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Albela Khatri

खुशदीप जी, प्रवीण शाह जी, अनवर जमाल जी, रचना जी समेत सभी ब्लोगर ध्यान दें ...वरना सारा मज़ा अकेला टिन्कूजिया ले जायेगा

चिकनगुनिया की चपेट में आने के कारण देह कुछ अशक्त हो गई है परन्तु

जैसे तैसे इस पोस्ट को लिख कर ही रहूँगाक्योंकि आज अगर मैं चुप रहा

तो मुन्नी मुफ़्त बदनाम हो जाएगी और शीला की जवानी का सारा मज़ा

अकेला टिन्कूजिया ले जायेगालिहाज़ा यह पोस्ट लिख कर अपना मत

व्यक्त कर रहा हूँ ताकि सनद रहे........और वक्त--ज़रूरत काम आये



खुशदीप सहगल आज ख़ुश नहीं हैं, उन तक पहुँचने के पहले मैं ज़रा

अविनाश वाचस्पति से बात कर लूँ परन्तु उनसे भी पहले हक़ बनता है

रचना का जिनकी टिप्पणियां पढ़ कर मैं अभिभूत हूँ


रचना जी ! कदाचित यह पहला मौका है जब आपकी बात मुझे सार्थक

और स्वीकार्य लगीअनेक ब्लोग्स पर आज आपकी टिप्पणियां पढ़ीं

जिनमे आपने पैसा लेकर प्रकाशन करने वाले कथित प्रकाशकों का बख़ूबी

ज़िक्र तो किया ही और भी जो कहा, अक्षरशः सही सटीक कहा

.........i like it so much



भाई नीरज जाट ! न्यूँ बता......यात्रा तो तू करै सै ......अर यात्रा वृत्तान्त का

पुरस्कार कोई और ले गया ...बुरा तो नई लाग्या ?


समीरलाल, निर्मला कपिला,दिगंबर नासवा, दीपक मशाल, ललित शर्मा,

दिनेशराय द्विवेदी, बी एस पाबला, गिरीश बिल्लोरे, रतनसिंह शेखावत,

खुशदीप सहगल, संगीता पुरी, राजीव तनेजा इत्यादि सम्मानित हुए अच्छा

लगा परन्तु शरद कोकस, अजित वडनेरकर, आशीष खंडेलवाल, राधारमण,

अलका मिश्रा, ताऊ रामपुरिया, परमजीत बाली, पं डी के वत्स, राज भाटिया,

योगेन्द्र मौदगिल, पंकज सुबीर, अनूप शुक्ल, इरफ़ान, श्यामल सुमन, प्राण

शर्मा, हरकीरत हकीर, अनवर जमाल जैसे अनेकानेक लोग हैं जिन्होंने हिन्दी

ब्लॉग जगत की ख़ूब सेवा की है, क्या उनके लिए किसी सम्मान अथवा

पुरस्कार की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए थी ? आज डॉ अरुणा कपूर जी के

