जयपुर से मुम्बई आने वाली सुपर फास्ट ट्रेन के वातानुकूलित
शयनयान में जो कुछ मैंने देखा, वह कुछ और लोगों ने भी देखा
लेकिन वे लोग शायद भूल गये हों, मैं नहीं भूला ......भूल सकता
भी नहीं क्योंकि चाहे कितना व्यावसायिक हो जाऊं आखिर दिल
तो एक इन्सान का ही है ..जो पसीजना जानता है, जो रोना भी
जानता है और जो सम्वेदना की अनुभूति तो कर ही सकता है,
अभिव्यक्ति भी कर सकता है
दोपहर दो बजे ट्रेन रवाना हुई । मेरे सामने एक बहुत ही खूबसूरत
जोड़ा बैठा था जिनकी गोद में एक नन्ही सी दूधमुंही बच्ची थी ।
वे परस्पर पति-पत्नी थे और अच्छे खाते-पीते मारवाड़ी घर के थे
( नाम जानता हूँ लेकिन बताऊंगा नहीं )।
बच्ची बहुत प्यारी थी । माँ -बाप उसे ख़ूब लाड़ कर रहे थे। वह कभी
बोतल से दूध पीती, कभी हँसती, कभी किलकारियां मारती तो
कभी सो जाती। इस प्रकार तीन घंटे गुज़र गये और कोटा आ गया ।
कोटा में बच्ची का पिता दूध लेने गया लेकिन नहीं ला सका क्योंकि
उसे बोतल धोने में ही इतना समय लग गया कि ट्रेन प्रस्थान कर
चुकी थी । तब पेन्ट्री के वेंडरों से दूध मंगाया गया लेकिन उन्होंने
मना कर दिया ये कह के कि दूध पीने योग्य नहीं है ।
तभी बच्ची जाग गई और दूध के लिए रोने लगी........माँ ने बहुत
प्रयास किया लेकिन वह चुप नहीं हुई । बच्ची ने ज़ोर ज़ोर से रोना
शुरू किया और पूरी बोगी में हल्ला हो गया । किलकारियां मारने
वाली चीत्कारें कर रही थी......लेकिन अब तक लगातार लाड़ करने
वाली माता अचानक अब कठोर हो गई थी। उसने गुस्से में वह
बच्ची अपने पति की गोद में लगभग पटक दी...............
पति - मैं क्या करूँ ? मेरे पास क्या दूध रखा है ?
पत्नी - तो ले के आओ न दूध कहीं से भी............तुम्हीं को चाहिए थी
औलाद .........
पति - भागवान ! अब नखरे छोड़ और दूध पिलादे बच्ची को,
भगवान ने तुझे ख़ूब दिया है
पत्नी - एक बार कहो या सौ बार...........मैं पिलाने वाली नहीं .......
ख़ूब बडबड होती रही, बच्ची रोती रही और माँ की ममता पता नहीं
कहाँ सोती रही, नहीं पसीजा तो नहीं पसीजा उसका मन क्योंकि
वह बहुत सुन्दर थी और किसी भी कीमत पर अपने सौन्दर्य में
ढीलापन नहीं लाना चाहती थी। अर्थात उसे अपने फ़िगर को
मेंटेन रखना था ।
बात बहुत आगे तक बढ़ी, बहुत कुछ हुआ लेकिन बच्ची को दूध
तभी मिला जब साढ़े तीन घंटे बाद नागदा आया । पिता गया
और जैसा भी था ले कर आया .............
मैं सोच रहा था काश ! भगवान् ने पुरूष के स्तनों में भी थोड़ा दूध
दिया होता तो वह मासूम यों न बिलखती.........
मेरा मन और मूड दोनों खराब हो गये। तब मैंने गुस्से में उस
माँ से कहा - याद रखना ! जो तुम आज इसे दे रही हो, वही कल
इस से मिलेगा । क्योंकि ये रूप - रंग तो चार दिन की चाँदनी है
इसके मद में रहना मूर्खता है । आज फ़िगर की आग में जिगर के
टुकड़े को जलाओगी, तो बुढ़ापे में ख़ुद को वृद्धाश्रम में ही
पाओगी........ तब बहुत पछताओगी।
आज ही सम्हल जाओ तो अच्छा है ।
www.albelakhatri.com
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
21 comments:
"बच्ची रोती रही और माँ की ममता पता नहीं कहाँ सोती रही .."
