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Albela Khatri

बाबा रामदेव के नाम हास्यकवि अलबेला खत्री का पैग़ाम - दूसरा व अन्तिम भाग

गतांक से आगे.......


जिस देश में करोड़ों लोग दो जून की रोटियों के लिए भागते फिरते हैं, उस देश


में हज़ारों लोग चार जून की लाठियों से बचने के लिए भागते फिर रहे थे और


ये हो रहा था बुद्ध, महावीर, नानक और गांधी के देश की राजधानी में....इससे


ज़्यादा शर्म की बात क्या हो सकती है । इस अत्याचार की जितनी निंदा की जाये,

कम है ।


परन्तु हे योगाचार्य बाबा रामदेव !

आप तो सत्याग्रही थे........अनशनकर्ता थे.......आपको तो योद्धा की तरह उस

पुलिसिया कार्रवाही का सामना करना चाहिए था । गिरफ़्तार होना कोई

मुश्किल नहीं था आपके लिए ...यदि आप भागते नहीं और शान्तिपूर्ण तरीके से


अपने आपको पुलिस के हवाले कर देते तो ज़्यादा अच्छा होता क्योंकि तब


आपके समर्थक भी गिरफ्तारियां देते और देश भर के लोगों का प्रचूर समर्थन


आपको मिल जाता जिसके दम पर आपकी विजय का मार्ग निर्बाध हो जाता ।

जबकि आपकी बुज़दिली ने लोगों को आप पर ऊँगली उठाने का मौका घर

बैठे ही दे दिया ।



बुरा नहीं मानना बाबाजी.........एक बात तो तय है कि आप पेट को चाहे कितना


ही हिलालो...और लोगों से कपालभाती की कितनी ही फूं फां करालो पर आपके


पास कोई आध्यात्मिक शक्ति तो नहीं है । योग में...ख़ासकर ध्यानयोग में


कितनी अलौकिक शक्ति है ये तो मैं मेरे वैयक्तिक अनुभव से जानता हूँ । इसलिए

मुझे दुःख है कि आपने पराशक्ति के इत्ते बड़े सोपान पर यात्रा करके भी कुछ


नहीं हासिल किया । भले ही पतंजली पीठ के रूप में आपने कितना ही बड़ा

साम्राज्य स्थापित कर लिया हो....लेकिन सिर्फ़ नाशवान सामान ही इकट्ठा

किया है आपने अब तक। शाश्वत कुछ नहीं पाया...........पर मुझे इससे क्या


लेना देना ? मैं तो सिर्फ़ इसलिए हैरान हूँ कि जिस ओम की शक्ति से ब्रह्माण्ड


के सब द्वार शतदल की भान्ति खुल जाते हैं उस ओम का रातदिन रट्टा लगाने


और लगवाने वाला एक व्यक्ति अपने बाल-वाल खोल कर , दाढ़ी-वाढी बिखेर


कर भरी सभा में देवव्रत की तरह पहले तो भीष्म प्रतिज्ञा करता है फिर

परिस्थितिवश शिखंडी जैसा व्यवहार भी कर लेता है । ये दोनों बातें एक साथ


कैसे हो सकती हैं ? खैर...जान बड़ी चीज़ है ...भगवान आपको सौ बरस

ज़िन्दा रखे और इसी तरह कामयाब रखे।



मेरा कहना केवल इत्ता है गुरू ! कि आप एक प्रतिभावान योगी, सॉरी .....योग


प्रशिक्षक हैं और आपकी दूकान ठीकठाक जमी हुई भी है तो बजाय इस तरह


के सत्याग्रहों के कुछ और सकारात्मक काम करो । क्योंकि आज देश के


सामने एक नहीं अनेक संकट पहले से ही मौजूद हैं । विदेश में रखा काला धन


देश में आना चाहिए..ज़रूर आना चाहिए लेकिन वह रातोरात नहीं आ सकता

इस बात को आप भी जानते हैं । लिहाज़ा अन्य जो बड़े संकट देश में हैं ज़रा


उनके निराकरण का भी उपाय कीजिये ताकि लोगों का जीवन थोड़ा सरल


हो सके ।



# पानी पंद्रह रूपये लीटर बिक रहा है


क्या आपको ये नहीं दिख रहा है ?