ब्लॉग "बात का बतंगड़" में अनेक नाम छपे हैं जिन्होंने हिन्दी ब्लॉग को

पोषित पल्लवित किया हैक्या उनके योगदान को भुलाना कृतघ्न होना

नहीं है ? कोई तीन साल पहले जब मैंने ब्लॉग शुरू किया था तब " कुमायूं नी

चेली" पर एक बहन ( नाम याद नहीं) हाँ हाँ याद आया शेफाली पांडे... बहुत

ही बढ़िया और स्वस्थ हास्य-व्यंग्य लिखती थी, उसे भी याद नहीं किया

गया, घुघु बासूती, अनिल पुसदकर, बेंगाणी बन्धु भी भुला दिए गये...... ये

बात ज़रा कम ही समझ रही है लेकिन मैं इस विषय पर इसलिए नहीं

बोलूँगा क्योंकि बोलने के लिए कोई सुनने वाला भी ज़रूरी है और एक अदद

माइक भीइस वक्त दोनों ही हाज़िर नहीं है इसलिए अपन सीधे चलते हैं

अविनाश वाचस्पति के पास जिन्होंने मेरा मखौल उड़ा कर ये सिद्ध कर

दिया है कि वे जिस प्याले में चाय पीते हैं, उसमे पान की पीक थूकने का

हुनर भी जानते हैं



तो जनाब आदरणीय अविनाश वाचस्पति जी ! क्या लिखा था आपने अपनी

इक पोस्ट में अपरोक्ष रूप से मुझे निशाना बनाते हुए कि एक अलबेले

पुरस्कार आयोजक ने पुरस्कार समारोह रद्द करके पैसा भी कमा लिया और

प्रसिद्धि भी पा ली ...........आपने उसमे ये दर्शाया है कि 25,000/- का

पुरस्कार वोटों के आधार पर आप ही जीत रहे थे....लेकिन मैंने बहाना बना

कर रद्द कर दिया


जनाब ज़रा इस बात का पूरा खुलासा कीजिये तो मैं खुल कर जवाब दे

सकूँ ताकि सबको पता लगे कि वो मामला क्या थाखुशफ़हमी अच्छी चीज़

है लेकिन हकीकत आखिर हकीकत होती है और उसका सामना करने के

लिए अलबेला खत्री सदैव तत्पर हैमैं आज इस बात को इसलिए उठा रहा

हूँ क्योंकि आज तक आप समारोह में व्यस्त थे.........अब आओ और इस

अलबेले पुरस्कार दाता से बात करो............


ये अलबेला पुरस्कार वाला अपने इश्टाइल में काम करता हैपुरस्कार

ब्लॉग पर देता है और राशि घर बैठे भिजवाता हैदो बार तो आप भी लाभ

ले चुके हो आदरणीय ! फिर कैसे आपने मेरी विश्वसनीयता पर प्रश्न लगा दिया ?



जब मैंने कार्टूनिस्ट सुरेश शर्मा की कार्टून प्रतियोगिता को सहयोग किया

था तब से ले कर माँ के गीत पर 55,555/- रूपये के पुरस्कार तक की पूरी

यात्रा याद करो :
_____


अविनाश वाचस्पति दो बार

सीमा गुप्ता एक बार

रूपचंद्र शास्त्री एक बार

डॉ अरुणा कपूर एक बार

राजेंद्र स्वर्णकार एक बार

अनिल मानधनिया एक बार { शेष याद करके बताऊंगा }


इसके अलावा ग़ज़ल लेखन के लिए सोलह लोग एक बार

तीन लोग दो बार

पुरस्कृत हुए हैं और सबकी राशि उन्हें घर बैठे प्राप्त हुई हैवो भी ब्लॉग पर

घोषणा के 48 घण्टों के भीतर


बाकी बातें बाद में करेंगे, पहले आप अपनी बात साफ़ साफ़ कहें अविनाशजी !

मैं आपकी प्रतीक्षा करूँगा ..........कर रहा हूँ !



तो सम्मान्य खुशदीप जी आपने आज सबको राम राम करने की सोची है

यह मेरी समझ के बाहर इसलिए है क्योंकि मैंने देखा है जिन महिलाओं के

लहंगे में जुएँ पड़ जाती हैं, वे जूँ से घबरा कर लहंगा नहीं फेंकती, बल्कि

लहंगे को ख़ूब गरम पानी में उकाल कर जूँ मारती हैयही तरीका सही है

वरना कितनी बार लहंगा फेंकेगी इस मंहगाई में ?


खुशदीप जी ! ख़ुश होइए प्रभु की इस अनुकम्पा पर कि उसने आपको

बहुत बड़ी नियामत बख्शी हैकृपया उसका सम्मान करें और हम जैसे

अपने प्रशंसकों-पाठकों का ध्यान रखते हुए लेखन - ब्लॉग लेखन

हिन्दी में जारी रखिये अनवरत............आप मेरी पोस्ट पढ़ें पढ़ें, कभी

टिप्पणी दें दें कोई फ़र्क नहीं पड़तापरन्तु हिन्दी ब्लॉग पर असर

अवश्य पड़ेगा यदि आप इस समय ब्लॉग छोड़ कर गये


पता नहीं...बेख़ुदी में क्या क्या लिखे जा रहा हूँ.क्योंकि चिकन गुनिया ने

मुझे भी चिकन जैसा ही बना दिया है परन्तु रहा नहीं गया ..........तो भाई

कोई कहो जा कर अविनाश वाचस्पति से कि अलबेला ने याद फरमाया है

हा हा हा हा हा


चलते चलते चन्द शे' मार देता हूँ :


आग से आग बुझाने का हुनर रखते हैं

हम सितमगर को सताने का हुनर रखते हैं


मौत क्या हमको डराएगी अपनी आँखों से

मौत को आंख दिखाने का हुनर रखते हैं


कोई आँखों से पिलाता है तो कोई ओंठों से

हम तो बातों से पिलाने का हुनर रखते हैं


पाई है हमने विरासत में कबीरी यारो !