आपने तो शीर्षक में ही बता दिया है कि माता कलयुगी है। अब कलयुगी माता का भला ममता कहाँ से क्या काम?
दुखद....शर्मनाक.... अब और क्या कहें?
बेहद संवेदनशील पोस्ट.........."
bilkul sahi he ma ka aanchal na mile (mile bhi kese jhab hoga hi nahi short shart or pant par )
or ma ki mamta ka 'amrit' na mile (apne sneh pyar se bhara dudh) jo khubsurti ke karan apne kapdo me dhak kar rakha he to bacho ki chilkariya kahi n kahi to bata hi deti he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
कोई हैरानी नहीं हुई
आजकल का यही फैशन है
उफ़्फ़
बेचारी बच्ची की आत्मा कितनी तड़पी होगी
ZERO FIGUR,zero jigar!
पिता तो पहले से ही डेड हैं!
अब तो ममता वाली माँ भी ममी बन गईं हैं!
बेहद मार्मिक विषय है... बच्चे को मां का दूध मिलना ही चाहिए... एक बच्चे को उसके हक़ से किसी भी सूरत में महरूम (वंचित) नहीं किया जाना चाहिए...
इस बारे में ऐसी माताओं को अपनी सोच बदलनी चाहिए...
हमें लगता है, महिलाओं की इस मानसिकता के लिए पुरुष भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं... महिलाओं को लगता है कि वो अपने शरीर को सुन्दर रखकर ही अपने पतिदेव को भटकने से रोक पाएंगी...(बेवकूफ़ कहीं की, यह नहीं समझतीं, जिसे भटकना हो, वो सात तालों में रहकर भी भटक सकता है)...
हकेकात में प्रेम और रिश्तों के मामलों में जिस्म से ज़्यादा मन की सुन्दरता अहमियत रखती है...
आप पुरुष हैं... हमारी बात किस हद तक सही है... आप बेहतर समझ सकते हैं...
उफ फीगर के कारण जिगर भी नही पिघला
क्या कहें!!
वाकया बाकी दुखद है. लेकिन मेरा एक सवाल है - क्या दूध पिलाने के बाद ये गारंटी है की बुढ़ापा वृद्धाश्रम में नहीं कटेगा? शायद यह दूसरा (या पहला?) सबसे ज्वलंत सवाल है आज कल के पश्चिमाये हुए भारतीय समाज के सामने.
धिक्कार है ऐसे माँ को ये माँ नहीं बल्कि कुमाता है
"हमें लगता है, महिलाओं की इस मानसिकता के लिए पुरुष भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं... महिलाओं को लगता है कि वो अपने शरीर को सुन्दर रखकर ही अपने पतिदेव को भटकने से रोक पाएंगी...(बेवकूफ़ कहीं की, यह नहीं समझतीं, जिसे भटकना हो, वो सात तालों में रहकर भी भटक सकता है)...
हकेकात में प्रेम और रिश्तों के मामलों में जिस्म से ज़्यादा मन की सुन्दरता अहमियत रखती है..."
फिरदौस खान की बातों में दम है
सच्चा प्रेम जिस्म से नहीं बल्कि मन से किया जाता है लेकिन मूर्ख लोग ये बात नहीं समझते काश कि वो समझ पाते
हम, ने इस से भी गंदी माये देखी है जो ३ महीने की बच्ची को पीट रही थी..... जनाब अब हम आजाद ओर सभ्य बन गये है,
उफ्! न जाने ये दुनिया किस दिशा में जा रही है.....
अलबेला जी बहुत लोग हैं ऐसे...सोचनीय दशा माँ का एक ऐसा भी रूप...धन्य है दुनिया....
नये ज़माने की नंगा कर दिया आपने।
AaaH! Kaisi maa thi vah? Ab to MAA ki mamta bhi is GLOBALIZATION ki chapet me aa gayi!!
"RAM"
mudda bahut gambhir or vicharniy to hai hi , sath hi is trh ki mansikta nindniy bhi hai |
afsosjanak !!
khatri ji,
bahut hee maarmik tareeke se aapne darshaaya hai ek kalyugi maa ke chehra....
paashchatya sabhyata mein hum itne leen ho gaye hain ki apno ko he bhool gaye hain!
... अपवादों की दौड में कुछ लोग दौडते दिख जाते हैं !!!
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