आज एक ऐसी बात ने झकझोर कर रख दिया है दिमाग़ को कि न कुछ
कहते बनता है और न कुछ लिखते बनता है......बस, अफ़सोस की एक
लकीर पूरे ज़ेहन में खिंच गई है कि आखिर क्या हो गया है आज के
इन्सान को ? दूसरों से आगे निकलने और कामयाब होने की होड़ में
कोई कितना पतित हो सकता है..इसका नमूना आज देखने को
मिला ।
हे भगवान ! क्या ऐसे दिन भी देखने बाकी थे ?
एक लड़की, जो मेरी पुरानी परिचित है और फ़िल्म व टी वी में काम
पाने के लिए प्रयासरत है, हमेशा मुझे कहती है कि मैं उसके लिए
कुछ सिफ़ारिश करूँ ।
मैंने आज तक न तो उसे कोई वादा किया है, न ही आगे किसी को
कहा है उसे काम देने के लिए, क्योंकि अभिनय उसे आता नहीं,
डांस ठीक ठाक सा करती है और उच्चारण उसका इतना गलत
है कि फ़िल्म या टी वी में काम मिलना कतई नामुमकिन है ।
मैंने उसे समझाया कि बेटी ! कम से कम दो साल तक मेहनत कर,
अभिनय सीख, आवाज़ सुधार और उच्चारण के दोष दूर कर, फिर
मैं जिस से बोलूं उस से मिलना, शायद काम मिल जाये... लेकिन
उसे इतना सब्र नहीं है। वह शोर्टकट मार कर, देह समर्पण के ज़रिये
काम पाने को तैयार बैठी है । जब उसने मुझे ये कहा कि काम पाने के
लिए वो कहीं भी, किसी के भी सामने कपड़े खोलने को तैयार है तथा
कुछ भी करने को तैयार है, तो मैं सन्न रह गया......... यों लगा
जैसे ये शब्द मेरी अपनी बेटी ने मुझसे कहे हों....क्योंकि उम्र के हिसाब
से तो वो मेरी बेटी जैसी ही है और वैसे भी मैंने उसे बचपन से
किशोरावस्था पार करके जवानी में कदम रखते हुए देखा है ।
थोड़ी देर तो मैं कुछ न बोला ----------फिर कहा, "ठीक है,
शाम को अपने पापा को साथ लेकर आना।"
शाम को जब वह अपने पापा के साथ आई और मैंने उसके पापा को
एकान्त में ले जाकर सावधान किया कि तुम्हारी बेटी के भटकने
का डर है, ज़रा ध्यान रखो............ तो पापा ने जो कहा उसने तो
रही सही कसर भी पूरी कर दी। वो बोले, " बहुत सी लड़कियां ऐसे
ही करती हैं, अगर मेरी वाली कर लेगी तो क्या पहाड़ टूट पड़ेगा ?
अलबेला जी ! इस जग में मुफ़्त कुछ नहीं मिलता ... मैंने तो ख़ुद
इसे छूट दे रखी है कि काम मिलता हो तो कपड़े उतारने से
परहेज़ न करो।"
याद रहे, वह लड़की कोई गरीब, कंगाल या मज़बूरी की मारी नहीं है,
बल्कि एक उच्च मध्यम वर्ग घर की पढ़ी लिखी और समझदार
लड़की है ।
चिन्ता मुझे इस बात की नहीं है कि वह लड़की जल्दी ही लोगों के
बिस्तर गर्म करती फिरेगी और किसी अश्लील फ़िल्म में काम करके
किसी प्रकार ख़ुद प़र हिरोइन का ठप्पा लगवा लेगी........... ये तो
मुम्बई में रोज़ की बात है, चिन्ता इस बात की है कि ऐसी लड़की
अगर किसी तस्कर या गद्दार गिरोह के हाथ लग गई तो क्या क्या
कर सकती है ......... क्योंकि जो लड़की अपनी स्वयं की इज़्ज़त को
हाथ में लिए घूमती है नीलाम करने के लिए......वह देश की इज़्ज़त
और इसकी सुरक्षा को बट्टा लगाने को तैयार होने में कितना वक्त
लगाएगी ?
चिन्ता का विषय है भाई !
बहुत अफ़सोस हो रहा है ...........आज का दिन खराब हो गया मेरा
............... छि : लाहनत है ।
क्षमा करना बहन - बेटियो ! मैं ये लिख कर आपका मन दुखाना नहीं
चाहता था लेकिन ज़माने को सावधान करना भी ज़रूरी है.......ये
इसलिए भी मुझे लिखना पड़ा कि कदाचित इससे वह थोड़ी शर्मसार
हो और मेहनत व कला के दम पर आगे बढ़ने का प्रयास करे.............ये
गलत और सस्ता रास्ता पकड़ कर नहीं ।
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hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
23 comments:
अफ़सोस
बी एस पाबला
hai to nindaneey hi aur sochneey bhi ki hal kya ho
इस क्षेत्र में आपका अनुभव अधिक है!