# व्यापारी लोग हत्यारे हो गये हैं


नकली दूध, सब्ज़ी,अनाज और दवाओं के रूप में ज़हर बेच रहे हैं


और आप अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए


केवल कांग्रेसी द्रोपदी मनमोहनी की फटी हुई साड़ी खेंच रहे हैं



# मंहगाई और बेरोज़गारी का दानव देश को खा रहा है


ऐसे में आपको लोगों की पीड़ा का ख्याल नहीं आ रहा है ?



# दुश्मन मुल्क घात लगाए बैठा है


सरहद पर घुसपैठ जारी है


ऐसे में सरकार और सुरक्षा दलों का ध्यान बटाना
आपकी कौन सी लाचारी है ?


मेरे आदरणीय बाबा !

अगर सत्याग्रह ही करना है


तो पहले देश की समस्याओं को मिटाने के लिए करो !

ये हो जाये तो फिर आराम से


विदेश में रखा काला धन वापस देश में लाने के लिए करो !


जय हिन्द !

जय भारत !

जय हिन्दुस्तान !


-अलबेला खत्री


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11 comments:

HindiEra.in June 8, 2011 at 10:00 PM  

प्यारे खत्री साहब - सब समस्याओं का मूल तो भ्रष्टाचार है, ये मिटा सब अपने आप ठीक हो जायेगा और एक बात समझ लीजिये कांग्रेस की फटी साडी नहीं दुख्शासन के लहू से प्यास बुझानी है,

भगवान् कृष्ण युद्ध के मैदान से भाग गए थे, एक प्लान के साथ, कभी - कभी परिस्थितियां ऐसी होती है की राम को छुप कर बलि का वध करना पड़ता है .... समझदार तो आप हैं ही, आगे-२ देखिये होता है क्या ?

Unknown June 8, 2011 at 10:31 PM  

@पंकजजी !
आप सही कह रहे हैं ....दु:शासन के लोहू से ही प्यास बुझानी है . परन्तु क्या ये ज़रूरी नहीं कि सबसे पहले अपने ही देश में पड़े काले धन को बाहर निकाला जाये...क्योंकि छिपा हुआ धन देश में होकर भी देश का काम नहीं आ रहा है

कितने ही बैंकों की हालत इसलिए खराब है कि उनका दिया हुआ अरबों रुपयों का क़र्ज़ बड़े घराने हज़म कर चुके हैं

Markand Dave June 8, 2011 at 10:31 PM  

प्रिय श्रीअलबेलाजी,

सटिक चिंतन। बधाई है।

हम आज़ादी के समय करीब पचास करोड़ थे अब १२० करोड़, घरती इतनी ही, उत्पादन करीब-करीब इतना ही और ७० करोड़ बढ गये, अब दिक्कत ये है कि,सप्लाय से ज्यादा माँग बढ गई है।

सरकार,ब्यूरोक्रेट्स,उद्योगपति,पत्रकार-रिपोर्टर,चैनलों के विदेशी मालिक,विदेश में बस रहे आतंकी और असामाजिक तत्व, सब एक दूजे में ऐसे रस-बस हो गये हैं कि, समग्र विश्व के मुकाबले सब से प्रामाणिक हमारे प्राईम मिनिस्टर, बेबस,लाचार,मजबूर होकर पूरी सरकार और उनके सभी मंत्री पर अपना नियंत्रण खो बैठे हैं ।

रही बात बड़बोले बाबा और ऐसे ही बड़बोले दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बाल,चिदम्बरम् जैसे तकवादी लोगों की उनकी किसी बात को गंभीरता से लेना मतलब अपना खून व्यर्थ में जलाने जैसी बात है..!!उनके रहते कॉन्ग्रेस को बाहरी दुश्मनों की जरूरत नहीं है?

