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Albela Khatri

अलबेला खत्री विनम्रता पूर्वक कुछ पूछना चाहता है आप सब से..... जवाब ज़रा सोच - समझ कर दें





प्यारे साथियों !

आज ज़िन्दगी में पहले से ही इतना तनाव है कि कोई भी व्यक्ति और

ज़्यादा तनाव झेलने की स्थिति में नहीं है इसके बावजूद अगर वह नये

वाद-विवाद खड़े करता है और बिना कारण करता है तो उसे बुद्धिजीवी

या साहित्यकार अथवा कलमकार कहलाना इसलिए शोभा नहीं देगा

क्योंकि इनका काम समाधान करना है, समस्या को और उलझाना नहीं

...........बेहतर होगा यदि हम अपनी लेखनी के ज़रिये समाज के मसलों

को हल करने की कोशिश करें, कि मसलों का हिस्सा बन कर बन्दर की

तरह अपना पिछवाड़ा लाल दिखाने के लिए विभिन्न आपसी दल गठित

करलें और गन्द फैलाएं


यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि धर्म के नाम पर रोज़ अधर्म हो रहा है। कुछ

लोग इस्लाम का झंडा लिए घूम रहे हैं और लगातार इस्लाम को दुनिया

का सर्वश्रेष्ठ मज़हब मान रहे हैं बल्कि साबित भी किये जा रहे हैं जबकि

कुछ लोग अनिवार्य रूप से उनका विरोध कर रहे हैं इस चक्कर में भाषा

और वाक्य अपनी मर्यादाएं लांघ रहे हैं अब कौन क्या कह रहा है उसे

दोहराने का मतलब पतले गोबर में पत्थर मारना है इसलिए वो छोड़ो.......



केवल एक बात पूछता हूँ कि किसी भी धर्म का या मज़हब का कोई भी

व्यक्ति यदि अपने धर्म या मज़हब को बड़ा और श्रेष्ठ बताता है तो अपने

बाप का क्या जाता है ? वो कौनसा अपने घर से पेट्रोल चुरा रहा है ?

इसमें बुरा ही क्या है कि कोई अपने धर्म या मज़हब को सर्वोत्तम बताये

...........जलेबी अगर ये समझे कि उससे ज़्यादा सीधा और कोई नहीं, तो

समझती रहे...केला क्यों ऐतराज़ करता है ?


ये तो बहुत अच्छी बात है कि कोई ख़ुद को और ख़ुद के सामान को श्रेष्ठ

समझे.........इसमें किसी भी प्रकार के विरोध का कारण ही kahan
पैदा

hota है ? हर व्यापारी अपने माल को उत्तम बताता है, हर नेता केवल ख़ुद

के दल को देशभक्त बताता है, हर स्त्री केवल स्वयं को सर्वगुण सम्पन्न

मानती है और हर पहलवान केवल ख़ुद को भीमसेन समझता है ...इसका

मतलब ये तो नहीं कि दूसरा कोई उनका विरोध करे



जो व्यक्ति अपने धर्म या मज़हब को उत्तम समझ कर उस पर गर्व

करता हुआ उसे प्रचारित-प्रसारित नहीं कर सकता वो किसी दूसरे

के धर्म और मज़हब की क्या खाक इज़्ज़त करेगा ? जो अपनी माँ

को माँ नहीं कह सकता, वो मौसी को क्या माँ जैसा सम्मान दे

पायेगा ? अपने पर गुरूर करना इन्सान की सबसे बड़ी ख़ूबी है, इसी

ख़ूबी के चलते व्यक्ति जीवन में तुष्ट रहता है वरना ..सूख सूख कर

मर जाये क्योंकि मानव अन्न से नहीं, मन से ज़िन्दा रहता है .

दुनिया से प्यार करने के लिए देश से, देश से प्यार करने के लिए

प्रान्त से, प्रान्त से पहले ज़िला, ज़िले से पहले शहर, शहर से पहले

घर और घर से भी पहले व्यक्ति को ख़ुद पर गर्व होना चाहिए भाई !



हम सब रंग हैं और अलग अलग रंग हैं हम सब का महत्व है हम सब

को बनाने वाला एक ही है ये जानते बूझते भी यदि हम आपस में बहस

करें या तनाव फैलाएं तो हम से ज़्यादा दुःख और तनाव उसे होगा जिसने

हम सब को पैदा किया है


कृपया विचार करें और बताएं कि क्या धर्म -सम्प्रदाय या मज़हब का

गढ़ जीतना हमारे लिए इतना ज़रूरी है कि हम प्यार करना भूल जाएँ ?

आनन्द करना भूल जाएँ और अपनी रोज़मर्रा की समस्याएं भूल जाएँ ?

