समय नदी की धार,
जिसमे सब बह जाया करते हैं
पर होते हैं कुछ लोग ऐसे
जो इतिहास बनाया करते हैं
प्रखर राष्ट्रभक्त और मुखर वक्ता राजीव दीक्षित अब हमारे बीच
नहीं रहे । यह हृदयविदारक समाचार पढ़ कर मेरा मन विषाद
से भर गया है । राजीव दीक्षित भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक
पुरूष बन गये थे, करोड़ों लोग उनके वक्तव्यों के प्रशंसक ही
नहीं बल्कि अनुयायी भी हैं । राजीव दीक्षित से भले ही मेरा
सीधा कोई सरोकार नहीं था परन्तु एक भारतीय होने के नाते
और एक देशभक्त स्वाभिमानी नागरिक होने के नाते मैं उन्हें
बहुत पसन्द करता था । राजीव दीक्षित का न रहना एक बड़ा
शून्य छोड़ गया है, यह एक ऐसी क्षति है भारत की जो अपूर्णीय
है । परमपिता परमात्मा राजीव दीक्षित की पवित्र आत्मा को
परम शान्ति प्रदान करे, आइये ऐसी प्रार्थना हम सब करें-
सजल नेत्रों और भारी मन से विनम्र श्रद्धांजलि !
.............ओम शान्ति ! शान्ति ! शान्ति !
राष्ट्रभक्त राजीव दीक्षित का असामयिक निधन भारतीय स्वाभिमान की अपूर्णीय क्षति है
Links to this post Labels: निधन , भारतीय , राजीव दीक्षित , राष्ट्रभक्त , विनम्र श्रद्धांजलि , स्वाभिमान
लो जी हो गये एक तीर से दो दो शिकार.... पहले पोस्ट पर टिप्पणी, फिर टिप्पणी से पोस्ट तैयार
ये भी ख़ूब रही...........
परिकल्पना ब्लॉग पर रवीन्द्र प्रभात जी ने आज की पोस्ट में पूछा था
कि " वर्ष २०१० में हिन्दी ब्लोगिंग ने क्या खोया, क्या पाया ?"
इस पर मैंने भी एक टिप्पणी की है,
वही यहाँ भी चिपका रहा हूँ
यानी करके दिखा रहा हूँ एक तीर से दो दो शिकार
पहले की टिप्पणी, फिर टिप्पणी से पोस्ट तैयार
_______2010 में क्या खोया, क्या पाया ?
तो जनाब खोने को तो यहाँ कुछ था नहीं,
इसलिए पाया ही पाया है .
नित नया ब्लोगर पाया है,
संख्या में वृद्धि पायी है
और रचनात्मक समृद्धि पाई है
लेखकजन ने एक नया आधार पाया है
मित्रता पाई है, निस्वार्थ प्यार पाया है
दुनिया भर में फैला एक बड़ा परिवार पाया है
इक दूजे के सहयोग से सबने विस्तार पाया है
नूतन टैम्पलेट्स के ज़रिये नया रंग रूप और शृंगार पाया है
रचनाओं की प्रसव-प्रक्रिया में परिमाण और परिष्कार पाया है
नये पाठक पाए हैं,
नवालोचक पाए हैं
लेखन के लिए सम्मान और पुरस्कार पाया है
नयी स्पर्धाएं, नयी पहेलियों का अम्बार पाया है
लगे हाथ गुटबाज़ी भी पा ली है, वैमनस्य भी पा लिया है
टिप्पणियाँ बहुतायत में पाने का रहस्य भी पा लिया है
बहुत से अनुभव हमने वर्ष 2010 में पा लिए
इससे ज़्यादा भला 11 माह में और क्या चाहिए
-हार्दिक मंगलकामनाओं सहित,
-अलबेला खत्री
सबसे ज़लील व शर्मनाक बात है अपने से परास्त हो जाना
जो बल से पराजित करता है
वह अपने शत्रुओं को सिर्फ़ आधा जीतता है ।
सबसे शानदार विजय है अपने पर विजय प्राप्त करना
और सबसे ज़लील व शर्मनाक बात है अपने से परास्त हो जाना ।
-प्लेटो
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
Links to this post Labels: ज़लील , बल , विजय , शर्मनाक , शानदार , हास्यकवि अलबेला खत्री
बड़ी निराशा हुई सोनिया गांधी का चुनाव क्षेत्र देख कर
ऊंचाहार जाते समय राय बरेली रास्ते में पड़ता है जो कि श्रीमती सोनिया
गांधी का चुनाव क्षेत्र है, लेकिन नगर की हालत देख कर लगा नहीं कि वह
सचमुच सोनियाजी का चुनाव क्षेत्र है ।
जगह जगह गन्दगी, बेतरतीब बसावटें, संकरी गलियां और बेकायदा
यातायात देख कर तो निराशा हुई ही....वहां का घंटाघर देख कर भी
हँसी छूट पड़ी.........क्योंकि जिसे वहां घंटाघर कहा जाता है, वो घंटीघर
कहलाने के काबिल भी नहीं
सड़कों की हालत तो तौबा ! तौबा !