जो भी है पास, लुटाने का हुनर रखते हैं


_____पाठकजन से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी


-अलबेला खत्री


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29 comments:

नीरज मुसाफ़िर May 1, 2011 at 11:51 PM  

अलबेला जी, मुझे पहले ही पता था यह आयोजन सुपर फ्लॉप और महान आलोचनाओं का केन्द्र बनने जा रहा है। इसीलिये मैंने अरुणा कपूर जी ब्लॉग पर जाकर लिखा था कि मैं हिन्दी भवन में अपने कुछ ब्लॉगर साथियों से मिलने और डिनर करने जा रहा हूं।
इस आयोजन को लेकर मेरा दिमाग दो बातों से खराब हुआ था: एक तो अविनाश वाचस्पति की वजह से जिसने किसी अलबेले पुरस्कार दाता को जमकर लपेटा था, और दूसरे यात्रा वृत्तान्त पुरस्कार की वजह से। मुझे इस पुरस्कार के लिये अपने अलावा रांची के मनीष कुमार, भोपाल के पी. एन. सुब्रमण्यन, नैनीताल की विनीता यशस्वी के साथ साथ एकाध और नामों की उम्मीद थी। लेकिन जब यह पुरस्कार एक ऐसे ‘यात्री’ को दिया गया जिसके बारे में कभी पढा सुना नहीं गया तो पुरस्कारों की विश्वसनीयता ही खत्म हो गई।
मुझे सम्मेलन में एक ऐसे ब्लॉगर मिले जिसका जिक्र आपने भी किया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने रवींद्र प्रभात से जब ऐसी अनियमितताओं के बारे में बात की तो प्रभात का कहना था कि आप चुप रहिये, एक पुरस्कार आपको भी दे देंगे।

Unknown May 2, 2011 at 12:10 AM  

@नीरज जाट जी !
प्यारे भाई, मुझे तो उसी दिन { शायद 11 अप्रेल } सारी खोट समझ आ गई थी जिस दिन तुरत फुरत में किताबें बुक करने की पोस्टें लग रही थीं और जल्दी किताब खरीदने पर खरीदने वाले का नाम पता छापने का लालच दिया जा रहा था.........

क्या समझ लिया ब्लोगर को ?
वाह रे प्रकाशको और संपादको ! अच्छा गठबंधन किया तुमने .
इत्ती महंगी पुस्तकें बेचने का अच्छा फार्मूला निकला ...आपको तो कलमाड़ी के साथ काम करने का अवसर मिलना चाहिए...हा हा हा

खैर.....आपको पुरस्कार नहीं मिला इसका मुझे इत्ता मलाल नहीं है जित्ता अनेक अपात्रों को मिलने का है.........रही बात वाचस्पति बोस की तो ज़रा उन्हें कहियेगा की मैंने याद किया है

जय हिन्द !

DR. ANWER JAMAL May 2, 2011 at 2:18 AM  

मेरे प्रिय महामित्र अलबेला जी ! रात के बज रहे हैं दो और घर में सब रहे हैं सो। इसके बावजूद भी मैं आपकी नज़्र करता हूं एक शेर

झील हो, दरिया हो, तालाब हो या झरना हो
जिस को देखो वही सागर से ख़फ़ा लगता है
http://mushayera.blogspot.com/2011/05/ghazal.html

आप मेरे बारे में इत्ते अच्छे ख़यालात रखते हैं, यह जानकर दिल में गुदगुदी सी होती है। आपकी तसल्ली के लिए मैंने एक भविष्यवाणी भी कर दी है खुशदीप जी के ब्लॉग पर कि एक सच्चा ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़ भी दे तो ब्लॉगिंग और आप जैसे ब्लॉगर्स उसे नहीं छोड़ते।
रचना जी से सहमत होते देखना एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने जैसा लग रहा है।
आप एक सम्मान एक्सपर्ट आदमी हैं। आपकी बात पर ध्यान दिया जाना हिंदी ब्लॉगिंग के हित में है और हमें तो आपके वचन-सुमन ही अर्से तक महकाते रहेंगे।
धन्यवाद !

योगेन्द्र मौदगिल May 2, 2011 at 5:34 AM  

बंदरों की फ़ौज, बाब्बे दी मौज, कित्थे आन्दिया ने रोज-रोज...

