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Albela Khatri

जो करता है निगहबानी, यहाँ दिन और रात अपनी




उसी रब को अखरने में गुज़ारी है हयात अपनी

सजाई है यहाँ जिसने ये सारी क़ायनात अपनी

गये - गुज़रे हैं हम कितने, उसी को भूल बैठे हैं

जो करता है निगहबानी, यहाँ दिन और रात अपनी


काम सारे हो रहे हैं कुर्सी की टांगों नीचे काग़ज़ों में हो रहे विकास मेरे देश में

मेरे देश में है एक मुख यदि चन्द्रमुखी

सैकड़ों के मुखड़े उदास मेरे देश में


एक के शरीर पे जो सूट बूट टाई है तो

पाँच सौ पे पुराना लिबास मेरे देश में


काम सारे हो रहे हैं कुर्सी की टांगों नीचे

काग़ज़ों में हो रहे विकास मेरे देश में


दूध है जो मंहगा तो पीयो ख़ूब सस्ता है

आदमी के ख़ून का गिलास मेरे देश में


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हज़ारों हाथ से करता है रखवाली वो पग - पग पर




बिलावजह चटकना क्यों, है हासिल क्या बिखरने में

मस्सर्रत ज़िन्दगानी की चमकने में - निखरने में

हज़ारों हाथ से करता है रखवाली वो पग - पग पर

मगर हम हैं लगे हर दम, उसी रब को अखरने में


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शिखर जब हों मयस्सर तो पड़ावों पर अटकना क्यों ?




फिर भी हर नाम है उसका तो नामों में भटकना क्यों ?

शिखर जब हों मयस्सर तो पड़ावों पर अटकना क्यों ?

लटकना क्यों ख़ुदी के दार पर, बच कर निकल जाएँ

फिसल कर कांच की तरह बिला वजह चटकना क्यों ?


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नाम उसका नहीं कोई, फिरभी हर नाम है उसका





मुक़द्दस धाम है उसका, अलौकिक धाम है उसका

दिव्य आभा से आलोकित, रूप अभिराम है उसका

ईसा उसका, ख़ुदा उसका, गुरू उसका, प्रभु उसका

नाम उसका नहीं कोई, फिरभी हर नाम है उसका


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मेरे भीतर की बस्ती में मुक़द्दस धाम है उसका

उसी ने फिर बनाया है, बनाना काम है उसका

बनाने में कुशल है वो, बड़ा ही नाम है उसका

मेरी हस्ती उसी से है, मेरी मस्ती उसी से है

मेरे भीतर की बस्ती में मुक़द्दस धाम है उसका

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मिटाया था कभी जिसने, उसी ने फिर बनाया है






वो तन में भी समाया है, वो मन में भी समाया है

जिधर देखूं उधर जलवा, उसी का ही नुमाया है

मेरा मुझमे नहीं कुछ भी, जो कुछ भी है उसी का है

मिटाया था कभी जिसने, उसी ने फिर बनाया है

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बेचारा नंगलाल पिट गया भाई चारे चक्कर में..............

नंगलाल बुक्का फाड़ फाड़ कर रो रहा था और रंगलाल उसे लगातार

पीटे जा रहा थाये देख कर निहंगलाल से रहा गया


निहंगलाल - क्यों पीट रहे हो इसको ?


रंगलाल - पीटूं नहीं तो क्या आरती उतारूँ इसकी ? पूरा देश भाईचारे

के लिए दुआ मांग रहा है और ये कमबख्त बकता है कि अब देश में

भाईचारा ही नहीं सकता..............


नंगलाल - हाँ हाँ नहीं सकता .........


निहंगलाल - लेकिन क्यों नहीं सकता ?


