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Albela Khatri

लीजिये गीत स्पर्धा में सहभाग और बनिए विजेता 55,555 रुपये के बम्पर अवार्ड के

प्यारे हिन्दी चिट्ठाकार मित्रो !

सस्नेह दीपावली अभिनन्दन !


लीजिये कल की गई अनुसार आज मैं धन तेरस के मंगलमय अवसर

पर धन बरसाने वाली स्पर्धा का श्री गणेश करने के लिए

उपस्थित हो गया हूँ


कल मैंने ये कहा था ( देखें लिंक ) :



परिणाम ये रहा कि कुल मिला कर 19 लोगों से 26 टिप्पणियां प्राप्त हुईं

जिनमे से प्रसंग अनुसार सटीक टिप्पणियां कुल 12 ही देखने को

मिलीं चूँकि चुनाव इन्हीं में से करना था सो कुल सात टिप्पणियां

मैंने इनमे से चुनी हैं जिनके अनुसार श्री समीरलाल, सुश्री मृदुला प्रधान

सुश्री वन्दना जी ने कविता विधा का पक्ष लिया है जबकि डॉ रूपचंद्र

शास्त्री, डॉ अरुणा कपूर, श्री राजकुमार भक्कड़ सुश्री उर्मिला उर्मि ने

गीत का पक्ष लिया है लिहाज़ा गीत ने कविता को तीन के मुकाबले चार

वोटों से पछाड़ दिया है



अब स्पर्धा 'माँ' विषय पर गीत की होगी


मेरा सभी गीतकारों से अनुरोध है कि माँ पर बेहतरीन गीत भेजें


जिस गीत को सर्वश्रेष्ठ गीत चुना जाएगा उस गीत के रचयिता को

दिसम्बर माह में सूरत के एक विराट समारोह "गीत गंधा" में रूपये

55,555 नगद, सम्मान-पत्र, शाल श्रीफल स्मृति- चिन्ह भेन्ट

करके अभिनन्दित किया जायेगा



शर्तें नियम :


एक व्यक्ति चाहे जितने गीत भेज सकता है

लेकिन सब स्वरचित होने चाहियें


स्पर्धा का परिणाम अगर किन्हीं दो रचनाकारों में बराबर रहा तो

सम्मान-राशि दोनों विजेताओं में समान रूप से बाँट दी जायेगी


रचनाएं भेजने की अन्तिम तिथि है 18 नवम्बर 2010


नियत तिथि तक यदि न्यूनतम 111 गीतकारों से रचनाएं प्राप्त होगयीं

तो परिणाम घोषित होगा और यदि संख्या कम रही तो परिणाम की

तिथि आगे बढ़ाई जा सकती है



इस स्पर्धा में अन्तिम निर्णय www.albelakhatri.com द्वारा गठित

निर्णायक मण्डल का ही मान्य होगा



तो फिर देर किस बात की..............जल्दी से भेज दीजिये माँ की वन्दना

का एक गीत और बनिए विजेता 55,555 रुपये और विराट सार्वजनिक

सम्मान के...............आपके स्वागत में सूरत तत्पर है - गुड लक !


विनीत

-
अलबेला खत्री


_______________
___________________
आप सभी को दीपावली की हार्दिक मंगल

कामनाएं..........मैं अभी रवाना हो रहा हूँ जयपुर के लिए, आने वाले 12

दिन तक मैं लगातार प्रवास पर रहूँगा कुछ दिन परिवार के साथ उत्सव

के लिए कुछ दिन रोज़ी रोटी अर्थात काव्योत्सव के लिए -


@@@@@@@
टाइपिंग में कोई त्रुटि रही हो,तो क्षमा चाहता हूँ ,,,,

जल्दबाज़ी में पोस्ट तैयार की है




16 comments:

फ़िरदौस ख़ान November 3, 2010 at 10:32 PM  

आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...

nilesh mathur November 4, 2010 at 12:07 AM  

आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!

शिवम् मिश्रा November 4, 2010 at 4:40 AM  


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपको और आपके परिवार में सभी को दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! !

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' November 4, 2010 at 7:21 AM  

प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
--
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' November 4, 2010 at 7:23 AM  

पहले दिवाली मना लें फिर आराम से कुछ रचनाकारी करके भेजेंगे!
--
प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
--
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

Puneet Bhardwaj November 4, 2010 at 9:57 AM  

वो आई झूमके,
मुझे चूमके,

फिर आई उसके चेहरे पर एक संतोष (मेरी माँ का नाम) की रेखा
मुझमें भी वो सुकून आया जब मैंने उसे गहनता से देखा
उसका अंङ इतना मखमली
मानिंदे सुर्ख़ाब के पंख
आलिंगन के व्यवहार की तपिश से मुझमें होता संचार
मोक्ष व हर ख़ास से था ये अप्रतिम एहसास

उसके ह्रदय का स्पंदन सुनकर
मैं खो गया ये धुन बुनकर
कि कहां सुना है ये मिश्री जैसा साज़
जो था बेअवाज़ पर खोल रहा था सैंकड़ों राज़

तब मैं खो गया काल की गहराईयों में
उस वक़्त की खाइयों में
जब मैं प्रस्फुटित हो रहे कमल की भांति
माँ के गर्भ में पल्लवित हो रहा था
उस शुचितता को तजकर
भौतिकता में आने की बांट जोह रहा था

तब यही साज़
जिसे सुनकर अकुलाहट थी मुझमे आज

यही था..
हां, यही था वह नाद
जिससे मैंने नौ महीने किया था संवाद

जिससे मैंने नौ महीने किया था संवाद......

