अविनाश वाचस्पति जी !
आज पहली बार आपने एक ऐसी टिप्पणी की है जो मुझे आपकी नहीं
लग रही बल्कि किसी और के कहने पर अथवा दबाव पर की गई
कुचरनी लगती है । जो भी हो, मुझे अपने लेखन के बारे में कोई
सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैंने क्या
लिखा है यदि पढ़ने वाला उसके मर्म तक न पहुंचे तो लेखक का
कोई दोष मैं नहीं समझता ।
पहली बात तो इकसठ- बासठ वाली पंक्तियाँ चेतावनी की
पंक्तियाँ हैं, हास्य में शिक्षाप्रद पंक्तियाँ हैं, दूसरी बात ये कि
पंक्तियों में कहीं कोई बेहूदा या गन्दा शब्द प्रयोग नहीं किया
गया है । तीसरी बात .......केवल यही दो पंक्तियाँ समझ में
आयी क्या ? ग़ालिब और केवट क्या ऊपर से ही निकल
गये .............?
जाने दीजिये, क्या रखा है इन बातों में..........
आप मेरे आदरणीय हैं,
भले ही आपका नैकट्य मेरे कुछ स्पर्धियों से अधिक है, लेकिन
आप आप ही रहिये, किसी दूसरे को अपना कन्धा मत दीजिये
बन्दूक चलाने के लिए........क्योंकि ये वो लोग हैं जो कल किसी
और का कन्धा आप के खिलाफ़ भी कर सकते हैं
बहरहाल..........
तुम श्लील कहो, अश्लील कहो, जो दिखता है वो लिखता हूँ
मन्दिर में नहीं, मण्डी में हूँ , जो बिकता है वो लिखता हूँ
ये भी मैंने ही लिखा और पोस्ट किया था ...............देखा नहीं
आपने.......टिपियाया नहीं आपने ...इकसठ -बासठ पर ऐसे
अटके कि आगे गिनती ही भूल गये.................
आपकी जय हो !
जय हो !
एक नज़र मार लीजिये इधर भी :
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
10 comments:
आप लिखते रहिए बिंदास ।
भाई मण्डी वाले ही नहीं हम भी आपको बेहद पसंद करते हैं, आपकी लेखनी का ही जादू है कि अलग मिजाज़ का ब्लागर होते हुये भी आपको पसन्द करता हूँ सम्मान करता हूँ,
शायरी में अक्सर ऐसा होजाता है पाठक समझ नहीं पाता, शाइर को समझाना पड जाता है, उस पोस्ट का लिंक भी बना देते तो जो उसे पढ नहीं सके वह भी बात समझ सकें
BTW:ये इकसठ-बासठ हिंदी की गिनती है न,जो साठ के बाद आती है ?
चरैवेति! चरैवेति!!
तुम श्लील कहो, अश्लील कहो, जो दिखता है वो लिखता हूँ
मन्दिर में नहीं, मण्डी में हूँ , जो बिकता है वो लिखता हूँ
.......... बहुत खूब!
यह सच है आपको लिखने की पूरी आज़ादी है पर क्या जरूरी है आप कुछ एसा लिखे जो सब को वैसा ना लगे जैसा है ??
हम आपकी इज्ज़त करते है और अपना मानते है इस लिए आपसे दिल की बात कही !!
इकसठ बासठ का तमाशा यहाँ भी आ गया..............