नंगलाल - इसलिए नहीं सकता क्योंकि 'भाई' तो दुबई में बैठा है

और चारा लालू प्रसाद यादव के पेट में है


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अब कल कोई इन पर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप मत लगाना

चुनाव जीतने के तुरन्त बाद लोकतन्त्र के दरबार में

अनेक महानुभावों ने

ओथ "ली"
शपथ "ग्रहण की"
या
कसम "खाई "

और ये पुनीत कार्य
सब के सामने सम्पन्न हुआ

कोई चोरी छुपे नहीं
अब कल कोई इन पर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप
मत लगाना
_________________अरे यार जिस काम की शुरुआत ही
"लेने"
+ग्रहण करने
+खाने से होती है

उस में खाने पीने की छूट तो होनी ही चाहिए
..हा हा हा हा हा हा हा हा


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अलबेला खत्री के नाम से ये फर्जीवाड़ा कौन कर रहा है भाई ?






आज इंटरनेट पर अचानक मुझे कुछ ऐसा दिखाई दिया जिसमे

नाम तो मेरा है पर काम मेरा नहीं है,


ये पता नहीं क्या है और मेरा नाम यहाँ कैसे छपा है क्या कोई बता सकता है ?



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    oliviababy

    19 Oct 2010 - 00:07
    Hello Dear,
    i am Olivia,single never married, tall slim,and fair,that loves sightseeing and reading,i viewed your profile and got interested in knowing you more for important discussion,could you please reply to me via my mail address
    (Olivia_jude1@yahoo.com) so that we will know each other very well.i will send my pics later.
    Thanks,
    Olivia
    Olivia_jude1@yahoo.com
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    мαђαℓ sααß

    09 Oct 2010 - 11:10
    welcome to grarri forums
  3. Photo

    albela khatri

    08 Oct 2010 - 12:28
    thanx also to romantic jatt
  4. Photo

    albela khatri

    08 Oct 2010 - 12:28
    thanx stud boy
  5. Photo

    ਪੀਪਨੀ ਗਰਾਰੀ ਵਾਲਾ

    08 Oct 2010 - 11:32
    welcome to grarri forum n joy ur stay
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    ѕнαяρѕнσσтєя

    08 Oct 2010 - 03:44
    welcome to GraRRi forum ... feel free to ask if u need any help .... enjoy ur stay !!
  7. Photo

    albela khatri

    07 Oct 2010 - 13:29
    thanx g
  8. Photo

    ☺☺ミ★ ਕਾਲੀ ਨਾਗਣੀ ★彡☺☺

    07 Oct 2010 - 13:11
    welcome to grarri forums
Page 1 of 1

नूरानी कर दिया है भीतर का कोना कोना



कमाल कर दिया रे

धमाल कर दिया रे

नज़रे-क़रम से तूने

निहाल कर दिया रे



अब और क्या मैं मांगूं

सब कुछ तो मिल गया है

सदियों से बन्द था जो

शतदल वो खिल गया है



नूरानी कर दिया है भीतर का कोना कोना

मिट्टी को मेरी छूकर कर डाला तूने सोना



महका दिया है तन-मन

महका दिया है आँगन

सूखा ही था जो अब तक

हरिया गया वो गुलशन


अब छोड़ के जाना, बस इतनी इल्तज़ा है

तुझ बिन नहीं है कुछ भी, तू है तो हर मज़ा है



मेरे हुज़ूर ! तेरा दीदार हो गया है

संसार सारा जैसे गुरूद्वार हो गया है

उद्धार हो गया है

उद्धार हो गया है

उद्धार हो गया है


धन्य है तू और तेरी रहनुमाई

धन्य है तू और तेरी रहमताई

धन्य है तू धन्य है हर गीत तेरा

धन्य है तू धन्य है संगीत तेरा


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मूर्ख हिन्दुस्तानियों ! अब तो पाकिस्तान को आतंकवादियों की पनाहगाह मत कहो प्लीज़ ....





