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Albela Khatri

क्यों भाई, क्या इस देश की जनता इतनी गई गुज़री है ?

रेलवे स्टेशन की कैन्टीनों पर मूल्य सूची ........


शीतल पेय 500 ml - 25 रूपये

शीतल पेय 300 ml - 15 रूपये

मिनरल वाटर - 12 रुपये

जनता खाना - 10 रुपये


कौतुहलवश मैंने देखने के लिए जब कैंटीन से जनता खाना माँगा

तो पहले तो उसने मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरा और फिर बोला

ख़त्म हो गया मैं बोला - ख़त्म हो गया तो जनता क्या खाएगी

भाई ? वो बोला - जनता की #@%&*$$..आप बोलिये आपको क्या

खाना है ?



दूसरी कैंटीन पर गया तो वहां उसने मुझे जनता खाना का एक पैकेट

10 रूपये में दिया जिसमे 6 पूरियां और थोड़ी सब्ज़ी जैसी कोई चीज़

थी यह खाना खाना नहीं बल्कि खाने के नाम पर तेल में तला गया

ऐसा अनाज था जो बदबू मार रहा था मैंने वह पैकेट एक भिखारन को

दिया तो उसने सूंघ कर दूसरी भिखारन को दे दिया, दूसरी भिखारन

ने कुत्ते को डाल दिया लेकिन कुत्ते ने उसे सूंघा तक नहीं तभी वहां

सफाईकर्मी ने झाड़ू लगाई और वह जनता खाना कचरे के साथ

मिल कर कचरा पात्र में चला गया ................



मैं सोच रहा था कि इस देश की जनता क्या इतनी गई गुज़री है कि

उसके लिए रेलवे को ऐसा घटिया खाना बना कर बेचना पड़ता है

अगर नहीं तो फिर क्यों अपमानित किया जाता है जनता को बार

बार ...लगातार........


मैंने अक्सर देखा है, आप सब ने भी देखा होगा - जनता शब्द का

उपयोग अनिवार्य रूप से यह दर्शाने के लिए होता है कि इस से

सस्ता, इस से घटिया और इस से ज़्यादा खैराती माल कहीं

उपलब्ध नहीं है जैसे -



*
जनता एक्सप्रेस

*
जनता कालोनी

*
जनता सवारी

*
जनता अस्पताल

*
जनता भोजनालय

*
जनता धर्मशाला

*
जनता होटल


यानी जिस चीज़ के आगे जनता लग गया उसकी तो वाट लग गई.........


क्यों भाई ? क्या इस देश की जनता को इतनी गई गुज़री समझा है ?

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www.albelakhatri.com

23 comments:

Unknown May 13, 2010 at 9:49 AM  

"क्या इस देश की जनता को इतनी गई गुज़री समझा है?"

समझा है नहीं हुजूर बना दिया गया है।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" May 13, 2010 at 9:52 AM  

kya ab bhi koi shak hai ?

M VERMA May 13, 2010 at 10:05 AM  

जिसमे 6 पूरियां और थोड़ी सब्ज़ी जैसी कोई चीज़
थी
जाँचना होगा यह 'जैसी चीज' क्या थी.
जनता शब्द जिसके आगे लगा होगा उससे और क्या उम्मीद करते हैं.
सर्वदा नत है जो वह है जनता.

महेन्द्र मिश्र May 13, 2010 at 10:09 AM  

अरे बड्डे अभी तक कहाँ रहे हैं आप . बहुत बढ़िया पोस्ट.....जनता का कोई धनीधोरी नहीं है चाहुनोर लूट मची है ..आभार.

Shah Nawaz May 13, 2010 at 10:15 AM  

:) उचित कहा है आपने. आजकल तो जनता का मतलब है = C केटेगरी के D क्लास लोग!

फ़िरदौस ख़ान May 13, 2010 at 10:51 AM  

अफ़सोस...सरकार के तमाम दावों के बावजूद हालात नहीं सुधरते...