जय हो...
नाचने गाने, ख़ुशी मनाने का अधिकार सबको है...

ब्लॉ.ललित शर्मा May 2, 2011 at 6:13 AM  

आग से आग बुझाने का हुनर रखते हैं
हम सितमगर को सताने का हुनर रखते हैं

Taarkeshwar Giri May 2, 2011 at 7:38 AM  

भाई हमने तो बहुत दिनों से ऐसे आयोजनों में जाना बंद कर रखा हैं. क्योंकि हम जान चुके हैं कि ईस तरह के आयोजन में शामिल होने के लिए चापलूसी जरुरी हैं और वो हम कर नहीं सकते.

Unknown May 2, 2011 at 8:28 AM  

@ अनवर जमाल जी !
खुशदीप जी हों या कोई और, नाम से कोई लगाव नहीं है, लगाव तो इस मंच से है जिस पर हम सब बैठे हैं . एक सशक्त रचनाकार जो अपनी बेहतरीन रचनाओं से अपने पाठकों को रोजाना तृप्त करने का सामर्थ्य रखता हो और पिछले बाईस माह में स्वबका प्रिय और हीरो बन चुका वो किसी दुर्व्यवस्था अथवा घटना विशेष से प्रभावित हो कर इस मंच को छोड़ने की बात करे तो मेरा दुखी होना स्वाभाविक है .

उम्मीद है खुशदीप जी हम सब के आग्रह को ठुकरायेंगे नहीं..........

रचना जी से अपना कोई वैर तो है नहीं भैया परन्तु इसमें कोई शक नहीं कि कल उनकी बातें मुझे बहुत ही अच्छी लगीं

लगे रहो अनवर भाई ! बहुत अच्छी पोस्ट लिखते हो ......धन्यवाद मेरा हौसला बढाने के लिए


@ तारकेश्वर गिरि जी

चापलूसी करने का सवाल ही पैदा नहीं होता सरकार !
चापलूसी वो करे जो चापलूस हो, हम तो खडूस हैं.हा हा हा

समयचक्र May 2, 2011 at 8:49 AM  

नहीं भाई साहब अब चुप नहीं रहना है ....बिलकुल सही कहा ... मैं अब अन्ना साहब का चेला हूँ भला चुप कैसे रह सकता हूँ ...हा हा हा

DR. ANWER JAMAL May 2, 2011 at 9:39 AM  

आप हँसे हैं तो आपकी हंसी में साथ हम भी देंगे.
हा हा हा
प्यार के दो किसी भी पठान को बेमोल खरीद लेते हैं.
अलबेला जी, आप कहीं भी हों और आपको मेरी ज़रूरत हो तो बुला लीजियेगा, खिउशी में तो चाहे न आ पाऊं लेकिन मुसीबत में आपको हम तनहा न छोड़ेंगे हरगिज़, इंशा अल्लाह.
http://commentsgarden.blogspot.com/2011/05/blog-fixing.html

DR. ANWER JAMAL May 2, 2011 at 9:40 AM  

प्यार के दो बोल किसी भी पठान को बेमोल खरीद लेते हैं.
http://blogkikhabren.blogspot.com/

Unknown May 2, 2011 at 10:07 AM  

@ महेन्द्र मिश्र जी !
जय हो आपकी और आपके गुरू अन्ना जी की !

@ अनवर जमाल जी !
जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल....................

DR. ANWER JAMAL May 2, 2011 at 10:34 AM  

बिलकुल सच कहा आपने.

Khushdeep Sehgal May 2, 2011 at 10:41 AM  

आपकी टिप्पणी और पोस्ट ने मुझे आपका वाकई दिल से मुरीद बना लिया है...

बाकी बातें तब जब मिल बैठेंगे दीवाने दो...

जय हिंद...

Unknown May 2, 2011 at 11:45 AM  

@ खुशदीप सहगल जी !
हम ये हक़ किसी को नहीं दे सकते कि वो हमें अपने शौक से, अपने जूनून से अथवा अपने इश्क़ से दूर कर दे.......

मैं जानता हूँ आप लेखन से मोहब्बत करते हैं, लोगों की ख़ुशी से आपको इश्क़ है और अपनी बात को पूरे पराक्रम के साथ कहना आपका जूनून है.......किसी दूसरे की भूल आपका दिल दुखाये तो दुखाये, ये दुःख दुखाके ठीक हो जाएगा लेकिन आपको अपने इश्क़ से जुदा होने का बायस बने ....इतना अजवायन किसी की माता जी ने अभी तक नहीं खाया ................

