स्तर कहाँ बिस्तर के युग में शास्त्रीजी !
गुल कहाँ पत्थर के युग में शास्त्रीजी ! !
क्या तो खाए,क्या खिलाये कोई निर्धन !
सौ रुपये अरहर के युग में शास्त्रीजी ! !
कवि त्रिलोचन क्यों किसी को याद आए !
सचिन तेन्दुलकर के युग में शास्त्रीजी ! !
कौन है महफूज़ ? किसको डर नहीं है ?
कसाब-ओ-अज़हर के युग में शास्त्रीजी ! !
मैं तो 'अलबेला' फ़क़त इक मसखरा हूँ !
मंचीय लाफ़्टर के युग में शास्त्रीजी ! !
गुल कहाँ पत्थर के युग में शास्त्रीजी ! !
क्या तो खाए,क्या खिलाये कोई निर्धन !
सौ रुपये अरहर के युग में शास्त्रीजी ! !
कवि त्रिलोचन क्यों किसी को याद आए !
सचिन तेन्दुलकर के युग में शास्त्रीजी ! !
कौन है महफूज़ ? किसको डर नहीं है ?
कसाब-ओ-अज़हर के युग में शास्त्रीजी ! !
मैं तो 'अलबेला' फ़क़त इक मसखरा हूँ !
मंचीय लाफ़्टर के युग में शास्त्रीजी ! !
6 comments:
आपने बहुत खूब कहा लाजवाब, हम यानि आपसे प्रेरणा प्राप्त शास्त्री जी को कहके आए 'सच्चा साहित्यकार कभी टिप्पणियों का मोहताज़ नहीं होता..' और अगर मोहताज है तो हमें बताए, उसकी इच्छा हम पूरी कर सकते हैं, हम एक सांस में 10 टिप्पणी कर देते हैं, दूसरी में 15 .... और अपने मुँह से क्या कहें सब जाने हैं
चटका 3 दे रहा था देते-देते 4 होगया
अवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया
वाह जी वाह, आपने क्या खूब कहा, इधर उधर घुच्चियों में घूम के हम फिर आगए इधर, लेके चटका न.5, लगे रहो, खास इस ब्लाग पे लगे रहो, इशारा समझो 13 बनाम 40
बेमिसाल!
लाजवाब!
त्रिलोचन शास्त्री जी की स्मृति को नमन ।
सच्ची बात
वाह क्या कहा है अलबेला जी..
"सच को व्यंग्य में कहना भी एक कला है शास्त्रीजी...
यह तो अलबेला के बाएँ हाथ का खेल है शास्त्रीजी"
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