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Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

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Albela Khatri

एक कविता उस महबूब यार के लिए, उस जानेजिगर के लिए ...जिसने अपनी मोहब्बत में बाँध कर मेरी रातों की नींद और दिन का चैन उजाड़ रखा है लेकिन बावजूद इसके मुझे उससे बेपनाह इश्क़ है ......


आज की रात जीना चाहता हूँ

आबे - हयात पीना चाहता हूँ




इससे पहले


कि मैं तुम्हारे हुस्न के झूले में झूल जाऊं


इससे पहले


कि मैं अपने मुर्शिद की दरगाह भूल जाऊं


हटालो निगाह मुझसे.................



ज़ख्म पहले ही बहुत गहरे है ज़िन्दगानी में


आज एक घाव सीना चाहता हूँ


आज की रात जीना चाहता हूँ




सिलवटें बिस्तर की पड़ी रहने दो..........


दुनियादारी की खाट खड़ी रहने दो


क्या ख़ाक मोहब्बत है, क्या राख जवानी है


लम्हों की कहानी है,  हर शै यहाँ फ़ानी है


फ़ानी को पाना क्या


फ़ानी को खोना क्या


फ़ानी पर हँसना क्या


फ़ानी पर रोना क्या


जो चढ़के न उतरे


वो जाम मयस्सर है


महबूब ने जो भेजा


पैग़ाम मयस्सर है


न सुराही, न मीना चाहता हूँ



आज की रात जीना चाहता हूँ

      
आज की रात जीना चाहता हूँ


hasyakavi albela khatri  in portu rico  ice land usa  at house  of mr.sunil lula
 

5 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय January 4, 2012 at 7:24 PM  

बड़े मस्त दिख रहे हैं! लगता है जी लिये:)

ब्लॉ.ललित शर्मा January 4, 2012 at 8:31 PM  

किसने मना किया है ?

दिलीप January 4, 2012 at 10:55 PM  

waah

Pallavi saxena January 4, 2012 at 10:58 PM  

प्रभावशाली रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

vijay kumar sappatti January 6, 2012 at 11:56 AM  

kaun hai wo sir ji ...

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