सालासर सै दो घण्टा की छुट्टी लेकै आओ
पूरी बान्दर सेना लेकै संसद म्ह घुस जाओ
मेंहदीपुर कै बालाजी नै भी सागै ले आओ
डाकण मंहगाई स्यूं टाबरियां की जान बचाओ
जै जै वीर हनुमान !
काटो पीर हनुमान !
कान्दा का भी वान्दा पड़ गया, मिर्चां काढै आँख
टिंडी, भिण्डी, गोभी, तोरी, सब नै लाग्या पाँख
उड़रया आलू आसमान म्ह, धरती पर ले आओ
डाकण मंहगाई स्यूं टाबरियां की जान बचाओ
जै जै वीर हनुमान !
काटो पीर हनुमान !
चणा, उड़द, चावल, गेहूं, मोठां कै लागी आग
कैंयाँ पौआं आज रोटियां, कैंयाँ रान्दां साग
दो एक घोट्टा मनमोहन अर सोनिया कै सरकाओ
डाकण मंहगाई स्यूं टाबरियां की जान बचाओ
जै जै वीर हनुमान !
काटो पीर हनुमान !
काटो पीर हनुमान !
महावीर हनुमान !
हास्यकवि का आर्तनाद - डाकण मंहगाई स्यूं टाबरियां की जान बचाओ
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स्विस बंकां म्ह पड़ी संजीवन, थे भारत म्ह ल्याओ
अब कस कै बांध लंगोटो
अर हाथ म्ह ले ले घोटो
बाबा बजरंगी हनुमान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान
म्हे शरण मैं आया थारी
थे हरल्यो विपदा म्हारी
बळ दिखलाओ बलवान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान
दीमक बण कै चाट रिया है देस नै खादीधारी
रक्षक ही भक्षक बण बैठ्या, बाड़ खेत नै खारी
राजा, मन्त्री, दरबारी
सगळा ही भ्रष्टाचारी
सब का सब बे-ईमान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान
देर करो मत हनुमत अब थे, बेगा बेगा आओ
स्विस बंकां म्ह पड़ी संजीवन, थे भारत म्ह ल्याओ
गास्यां तेरा गुणगान
अर मानांगा एहसान
दुःखभंजक दयानिधान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान
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इन चाण्डालों के चंगुल से हिन्दुस्तान बचालो ! संकट में है जान हमारी, हे हनुमान बचालो !
संकट में है जान हमारी, हे हनुमान बचालो !
पड़ी ज़रूरत आन तुम्हारी, हे हनुमान बचालो !
अवध धरा पर वध जारी है और तुम देख रहे हो
मानवता पर बमबारी है और तुम देख रहे हो
पुलिस यहाँ अत्याचारी है और तुम देख रहे हो
अधिकारी भ्रष्टाचारी है और तुम देख रहे हो
पूरी व्यवस्था व्यभिचारी है और तुम देख रहे हो
आज हुकूमत हत्यारी है और तुम देख रहे हो
देश की जनता आज पुकारी, बाबा जान बचालो !
पड़ी ज़रूरत आन तुम्हारी, हे हनुमान बचालो !
मंहगाई के लट्ठ से सबका माथा फूट रहा है
अर्थशास्त्री मनमोहनसिंह जम कर कूट रहा है
कब तक अपने आँसू रोकूँ, धीरज छूट रहा है
बाँध सब्र का अब तक रोका, पर अब टूट रहा है
न अब घर में दूध दही है, न अब फ्रूट रहा है
देश का नेता दोनों हाथों से देश को लूट रहा है
इन चाण्डालों के चंगुल से हिन्दुस्तान बचालो !
संकट में है जान हमारी, हे हनुमान बचालो !