जब
से होश सम्हाला है, लोगों को एक ही बात कहते सुना है मैंने कि पाकिस्तान

आतंकवादियों की पनाहगाह है अथवा अपराधियों की शरणस्थली है मैं आज

तक समझ नहीं पाया कि ऐसा क्यों कहते हैं लोग ? जिसे देखो, लट्ठ ले कर

पाकिस्तान के पीछे पड़ा हैशान्ति से जीने नहीं देते गरीब को...........जबकि

वहां
का इतिहास बताता है कि वहां कोई भी अपराधी सुरक्षित नहीं हैजिस

जिस
ने भी भारत के विरुद्ध षड़यंत्र रचा या आक्रमण किया उसे मारने की हमें

ज़रूरत
ही नहीं पड़ीआतंकवादी हो या भारत विरोधी हुक्मरान, सब के सब

पकिस्तान में ही निपटा दिए गये..........उन्हीं के पट्ठों द्वारा ।


जिस प्रकार अपने गोडसे ने महात्मा जैसे महात्मा गांधी को, भिंडर वाला ने

शक्ति स्वरूपा इन्दिरा गांधी को और प्रभाकरण ने अपने मासूम राजीव

गांधी को लम्बी नींद सुला दिया उसी प्रकार मियां भुट्टो से लेकर जनरल

जिया और बेनज़ीर से लेकर ओसामा बिन लादेन तक सभी का काम स्वयं

पाक ने ही तमाम किया है या कराया है । आज तक एक भी उदाहरण नहीं

मिलता कि कोई पाक शासक भली चंगी मौत मरा हो और पूरी ज़िन्दगी जी

कर मरा हो............कायदे-आज़म के मुल्क का कायदा पूरी तरह अल कायदा

है जिसका सबसे बड़ा फ़ायदा वहां कि सरकार को ये है कि भूतपूर्व राष्ट्रपति

या प्रधानमन्त्री के लिए न तो बंगला देना पड़ता है, न ही सुरक्षा व्यवस्था

वगैरह....हा हा हा ..जब तक कुर्सी पे हो , जियो, जब भूत पूर्व हो जाओ तो

जाओ मौत के मुँह में.........



रहा सवाल आतंकवादियों की पनाहगाह का तो पाक कहाँ पनाहगाह है भाई ?

वो तो बेचारा रोज़ अपने अपराधी भारत में भेज रहा है । पनाहगाह तो

भारत है जहाँ किसी आतंकवादी को कोई समस्या नहीं........ किसी अपराधी

को कोई डर नहीं । मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि यदि ओसामा पाक के

बजाय हिन्द में छिपा होता तो मज़े भी करता और ज़िन्दा भी रहता ।

अरुण गवली, अबु सलेम और नटवरलाल जैसे अपराधी ही नहीं गुरू

अफज़ल और कसाब जैसे खूंख्वार आतंकवादी जहाँ मौज कर रहे हैं वो

पाकिस्तान नहीं, हिन्दुस्तान है भाई ! ये बात हमें नहीं भूलनी चाहिए

...........इसलिए मेरा मन कहता है कि अब पकिस्तान को आतताइयों की

पनाहगाह मत कहो,,,,,,,प्लीज़ ..................


बेचारे लादेन की आत्मा को दुःख पहुंचेगा ।



अपने प्रिय पाठकों से मेरा निवेदन है कि यदि आप मेरे इस

ब्लॉग पर छपने वाले तमाम आलेख पढ़ना चाहते हों तो

कृपया इसके follower बन जाएँ क्योंकि अब मेरे सभी ब्लॉग

मैंने विभिन्न एग्रीगेटर्स से हटा लिए हैं


-अलबेला खत्री


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सुअर कोई गन्दगी पर जो जा बैठा तो हंगामा.........

कल रात मुझे एक सपना आया ,सपने में देखा..........


पत्रकार ने पूछा

शरद पवार जी ! आपके चेले कलमाड़ी ने राष्ट्र मण्डल खेलों में घपले करके

बहुत सा पैसा खाया ...आपकी क्या प्रतिक्रिया है इस पर ?