आप अनवरत अपनी धारा प्रवाहित रखें............यही श्रेयस्कर होगा आपके लिए भी, आपके चाहने वालों के लिए भी और हिन्दी ब्लोगिंग के लिए भी..........

मिलने की तमन्ना इधर भी कुछ कम नहीं है.............हा हा हा हा हा हा

जय हिन्द !

Aruna Kapoor May 2, 2011 at 4:31 PM  

धन्यवाद अलबेलाजी!...आप के और हमारे विचार मिल रहे है!...आप ने हमारे सुझाएं हुए नामों की लिस्ट में बढोतरी कर दी..बहुत अच्छा लगा!...यह सभी ब्लॉगर्स सन्मानित होने की पात्रता रखते है, इन्हे भुलाया गया यह अच्छा नही हुआ!...आप की इस बात से भी सहमत हू कि जो योग्यता नही रखते थे, उन्हे सन्मानित करना अयोग्य ही था!..यात्रा वॄतांत के पुरस्कार के लिए नीरज जाटजी का नाम पहले आना चहिए था!..चलिए!... यह सभी ब्लॉगर्स सन्माननीय है!..सभी इनके कार्य की प्रशंसा करते है!...पुरस्कार तो सन्मान देने का एक प्रतीक मात्र होता है!...जो जो इस कार्यक्रम में सही में सन्मान पाने के योग्य थे, उन्हे सन्मान मिला...इससे हमें बहुत खुशी हुई है!...आप की नासाज तबियत के बारे में अभी पता चला!....डॉक्टर हूं...आराम करने की सलाह दे रही हूं!

ghughutibasuti May 2, 2011 at 4:42 PM  

अलबेला जी, आपसे कभी सहमत होऊँगी सोचा भी न था.खैर,रचना से सहमत हूँ,पैसे देकर अपना नाम पता, ई मेल आई डी देने के विरुद्ध हूँ.वैसे आपसे सहमत होना भी ..... हाहाहा हा,
जाने दीजिए.
घूबा

Unknown May 2, 2011 at 5:25 PM  

@ घुघु बासूती जी !
आपके लिए मुझे स्व. नूर लखनवी का शे'र याद आ रहा है :
सोने के फ्रेम में ही मढ़ दो चाहे
आईना झूठ बोलता ही नहीं

______आदरणीया, मेरी फ़ितरत दर्पण जैसी है . दर्पण से सहमत होना बड़ा मुश्किल है . बस........इत्ता समझ लीजिये कि विवादास्पद रहना मेरी नियति ही है . अन्यथा मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है आज तक ? अब तक़दीर ही ऐसी है कि जिस घर छाछ मांगने जाऊं उस घर भैंस ही मर जाती है

अब हवन करते हुए हाथ जलते हैं तो लाख बार जले, हलवा खाते हुए दांत टूटते हैं तो लाख बार टूटें, मैं छोड़ तो नहीं सकता

आप आये, सचमुच बहुत अच्छा लगा.........अगर आप अहमदाबाद में हैं { जैसा कि मैं समझता हूँ} तो सात तारीख को आइये सरदार पटेल स्टेडियम में.........विराट कवि सम्मेलन का आनन्द लेने.........रही बात रचना जी की तो पता नहीं कब और क्यों लोगों ने ऐसा हौव्वा खड़ा कर दिया कि मैं अपने ब्लॉग पर जान बूझ कर उन्हें छेड़ता हूँ.........जबकि मैं सिर्फ़ शब्दों से छेड़छाड़ करता हूँ और लोगों में ख़ुशी बांटने का प्रयास करता हूँ . इस काम में कभी गफ़लत हो भी जाये तो तो ये इत्ता बड़ा अपराध नहीं है जित्ता मान लिया जाता है
धन्यवाद

@ डॉ अरुणा कपूर जी !
जी डॉ साहेब मैं आराम ही कर रहा हूँ .........
आपके सहयोग के लिए आभारी हूँ

naresh singh May 2, 2011 at 7:50 PM  

जो भी है पास, लुटाने का हुनर रखते हैं....मरे पास भी आपकी दरियादिली की काफी मिशाल है |

