कहीं स्वाइन फ़्लू जैसा रोग है
कहीं आँगन में पसरा सोग है
कहीं ठण्ड के मारे हड्डियाँ चटक रही हैं
कहीं भूखी बुढ़िया भिक्षा को भटक रही हैं
लेकिन तुम्हें दिखाई नहीं देता
रुदन किसी का सुनाई नहीं देता
इसीलिए
शायद इसीलिए इतना ऐंठी हो !
लोग माथा पीट रहे हैं
और तुम लिंग पकड़ कर बैठी हो
तुम्हारे दिल में ज़रा भी दर्द नहीं है
लगता है
तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई मर्द नहीं है
वर्ना ऐसे फालतू काम नहीं करती
भले लोगों को बदनाम नहीं करती
क्योंकि देह जिसकी असंतुष्ट होती है
सारी दुनिया उसके लिए दुष्ट होती है
न तो कोई ढंग का काम कर पाती है
न वह आराम से आराम कर पाती है
देखो ज़रा..........
जग हर्ष मना रहा है
नव वर्ष मना रहा है
और तुम ?
हाँ हाँ तुम !
अपने आपको
भाषा की ज़ंजीरों में जकड़ कर बैठी हो
दुनिया चाँद पर पहुँच गयी
और तुम यहीं लिंग पकड़ कर बैठी हो
लिंग ही पकड़ना था तो
किसी ज्योतिर्लिंग को पकड़ती
काशी में शिवलिंग को पकड़ती
मेवाड़ में एकलिंग को पकड़ती
तुम भी तर जाती
तुम्हारा कुनबा भी तर जाता
ज़हर जित्ता भरा है
तुम्हारे भीतर, वो मर जाता
लेकिन तुम्हारे ऐसे सौभाग्य कहाँ ?
सूर्पनखा के भाग्य में वैराग्य कहाँ ?
उसे तो नाक कटानी है
और लुटिया डुबानी है
हे आधुनिक सूर्पनखा !
पुलिंग और स्त्रीलिंग के झगड़े में क्या सार है ?
मेरी आँखों से देख ! इसके अलावा भी संसार है
मगर तुम जिद्दी प्राणी हो, सच पहचानोगी नहीं
अपने घमण्ड के आगे किसी को मानोगी नहीं
इसलिए
ऐंठी रहो !
ऐंठी रहो !
ऐंठी रहो !
हम तो अपने काम में लग रहे हैं
तुम लिंग पकड़ कर
बैठी रहो !
बैठी रहो !
बैठी रहो !
enjoy laughter ke phatke
new year special
performing by
albela khatri & abhijeet sawant
on STAR ONE 31 DEC.10 P.M.
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
22 comments:
अगर कोई लिंग पकडकर बैठा रहे तो वह भी तो 'काम' ही है, या यूं समझो जब कोई लिंग पकड कर बैठा रहे तो फिर इस 'काम' को छोडकर आप दूसरा काम कैसे कर सकते हो, समस्या उलझी हुई है इसे सुलझाने के लिए अवध जाना ही होगा, अब तो दो ही इच्छा हैं एक इस उलझन को सुलझाना दूसरा अवध देखना, देखें प्रभु पहले कौनसी सुनता है
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
अलबेला भाई जीयो खुब जीयो, बहुत सुंदर ओर सटीक कविता कही, जो बात हम सब नही कह पाये आप ने कह दी, हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
जबर्दस्त -कवि अपने पर उतरता है तो दुर्वासा भी बनता है और तुलसी भी !
नए वर्ष की मंगलमय कामनाएं !