शरद पवार बोले

असल में खाना तो मैं चाहता था, मगर मज़बूरी ये है कि अब मेरा मुँह

कुछ खाने लायक नहीं रहा



पत्रकार बोला

मुँह को छोड़िये, मुँह तो खाने क्या, किसी को दिखाने लायक भी नहीं रहा



शरद पवार उवाच

इसीलिए मैंने कलमाड़ी को आँख मार कर कह दिया कि बेटा ..तू खाले

और हमारे लिए रख ले...........कलमाड़ी पर मैं भरोसा इसलिए करता हूँ

क्योंकि ये होशियार आदमी है करता ज़्यादा है बोलता कम है, खाता

ज़्यादा है, ढोलता कम है । अब ये अन्ना फन्ना लगे हैं ढोल बजाने.......

बजाते रहें....मैंने तो एक कविता लिखी है । कहो तो सुनाऊं ?


पत्रकार -

कविता और आप ?



शरद पवार -

अब कवि के सपनों में आया हूँ तो कविता तो करनी ही पड़ेगी न !

सुनो-


सुअर कोई गन्दगी पर जो जा बैठा तो हंगामा

कोई
कुत्ता जो इक हड्डी चबा बैठा तो हंगामा

किये
हैं और भी लोगों ने जम कर ख़ूब घोटाले

मग
कलमाड़ी थोड़ा धन कमा बैठा तो हंगामा


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इलेक्शन में तो मोती है, पर उसके बाद पानी है




सियासत एक की दुल्हन नहीं कइयों की रानी है

ये है बदनामी मुन्नी की तो शीला की जवानी है

सियासी लोगों की आँखों में जो घड़ियाली आँसू हैं

इलेक्शन में तो मोती है, पर उसके बाद पानी है

-अलबेला खत्री



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एक सांप ने अगर अपने ही सपोले को खा लिया तो इसमें हम इन्सानों को टी वी से क्यों चिपकना चाहिए भाई ?

बहुत बड़ी ख़बर है साहेब............इत्ती बड़ी है कि सारे चैनल सुबह से ही दिखा

रहे हैं पर ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही.......कल अखबार भी रंगे होंगे इसी

ख़बर से.......ख़बर न हुई, कमबख्त पोस्ट हो गई राजीव तनेजा की.... पढ़े

जाओ, पढ़े जाओ....पढ़े जाओ...सी आई ए वाले नाच रहे हैं तो आई एस

आई वाले थर्र थर्र कांप रहे हैं । कमाल है एक ही ख़बर के दो दो असर !

पर अपन क्यों माथा खपायें यार ?


अपने लिए कोई नई बात तो है नहीं ये.........अपना ओसामा बिन लादेन

अपन पहले ही भुगत चुके हैं । और अच्छे से भुगत चुके हैं । जो जैसा करता

है उसे वैसा ही प्राप्त होता है ऐसा मैंने सुना ही नहीं देखा भी है ।




इन्दिरा जी ने जरनैल सिंह भिंडराँवाला को अपने स्वार्थ के लिए बनाया

तो अमेरिका ने ओसामा को अपने स्वार्थ के लिए........जब दोनों को ही

अपने अपने प्रोडक्ट भारी पड़े तो दोनों ने ही उन्हें ख़त्म भी कर दिया ।

इसमें मैं कोई पोस्ट लिख कर क्यों अपना और अपने पाठक का समय

खराब करूँ यार ? जबकि अपने पास लिखने के लिए कलमाड़ी जैसा

बढ़िया आदमी है ।


ओबामा कह रहे हैं कि आतंक का खत्म हो गया ............अबे रहने दे

दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी देश के मुखिया रहने दे ! आतंक को तुम

क्या तुम्हारे फ़रिश्ते भी ख़त्म नहीं कर सकते.........अबे इसकी जड़ें कहीं

बाहर नहीं मानव के भीतर हैं ..तुम अभी अभी जन्मे हो दो ढाई सौ साल

पहले, हम से मिलो, हम ज़्यादा पुराने ज्ञानी हैं । भली भान्ति जानते हैं कि

आतंक नाम का ये तत्व जब हिरण्यकश्यप के मरने से नहीं मरा, रावण

के मरने से नहीं मरा और कंस के मरने से भी नहीं मरा तो ओसामा जैसे

पिद्दी के मरने से क्या मर जाएगा ? और क्या तुम मरने दोगे कभी आतंक

को ? अरे तुम ख़ुद, हाँ हाँ तुम ख़ुद इतने बड़े ख़ूनी दरिन्दे हो कि कल को

फिर कोई नया चेहरा तैयार कर लोगे अपने स्वार्थ के लिए.............