Aruna Kapoor November 4, 2010 at 12:43 PM  

....बहुत बहुत बधाई अलबेला जी!...समारोह सुरत में हो रहा है यह जान कर खुशी दुगुनी हो गई है!...स्पर्धा के लिए 'गीत' टिप्पणी के जरिए से ही प्रेषित करना है या किसी ओर जरिए से प्रेषित करना है...कृपया बताएं...धन्यवाद!

डॉ० डंडा लखनवी November 5, 2010 at 7:41 PM  

सराहनीय लेखन........
+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

डॉ० डंडा लखनवी November 5, 2010 at 7:41 PM  

सराहनीय लेखन........
+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

Urmi November 8, 2010 at 9:30 AM  

आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर और शानदार पोस्ट ! बधाई!

Aruna Kapoor November 12, 2010 at 1:58 PM  

स्पर्धा के लिए गीत(स्वरचित}

!! माँ !!

दाती है वह... देती है जनम!
अपनी कोख से..पैदा करती है नन्ही सी जान!
पालती है, पोसती है सहेजती है उसे.
लुटाती है ममता की धन-दौलत तमाम !
‘माँ’ शब्द की मीठी गूंज देती है सुनाई...
जब उस नन्हे की तोतली आवाजमें...
उठती है खुशी की तरंगे,माँ के ह्रदय और मन में....
स्वर्ग प्राप्ति के सुख का अनोखा अनुभव,
हर माँ को दिलाता है उसके नन्हें का स्पर्श!
माँ के रोम रोम से होता है प्रकट तब ....
एक अलौकिक, अद्वितीय हर्ष!
संतान के सुख से सुख की लेती अनुभूति,
संतान के दु:ख से होती है वह दु:खी!
ऐसी माँ को लाखो, करोड़ो प्रणाम हमारे...
गाता है जग माँ की गाथा..सदा सर्व मुखी!

Aruna Kapoor November 12, 2010 at 1:59 PM  

स्पर्धा के लिए गीत( स्वरचित)

!!माँ!!

माँ तू है जन्म दाती!
धर्मो से दूर,
नामो की भूल भुलैयों से परे....
माँ तू है जन्म दाती!
ममता का आँचल लिए...
सुखो की ओढनी ओढ़े...
प्यार बरसाती हुई,
माँ तू है जन्म दाती!
तेरा एक ही रूप,
ना रंग कोई,
ना कल्पना कोई,
मन को भाति हुई...
माँ तू है जन्म दाती!

Aruna Kapoor November 12, 2010 at 2:14 PM  

यह गीत गुजरात के जग प्रसिद्द गरबा-गीत ‘मेहंदी ते वावी, माळवे ने...’ की तर्ज पर है!...उसी की धुन पर इसे गा सकते है!...यह मेरा स्वरचित गीत है!

स्पर्धा के लिए गीत(स्वरचित}

माँ का मै लाडला बेटा....

माँ ने बुलाया….मै दौड़ा आया...माँ ने गले लगाया मुझे रे...
माँ का मै लाडला...बेटा...रे...

माता का हाथ जब….सिर पर हो तो भला..चाहिए मुझे क्या और रे...
माँ का मै लाडला बेटा...रे...

शिक्षा दी मुझे….मेरी माँ ने कहा...करों अपने हाथो पर विश्वास रे...
माँ का मै...लाडला बेटा...रे...

शिक्षा ही माँ की..काम आई..मेरा हाथ ही मेरा जगन्नाथ रे...
माँ का मै...लाडला बेटा...रे...

माँ ने कहा...भगवान को...मत ढूंढो मंदिर,मस्जिद में रे...
माँ का मै...लाडला बेटा...रे...

वो तो मिलेगा,मनुष्यों के दिल में..हर इंसान ही स्वयं भगवान रे...
माँ का मै... लाडला बेटा...रे...

माँ से पूछा..जीवन कैसे हो सफल,जब झूठ और फरेब चौतरफ़ रे...माँ का मै...लाडला बेटा...रे...


सच्चाई की राह चले..जाना बेटे..भले रास्ता रोके तेरा पहाड़ रे......माँ का मै...लाडला बेटा...रे...


