चुनाव जीतने के तुरन्त बाद लोकतन्त्र के दरबार में
अनेक महानुभावों ने
ओथ "ली"
शपथ "ग्रहण की"
या
कसम "खाई "
और ये पुनीत कार्य
सब के सामने सम्पन्न हुआ
कोई चोरी छुपे नहीं
अब कल कोई इन पर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप
मत लगाना
_________________अरे यार जिस काम की शुरुआत ही
"लेने"
+ग्रहण करने
+खाने से होती है
उस में खाने पीने की छूट तो होनी ही चाहिए
..हा हा हा हा हा हा हा हा
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
6 comments:
आपने बिलकुल ठीक कहा है , बात यही है कि जब तक हम सच को जान पाते हैं तब तक उम्र का एक बड़ा हिस्सा बीत चुका होता है. लेकिन असल सवाल यह है कि हमारे समाज पर हमेशा से होल्ड ज़ुल्म करने वाले सूदखोरों और ज़मींदारों का रहा है, हरेक राजा और हरेक बादशाह के ज़माने में यही तबक़ा सिरमौर रहा है और हरेक शहर में जनता आज भी इन्हें सम्मान देती है और जो लोग जनता की भलाई में अपना तन-मन-धन खपा देते हैं , जनता उन्हें भुला देती है. इसके बाद जनता फिर चाहती है कि कोई आये और उसके उद्धार के लिए अपनी जान दे .
सवाल यह है कि आख़िर कोई ऐसा क्यों करे ?
क्या कोई समझदार आदमी खुद को बर्बाद करने के लिए तैयार होगा ?
जबकि भ्रष्टाचार करके वह एक ऐश्वर्यशाली जीवन जी सकता है .
धन्यवाद .
http://quranse.blogspot.com/2011/05/blog-post_11.html
इतनी छूट तो मिलना ही चाहिये.
खाने पीने की छूट इस देश में तो पूरी मिली हुई है जी | ये आरोप प्रत्यारोप तो टाइम पास के लिए है | जांच आयोग भी अपने रिटायर लोगों को रेवड़ी बांटने का पुण्य फार्मूला है :) :)
sahi baat hai ... haahahahahahah .. agar ye khyenge nahi to chunav mein jitni dod-dhoop karte hain, usse to ye 'bechare' sukh kar kanta ho jayenge ;P
Nice post.
दिल को जला रहा हूँ ज़माने के वास्ते
दुनिया से तीरगी को मिटाने के वास्ते
खा के गले पे तीर भी हंसना पड़ा मुझे
बस्ती में इंक़लाब को लाने के वास्ते
लो, फिर से आ गयी हैं ये नाज़ुक सी तितलियाँ
फूलों से खुशबुओं को चुराने के वास्ते
फिर से मेरे लहू की ज़ुरूरत पड़ी उसे
बुझते हुए चराग़ जलाने के वास्ते
कल रात उसने सारे खतों को जला दिया
मेरा ख़याल दिल से मिटाने के वास्ते
http://mushayera.blogspot.com/2011/05/gazal.html
वाकई...
अब हम नहीं कहेंगे.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
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