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
सच लिखने की पूरी आजादी हैं आपको
अलबेला जी, प्रणाम,
अविनाश जी ने आपकी रचना पर कुछ टिप्पणी दी, और आप ने उस पर एक पोस्ट दे मारी, और शायद आपको बुरा भी लगा है जो की आपकी बातों से ज़ाहिर हो रहा है, आप का ब्लॉगजगत में बहुत ही सम्मानित स्थान है, मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा की एक लेखक को आलोचना सहने की भी हिम्मत रखनी चाहिए, क्योंकि आलोचना से ही लेखनी में और निखार आता है,
सादर- आपका अनुज
आलोचना सहने के लिए जिगर चाहिए। बौखला उठना तो बहुत आसान है। मतलब बौखलाहट में भी नाम कमाने की चाहत में कोई कमी नहीं आई। जब सिर्फ बुरे को बुरा कहना ही बुरा लग गया तो आप उनकी सोचिए जिनको बुराई बुरी ही लगती है। आप समृद्ध हैं और आप यहां पर बेचने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। पर जो कर रहे हैं वो सुखद नहीं है। मैं उतना समृद्ध नहीं हूं परन्तु वही करता हूं जो मुझे उचित लगता है। गलत को गलत कहने से पहले कई बार सोचता हूं। मैंने सदा आपके लिखे को सराहा है इसका अर्थ यह मत लगाइयेगा कि सब मुझे पसंद ही आया है। कई बार रचनाकार के पूर्वकर्म आड़े आ जाते हैं जो उसके अच्छा न लिखे जाने को भी बेध्यानी में प्रशंसा दिलवा देते हैं। आपने जो लिंक दिए हैं, उनमें से एक भी लिंक नहीं खुला है। उनमें यही होगा कि मैंने आंख बंद करके आपकी लिखी रचनाओं की प्रशंसा की होगी और आप उन्हें मेरे विरुद्ध, मेरे क्यों अच्छाई के विरुद्ध हथियार बनाकर पेश करना चाह रहे हैं। आप उन्हें भी पोस्टों के रूप में संदर्भ और प्रसंग सहित व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र हैं और यह आजादी मैं नहीं दे रहा हूं, प्रकृति प्रदत्त आजादी है यह। मेरे मन में आपके प्रति न तो बैर भाव है, न कभी रहेगा। मुझे आप चाहे बिका हुआ कह दें परन्तु मैं बेचने के लिए कभी नहीं लिखता हूं और न ही संयम खोता हूं। गम खाकर भी हम किसी को खुशी दे सकते हैं तो वो हमें देनी चाहिए। यह नहीं कि पैसा मिले तो कुछ भी लिखकर किसी को भी खुश करने के लिए तैयार हो जाएं। वैसे भी सबके विचार नेक नहीं हो सकते, अनेक हो सकते हैं। जो मुझे नेक लगता है आपको नहीं लगता। जो आपको नेक लगता है, हो सकता है नेक ही हो और मेरे देखने में ही कोई दोष रहा होगा। बेचने के लिए भी लिखा जाए तो उनकी भी कुछ मर्यादाएं होती हैं। मैं आपको वह भी नहीं सिखाने आया हूं। मेरा सदा से यही मानना है कि सोते हुए को तो जगाया जा सकता है परंतु जो सोने का बहाना कर रहा है उसे जगाना नामुमकिन है। आपको आलोचना अखरी तो भविष्य में सावधान रहूंगा और जो रचना अच्छी लगेगी उसी पर प्रतिक्रिया दूंगा और जो नहीं, उस पर चुप रह लूंगा। उससे आपको निश्चित ही ऐसा लगेगा कि मैंने अपना कंधा नहीं बेचा है। जबकि कंधे बेचने का कार्य मजदूरों का होता है। और उनका कंधा बेचना मतलब सामान उठाकर पहुंचाना, किसी गलत कार्य की श्रेणी में नहीं आता है। आपको बुरे को बुरा कहना बुरा लगा, क्षमा प्रार्थी हूं। आप चाहें तो इसकी भी एक पोस्ट लगा लें, स्वतंत्र हैं इसका हंगामा खड़ा करने के लिए भी। आजकल हिन्दी ब्लॉग जगत में यही साजिश चल रही है पर इससे किसी और का नहीं, हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं। चाहता तो मैं भी आपकी तरह ही एक पोस्ट लगा सकता था परन्तु नहीं। न मुझे नाम की भूख है, न दाम की भूख है - मिले तो ठीक और न मिले तो ठीक।
किसी कवि ने कहा है कि
हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं है
हर हाल में सूरत बदलनी चाहिए
इस पर मेरा कहना यही है कि
कुछ बदले न बदले परंतु बुराई तो अवश्य ही बदलनी चाहिए।
बुरा इंसान नहीं होता, कभी कभी विचार हो जाते हैं। फिर आपकी भी कुछ मजबूरियां रही होंगी।
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