-अलबेला खत्री
ले दे के एक हनुमान जी ही हैं, जो छड़े मलंग हैं, देशहित में उन्हीं की शरण लेली हास्यकवि अलबेला खत्री ने
लौजी ! अपन ने तो पूरा ज़ोर लगा लिया ।
नतीजा कुछ निकला नहीं ।
न तो भ्रष्टाचार मिटा, न मंहगाई घटी, न हिंसा पर लगाम लगी और न ही
जीवन में किसी प्रकार का आध्यात्मिक उजाला हुआ । इसलिए आज मैं
अपने घोड़ों को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ कर पवन पुत्र हनुमान जी की
शरण ले रहा हूँ । क्योंकि बाकी सारे देवी-देवता तो घर-परिवार वाले हैं ।
उनके अपने पारिवारिक जीवन के कई झंझट होंगे, अपन उन्हें और परेशान
क्यों करें ?
ले दे के एक हनुमान जी ही हैं, जो छड़े मलंग हैं, वज्रदेह हैं, सर्वशक्तिमान हैं,
अजर-अमर हैं और लोगों के संकट मिटाने को सदैव तत्पर रहते हैं ।
लिहाज़ा आज से पूरी निष्ठा, आस्था, श्रद्धा, भावना एवं शुचिता के साथ मैं
कम से कम एक भजन रोजाना रामभक्त हनुमान जी पर रचने का संकल्प
लेता हूँ और ये तब तक रचता रहूँगा जब तक कि मेरा मनोरथ पूरा नहीं हो
जाता अर्थात देश में सुख और शान्ति का वातावरण नहीं बन जाता ।
अपने को किसी पार्टी से कोई मोह नहीं है और किसी पार्टी से कोई विरोध भी
नहीं है क्योंकि अपने को किसी से कोई उम्मीद नहीं है । ये बाबा लोग भी सब
पब्लिक को भौंदू बनाने की मशीनें हैं । इसलिए बाबाओं के बाबा परमबाबा
गदाधर बजरंगी बाबा की ओट लेने का मन हुआ है और मेरा मानना है
मन की आवाज़ ज़रूर सुननी और माननी चाहिए ।
तो मित्रो ! आज से आपको मैं हनुमानजी के स्वरचित भजनों को बांचने
और गाने का न्यौता देता हूँ....आते रहिएगा इस बालक को संबल देने ।
जय हनुमान
जय हिन्द !
Labels: अलबेला खत्री के भजन , देश का संकट , हनुमान
कसाब जी ! आप आत्म-हत्या कर लीजिये प्लीज़.......
चूँकि हमारी मनमोहनी भारत सरकार तो आपको मारेगी नहीं, हमारी
न्याय प्रक्रिया आपको मरने देगी नहीं और मैं आपको मार सकता नहीं ।
इसलिए हिन्दी ब्लॉग जगत की अनुमति के बिना ही रचनाकार साहित्य
संस्थान सूरत की ओर से मैं टीकमचन्द वारडे उर्फ़ अलबेला खत्री सुपुत्र
स्वर्गीय भगवानदास खत्री मूल निवासी श्रीगंगानगर राजस्थान, वर्तमान
निवासी सूरत गुजरात आप से अत्यन्त विनम्र अनुरोध करता हूँ कि
हे अजमल कसाबजी !
आप आत्म हत्या कर लीजिये ।
प्लीज़ आप मर जाइए
क्योंकि अब मुझसे सहा नहीं जाता आपका ज़िन्दा रहना ।
अब क्यों नहीं सहा जाता ये मैं कल बताऊंगा ....आज तो केवल पाठकों का
ध्यान आकर्षित करने के लिए ये पोस्ट लगाईं है
और हाँ, कहना मत किसी से, कल किसी का नहीं आया आज
तक तो मेरा क्या आएगा, ये ध्यान रखना । मैंने कोई ठेका नहीं ले
रखा पूरी पोस्ट लिखने का ...अरे भाई जब बाबाजी ने अनशन बीच
में छोड़ दिया तो क्या मैं आप जैसे @४#ग%८&^%$#(*
पर लिखा गया ये आलेख अधूरा नहीं छोड़ सकता ? हा हा हा हा हा
जय हिन्द !