अलबेला खत्री जी इस देश और समाज में इन्सान के लिए जिन्दा रहना इतना दुखदायी कभी नहीं था,जितना पिछले चार पांच सालों में हो गया है / इसकी प्रमुख वजह है हम सब का जमीर मर गया है / आपके जैसे लोग कहाँ हैं जो बहन बेटी के रिश्ते के महत्व और इंसानियत के रिश्ते का कद्र करना जानते हैं / यहाँ तो हर किसी को मजबूर किया जाता है कुकर्म करने के लिए / आज इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति क्या हो सकती है की ज्यादातर बच्चों और बच्चियों को अपनी मूलभूत शिक्षा जैसी जरूरत के लिए भी अपने आपको बेचना परता है / शर्म आती है ऐसी इंसानियत और अपने आप को इन्सान कहते हुए ,क्योकि हम लोग कुछ कर नहीं पा रहें हैं और ये भ्रष्ट मंत्री हमें नरक में धकेलने का काम खुले आम कर रहें हैं / ये सारा दोष हम सब का और इस देश के भ्रष्ट व्यवस्था का है ,जो आम लोगों से दो वक्त की रोटी भी छीन चूका है /
अफ़सोस ! आपकी भावनाएं समझी जा सकती है |
लेकिन ये सब हो रहा है दिल्ली जैसी जगह तो यह आम बात होती जा रही है ४००० रु. की टेम्परेरी नौकरी के लिए यह सब हो रहा है फिल्म में काम मिलना तो बहुत बड़ी बात है |
लेकिन इन सबका दोषी भी तो परुष वर्ग ही है तो किसी की मज़बूरी का फायदा उठाने को हर वक्त तत्पर रहता है इसी कारण ये सोर्ट कट का प्रचलन बढ़ता जा रहा है |
वेटी को तो हम वेसमझ मान सकते हैं पर बाप जरूर माडर्न था।
बैसे कुछ कहना मुमकिन नहीं था पर आधुनिकता के नाम पर परोसी जा रही पशु प्रबृति के शोर ने कहने को मजबूर कर दिया।
dukhad hai
अरे भाई वाकई दिन खराब हो गया या जमाना।
अल्बेला जी, सब जमाने का कसूर है...आज हर आदमी बिना किसी प्रतिभा एवं समय दिए येन केन प्रकारेण बस सफलता की सीढियाँ चढना चाहता है, चाहे उसके बदले में कैसा भी त्याग क्यूं न करना पडे....समझ नहीं आता कि आखिर समाज किस दिशा में जा रहा है.
हर तरह के लोग है ज़माने में !!
अलबेला जी, बहुत ही अफसोसजनक वाकिया बताया आपने, सुन कर दिल रो पड़ा. काश हम अपनी संस्कृति, जीवन के मूल्यों को समझ पाते. काश हमें याद होता की हम जो भी कर रहे हैं, उसे कोई घुप अंधेरों में और सात तालों में भी देख रहा है. काश यह काश ना होता और दुनिया इंसानों की दुनिया होती. आज हैवानो की भीड़ में इंसान मिलना बहुत मुश्किल है.
बहुत गलत बात है, लेकिन इस मै उस लडकी के मां बाप की भी बहुत बडी गलती है जो लालच मै आ कर इतना गंदा कम करने को भी तेयार है.... लेकिन यह अब आम है,पहले लडकी वाले डरते थे कि लडका अच्छा हो..... ओर आज कल लडके वाले डरते है कि आने वाली अच्छी हो
अफसोस की बात है अगर ऐसा करने से कम मिल रहा है तो उसको ऐसा काम ही नहीं करना चाहिए चुपचाप कोई और नौकरी करनी चाहिए .
दुनिया में सब ऐसे नहीं है
पोस्ट अच्छी है पर शीर्षक बहुत बोल्ड है....
यह स्थिती शोचनीय है !!!
अफसोसजनक..
और
पिता की सोच: घृणित!!
ladakiyon ke isee chartra par mera upanyaas hai''palivud ki apsara'' ab bahut-si ladakiyaa aage barhane ke naam par neeche girane ke liye taiyaarhai. mata-pitaa bhi unke sath hai. kalke samaj ki kalpana karke mai sihar jata hoo. kuchh aurate isako bhi aadhunikataa se jod detee hai. khair... aapane jis baat ka khulasaa kiyaa hai, us pau sabko afasos vyakt karanaa chahiye.
badi buri haalat hai ..waise bhi sab ghar se hi mile sanskaaron ki den hai ..jab pita iase kah rahe hain to ...beto to karegi hi... achhe sanskaron ke beej bona bahut zaroori hai ..
"सफलता पाने को इतने बेसब्र बन बैठे हैं लोग
की मान इज्जत का जरा भी ख़याल नही
गर खुद ही बेगरत होके निकले कोई
तो इज्जत बचने का कोई सवाल ही नही "
क्या कहूँ, अलबेला जी... अगर मैं होता तो एक स्पष्ट जवाब देता सच में.. तू मेरे घर के चक्कर क्यों काट रही है..बेअकल..तुम्हें तो मुम्बई पहुंच जाना था... हश्र तो हम निशा कोठारी का देख चुके हैं... और खाली बोतल का मूल्य एक रुपए होता है।
बात वाकई सन्न करने वाली है।
.समझ नहीं आता कि आखिर समाज किस दिशा में जा रहा है.
यह स्थिती विचारणीय है !!!
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