जय हो वहां के निवासियों की और उनकी सम्माननीया सांसद की ।
Links to this post Labels: अलबेला खत्री , ऊंचाहार ntpc , घंटा घर , राय बरेली , सोनिया गांधी
N T P C ऊंचाहार के स्थापना दिवस समारोह में ख़ूब जमा हास्य कवि सम्मेलन - अलबेला खत्री ने मचाई धूम
अभी दो दिन पहले उत्तर प्रदेश के सुन्दर क्षेत्र ऊंचाहार में एन टी पी सी
के स्थापना दिवस समारोह में आयोजित अखिल भारतीय हास्य कवि-
सम्मेलन में बहुत आनन्द आया ।
देश के कोने कोने से आये कवि और कवयित्रियों ने अपने रचनापाठ से
श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।
महाप्रबंधक श्रीमान राव ने स्वागत सम्भाषण में ही अत्यन्त परिष्कृत
हिन्दी और संस्कृत में कविता की व्याख्या की तथा कविगण का स्वागत
किया । तत्पश्चात हिन्दी अधिकारी श्री पवन मिश्रा ने कमान कवियों को
सौंप दी और एक के बाद एक रचनाकार ने अपनी प्रस्तुति से जन का मन
मोहा
चूँकि कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए संचालक ने मेरा नाम प्रस्तावित
कर दिया ..लिहाज़ा मुझे सबसे बाद में ही आना था ..मगर शुक्र है कि मेरा
नम्बर आने तक लोग डटे रहे, जमे रहे और मैंने भी फिर खुल कर काम
किया । उस दिन 26-11 वारदात की दूसरी बरसी थी इसलिए पहले मैंने
उस अवसर पर कुछ कहा .एक गीत शहीदों के नाम पढ़ा और बाद में
हँसना-हँसाना आरम्भ किया ।
जलवा हो गया जलवा !
दर्शकों का ख़ूब स्नेह और आशीर्वाद मिला .........तालियाँ और ठहाके गूंज उठे
.....कुल मिला कर बल्ले बल्ले हो गई ।
इसका वीडियो जल्दी ही मिलेगा तो आपको दिखाऊंगा
-अलबेला खत्री
Links to this post Labels: ntpc , एन टी पी सी , कवि-सम्मेलन , स्थापना दिवस समारोह , हास्यकवि अलबेला खत्री
रचनायें सादर आमन्त्रित हैं स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए ...... कृपया इस बार बढ़-चढ़ कर हिस्सा लीजिये
स्नेही स्वजनों !