अरे बाप रे...क्या धमाकेदार बात कही है
वाह-वाह क्या कहा आपने , इक दम मस्त , सहमत हूँ आपसे । नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।
ओ3म नम: शिवाय्। ओ3म नम: शिवाय्। ओ3म नम: शिवाय्। ओ3म नम: शिवाय्। ओ3म नम: शिवाय्।
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आदरणीय अलबेला जी,
सबसे पहले तो आपके और आपके परिवार को नव वर्ष की शुभकामनायें।
आपकी आज की यह पोस्ट बहुत ही BAD TASTE में है करबद्ध अनुरोध है कि महिलाओं के सम्मान की हमारी परंपरा को देखते हुऐ आप इस पोस्ट को हटा लें यदि आप इस अनुरोध से इतर निर्णय करते हैं तो अत्यंत आदर के साथ आपकी इस दुर्भावनापूर्ण और नारी विशेष को अपमानित करने वाली पोस्ट पर मेरा विरोध दर्ज किया जाये!
आभार!
Wah,बहुत खूब, लाजबाब ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
और तुम लिंग पकड़ के बैठी हो?
आपने यह नहीं बताया कि लिंग स्त्री का है या पुरुष का जो पकड़ के बैठा गया है......?
आपने सही फ़रमाया है। यहां कुछ लोग अपने आपको ज्यादा समझदार और दूसरों को मुर्ख समझते हैं। इनको करारा जवाब दिया है।
और ये मोहतरमा तो सुर्खियों मे रहने के लिये ही ऐसे काम करती हैं। नये साल की बधाई।
.आप को तथा आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
इसेकहते है ईंट का जवाब पत्थर से देना..अलबेला जी मान गये कवि जहाँ हास्य पैदा कर सकते है वहीं उनकी उग्रता भी देखने बनती जब जब कभी जज़्बात पर चोट लगती है..सौ आने खरी बात..बहुत खूब ..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ..
अलबेला जी के लेख की भाषा पर आपत्ति दर्ज करता हूँ , उनका ये अशोभनीय लेख पढ़ कर शर्म आती है ! अलबेला जी आप से निवेदन है इसे तत्काल कूड़ेदान में डाल दे! लेख मर्दाना न होकर नपुंसकता का द्योतक है !
निंदा निंदा !!
शर्म शर्म !!!
bandhuvar praveen shah ji !
aapki shubhkaamnaaon ke liye aabhaari hoon
aapki tippani se mujhe koi hairaani nahin hui kyonki aapne bhi kavita ko sarsari nigaah se padhaa hai iske bheetar gota nahin lagaaya
isiliye aap ise naari virodhi athvaa kisi naari vishesh ke liye apmaanjanak maan rahe hain
mainh aapko bataa hoon ki vaastvikta kya hai - is kavita me kahin koi sandarbh, ghatna, naam athvaa sanket nahin diya gaya hai kisi naari ya purush vishesh ke liye...na hi mere paas samay hai kisi vishesh se mathaakhapaai karne ka ...
haalaanki aap padhe likhe hain aur main thahara anpadh, lekin anubhav ke aadhaar par itnaa toh kah sakta hoon ki kavi jab kavita karta hai toh vo kisi aur se nahin, svyam se bat karta hai, bheetar ki pragya ke prakaash me apnaa astitva aankta hai aur sthiti ko naapne toulne ke uske apne moulik maap-dand hote hain
arthaat sankshep me itnaa jaan lijiye ki ye shaandar aur jaandaar kavita jo maa shaarda ne mujhe prasaad ke roop me dee hai, kisi ka virodh karne ke lioye nahin balki svyam kavi ki chetnaa ko jhakjhorne ke liye hai ki moorkh ! tu kya kar rahi hai ? likhne ko itne mudde pade hain aur tu keval striling -pulling ko pakad kar baithi hai ?
ab agar ye kavita kisiko achhi lage toh thik, na lage toh thik, lekin yahan jo kaha gaya hai vah, kavi ki bhrasht chetnaa ko kaha gaya hai..
kisi dusre ko svyam pe odhne ki koi zarurat nahin hai....baaki log svatantra hai...
