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Albela Khatri

इसलिए लोग कहते हैं कि गरजने वाले बरसते नहीं हैं




गरजना

बादल की उकताई और चिल्लाहट है

बरसना

बादल का मदमाना और मुसकाहट है



बादल

जब तक बादलों से टकराता है,

बेचारा बोर होता है


लेकिन

बादल जब बादली से मिलता है

तो भाव विभोर होता है



बादल का बादल से घर्षण

दोनों को ही क्या आकर्षण

कितना भी कर लें संघर्षण

किन्तु नहीं हो सकता वर्षण



बादल जब तक आपस में टकराते हैं

केवल बिजलियाँ ही पैदा कर पाते हैं

वे कामाग्नि में दग्ध हो, चिल्लाते हैं

गरज गरज कर अपना रोष दिखाते हैं



तड़प तड़प कर

बिलख बिलख कर

हाहाकार मचाते हैं


भड़क भड़क कर

कड़क कड़क कर

बिजली ख़ूब गिराते हैं



लेकिन जब बादल बादली से मिलता है

तभी हृदय में प्रेम का शतदल खिलता है



चिल्लाना बन्द हो जाता है

बिजली गिरना रुक जाता है

रौद्ररूप को त्याग वो झटपट

विनय भाव से झुक जाता है


दोनों बदन उत्तेजित होते

दोनों मन ऊर्जस्वित होते


चरमबिन्दु पर पहुंचे मिलन जब

बान्ध तोड़, होता है स्खलन जब


बदली तृप्ति से खिल जाती

बादल को तुष्टि मिल जाती


मन भर जाता, भारी हो कर नम हो जाता है

तब आन्सू का क़तरा भी शबनम हो जाता है



बादल-बदली की रूहें

जब हर्षा जाती हैं

तब वर्षा आती है

तब वर्षा आती है

तब वर्षा आती है


बदरा जब तक बदली से मिलता नहीं है

उसके मन का मोगरा खिलता नहीं है


ये बादल बड़े हठीले हैं

जब तक स्वयं सरसते नहीं हैं

बाहर कितना भी गरजें

पर भीतर से ये बरसते नहीं हैं


इसलिए लोग कहते हैं कि गरजने वाले

बरसते नहीं हैं

बरसते नहीं हैं

बरसते नहीं हैं


-अलबेला खत्री



10 comments:

Unknown December 18, 2009 at 5:48 PM  

बहुत सुन्दर!

अब हम तो कवि नहीं हैं अलबेला जी जो आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से कविता कर के देते।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" December 18, 2009 at 6:17 PM  

वाह! वाह! खत्री साहब, मान गए, क्या बात है !

महेन्द्र मिश्र December 18, 2009 at 6:29 PM  

सच फरमा रहे है जनाब गरजने वाले बरसते नहीं है ....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" December 18, 2009 at 7:02 PM  

अल्बेला जी, इस प्रकार की व्याख्या तो आप जैसा कोई कवि हदय ही कर सकता है.....

राजीव तनेजा December 18, 2009 at 8:05 PM  

वाह...अलबेला जी...वाह...

बहुत खूब...ऐसी अनोखी व्याख्या तो पहली बार सुनी...लेकिन आपकी बात में दम है...

girish pankaj December 18, 2009 at 9:02 PM  

hasy k saath gambheertaa ka ghol...
badal hi deta hai aapkee kavita ka bhugol.
aapkee rachnaye sahity ke aangan ko saja detee hai.
upadesh baad me pahle mazaa detee hai.
albele hai to aap alabele hi rahenge..
apne kism ke alag hee pees hai to akele hi rahenge.
badhai..mere bhai..
hansate rahe, khilkhilate rahen.
zindagee ko hanseen yoon banate rahen...

राज भाटिय़ा December 18, 2009 at 10:36 PM  

बहुत सुंदर जनाब,मजेदार

Onkar January 6, 2013 at 1:32 PM  

सुन्दर रचना

Kailash Sharma January 6, 2013 at 3:16 PM  

बहुत खूब!

कालीपद "प्रसाद" January 6, 2013 at 5:19 PM  

अनुभूतियों की उपमा बहुत सुन्दर -बह खत्री साहब :
नई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in

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