क्या महंगाई का मसला कुछ नहीं, क्या पर्यावरण का मसला कुछ नहीं ?

क्या भष्टाचार का मुद्दा गौण है ? क्या व्यसन और फैशन के कारण बढ़ते

अपराध गौण है ? क्या सड़क दुर्घटनाओं से हमें कोई सरोकार नहीं ? क्या

दुश्मन देश ख़ासकर चाइना से हमें रहना ख़बरदार नहीं ? क्या मिलावट

करने वालों का विरोध हमें सूझता नहीं ? क्या टूटते परिवारों को बचाना

हमें बूझता नहीं ? गाय समेत लगभग सभी दुधारू पशु रोज़ बुचडखाने में

क़त्ल हो रहे हैं, क्या वे हमें दिखते नहीं ? आखिर क्यों हम प्राणियों को

बचाने के लिए कुछ लिखते नहीं ?






hindi hasyakavi albela khatri, big boss, bharat me bhrashtachar, rakhi sawant,insaf, no sex, no dirty politics, no adult jokes

13 comments:

S.M.Masoom November 20, 2010 at 12:53 AM  

एक बेहतरीन सोंच . पढ़ के ऐसा लगा कोई इन्सान तो है जिसकी सोंच आज़ाद है. आप जैसे लोग कुछ और हो जाएं तो समाज का नक्शा ही बदल जाए.
मैं आप को तहे दिल से इस मूल्यवान पोस्ट के लिए धन्यवाद् देता हूँ.

राजीव तनेजा November 20, 2010 at 8:18 AM  

अगर हर इनसान इसी सोच के साथ खुद को ढाल ले..उपरोक्त लिखी बातों को अपने मन में बसा कर उन्हें ही अपना ध्येय ...अपना कर्त्तव्य मान ले तो फिर कोई कारण नहीं रह जाता कि हम सब में भाई-चारा ना हो ...दोस्ती ना हो
सार्थक पोस्ट

vijay kumar sappatti November 20, 2010 at 11:30 AM  

albela ji
bahut acchi post

padhkar bada sakun pahunha .. aapki vicharo ko pranaaam ,

main to yahi kahunga ki ab bhi kuch jyaada nuksaan nahi hua hai , ham ye dharm ke fande chhodkar aapas me pyaar badhaaye to yahi ek sacchi insaaniyat hongi ..

aapko is post ke liye salaam

vijay

संगीता स्वरुप ( गीत ) November 20, 2010 at 11:32 AM  

सार्थक बात

Aruna Kapoor November 20, 2010 at 12:06 PM  

....पढ कर बहुत अच्छा लगा!....शिक्षाप्रद आलेख है!...आप के विचार बहुत ही उच्च श्रेणी के है!

अनुपमा पाठक November 20, 2010 at 4:39 PM  

स्वस्थ सोच!!!!
आखिर क्यों हम प्राणियों को
बचाने के लिए कुछ लिखते नहीं ?
विचारणीय प्रश्न!!!
आभार!

Unknown November 20, 2010 at 5:41 PM  

बिल्कुल सही बात लिखी है आपने अलबेला जी!

हम किसी दूसरे को नहीं बदल सकते किन्तु स्वयं को बदलना तो अपने ही हाथ में है। इसलिए उन ब्लोग्स की तरफ, जिनमें इस प्रकार के पोस्ट होते हैं, हमने झाँकना ही छोड़ दिया है।

Taarkeshwar Giri November 20, 2010 at 7:02 PM  

Bahut hi acchi bat kah gaye aap

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' November 20, 2010 at 9:15 PM  

प्रेरणा देती सुन्दर पोस्ट!

Manas Khatri November 21, 2010 at 1:21 AM  

बहुत ही सुन्दर बात कही है आप ने|
"..जलेबी अगर ये समझे कि उससे ज़्यादा सीधा और कोई नहीं, तो
समझती रहे...केला क्यों ऐतराज़ करता है ?"
अच्छा सन्देश है.

शरद कोकास November 21, 2010 at 3:44 PM  

जिस देश में दस के मामूली से नोट पर सत्रह भाषाओं में दस रुपये लिखा रहता है वहाँ फालतू बातों का टेंशन क्यों मोल लेना भाई ,...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " November 25, 2010 at 4:45 PM  

bahut hi rochak aur sahaj-saral dhang se vyangyatmak shaily me aapne 100 takey ki
baat kahi hai.
ab bahut se duragrhi pravritti ke logon
ko achchhi na lage to iska kya ilaaz hai!

केवल राम November 28, 2010 at 11:22 PM  

बिलकुल सही कहा आपने ...सब सोच की बात है
चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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