सादर नमस्कार ।
लीजिये एक बार फिर उपस्थित हूँ एक नयी स्पर्धा का श्री गणेश करने के
लिए और आपकी रचना को निमन्त्रण देने के लिए ।
स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए www.albelakhatri.com पर आपकी रचना
सादर आमन्त्रित है । जैसा कि पहले ही बता दिया गया था कि इस बार
स्पर्धा हास्य-व्यंग्य पर आधारित होगी ।
नियम एवं शर्तें :
स्पर्धा क्रमांक -५ का शीर्षक है :
लोकराज में जो हो जाये थोड़ा है
स्पर्धा में सम्मिलित करने के लिए कृपया उपरोक्त शीर्षक के
अनुसार ही रचना भेजें . विशेषतः इस शीर्षक का उपयोग भी
रचना में अनिवार्य होगा अर्थात रचना इसी शीर्षक के इर्द गिर्द
होनी चाहिए .
हास्य-व्यंग्य में हरेक विधा की रचना इस स्पर्धा में सम्मिलित की
जायेगी । आप हास्य कविता, हज़ल, पैरोडी, छन्द, दोहा, सोरठा, नज़्म,
गीत, मुक्तक, रुबाई, निबन्ध, कहानी, लघुकथा, लेख, कार्टून अर्थात कोई
भी रचना भेज सकते हैं
एक व्यक्ति से एक ही रचना स्वीकार की जायेगी ।
रचना मौलिक और हँसाने में सक्षम हो यह अनिवार्य है ।
स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए रचना भेजने की अन्तिम तिथि है
15 दिसम्बर 2010
सभी साथियों से निवेदन है कि इस स्पर्धा में पूरे उत्साह के साथ सहभागी
बनें और हो सके तो अपने ब्लॉग पर भी इसकी जानकारी प्रकाशित करें
ताकि अधिकाधिक लोग लाभान्वित हो सकें
मैं और भी बातें विस्तार से लिखता लेकिन कल कानपुर में काव्य-पाठ
करना है इसलिए थोड़ी नयी रचनाएँ तैयार कर रहा हूँ । इस कारण
व्यस्तता बढ़ गई है । आप सुहृदयता पूर्वक क्षमा कर देंगे ऐसा मेरा
विश्वास है
तो फिर निकालिए अपनी अपनी रचना और भेज दीजिये
........all the best for all of you !
-अलबेला खत्री
जी हाँ मैंने रात भर आनन्द लिया रचना का, किसी को ऐतराज़ हो तो वो भी आनन्द ले ले "अलबेला खत्री " का
"चोर की दाढ़ी में तिनका" होता है, ये तो मैंने सुना था परन्तु कुछ लोगों
की पूरी दाढ़ी ही तिनकों की होती है जिसकी झाड़ू बना कर "वे" लोग
अपने घर की सफाई करने के बजाय दूसरों के घोच्चा करने में ज़्यादा
मज़ा लेते हैं, ये मुझे तिलियार ब्लोगर्स मीट के बाद ललित शर्मा की पोस्ट
पर आई टिप्पणियों से ही पता चला . और ये सारा बखेड़ा इसलिए खड़ा
होगया क्योंकि मैंने उसमे अपनी टिप्पणी में स्वीकार किया था कि मैंने
रात भर रचना का मज़ा लिया . अब न तो रचना कोई बुरी चीज़ है, न ही
मज़ा लेना कोई पाप है, लेकिन चूँकि मज़ा मैंने लिया था और रात भर
लिया था सो कुछ अति विशिष्ट ( आ बैल मुझे मार ) श्रेणी के गरिमावान
( सॉरी हँसी आ रही है ) लोगों को अपच हो गया और उन्होंने आनन्द
जैसी परम पावन पुनीत और दुर्लभ वस्तु को भी अश्लील कह कर 'आक थू'
कर दिया । ये देख कर ललित जी की बांछें भी उदास हो गईं होंगी चुनांचे
मेरा धर्म है कि मैं बात स्पष्ट करूँ । लिहाज़ा ये पोस्ट लिख रहा हूँ ताकि
सनद रहे और वक्त ज़रूरत प्रमाण के तौर पर काम ( काम से मेरा मतलब
कामसूत्र वाला नहीं है ) ली जा सके :