संगीता स्वरुप ( गीत ) May 13, 2010 at 11:11 AM  

जनता शब्द का इतना दुरुपयोग और कहाँ संभव है? चिंतनीय पोस्ट

पी.सी.गोदियाल "परचेत" May 13, 2010 at 11:52 AM  

तभी तो अपने थूरूर साहब ने कहा था, जनता = कैटल क्लास

शिवम् मिश्रा May 13, 2010 at 12:14 PM  

नेताओ के आगे जनता लगा दे तो कैसा रहे ??? जनता का नेता ........... उसकी भी हालत खस्ता होगी क्या ??

nilesh mathur May 13, 2010 at 12:36 PM  

वाह! बहुत ही सुन्दर तरीके से पोल खोली है आपने जनता के नाम पर लुटाने वालो की और भारतीय रेल की !

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर May 13, 2010 at 1:03 PM  

जनता तो खात्मे की तरफ है ही.............उदाहरण है................
जनता दल --------------- ?????
भारतीय जनता पार्टी ----------------- ????
हा हा हा हा हा ...............ये हंसी नहीं है हाहाकार है जनता का......
समर्थन है आपकी बात को...........
====================================
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

कुश May 13, 2010 at 1:20 PM  

बहुत गहरी बात कही है आपने.. ऐसा ही कुछ गरीब रथ ट्रेन के साथ किया गया है.. इसमें बर्थ भी मूल साईज से छोटी है.. जनता की बात आते ही चीजों की गुणवत्ता क्यों गिर जाती है पता नहीं..
आपकी सूक्ष्म दृष्टि कमाल रही इस मामले पर..

राज भाटिय़ा May 13, 2010 at 2:18 PM  

"क्या इस देश की जनता को इतनी गई गुज़री समझा है?"
जी सही कहा तभी तो बार बार इन्ही नेताओ को चुन रही है, जि इन्हे गया गुजरा समझते है, अगर अकल मंद हो तो क्यो बार बार इन्ही को चुनती है??? ओर अगर चुन लिया तो पांच साल तक क्यो इन्ही के जुते खाती है, क्यो नही इन्हे वादे पुरे करने पर मजबूर करती है? जनता सब कुछ कर सकती है, इन के नीचे से कुर्सी भी खींच सकती है, तो क्यो अपने आप को लाचार ओर गई गुजरी कहलाती है

नीरज मुसाफ़िर May 13, 2010 at 2:58 PM  

जनता मतलब...
मतलब क्या बताऊं, वो तो आपने बता ही दिया है।}

rajkumar bhakkar May 13, 2010 at 3:42 PM  

bahut badhiya baat

Rajeysha May 13, 2010 at 4:30 PM  

भाईयों जनता आसमान से नहीं टपकती। हम आप जैसे लोग ही जब स्‍टेशन पर 5-10 हजार की संख्‍या में मि‍लते हैं तो उसे जनता कहते हैं। ब्‍लॉग पोस्‍ट लि‍खकर, या महज टि‍प्‍पणि‍यां कर काम मत चलाईये। खुद चेति‍ये, साथ वाले को चेताईये। नई पार्टी मत बनाईये, एकले एकले खुद से जो बन पड़े कर दि‍खाईये।

दीपक 'मशाल' May 13, 2010 at 6:53 PM  

बहुत ही सही मुद्दा उठाया सर.. ये हालात हर किसी ने देखे हैं पर बोलने वाला कोई नहीं था.. आभार.

अनामिका की सदायें ...... May 13, 2010 at 8:33 PM  

ज = जा
न = ना
ता = ताऊ

shayed yahi kahna kaafi hoga....iski defination me...jise sab dhaake maar kar u hi kaha jata hai.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 13, 2010 at 10:24 PM  

समझ गये जी!
दूध और पानी का एक ही भाव है!

Gyan Darpan May 13, 2010 at 10:42 PM  

बहुत गहरी बात

भारतीय नागरिक - Indian Citizen May 14, 2010 at 1:02 AM  

सही कह रहे हैं... जनता मतलब स्टैण्डर्ड से गिरा हुआ...

Mithilesh dubey May 14, 2010 at 9:47 AM  

हालत तो इससे भी खराब है भईया ।

योगेन्द्र मौदगिल May 14, 2010 at 1:43 PM  

जनता कवि की जय हो.... ये कहां-कहां मिलते हैं.. इस पर भी लाइट डालो..

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