तुम्हें नाचना है तो नाचो अमेरिका वालो ! मैं तो नहीं नाच सकता तुम्हारे साथ।

i am sorry about that


मैं तो इन्तेज़ार कर रहा हूँ गुड्डू की माँ का........कब वो आये

और कब चाय पिलाए....हा हा हा



चलते चलते एक शे'र हो जाये :

जिसे मरना था चुल्लू भर पानी में डूब कर

बाद
मरने के वो समन्दर में डुबाया गया

______वाह वाह तो बोलो यार !

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खुशदीप जी, प्रवीण शाह जी, अनवर जमाल जी, रचना जी समेत सभी ब्लोगर ध्यान दें ...वरना सारा मज़ा अकेला टिन्कूजिया ले जायेगा

चिकनगुनिया की चपेट में आने के कारण देह कुछ अशक्त हो गई है परन्तु

जैसे तैसे इस पोस्ट को लिख कर ही रहूँगाक्योंकि आज अगर मैं चुप रहा

तो मुन्नी मुफ़्त बदनाम हो जाएगी और शीला की जवानी का सारा मज़ा

अकेला टिन्कूजिया ले जायेगालिहाज़ा यह पोस्ट लिख कर अपना मत

व्यक्त कर रहा हूँ ताकि सनद रहे........और वक्त--ज़रूरत काम आये



खुशदीप सहगल आज ख़ुश नहीं हैं, उन तक पहुँचने के पहले मैं ज़रा

अविनाश वाचस्पति से बात कर लूँ परन्तु उनसे भी पहले हक़ बनता है

रचना का जिनकी टिप्पणियां पढ़ कर मैं अभिभूत हूँ


रचना जी ! कदाचित यह पहला मौका है जब आपकी बात मुझे सार्थक

और स्वीकार्य लगीअनेक ब्लोग्स पर आज आपकी टिप्पणियां पढ़ीं

जिनमे आपने पैसा लेकर प्रकाशन करने वाले कथित प्रकाशकों का बख़ूबी

ज़िक्र तो किया ही और भी जो कहा, अक्षरशः सही सटीक कहा

.........i like it so much



भाई नीरज जाट ! न्यूँ बता......यात्रा तो तू करै सै ......अर यात्रा वृत्तान्त का

पुरस्कार कोई और ले गया ...बुरा तो नई लाग्या ?


समीरलाल, निर्मला कपिला,दिगंबर नासवा, दीपक मशाल, ललित शर्मा,

दिनेशराय द्विवेदी, बी एस पाबला, गिरीश बिल्लोरे, रतनसिंह शेखावत,

खुशदीप सहगल, संगीता पुरी, राजीव तनेजा इत्यादि सम्मानित हुए अच्छा

लगा परन्तु शरद कोकस, अजित वडनेरकर, आशीष खंडेलवाल, राधारमण,

अलका मिश्रा, ताऊ रामपुरिया, परमजीत बाली, पं डी के वत्स, राज भाटिया,

योगेन्द्र मौदगिल, पंकज सुबीर, अनूप शुक्ल, इरफ़ान, श्यामल सुमन, प्राण

शर्मा, हरकीरत हकीर, अनवर जमाल जैसे अनेकानेक लोग हैं जिन्होंने हिन्दी

ब्लॉग जगत की ख़ूब सेवा की है, क्या उनके लिए किसी सम्मान अथवा

पुरस्कार की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए थी ? आज डॉ अरुणा कपूर जी के