Labels: अजमल , अलबेला खत्री , आत्महत्या , कसाब , खुद्कुशी , फ़ांसी , भारत सरकार , रचनाकार
क्योंकि मैंने सुना है............
मार्ग
कोई भी
सरल नहीं है
____________इसलिए
जीवन
शुष्क है
तरल नहीं है
मैं
मरुस्थल में
पाताल की
नमी खींचने का प्रयास कर रहा हूँ
यानी
अपनी
आँखों के जल से
धोरे सींचने का प्रयास कर रहा हूँ
मेरा परिश्रम
बचकाना हो सकता है
परन्तु
व्यर्थ नहीं होगा
क्योंकि मैंने सुना है
बच्चों की पुकार
भगवान जल्दी सुनता है
-अलबेला खत्री
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जिन्हें फांसी हो जाना चाहिए, उन्हें खांसी तक नहीं होती...
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गरबी गुजरात के ख़ुशनुमा रंग - हास्यकवि अलबेला खत्री के संग
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भारत माता तेरे करण - अर्जुन आ गये हैं अब ठाकुर तो गियो...गियो.....गियो....
बहुत इन्तज़ार किया तूने भारत माता !
बड़ा ज़ुल्म सहा,
बड़ी वेदना और पीड़ा से गुज़री
परन्तु अब तेरे करण -अर्जुन आ गये हैं माँ.........
कह दो अब राणा से
कि ठाकुर तो गियो ! गियो !! गियो !!!
-अलबेला खत्री
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बाबाजी ! आपकी लुंगी नौ दिन में ही कैसे फट गई ?
आज निर्जला एकादशी है, जब लोग सूखा व्रत रखते हैं
दूध पीना तो दूर, पानी की एक बून्द तक नहीं चखते हैं
हाँ हो सके तो लोगों को पानी क्या, शरबत भी पिलाते हैं
और शास्त्रोक्त परम्परानुसार पुण्य का लाभ कमाते हैं
जैसे कि श्री श्री रविशंकर जी ने कमा लिया
पर बाबाजी ! आपने इससे क्या पा लिया ?
आपकी तो साख को ही बट्टा लग गया
चट्टी क्या आपको तो चट्टा लग गया
अब आप पहले की तरह "करने से होता है" कैसे कहोगे ?
और दो सौ साल तक स्वस्थ रूप से जीवित कैसे रहोगे ?
कुल आठ दिन में ही आपकी शारीरिक शक्ति क्योंकर घट गई ?
बाबा, महीने भर चलने वाली लुंगी नौ दिनों में ही कैसे फट गई ?
कमाल है ! आर्य समाज की महान परम्परा का ऐसा ह्लास ?
सफ़र का श्रीगणेश ही हुआ था और गाड़ी में तेल खलास ?
कहाँ गई वो कपालभाती ? जो आप हमसे कराते थे
स्वस्थ और शतायु रहने की कला टीवी पर बताते थे
स्वामी विरजानंद के शिष्य महर्षि दयानंद को क्या मुँह दिखाओगे ?
स्वामी श्रद्धानंद व लाला लाजपतराय पूछेंगे तो उन्हें क्या बताओगे
कुल मिला कर आपने कॉन्फिडेंस कुछ ज़्यादा ही ओवर कर लिया
बीस साल में कमाए हुए गुड़ को कुल बीस दिनों में गोबर कर दिया
ऐसे कुछ अनर्गल सम्वाद मन-मस्तिष्क में चल रहे हैं
वो कौन से दुष्ट ग्रह हैं ? जो इन दिनों आपको छल रहे हैं
उनका इलाज कराइए, ख़ुद की ग्रहदशा मजबूत बनाइये
व एक बार फिर नये सिरे से अपना आन्दोलन चलाइये
देश की त्रस्त जनता को आपसे ही उम्मीद है बाबा
बाकी नेता तो बस भ्रष्टाचार के ज़रखरीद है बाबा
लीजिये भवानी माँ का नाम, या कह के जैश्रीराम !
