आज की रात जीना चाहता हूँ
आबे - हयात पीना चाहता हूँ
इससे पहले
कि मैं तुम्हारे हुस्न के झूले में झूल जाऊं
इससे पहले
कि मैं अपने मुर्शिद की दरगाह भूल जाऊं
हटालो निगाह मुझसे.................
ज़ख्म पहले ही बहुत गहरे है ज़िन्दगानी में
आज एक घाव सीना चाहता हूँ
आज की रात जीना चाहता हूँ
सिलवटें बिस्तर की पड़ी रहने दो..........
दुनियादारी की खाट खड़ी रहने दो
क्या ख़ाक मोहब्बत है, क्या राख जवानी है
लम्हों की कहानी है, हर शै यहाँ फ़ानी है
फ़ानी को पाना क्या
फ़ानी को खोना क्या
फ़ानी पर हँसना क्या
फ़ानी पर रोना क्या
जो चढ़के न उतरे
वो जाम मयस्सर है
महबूब ने जो भेजा
पैग़ाम मयस्सर है
न सुराही, न मीना चाहता हूँ
आज की रात जीना चाहता हूँ
आज की रात जीना चाहता हूँ
hasyakavi albela khatri in portu rico ice land usa at house of mr.sunil lula |
5 comments:
बड़े मस्त दिख रहे हैं! लगता है जी लिये:)
किसने मना किया है ?
waah
प्रभावशाली रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
kaun hai wo sir ji ...
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