sach kahne waalon ko hameshaa dabaane ki koshish hoti hai aur hoti rahegi lekin sach kabhi dabtaa nahin yahi atal satya hai
bhagvaan aapko navvarsh me tamaam khushiyaan pradaan kare, inhin mangal kaamnaaon ke saath
-albela khatri
अलबेला जी,
भाषा की विद्रूपता भले ही न भा रही हो
किन्तु कविता में किया गया कटाक्षपूर्ण हास्य आपके क्षोभ को प्रदर्शित कर रहा है।
एक विलाप का आपने अपनी शैली में उत्तर दिया है।
Albela ji..2din se ye blogger shabd striling ha ya pulling ka vivad dekh rahi hu....aur khud iske virodh me hu...sochne samjhne aur chinta kane k liye kitne hi mudde pade ha jaisa aapne kaha...
aur mana ki apne ye kisi vyakti vishesh k liye nahi likha par...aise waqt par ye kavita likh dali ha ki sabhi use isi vivad se jodkar dekh rahe ha..
par sach kahu to mujhe isme un logo par kataksh dikha jo bekar k vishyo ko lekar behes karne me lage hue ha...
naye sal ki shubhkamnaye....
HAPPY NEW YEAR SIR !!!
:)
Heartiest wishes to all !
ab gustakhi maaf...
Respected Sir and all respected readers,
I am really surprised, how immatured are ppl!
thoda to upar uthkar sochna tha...
sabhi satyavadiyo ko kehna hoga ki is jhagde me koi bhi kavita ke saath bilkul nyay nahin kar raha... itna 'head strong' hona achi baat nahin... is tarah sabhi sahitya ka apmaan kar rahe hain... ve bhi jo is kavita a virodhh karte hain aur ve bhi jo iske samarthan me hain...
Abhivyakti ki swatantrata sabhi ko hai parantu yadi ye baat dhyaan me rakhi jaati ki lekhak ka pratham kartayva apni rachna ko nishpaksh banana hai.. to ye kavita ugrata ke bavazood bhi sabhi ko (mera matlab hai jinko nahi hai unko bhi, kyonki zahir hai do paksh ban hi rahe hain) saharsh sweekarya hoti...
Halanki kavita ka prastutikaran behatreen hai... par isme kavi ke apne poorvagrah roda atkate hai... ye bhi sabit hota hai ki jab sach me itne hi mudde pade hain charcha ko to fir kavi bhi kyun isi par aakar atak gaye?
Beshak aapne behad achi baat kehne ki koshish ki, aur koshish ki tathakathit "jiddi prani" ko raah bhi dikhane ki.. sunder, parantu aap hi bataiye ye kavita raah dikhane se adhik vidroh paida karti hui nahi lagti?
Infact... ye to bomb foda hai aapne... zara pyaar se hi likh dete yahi baat to shayad log samajh jate.. apki safalta isi me hoti ki yadi koi bhi so called 'jiddi prani'(apke shabdo me) sochne par vivash hota.. (shayad ek nishpaksh chintan ke bhi mouke hote)
Par ab nahi lagta... zarurat se jyada straight forward aur strict hona sirf aur sirf pratikriya swaroop aur vidroh ko jamn nahin dega...
Dusri mehatvapoorna baat ki ye kavita kahin na kahin, chahte na chahte (aarop nahi laga rahi, shayad aapne dhyan hi nahin diya) hue bhi ashobhniyeta ko protsahan deti aur stri ke apmaan ko samarthan deti bhi prateet hoi hai ... sorry to say aisi samvedansheel baat ko is tarah se controversy ka mudda bana dena aur fir un logo ko mouka dena jo humesha 'loop holes' ki talash me rehte hai aur unke housle buland karna achi baat nahin...
Kehna to nahi chahiye par ye aapka blog hai... aapko adhikar hai .. parantu pathako ke liye aapke kuchh naitik kartayva bhi bante hain...
overall mai kavita se impressed (shayad hairan !) hoon, mujhe behad hurt hua hai aur ye bahut dukhad hai kyonki mai apki fan hoon aur laughter ke phatke ki bhi...
nanhi lekihka ko aisi ummid nahin thi apse, afterall I respect you a lot... bahut bahut kshamaprarthi hoon sabhi se.. par apne aapko rok nahi saki... janti hoon itna badbolapan karne ki umar bhi nahin meri...(o,o) aur anjane se hi ye jo do paksh bane hain unme se kisi ke bhi saath nahin.. never intended to offend anyone... I'd really appreciate any further comments from anyone on this too.