तो जनाब ! सबसे पहले तो मैं धन्यवाद देता हूँ उन लोगों का जिन लोगों
ने तिलियार में मुझ से मिल कर, प्रसन्नता प्रकट की और मेरी "रचना"
को झेला अथवा मेरी प्रस्तुति का आनन्द लिया । तत्पश्चात ये भी स्पष्ट
कर दूँ कि मैं एक रचनाकार हूँ और रचनाकारी करना मेरा दैनिक कार्य
है, कार्य क्या है कर्त्तव्य है और मुझे गर्व है कि न केवल मैं अपनी रचना
की सृष्टि कर सकता हूँ अपितु दूसरों की रचनाएं सुधारने का काम भी
बख़ूबी करता हूँ, जो लोग on line मुझसे सलाह लेते हैं अथवा अपनी
रचना मुझसे सुधरवाते हैं उनमे नर भी कई हैं और नारियां भी अनेक हैं
परन्तु मैं किसी का नाम नहीं लूँगा, क्योंकि ये केवल मैत्रीवश होता है ।
अस्तु-
उस रात 9 बजे जो महफ़िल जमी, वह करीब 3 बजे तड़के तक चली
...........और इस दौरान वो सब हुआ जो यारों की महफ़िल में होता है ।
महफ़िल जब पूरी जवानी पर आ गई, तब ललित जी को अपनी रचनाएं
सुनाने का भूत लग गया । अब लग गया तो लग गया ......कोई क्या कर
सकता है ...कहीं भाग भी नहीं सकते थे..........नतीजा ये हुआ कि ललित
शर्मा एक के बाद एक रचना पेलते गये और हम सहाय से झेलते गये
............जल्दी ही मुझे इसमें आनन्द आने लगा और मैं पूर्णतः सजग
हो कर सुनने लगा । नि:सन्देह ललित जी रात भर सुनने की चीज हैं ।
यह अनुभव मुझे पहली ही रात में हो गया ..हा हा हा
तो साहेब ये कोई ज़रूरी तो नहीं कि परायी रचना" में सभी को उतनी रुचि
हो, जितनी कि मुझे रहती है, इसलिए बन्धुवर केवलराम, नीरज जाट,
सतीश और स्वयं मेज़बान राज भाटिया जी भी एक एक करके निंदिया के
हवाले हो गये, बस..........मैं ही बचा रहा सो मैं ही सुनता रहा और आनन्द
लेता रहा ।
सुबह जब उठा, तो ललितजी फिर जाग्रत हो गये और लिख मारी पोस्ट
..........साथ ही सबसे कह भी दिया कि अपने अपने कमेन्ट दो.........
भाटियाजी बोले - मैं तो जर्मनी जा कर करूँगा, तब भी उनसे ज़बरन
टिप्पणी करायी गई क्योंकि पोस्ट को हॉट लिस्ट में लाने का और कोई
उपाय है ही नहीं.......लिहाज़ा मैंने भी अपनी टिप्पणी कर दी जिसमे
स्वीकार किया कि रात भर "रचना" का आनन्द लिया ........अब इस
"रचना" से मेरा अभिप्राय: ललित जी कि काव्य-रचना से था । लिहाज़ा
मैंने कोई गलत तो किया नहीं । गलत तो तब होता जब मैं ये लिखता
कि मुझे "रचना" में कोई मज़ा नहीं आया..........
अब संयोगवश रचना नाम किसी नारी का हो जिसे मैंने कभी देखा नहीं,
जाना नहीं, जिसका मैंने कोई क़र्ज़ नहीं देना और जिससे मुझे कोई
सम्बन्ध बनाने की लालसा भी नहीं, कुल मिला कर जिसमे मेरा कोई
इन्ट्रेस्ट ही नहीं,
वो अगर इस टिप्पणी में ज़बरदस्ती ख़ुद को घुसेड़ ले तो मैं क्या करूँ यार ?
मैंने कोई ठेका ले रखा है सबके नामों का ध्यान रखने का ...और वैसे भी
" रचना " शब्द क्या किसी के बाप की जागीर है ? बपौती है किसी की ?
क्या रचना नाम की एक ही महिला है दुनिया में ? मानलो एक भी है तो
क्या मैंने ये लिखा कि "इस" विशेष रचना का आनन्द लिया ?
