियोगिता को दर्शाया है!
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