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 2, 2011 at 8:11 PM  

बहुत सुन्दर आलेख और अभिव्यक्ति!
--
पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!
--
मात-पिता,आचार्य का, सदा करो सम्मान।
इनके बिन मिलता नहीं, जग का कोई ज्ञान।।

राज भाटिय़ा May 2, 2011 at 10:39 PM  

पाई है हमने विरासत में कबीरी यारो !
जो भी है पास, लुटाने का हुनर रखते हैं
मस्त शेर ओर मेरे ऊपर सही बेठता हे... इस लिये मुझे कोई फ़र्क नही पडता इन सब बातो का, वैसे मुझे पहले ही शक था कि कही कोई गडबड ना हो, असल बात तो मुझे नही मालूम, लेकिन खुश दीप भाई जेसा आदमी नाराज हो तो जरुर कोई खास बात हुयी होगी..

चलिये हम सब फ़िर मिलेगे सर्दियो मे, ओर इस बार आप को काफ़ी पहले बता देगे, एक दो दिन पहले आना पडेगा, इस बार परिवार के संग आऊंगा, ओर पिछली बार की गलतियो की क्षमा भी मांगूगा... ओर फ़िर सब मिल बेठेगे

Astrologer Sidharth May 3, 2011 at 3:08 AM  

शरद कोकस, अजित वडनेरकर, आशीष खंडेलवाल, राधारमण,

अलका मिश्रा, ताऊ रामपुरिया, परमजीत बाली, पं डी के वत्स, राज भाटिया,

योगेन्द्र मौदगिल, पंकज सुबीर, अनूप शुक्ल, इरफ़ान, श्यामल सुमन, प्राण

शर्मा, हरकीरत हकीर, अनवर जमाल जैसे अनेकानेक लोग हैं जिन्होंने हिन्दी

ब्लॉग जगत की ख़ूब सेवा की है



अरे अलबेला जी मेरा नाम भूल गए :)

मैंने निशब्‍द और अज्ञात रहकर हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की जो सेवा की है उसे तो सिरे से ही भुला दिया गया है... मेरा दर्द कौन जानेगा... :)

Unknown May 3, 2011 at 7:13 AM  

@ sidharth joshi ji !
galti ho gayi bhai ji.............maaf kar do
agle janam me dhyaan rakhoonga ..ha ha ha

बाल भवन जबलपुर May 3, 2011 at 5:14 PM  

@आग से आग बुझाने का हुनर रखते हैं
हम सितमगर को सताने का हुनर रखते हैं

दिनेशराय द्विवेदी May 3, 2011 at 9:58 PM  

आप का दर्द वाजिब है। आरंभ से इस आयोजन का इतिहास परिकल्पना और नुक्कड़ पर देखेंगे तो पता लग जाएगा कि वही होना था, जो हुआ है।

Unknown May 3, 2011 at 10:25 PM  

@ dineshrai dwivedi ji !
achha hai ji,,,,,,kuchh na kuchh hota rahe.......

रज़िया "राज़" May 4, 2011 at 7:02 PM  

आग से आग बुझाने का हुनर रखते हैं
हम सितमगर को सताने का हुनर रखते हैं
चलिये आपकी शायरी में कुछ मेरे अल्फ़ाज़ आपके लिये।

वो समझते है हँसाने का हुनर रखते हैं।

वक़्त आने पर रुलाने का हुनर रखते हैं।

कैसी रही??? सही है न!!!आपसे कोई अड जाये ये हो ही नहिं सकता अलबेलाजी।

Unknown May 4, 2011 at 7:17 PM  

@ रज़िया "राज़" जी !

आप आये तो यों लगा जैसे .खुशनुमा बादे-सबा आ गई..........

हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया...........

बहुत दिनों से आपने भी कुछ लिखा नहीं है शायद............अरे भाई अब तो बेटी की शादी से फ्री हो गये हो..थोड़ी देर ब्लोगिंग में भी टहल लिया करो शाम सवेरे......

प्रतीक्षा रहेगी आपके नये कलाम की

सञ्जय झा April 30, 2013 at 10:23 AM  


@ झील हो, दरिया हो, तालाब हो या झरना हो
जिस को देखो वही सागर से ख़फ़ा लगता है...

'bryhmosh' ki marak kshamta liye hue hai.........


pranam.

सञ्जय झा April 30, 2013 at 10:33 AM  

@ पाई है हमने विरासत में कबीरी यारो !
जो भी है पास, लुटाने का हुनर रखते हैं.........


pranam.

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