जाने दो यार क्या पड़ा है इन बातों में..............मेरी रचनाओं के तो सात
संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, रचनाकारी करते हुए 28 साल हो गये मुझे
जबकि ब्लोगिंग तो जुम्मा जुमा डेढ़ साल से कर रहा हूँ । रचना शब्द
को मैं जब, जैसे, जितनी बार चाहूँ, प्रयोग कर सकता हूँ .....किसी को
ऐतराज़ हो तो मेरे ठेंगे से !
आप भी स्वतन्त्र हैं " अलबेला " शब्द से खेलने के लिए । चाहो तो आप
भी लिखो " रात भर अलबेला का आनन्द लिया " और आनन्द ले भी सकते
हो । "अलबेला " नाम की फ़िल्म चार बार बनी है............उसे रात भर देखो
और सुबह पोस्ट लिखो कि रात भर "अलबेला" का मज़ा लिया .... मैं कभी
कहने नहीं आऊंगा कि ऐसा क्यों लिखा......क्योंकि जैसे "रचना" शब्द
किसी कि बपौती नहीं, वैसे ही "अलबेला" शब्द भी किसी की बपौती नहीं है ।
विनम्रता एवं सद्भावना सहित इससे ज़्यादा नेक सलाह मैं अपने घर का
अनाज खा कर आपको फ़ोकट में नहीं दे सकता ।
-अलबेला खत्री
Links to this post Labels: अलबेला.तिलियारा , रचना.ब्लोगिंग , रोहतक , ललित , हास्यकवि
अलबेला खत्री विनम्रता पूर्वक कुछ पूछना चाहता है आप सब से..... जवाब ज़रा सोच - समझ कर दें
प्यारे साथियों !
आज ज़िन्दगी में पहले से ही इतना तनाव है कि कोई भी व्यक्ति और
ज़्यादा तनाव झेलने की स्थिति में नहीं है इसके बावजूद अगर वह नये
वाद-विवाद खड़े करता है और बिना कारण करता है तो उसे बुद्धिजीवी
या साहित्यकार अथवा कलमकार कहलाना इसलिए शोभा नहीं देगा
क्योंकि इनका काम समाधान करना है, समस्या को और उलझाना नहीं
...........बेहतर होगा यदि हम अपनी लेखनी के ज़रिये समाज के मसलों
को हल करने की कोशिश करें, न कि मसलों का हिस्सा बन कर बन्दर की
तरह अपना पिछवाड़ा लाल दिखाने के लिए विभिन्न आपसी दल गठित
करलें और गन्द फैलाएं ।
यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि धर्म के नाम पर रोज़ अधर्म हो रहा है। कुछ
लोग इस्लाम का झंडा लिए घूम रहे हैं और लगातार इस्लाम को दुनिया
का सर्वश्रेष्ठ मज़हब मान रहे हैं बल्कि साबित भी किये जा रहे हैं जबकि
कुछ लोग अनिवार्य रूप से उनका विरोध कर रहे हैं । इस चक्कर में भाषा
और वाक्य अपनी मर्यादाएं लांघ रहे हैं । अब कौन क्या कह रहा है उसे
दोहराने का मतलब पतले गोबर में पत्थर मारना है इसलिए वो छोड़ो.......
केवल एक बात पूछता हूँ कि किसी भी धर्म का या मज़हब का कोई भी
व्यक्ति यदि अपने धर्म या मज़हब को बड़ा और श्रेष्ठ बताता है तो अपने
बाप का क्या जाता है ? वो कौनसा अपने घर से पेट्रोल चुरा रहा है ?
इसमें बुरा ही क्या है कि कोई अपने धर्म या मज़हब को सर्वोत्तम बताये
...........जलेबी अगर ये समझे कि उससे ज़्यादा सीधा और कोई नहीं, तो
समझती रहे...केला क्यों ऐतराज़ करता है ?