कर डालो अब तो इस दुर्व्यवस्था का काम तमाम
प्रार्थना मैं भी करूँगा आपके लिए
अरदास मैं भी करूँगा आपके लिए
जय हो आपकी !
________________
बाबा रामदेव के नाम हास्यकवि अलबेला खत्री का पैग़ाम - दूसरा व अन्तिम भाग
गतांक से आगे.......
जिस देश में करोड़ों लोग दो जून की रोटियों के लिए भागते फिरते हैं, उस देश
में हज़ारों लोग चार जून की लाठियों से बचने के लिए भागते फिर रहे थे और
ये हो रहा था बुद्ध, महावीर, नानक और गांधी के देश की राजधानी में....इससे
ज़्यादा शर्म की बात क्या हो सकती है । इस अत्याचार की जितनी निंदा की जाये,
कम है ।
परन्तु हे योगाचार्य बाबा रामदेव !
आप तो सत्याग्रही थे........अनशनकर्ता थे.......आपको तो योद्धा की तरह उस
पुलिसिया कार्रवाही का सामना करना चाहिए था । गिरफ़्तार होना कोई
मुश्किल नहीं था आपके लिए ...यदि आप भागते नहीं और शान्तिपूर्ण तरीके से
अपने आपको पुलिस के हवाले कर देते तो ज़्यादा अच्छा होता क्योंकि तब
आपके समर्थक भी गिरफ्तारियां देते और देश भर के लोगों का प्रचूर समर्थन
आपको मिल जाता जिसके दम पर आपकी विजय का मार्ग निर्बाध हो जाता ।
जबकि आपकी बुज़दिली ने लोगों को आप पर ऊँगली उठाने का मौका घर
बैठे ही दे दिया ।
बुरा नहीं मानना बाबाजी.........एक बात तो तय है कि आप पेट को चाहे कितना
ही हिलालो...और लोगों से कपालभाती की कितनी ही फूं फां करालो पर आपके
पास कोई आध्यात्मिक शक्ति तो नहीं है । योग में...ख़ासकर ध्यानयोग में
कितनी अलौकिक शक्ति है ये तो मैं मेरे वैयक्तिक अनुभव से जानता हूँ । इसलिए
मुझे दुःख है कि आपने पराशक्ति के इत्ते बड़े सोपान पर यात्रा करके भी कुछ
नहीं हासिल किया । भले ही पतंजली पीठ के रूप में आपने कितना ही बड़ा
साम्राज्य स्थापित कर लिया हो....लेकिन सिर्फ़ नाशवान सामान ही इकट्ठा
किया है आपने अब तक। शाश्वत कुछ नहीं पाया...........पर मुझे इससे क्या
लेना देना ? मैं तो सिर्फ़ इसलिए हैरान हूँ कि जिस ओम की शक्ति से ब्रह्माण्ड
के सब द्वार शतदल की भान्ति खुल जाते हैं उस ओम का रातदिन रट्टा लगाने
और लगवाने वाला एक व्यक्ति अपने बाल-वाल खोल कर , दाढ़ी-वाढी बिखेर
कर भरी सभा में देवव्रत की तरह पहले तो भीष्म प्रतिज्ञा करता है फिर
परिस्थितिवश शिखंडी जैसा व्यवहार भी कर लेता है । ये दोनों बातें एक साथ
कैसे हो सकती हैं ? खैर...जान बड़ी चीज़ है ...भगवान आपको सौ बरस
ज़िन्दा रखे और इसी तरह कामयाब रखे।
मेरा कहना केवल इत्ता है गुरू ! कि आप एक प्रतिभावान योगी, सॉरी .....योग
प्रशिक्षक हैं और आपकी दूकान ठीकठाक जमी हुई भी है तो बजाय इस तरह
के सत्याग्रहों के कुछ और सकारात्मक काम करो । क्योंकि आज देश के
सामने एक नहीं अनेक संकट पहले से ही मौजूद हैं । विदेश में रखा काला धन
देश में आना चाहिए..ज़रूर आना चाहिए लेकिन वह रातोरात नहीं आ सकता
इस बात को आप भी जानते हैं । लिहाज़ा अन्य जो बड़े संकट देश में हैं ज़रा
उनके निराकरण का भी उपाय कीजिये ताकि लोगों का जीवन थोड़ा सरल
हो सके ।
# पानी पंद्रह रूपये लीटर बिक रहा है
क्या आपको ये नहीं दिख रहा है ?
