आदमी की ज़िन्दगी का
हाल काहे पूछते हो,
हो चुका है ख़ाना ही ख़राब मेरे देश में
भेडि़ए-सियार-गिद्ध-
चील-कौव्वे घूमते हैं
आदमी का ओढ़ के नक़ाब मेरे देश में
धरमों के नाम पे
बहाते हैं ये लोग देखो
अपनों के ख़ून का चनाब मेरे देश में
शरम की बात है ये
देशवासियों के लिए
kavi albela khatri surat me gujarati deshbhakton ke beech kavita paath karte hue - is avsar par shaheedon ke parivarjanon ko samman aur aarthik sahyog kiya gaya |
9 comments:
Abhi tak zinda hai kasab mere desh mein....bahut khub.... ghum rahein nidar bhrastachari khule aam mere desh mein (kalmadi,kani mozi riha)
bahut khub sir....
यही सच्चाई है...बहुत उम्दा रचना!
http://arunakapoor.blogspot.com/
...इस हास्य-कथा पर टिप्पणी देने के लिए जरुर पधारें!
अपना देश ही क्या सारी दुनिया का यही हाल है...सार्थक रचना.. समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
आप सही कह रहे हैं। आपकी देश-भक्ति के जज्बे को हम प्रणाम करते हैं।
सादर
शानू
tikha vyngya.....kya apki likhi panktiya use kar sakti hoon
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
सटीक ..अच्छी प्रस्तुति
देश कि कुव्यवस्था पर खूबसूरत टिप्पड़ी
wah mere dost , bahot aachi aur dil ko chu lene wali line likhi hai-- Dilip Ragit- Astrologer, Chandrapur M.S.
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