चिकनगुनिया की चपेट में आने के कारण देह कुछ अशक्त हो गई है परन्तु
जैसे तैसे इस पोस्ट को लिख कर ही रहूँगा । क्योंकि आज अगर मैं चुप रहा
तो मुन्नी मुफ़्त बदनाम हो जाएगी और शीला की जवानी का सारा मज़ा
अकेला टिन्कूजिया ले जायेगा । लिहाज़ा यह पोस्ट लिख कर अपना मत
व्यक्त कर रहा हूँ ताकि सनद रहे........और वक्त-ए-ज़रूरत काम आये ।
खुशदीप सहगल आज ख़ुश नहीं हैं, उन तक पहुँचने के पहले मैं ज़रा
अविनाश वाचस्पति से बात कर लूँ परन्तु उनसे भी पहले हक़ बनता है
रचना का जिनकी टिप्पणियां पढ़ कर मैं अभिभूत हूँ ।
रचना जी ! कदाचित यह पहला मौका है जब आपकी बात मुझे सार्थक
और स्वीकार्य लगी । अनेक ब्लोग्स पर आज आपकी टिप्पणियां पढ़ीं
जिनमे आपने पैसा लेकर प्रकाशन करने वाले कथित प्रकाशकों का बख़ूबी
ज़िक्र तो किया ही और भी जो कहा, अक्षरशः सही व सटीक कहा
.........i like it so much
भाई नीरज जाट ! न्यूँ बता......यात्रा तो तू करै सै ......अर यात्रा वृत्तान्त का
पुरस्कार कोई और ले गया ...बुरा तो नई लाग्या ?
समीरलाल, निर्मला कपिला,दिगंबर नासवा, दीपक मशाल, ललित शर्मा,
दिनेशराय द्विवेदी, बी एस पाबला, गिरीश बिल्लोरे, रतनसिंह शेखावत,
खुशदीप सहगल, संगीता पुरी, राजीव तनेजा इत्यादि सम्मानित हुए अच्छा
लगा परन्तु शरद कोकस, अजित वडनेरकर, आशीष खंडेलवाल, राधारमण,
अलका मिश्रा, ताऊ रामपुरिया, परमजीत बाली, पं डी के वत्स, राज भाटिया,
योगेन्द्र मौदगिल, पंकज सुबीर, अनूप शुक्ल, इरफ़ान, श्यामल सुमन, प्राण
शर्मा, हरकीरत हकीर, अनवर जमाल जैसे अनेकानेक लोग हैं जिन्होंने हिन्दी
ब्लॉग जगत की ख़ूब सेवा की है, क्या उनके लिए किसी सम्मान अथवा
पुरस्कार की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए थी ? आज डॉ अरुणा कपूर जी के
ब्लॉग "बात का बतंगड़" में अनेक नाम छपे हैं जिन्होंने हिन्दी ब्लॉग को
पोषित पल्लवित किया है । क्या उनके योगदान को भुलाना कृतघ्न होना
नहीं है ? कोई तीन साल पहले जब मैंने ब्लॉग शुरू किया था तब " कुमायूं नी
चेली" पर एक बहन ( नाम याद नहीं) हाँ हाँ याद आया शेफाली पांडे... बहुत
ही बढ़िया और स्वस्थ हास्य-व्यंग्य लिखती थी, उसे भी याद नहीं किया
गया, घुघु बासूती, अनिल पुसदकर, बेंगाणी बन्धु भी भुला दिए गये...... ये
बात ज़रा कम ही समझ आ रही है लेकिन मैं इस विषय पर इसलिए नहीं
बोलूँगा क्योंकि बोलने के लिए कोई सुनने वाला भी ज़रूरी है और एक अदद
माइक भी । इस वक्त दोनों ही हाज़िर नहीं है इसलिए अपन सीधे चलते हैं
अविनाश वाचस्पति के पास जिन्होंने मेरा मखौल उड़ा कर ये सिद्ध कर
दिया है कि वे जिस प्याले में चाय पीते हैं, उसमे पान की पीक थूकने का
हुनर भी जानते हैं ।
तो जनाब आदरणीय अविनाश वाचस्पति जी ! क्या लिखा था आपने अपनी
इक पोस्ट में अपरोक्ष रूप से मुझे निशाना बनाते हुए कि एक अलबेले
पुरस्कार आयोजक ने पुरस्कार समारोह रद्द करके पैसा भी कमा लिया और
प्रसिद्धि भी पा ली ...........आपने उसमे ये दर्शाया है कि 25,000/- का
पुरस्कार वोटों के आधार पर आप ही जीत रहे थे....लेकिन मैंने बहाना बना
कर रद्द कर दिया ।
जनाब ज़रा इस बात का पूरा खुलासा कीजिये तो मैं खुल कर जवाब दे
सकूँ ताकि सबको पता लगे कि वो मामला क्या था । खुशफ़हमी अच्छी चीज़
है लेकिन हकीकत आखिर हकीकत होती है और उसका सामना करने के
लिए अलबेला खत्री सदैव तत्पर है । मैं आज इस बात को इसलिए उठा रहा
हूँ क्योंकि आज तक आप समारोह में व्यस्त थे.........अब आओ और इस
अलबेले पुरस्कार दाता से बात करो............