दीन–दु:खियों की सदा,करोरे मदद..होगी ईश्वरकी तुम पर मेहर रे...माँ का मै...लाडला बेटा...रे...


अपने लिए तो….जीते है सब...जीवन दूसरों के काम भी आए रे...
माँ का मै...लाडला बेटा...रे...


माँ की शिक्षा मेरे लिए...अमूल्य निधि..सोना,चांदी,हीरा और रतन रे...माँ का मै...लाडला बेटा...रे...


आज हुआ ये….जीवन सफल...ये तो है माँ का ही है आशिर्वाद रे....
माँ का मै...लाडला बेटा...रे...

माँ ने बुलाया….मै दौड़ा आया...माँ ने गले लगाया मुझे रे...
माँ का मै... लाडला बेटा...रे...

माता का हाथ जब…सिर पर हो तो भला..चाहिए मुझे क्या और रे....
माँ का मै लाडला बेटा...रे...

The guy sans voice November 14, 2010 at 9:39 PM  

इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए अपनी रचना कहाँ भेजना है ये स्पष्ट करें . आभार .

The guy sans voice November 17, 2010 at 9:51 AM  

गीत प्रतियोगिता में मेरी इस रचना को शामिल करें. यदि कहीं और भी इस रचना को भेजना हो तो कृपया बताएं .

आभार
प्रत्युष
9301034895

माँ !

सामने तेरे जब भी आऊं, खुद को बच्चा ही पाता माँ !
बड़ा होने का ढोंग मगर, क्यूँ सब से करना पड़ता है
मंदिर न जाने पर मुझको, हर कोई नास्तिक कहता माँ !
पर तेरे पैर जो छूता हूँ, तो क्यूँ न कोई समझता है

जब मुझको अक्षर-ज्ञान कराया, तब तुम ब्रह्मण का रूप थी,
लड़ना बुराई से जो सिखाया, तो वो क्षत्रियता की धुप थी,
वणिक गुण ही उसे जानूं मैं, चवन्नी तक का हिसाब मिलाना,
शुद्र कर्म से अलग वो कैसे, मुझको सुबह नहलाना-धुलाना,

हम सबमें चारों वर्ण का लक्षण, तुझसे ही मैंने सीखा माँ !
सदियों पुराना गलत विभाजन, आज भी पर क्यूँ चलता है
मंदिर न जाने पर मुझको, हर कोई नास्तिक बोले माँ !
पर तेरे पैर जो छूता हूँ, तो क्यूँ न कोई समझता है


मेरा हिस्सा सबसे पहले, मेहमान जब भी लाये मिठाई,
कुर्सी पंखा मेरे जिम्मे, दिवाली में जब घर की सफाई,
मेरे लिए रोज बचाकर, गुड़ के साथ मलाई खिलाना,
मीठी सी उस झिड़क के संग, कभी कभी झापड़ भी लगाना,

रूचि और अरुचि वो मेरी, बिन बोले तुमको मालूम माँ !
कुछ तो खुद भी भूल गया मैं, तुम्हें ही बताना पड़ता है
मंदिर न जाने पर मुझको, हर कोई नास्तिक बोले माँ !
पर तेरे पैर जो छूता हूँ, तो क्यूँ न कोई समझता है


नमक लेने उस दिन जो निकली, ये क्यों नहीं बताया था
छुट्टे देख लड्डू खाने को, मैं कितना रोया था चिल्लाया था
एक न मानी तेरी फिर भी, आशीर्वाद ही देती तू
सब बोलें सिरचढ़ा मुझे पर, अच्छा-प्यारा ही कहती तू

उलझन गहरे इतने मन में, फिर भी कुछ नहीं जताती माँ !
तुच्छ दुःख हर बार ये मेरा, पर तेरे ही आगे उमरता है
मंदिर न जाने पर मुझको, हर कोई नास्तिक बोले माँ !
पर तेरे पैर जो छूता हूँ, तो क्यूँ न कोई समझता है


थककर चूर जब सोने जाता, पैरों में वो तेल की मालिश
तौलिये से बालों को सुखाना, स्कूल से आते जो हुई थी बारिश
बचपन में बड़े होने का, वो जिद कितना बचकाना था
आज जाके जो जाना मैं, तूने तब से पहचाना था

चिडचिडा हूँ अभी भूख के कारण, बस तू ही ये समझे माँ !
दृष्टि क्षय हो जाने पर भी, मुझसे ज्यादा तुझे दिखता है
मंदिर न जाने पर मुझको, हर कोई नास्तिक कहता माँ !
पर तेरे पैर जो छूता हूँ, तो क्यूँ न कोई समझता है

Unknown November 17, 2010 at 10:21 AM  

बंधुवर प्रत्युष जी,
नमस्कार.........

आपका गीत स्पर्धा में सम्मिलित हो गया है.....

सहभागिता के लिए आभार

-अलबेला खत्री

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