Sorry.
No issues please...Thanx.
सम्मानित लाडली और बिटिया जैसी मासूम
नन्ही लेखिका रश्मि स्वरूप !
मुझे खेद है, गहरा खेद है कि मेरी कविता से आपको और अन्य कई भले लोगों को दुःख पहुंचा । मेरा अभिप्राय किसी को दुःख पहुंचाना नहीं है । अरे भाई मेरी तो रोज़ी-रोटी ही लोगों को हँसा कर चलती है तो मैं किसी को तकलीफ पहुंचाऊं , ये कैसे हो सकता है ?
लेकिन.............लेकिन.......यहाँ आपको ये भी ध्यान रखना होगा कि सभी दवाएं मीठी नहीं होतीं, कुछ कड़वी भी होती हैं और कड़वी दवा बनाने वाली कम्पनी पर क्रोध करने के बजाय उसकी मज़बूरी भी समझनी ज़रूरी है जैसा रोग हो, उसका इलाज वैसा ही किया जाता है ,
अगर मैं तुम्हें बिटिया पुकारूं तो बुरा ना मानना,,,
बेटी रश्मि ! तुम अपने ही घर में देखना कई तरह के झाडू और ब्रश मिलेंगे..........रसोईघर की झाड़ू अलग होती है, आँगन की अलग होती है और सड़क की अलग होती है। जहाँ कोमल चाहिए वहां कोमल प्रयोग होती है, जहाँ कठोर चाहिए, वहां कठोर प्रयोग होती है ..........दान्त का ब्रश अलग होता है, कपड़े का अलग होता है, जूते का अलग होता है और कमोड का अलग होता है...
मैं कोई सफाई नहीं दे रहा बेटी !
आज किसी ने अपरोक्ष रूप से कहा कि हमें अपनी कविता पोस्ट करने से पहले अपनी माँ-बहन को दिखाना चाहिए ! मैं पूछता हूँ क्यों भाई ?: क्यों दिखाना चाहिए ? क्या उन्हों\ने हमारे साथ वो व्यवहार किया है जो आपने किया ? यदि नहीं, तो उनको क्यों दिखाना चाहिए ?
खैर............आपको दुःख हुआ ये जान कर मैं भी दुखी हूँ और प्रयास करूंगा कि भविष्य में आपको ऐसा लिखने पर विवश ना होना पड़े
नव वर्ष आपके लिए मंगलकारी हो !
shame on u
अलबेला जी,
मैंने छोटे परदे पर आप को कई बार देखा और सराहा, पर आप की ये कविता ने कहीं न कहीं मन को ठेस पहुंचाई है, आप की कविता से अगर नारी अपमान करती पंक्ति हटा दी जाए तो कविता ठीक ही है,
यदि कोई कवी कुछ लिखता है तो उसमे भावना,कल्पना,हिंसा शोक नवरस हो सकते है पर यह पंक्ति स्पष्ट रूप से सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने के लिए लिखी गई है......आप के इस निम्न स्तर के लेखन के प्रतिउत्तर में बहुत कुछ लिखा जा सकता है. पर हम अपनी लेखनी को भाषा की मर्यादा नहीं खोने देना चाहते, तो गांधीगिरी की तर्ज़ पर
"गेट वेल सून "
उम्दा व्यंग्य और कटाक्ष ... दुधारी तलवार जैसा ... यद्यपि इसे देखने के नज़रिए अलग अलग हो सकते हैं....लेकिन एक बात एकदम सटीक है कि स्त्री पुरुष भेद को लेकर रात दिन स्यापा करने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और जरूरी मुद्दे हमारे सामने हैं... इस 'रचना' को इसी नज़रिए से देखा जाना चाहिए
धन्यवाद
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