ये अलबेला पुरस्कार वाला अपने इश्टाइल में काम करता है। पुरस्कार
ब्लॉग पर देता है और राशि घर बैठे भिजवाता है । दो बार तो आप भी लाभ
ले चुके हो आदरणीय ! फिर कैसे आपने मेरी विश्वसनीयता पर प्रश्न लगा दिया ?
जब मैंने कार्टूनिस्ट सुरेश शर्मा की कार्टून प्रतियोगिता को सहयोग किया
था तब से ले कर माँ के गीत पर 55,555/- रूपये के पुरस्कार तक की पूरी
यात्रा याद करो :
_____
अविनाश वाचस्पति दो बार
सीमा गुप्ता एक बार
रूपचंद्र शास्त्री एक बार
डॉ अरुणा कपूर एक बार
राजेंद्र स्वर्णकार एक बार
अनिल मानधनिया एक बार { शेष याद करके बताऊंगा }
इसके अलावा ग़ज़ल लेखन के लिए सोलह लोग एक बार
तीन लोग दो बार
पुरस्कृत हुए हैं और सबकी राशि उन्हें घर बैठे प्राप्त हुई है । वो भी ब्लॉग पर
घोषणा के 48 घण्टों के भीतर ।
बाकी बातें बाद में करेंगे, पहले आप अपनी बात साफ़ साफ़ कहें अविनाशजी !
मैं आपकी प्रतीक्षा करूँगा ..........कर रहा हूँ !
तो सम्मान्य खुशदीप जी आपने आज सबको राम राम करने की सोची है
यह मेरी समझ के बाहर इसलिए है क्योंकि मैंने देखा है जिन महिलाओं के
लहंगे में जुएँ पड़ जाती हैं, वे जूँ से घबरा कर लहंगा नहीं फेंकती, बल्कि
लहंगे को ख़ूब गरम पानी में उकाल कर जूँ मारती है । यही तरीका सही है
वरना कितनी बार लहंगा फेंकेगी इस मंहगाई में ?
खुशदीप जी ! ख़ुश होइए प्रभु की इस अनुकम्पा पर कि उसने आपको
बहुत बड़ी नियामत बख्शी है । कृपया उसका सम्मान करें और हम जैसे
अपने प्रशंसकों-पाठकों का ध्यान रखते हुए लेखन - ब्लॉग लेखन
हिन्दी में जारी रखिये अनवरत............आप मेरी पोस्ट पढ़ें न पढ़ें, कभी
टिप्पणी दें न दें कोई फ़र्क नहीं पड़ता । परन्तु हिन्दी ब्लॉग पर असर
अवश्य पड़ेगा यदि आप इस समय ब्लॉग छोड़ कर गये ।
पता नहीं...बेख़ुदी में क्या क्या लिखे जा रहा हूँ.क्योंकि चिकन गुनिया ने
मुझे भी चिकन जैसा ही बना दिया है परन्तु रहा नहीं गया ..........तो भाई
कोई कहो जा कर अविनाश वाचस्पति से कि अलबेला ने याद फरमाया है
हा हा हा हा हा
चलते चलते चन्द शे'र मार देता हूँ :
आग से आग बुझाने का हुनर रखते हैं
हम सितमगर को सताने का हुनर रखते हैं
मौत क्या हमको डराएगी अपनी आँखों से
मौत को आंख दिखाने का हुनर रखते हैं
कोई आँखों से पिलाता है तो कोई ओंठों से
हम तो बातों से पिलाने का हुनर रखते हैं
पाई है हमने विरासत में कबीरी यारो !
जो भी है पास, लुटाने का हुनर रखते हैं
_____पाठकजन से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी
-अलबेला खत्री

Comments
oliviababy
19 Oct 2010 - 00:07i am Olivia,single never married, tall slim,and fair,that loves sightseeing and reading,i viewed your profile and got interested in knowing you more for important discussion,could you please reply to me via my mail address
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09 Oct 2010 - 11:10albela khatri
08 Oct 2010 - 12:28albela khatri
08 Oct 2010 - 12:28ਪੀਪਨੀ ਗਰਾਰੀ ਵਾਲਾ
08 Oct 2010 - 11:32ѕнαяρѕнσσтєя
08 Oct 2010 - 03:44albela khatri
07 Oct 2010 - 13:29☺☺ミ★ ਕਾਲੀ ਨਾਗਣੀ ★彡☺☺
07 Oct 2010 - 13:11