सब को सम्मति दे भगवान..!!

मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' June 8, 2011 at 10:38 PM  

आपत्तिकाले मर्यादानास्ति!

Unknown June 8, 2011 at 10:52 PM  

@ मकरन्द दवे जी !
आपका लाख लाख धन्यवाद..........
आपने बहुत सही कहा और बारीकी से कहा ..........इसीलिए तो मैंने ये पोस्ट लिखी है ताकि लोग अपना मंतव्य आपस में बाँट सकें

Gyan Darpan June 9, 2011 at 6:49 AM  

बाबा के भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को अँधा समर्थन |
पर बाबा ने इस आन्दोलन के दौरान भागने वाला जो नाटक किया वो हमें भी नहीं पच रहा | इसकी कोई जरुरत ही नहीं थी |इस नाटक से बाबा ने अपनी राजनैतिक अपरिपक्वता साबित कर दी | मेरा मानना है कि बाबा अनशन व सत्याग्रह करने के काबिल नहीं है पर हाँ वे एक स्टार प्रचारक जरुर है उन्हें सिर्फ रेलियाँ निकालकर ही जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा करने तक ही सिमित रहना चाहिए | और शायद अब बाबा को भी अक्ल आ गयी होगी |
सरकार पर धूर्तता का आरोप लगाने वाले बाबा को पहले चाणक्य नीति का भी अध्ययन करना चाहिए ताकि वे राजनैतिक पेंतरे बाजियां जान सके |

योगेन्द्र मौदगिल June 9, 2011 at 8:34 AM  

sateek baat.....mazaa aa gaya bhai ji...andh-bhakton ki abhi bhi na khuli to fir kabhi nahi khulegi.....

Unknown June 9, 2011 at 9:29 AM  

@ roopchandra shastri ji !

aap bilkul sahi farma rahe hain ...

aabhaar !

दिनेशराय द्विवेदी June 9, 2011 at 8:09 PM  

बहुत सुंदर। इस आलेख के लिए आप को बहुत बहुत साधुवाद।

'साहिल' June 9, 2011 at 9:59 PM  

मैं आपकी सब बातों से सहमत नहीं हूँ.
महंगाई और दुसरे संकट भी कहीं न कहीं भरष्टाचार और काले धन के मुद्दे से जुड़े हैं. यदि कोई इसका विरोध करता है तो मैं उसके साथ हूँ.
इसके लिए सत्याग्रह, धरना, आदि जो भी अहिंसापूर्वक आन्दोलन हो, किसी के भी द्वारा किया जाए.........हमें उसका साथ देना चाहिए.
बहुत से मीडिया के लोग भी इस नेताओं के साथ इस भ्रष्ट सिस्टम के सहभागी हैं जो अन्ना हजारे और रामदेव के विरोध में लिख रहें हैं. हमें ये समझना चाहिए जो लोग भी इस सिस्टम से फायदा उठा रहें हैं उन्हें सिस्टम को बदलने में नुक्सान है.
आप जैसे बुद्धिजीवी और बेहतरीन कवि को इसका साथ देना चाहिए!
धन्यवाद!

Manoj August 12, 2011 at 9:29 AM  

अल्बेला जी, आपका बिचार एकदम अच्छे है ! आपके शब्दमें दम हे, कला दमदार है ! लेकिन जो आपने बुद्धके बारेमें कहाँ है , ओह गलत है ! महात्मा बुद्धके जन्म भारत में नही, नेपाल के लुम्बिनी अंचल के कपिलबस्तु जिल्ला मे हुवा था ! बाँकी अग्ले बार !
- आपका हास्यव्यंग्यका प्रेमी- मनोज -काठमाडौँ -नेपाल

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