ये तो बहुत अच्छी बात है कि कोई ख़ुद को और ख़ुद के सामान को श्रेष्ठ
समझे.........इसमें किसी भी प्रकार के विरोध का कारण ही kahan पैदा
hota है ? हर व्यापारी अपने माल को उत्तम बताता है, हर नेता केवल ख़ुद
के दल को देशभक्त बताता है, हर स्त्री केवल स्वयं को सर्वगुण सम्पन्न
मानती है और हर पहलवान केवल ख़ुद को भीमसेन समझता है ...इसका
मतलब ये तो नहीं कि दूसरा कोई उनका विरोध करे ।
जो व्यक्ति अपने धर्म या मज़हब को उत्तम समझ कर उस पर गर्व
करता हुआ उसे प्रचारित-प्रसारित नहीं कर सकता वो किसी दूसरे
के धर्म और मज़हब की क्या खाक इज़्ज़त करेगा ? जो अपनी माँ
को माँ नहीं कह सकता, वो मौसी को क्या माँ जैसा सम्मान दे
पायेगा ? अपने पर गुरूर करना इन्सान की सबसे बड़ी ख़ूबी है, इसी
ख़ूबी के चलते व्यक्ति जीवन में तुष्ट रहता है वरना ..सूख सूख कर
मर जाये क्योंकि मानव अन्न से नहीं, मन से ज़िन्दा रहता है .
दुनिया से प्यार करने के लिए देश से, देश से प्यार करने के लिए
प्रान्त से, प्रान्त से पहले ज़िला, ज़िले से पहले शहर, शहर से पहले
घर और घर से भी पहले व्यक्ति को ख़ुद पर गर्व होना चाहिए भाई !
हम सब रंग हैं और अलग अलग रंग हैं । हम सब का महत्व है । हम सब
को बनाने वाला एक ही है । ये जानते बूझते भी यदि हम आपस में बहस
करें या तनाव फैलाएं तो हम से ज़्यादा दुःख और तनाव उसे होगा जिसने
हम सब को पैदा किया है ।
कृपया विचार करें और बताएं कि क्या धर्म -सम्प्रदाय या मज़हब का
गढ़ जीतना हमारे लिए इतना ज़रूरी है कि हम प्यार करना भूल जाएँ ?
आनन्द करना भूल जाएँ और अपनी रोज़मर्रा की समस्याएं भूल जाएँ ?
क्या महंगाई का मसला कुछ नहीं, क्या पर्यावरण का मसला कुछ नहीं ?
क्या भष्टाचार का मुद्दा गौण है ? क्या व्यसन और फैशन के कारण बढ़ते
अपराध गौण है ? क्या सड़क दुर्घटनाओं से हमें कोई सरोकार नहीं ? क्या
दुश्मन देश ख़ासकर चाइना से हमें रहना ख़बरदार नहीं ? क्या मिलावट
करने वालों का विरोध हमें सूझता नहीं ? क्या टूटते परिवारों को बचाना
हमें बूझता नहीं ? गाय समेत लगभग सभी दुधारू पशु रोज़ बुचडखाने में
क़त्ल हो रहे हैं, क्या वे हमें दिखते नहीं ? आखिर क्यों हम प्राणियों को
बचाने के लिए कुछ लिखते नहीं ?
Links to this post Labels: दिल को जोड़ो , प्यार , भारत बचाओ , मज़हब छोड़ो , मोहब्बत , हिन्दी कविता
दुनिया ने उसे अपने घर की आज़ादी दे दी
शक्ति ने दुनिया से कहा, 'तू मेरी है';
दुनिया ने उसे अपने तख़्त पर क़ैदी बना कर रखा ।
प्रेम ने दुनिया से कहा, 'मैं तेरा हूँ' ;
दुनिया ने उसे अपने घर की आज़ादी दे दी
-गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर
शुभ प्रभात
-अलबेला खत्री
Links to this post Labels: प्रेम , महापुरूषों के अमृत वचन और अनुभव , शक्ति , हिन्दी कवि
मन में ही रह गई "महावीर शर्मा जी" से मिलने की आरज़ू ..........वे तो चलते बने महफ़िल छोड़ के
अभी-अभी दीपक मशाल ने दु:खद समाचार बताया
भीतर ही भीतर मेरे आत्मिक अस्तित्व को रुलाया
महावीर ब्लॉग वाले वयोवृद्ध साहित्यकार
महावीर शर्मा जी नहीं रहे, उनका निधन हो गया है
ये जान कर शोक से संतप्त मेरा मन हो गया है
मन में ही रह गई आरज़ू उनसे मिलने की
भाग्य में ही नहीं थी ये कलियाँ खिलने की
प्रार्थना मन पूर्वक कर रहा हूँ विनम्र श्रद्धांजलि के साथ
सदैव रहे दिवंगत के सिर पर परमपिता का कृपालु हाथ
उनके परम सखा श्री प्राण जी शर्मा ये सदमा झेल सकें
इतना सामर्थ्य उन्हें देना दाता !