# व्यापारी लोग हत्यारे हो गये हैं
नकली दूध, सब्ज़ी,अनाज और दवाओं के रूप में ज़हर बेच रहे हैं
और आप अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए
केवल कांग्रेसी द्रोपदी मनमोहनी की फटी हुई साड़ी खेंच रहे हैं
# मंहगाई और बेरोज़गारी का दानव देश को खा रहा है
ऐसे में आपको लोगों की पीड़ा का ख्याल नहीं आ रहा है ?
# दुश्मन मुल्क घात लगाए बैठा है
सरहद पर घुसपैठ जारी है
ऐसे में सरकार और सुरक्षा दलों का ध्यान बटाना आपकी कौन सी लाचारी है ?
मेरे आदरणीय बाबा !
अगर सत्याग्रह ही करना है
तो पहले देश की समस्याओं को मिटाने के लिए करो !
ये हो जाये तो फिर आराम से
विदेश में रखा काला धन वापस देश में लाने के लिए करो !
जय हिन्द !
जय भारत !
जय हिन्दुस्तान !
-अलबेला खत्री
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अरे भाई जूता चप्पल मारना है तो अपने मुँह पर मारो... नेताजी को क्यों मारते हो ?
आजकल जूते चप्पल कुछ ज़्यादा ही चलन में हैं । जनता अपना गुस्सा
निकालने के लिए मानो तैयार ही है और सदैव तत्पर है नेताओं को जूते मारने
के लिए..........लेकिन मेरा मानना है कि अपनी गलती की सज़ा स्वयं भोगनी
चाहिए । किसी दूसरे को इसका पुनीत लाभ नहीं देना चाहिए ।
अरे भाई जूते मारने हैं तो ख़ुद को मारो..........गलती तुम्हारी ही है जो तुमने
मतदान के समय इन लोगों को चुन चुन कर अपने साथ खिलवाड़ का अवसर
दिया । अब जो वोट तुमने दिया उसके ज़िम्मेदार तो तुम ही हो..... तो मारो न
जूता अपने ही मुँह पर ....दूसरे को इसका लाभ क्यों पहुंचाते हो........
वैसे भी जूते मारने से क्या होगा ? मारना है तो वोट से मारो और ऐसा मारो
कि देश का भला हो ..आगे आपकी मर्ज़ी
मैं तो एक पैरोडी पेश कर रहा हूँ साहिर लुधियानवी के उस सुपरहिट गाने की
जो उन्होंने फ़िल्म लैला मजनू के लिए लिखा था :
वोट हाज़िर है हुकूमत की जड़ हिलाने को
कोई चप्पल से ना मारे नेता मरजाणे को ........
क्यों ? ठीक है ना ठीक ?
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महिलाओं का ख़ून बहा कर हो रहा भारत निर्माण
निहत्थों पर लट्ठ चला कर हो रहा भारत निर्माण
निर्दोषों पर बल आज़मा कर हो रहा भारत निर्माण
गांधी बाबा देखले तेरी लाठी किन पर बरस रही है ?
महिलाओं का ख़ून बहा कर हो रहा भारत निर्माण
शेम !
शेम !!
शेम !!!
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