अटल बिहारी वाजपेयीजी के जन्मदिवस पर आत्मिक बधाई देते हुए मैं अपनी वही कविता आज उन्हें पुनः समर्पित करता हूँ जो उनके पहली बार प्रधानमन्त्री बनने पर की थी
रोक सका है कौन ज्वार सिन्धु का, दामिनी का उत्कर्षण
छीन सका है कौन गन्ध चन्दन से, कुसुमों से आकर्षण
बाँध सका है कौन पवन का वेग और मेघों का गर्जन
कहाँ थमा है वसुन्धरा पर पल पल सृष्टि का परिवर्तन
सूत्रपात नवयुग के नवशासन का फिर से आज हुआ है
राष्ट्र के सिंहासन पर अब एक राष्ट्रभक्त का राज हुआ है
रोम रोम पुलकित है, मन हर्षित है, तन आह्लादित है
अब होगा उत्थान वतन का जन गण मन आश्वासित है
हे निर्विवाद निष्छल निर्मल अविकारी
हे माँ वाणी के वरदपुत्र हुंकारी
हे प्रखर परन्तु मृदुभाषी मनोहारी
अभिनन्दन अटल बिहारी !
अभिनन्दन अटल बिहारी !!
अभिनन्दन अटल बिहारी !!!
-अलबेला खत्री
hasyakavi albela khatri dedicated a poem to sh.atal bihari vajpeyi |
albela khatri dedicated his poem to sh. atal bihari vajpeyi on his 90th birth day |
hasyakavi albela khatri dedicated a poem to his son aalok khatri |
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-12-13) को चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हमारी तरफ से भी अभिनन्दन, जीवन शतकं की कामना सहित !
Thanks for taking the time to share this
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