दिवंगत आत्मा के परिवारजन को हौसला देना दाता !
ओम शान्ति !
ओम शान्ति !!
ओम शान्ति !!!
Links to this post Labels: दुखद निधन , महावीर शर्मा , शोक समाचार , साहित्यकार , हिन्दी ब्लोगर का देहांत
जागो देवता जागो !
घणा दिन सो लिया थे
पूरा फ़्रेश हो लिया थे
अब आलस त्यागो अर काम पर लागो
जागो देवता जागो
जागो देवता जागो
तुलसी रो ब्याव करणो है
भारत रो बचाव करणो है
काम घणोइ करणो है बाकी
मंहगाई रांड बण बैठी काकी
खादी पैरयाँ घूमै है कई डाकी
ख़ून पीवै है गरीबां रो खाकी
आंकै डाम दागो, म्हारै बाँधो रक्षा धागो
जागो देवता जागो
जागो देवता जागो
Links to this post Labels: अलबेला खत्री , देवउठणी ग्यारस , देवता , मारवाड़ी , राजस्थानी
राजकोट में कामदार परिवार ने धूमधाम से मनाया माँ इन्दिरा बेन अनंत राय कामदार का अमृत महोत्सव
लगभग दो महीने पहले जब नितिन भाई कामदार ने अमेरिका से फोन
करके मुझे एक प्रोग्राम के लिए बुक किया था तब मुझे इल्म नहीं था कि
14 नवम्बर को राजकोट में मुझे जिस कार्यक्रम में प्रस्तुति देनी है वह
इतना निजि और पारिवारिक कार्यक्रम होगा परन्तु दो दिन पहले जब
मैं वहां उपस्थित हुआ तो कामदार परिवार द्वारा आयोजित अपनी पूज्या
माताजी श्रीमती इन्दिरा बेन अनन्तराय कामदार के 75 वें जन्मदिवस
पर अमृत महोत्सव के दृश्य को देख कर मन गदगद हो गया ।
दुनिया भर से सैकड़ों अतिथियों समेत देश भर से करीब एक हज़ार लोग
सम्मिलित हुए इस अनूठे पारिवारिक समारोह में और तरह तरह के
सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम संयोजित हुए ।
14 नवम्बर को दोपहर में सिर्फ़ मेरी ही एकल प्रस्तुति थी सो मैंने भी
उस कार्यक्रम में अपनी भरपूर मस्ती लुटाई और प्रोग्राम में आये सभी
का मनोरंजन किया साथ ही माँ की महत्ता पर कुछ खास रचनाएं
प्रस्तुत कीं ।
बधाई हो कामदार परिवार को इस सफल आयोजन के लिए ।
www.albelakhatri.com
Links to this post Labels: अमृत महोत्सव , अलबेला खत्री , कामदार परिवार , माँ , राजकोट
बे-मतलब मशक्कत करते हैं
दो शख्स फ़िजूल तकलीफ़ उठाते हैं
और
बे-मतलब मशक्कत करते हैं ।
एक तो वह जो धन संचय करता है परन्तु उसे भोगता नहीं ;
दूसरा वह
जो ज्ञानार्जन करता है किन्तु तदनुसार आचरण नहीं करता
अनुभव : शेख सादी
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
Links to this post Labels: अलबेला खत्री , शेख सादी , सूत्र , हास्य kavita , हिन्दी ब्लोगर्स
लीजिये गीत स्पर्धा में सहभाग और बनिए विजेता 55,555 रुपये के बम्पर अवार्ड के
प्यारे हिन्दी चिट्ठाकार मित्रो !
