प्यारी गुड्डू की माँ !
ख़ुश रहो !
ऐसा कह कह कर मैं शब्दों का अपव्यय नहीं करना चाहता क्यों
कि मैं जानता हूँ तुम आलरेडी ख़ुश हो और आलवेज़ ख़ुश ही
रहना चाहती हो । न केवल तुम ख़ुश रहना चाहती हो, बल्कि मुझे भी
ख़ुश ही देखना चाहती हो इसलिए 15 दिन के लिए मुझे घर में
अकेला छोड़ कर तुम स्वयं गुड्डू के साथ छुट्टियाँ बिताने
औरंगाबाद चली गई हो.....लेकिन यहाँ तो मुसीबत हो गई है भाई !
जिस एकान्त और तन्हाई को मैंने नियामत समझ कर
कई रंगीन ख्वाब सजाये थे, साले सब धूल धूसरित हुए पड़े हैं ।
तुम थीं तो घर में मेला लगा रहता था सुन्दर सुन्दर पड़ोसनों का,
तुम क्या गईं, कमबख्त सभी ने आना -जाना छोड़ दिया । कभी
दरवाज़े पे कोई दिख भी जाये तो " कैसे हैं ? ..कब आएगी
आरती दीदी ? " इत्ता भर पूछते हैं ।
पहले रोज़ कभी कोई इडली, कभी कोई हलवा, कभी कोई पुलाव
ले ले कर आती थी और ज़बरदस्ती मुझे खिलाती थी मैंने
समझा तुम्हारे बाद भी मुझे ये सब मिलता रहेगा तो क्यों न
तुम्हें भेज दूँ ..लेकिन यहाँ तो हलवा छोड़ो, लापसी तक
का जलवा नहीं हो रहा .........
खैर ये तो आपस की बात है, बाद में निपट लेंगे, पहले ये
बताओ कि तुमको ये नये नये डिब्बों में सामान भरने
की क्या आदत पड़ी है ? जिसमे पहले दाल होती
थी, उसमें मिर्चें पड़ी हैं , जिसमे मिर्चें होती थीं उसमे माचिस पड़ी हैं,
कल रात को मुझे चाय पीनी थी,
बनाने लगा तो देखा किचन प्लेटफोर्म वाले
डिब्बे में चीनी ख़त्म हो गई है, अब ध्यान
तो मेरा लगा हुआ था
अविनाश वाचस्पति की टिप्पणी में........... सो मैंने ऊपर
चीनी का भारी वाला डिब्बा उतारने की कोशिश की,
अब मुझे क्या पता तुमने उसके ऊपर छोटा डिब्बा रखा है
जिसमे पता नहीं कौन से युग का बचा हुआ तेल भी है, कमबख्त
सारा मुझ पे गिर गया , लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपने आप
पर गुस्सा भी नहीं किया, बल्कि बड़े डिब्बे में से दो चम्मच भर के डाल
ही दिये चाय में क्योंकि चाय पीनी ज़रूरी थी, लेकिन हाय रे किसमत !
वो चीनी नहीं, चावल थे, अब पता नहीं ये चाय की जगह क्या बन गया है,
मुझसे तो पिया नहीं जा रहा है ............तू ही बता अब इस चाय को पिएगा
कौन ? और चूँकि कपड़े सारे तेल में भर गये हैं इसलिए होटल भी
जाना मुश्किल है...तो मुझे चाय पिलाएगा कौन ?
ये अविनाश वाचस्पति भी न...................किसी दिन ऐसी टिप्पणी करूँगा
इनकी पोस्ट पर कि हँस हँस के बावले हो जायेंगे - आये बड़े...एक ज़रा सा
सुझाव क्या दिया उसका भी पैमेंट चाहिए उनको , मनमोहन सिंह से लो न !
दुनिया का सबसे बड़ा अर्थ शास्त्री है............
गुड्डू की माँ !
आजा आजा रे आजा ......... चाय की बड़ी प्रॉब्लम है। बाकी पीना खाना तो शाम
को दोस्तों की महफ़िल में हो जाता है लेकिन चाय...........तौबा तौबा !
ये पोस्ट मैंने कल सुबह 9 बजे लिखी थी, लेकिन ब्लोगर बाबा के अचानक
गायब हो जाने से आज दोपहर २-३० बजे प्रकाशित कर रहा हूँ ।
www.albelakhatri.com
9 comments:
यानि कि शनिवार के दिन तेल स्नान हो गया...अच्छा है शनिदेव की कृ्पा बनी रहेगी :-)
और भेजिये 15 दिन के लिए! भेजने के पहले याद नहीं था क्या कि चाय भी पीनी है? :)
हा-हा, डब्बों को पहले ध्यान से ध्यान से देखना था न, हास्य कलाकार का कंसंट्रेशन (ध्यान) तो.... माशाल्हा
वाह बहुत खूब! लीजिये एक पसंद का चटका भी. :)
aapki hi galti hai kkyo bhejte ho 15 din ke liye.
bhejne se pehle training liya karo bhaai sahab.
ab pata lag gaya na ki bhabhi ji ka department jyada difficult hai.
hahahahahahahahahahaha.....
हा हा हा ! बहुत खूब! अब क्या कहें आखिर आपका ही कसूर है क्यूंकि आपने ठीक तरह से ट्रेनिंग नहीं लिया वरना आपको इन मुसीबतों को झेलना नहीं पड़ता !
अरे अलबेला जी!
आपकी तो बहुत दयनीय हालत है!
जाकर ले आइए अपनी जीवनसंगिनी को!
पहली बार सुघड़ हास्य पोस्ट.... जीते रहो चचा..
चीनी के डब्बे में तेल ...वो तो चींटियों को धोखा देने के लिए था! आप कैसे गच्चा खा गए, खत्री साहब?...सुन्दर, असरकारी हास्य।
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