सस्नेह दीपावली अभिनन्दन !
लीजिये कल की गई अनुसार आज मैं धन तेरस के मंगलमय अवसर
पर धन बरसाने वाली स्पर्धा का श्री गणेश करने के लिए
उपस्थित हो गया हूँ
कल मैंने ये कहा था ( देखें लिंक ) :
परिणाम ये रहा कि कुल मिला कर 19 लोगों से 26 टिप्पणियां प्राप्त हुईं
जिनमे से प्रसंग अनुसार सटीक टिप्पणियां कुल 12 ही देखने को
मिलीं । चूँकि चुनाव इन्हीं में से करना था सो कुल सात टिप्पणियां
मैंने इनमे से चुनी हैं जिनके अनुसार श्री समीरलाल, सुश्री मृदुला प्रधान
व सुश्री वन्दना जी ने कविता विधा का पक्ष लिया है जबकि डॉ रूपचंद्र
शास्त्री, डॉ अरुणा कपूर, श्री राजकुमार भक्कड़ व सुश्री उर्मिला उर्मि ने
गीत का पक्ष लिया है लिहाज़ा गीत ने कविता को तीन के मुकाबले चार
वोटों से पछाड़ दिया है ।
अब स्पर्धा 'माँ' विषय पर गीत की होगी ।
मेरा सभी गीतकारों से अनुरोध है कि माँ पर बेहतरीन गीत भेजें ।
जिस गीत को सर्वश्रेष्ठ गीत चुना जाएगा उस गीत के रचयिता को
दिसम्बर माह में सूरत के एक विराट समारोह "गीत गंधा" में रूपये
55,555 नगद, सम्मान-पत्र, शाल श्रीफल व स्मृति- चिन्ह भेन्ट
करके अभिनन्दित किया जायेगा ।
शर्तें व नियम :
एक व्यक्ति चाहे जितने गीत भेज सकता है
लेकिन सब स्वरचित होने चाहियें ।
स्पर्धा का परिणाम अगर किन्हीं दो रचनाकारों में बराबर रहा तो
सम्मान-राशि दोनों विजेताओं में समान रूप से बाँट दी जायेगी ।
रचनाएं भेजने की अन्तिम तिथि है 18 नवम्बर 2010
नियत तिथि तक यदि न्यूनतम 111 गीतकारों से रचनाएं प्राप्त होगयीं
तो परिणाम घोषित होगा और यदि संख्या कम रही तो परिणाम की
तिथि आगे बढ़ाई जा सकती है
इस स्पर्धा में अन्तिम निर्णय www.albelakhatri.com द्वारा गठित
निर्णायक मण्डल का ही मान्य होगा ।
तो फिर देर किस बात की..............जल्दी से भेज दीजिये माँ की वन्दना
का एक गीत और बनिए विजेता 55,555 रुपये और विराट सार्वजनिक
सम्मान के...............आपके स्वागत में सूरत तत्पर है - गुड लक !
विनीत
-अलबेला खत्री
_______________
___________________आप सभी को दीपावली की हार्दिक मंगल
कामनाएं..........मैं अभी रवाना हो रहा हूँ जयपुर के लिए, आने वाले 12
दिन तक मैं लगातार प्रवास पर रहूँगा । कुछ दिन परिवार के साथ उत्सव
के लिए कुछ दिन रोज़ी रोटी अर्थात काव्योत्सव के लिए -
@@@@@@@ टाइपिंग में कोई त्रुटि रही हो,तो क्षमा चाहता हूँ ,,,,
जल्दबाज़ी में पोस्ट तैयार की है
Links to this post Labels: अलबेला खत्री , गीत स्पर्धा , माँ , सूरत , हिन्दी हास्यकविता