ब्लॉग "बात का बतंगड़" में अनेक नाम छपे हैं जिन्होंने हिन्दी ब्लॉग को

पोषित पल्लवित किया हैक्या उनके योगदान को भुलाना कृतघ्न होना

नहीं है ? कोई तीन साल पहले जब मैंने ब्लॉग शुरू किया था तब " कुमायूं नी

चेली" पर एक बहन ( नाम याद नहीं) हाँ हाँ याद आया शेफाली पांडे... बहुत

ही बढ़िया और स्वस्थ हास्य-व्यंग्य लिखती थी, उसे भी याद नहीं किया

गया, घुघु बासूती, अनिल पुसदकर, बेंगाणी बन्धु भी भुला दिए गये...... ये

बात ज़रा कम ही समझ रही है लेकिन मैं इस विषय पर इसलिए नहीं

बोलूँगा क्योंकि बोलने के लिए कोई सुनने वाला भी ज़रूरी है और एक अदद

माइक भीइस वक्त दोनों ही हाज़िर नहीं है इसलिए अपन सीधे चलते हैं

अविनाश वाचस्पति के पास जिन्होंने मेरा मखौल उड़ा कर ये सिद्ध कर

दिया है कि वे जिस प्याले में चाय पीते हैं, उसमे पान की पीक थूकने का

हुनर भी जानते हैं



तो जनाब आदरणीय अविनाश वाचस्पति जी ! क्या लिखा था आपने अपनी

इक पोस्ट में अपरोक्ष रूप से मुझे निशाना बनाते हुए कि एक अलबेले

पुरस्कार आयोजक ने पुरस्कार समारोह रद्द करके पैसा भी कमा लिया और

प्रसिद्धि भी पा ली ...........आपने उसमे ये दर्शाया है कि 25,000/- का

पुरस्कार वोटों के आधार पर आप ही जीत रहे थे....लेकिन मैंने बहाना बना

कर रद्द कर दिया


जनाब ज़रा इस बात का पूरा खुलासा कीजिये तो मैं खुल कर जवाब दे

सकूँ ताकि सबको पता लगे कि वो मामला क्या थाखुशफ़हमी अच्छी चीज़

है लेकिन हकीकत आखिर हकीकत होती है और उसका सामना करने के

लिए अलबेला खत्री सदैव तत्पर हैमैं आज इस बात को इसलिए उठा रहा

हूँ क्योंकि आज तक आप समारोह में व्यस्त थे.........अब आओ और इस

अलबेले पुरस्कार दाता से बात करो............


ये अलबेला पुरस्कार वाला अपने इश्टाइल में काम करता हैपुरस्कार

ब्लॉग पर देता है और राशि घर बैठे भिजवाता हैदो बार तो आप भी लाभ

ले चुके हो आदरणीय ! फिर कैसे आपने मेरी विश्वसनीयता पर प्रश्न लगा दिया ?



जब मैंने कार्टूनिस्ट सुरेश शर्मा की कार्टून प्रतियोगिता को सहयोग किया

था तब से ले कर माँ के गीत पर 55,555/- रूपये के पुरस्कार तक की पूरी

यात्रा याद करो :
_____


अविनाश वाचस्पति दो बार

सीमा गुप्ता एक बार

रूपचंद्र शास्त्री एक बार

डॉ अरुणा कपूर एक बार

राजेंद्र स्वर्णकार एक बार

अनिल मानधनिया एक बार { शेष याद करके बताऊंगा }


इसके अलावा ग़ज़ल लेखन के लिए सोलह लोग एक बार

तीन लोग दो बार

पुरस्कृत हुए हैं और सबकी राशि उन्हें घर बैठे प्राप्त हुई हैवो भी ब्लॉग पर

घोषणा के 48 घण्टों के भीतर


बाकी बातें बाद में करेंगे, पहले आप अपनी बात साफ़ साफ़ कहें अविनाशजी !

मैं आपकी प्रतीक्षा करूँगा ..........कर रहा हूँ !



तो सम्मान्य खुशदीप जी आपने आज सबको राम राम करने की सोची है

यह मेरी समझ के बाहर इसलिए है क्योंकि मैंने देखा है जिन महिलाओं के

लहंगे में जुएँ पड़ जाती हैं, वे जूँ से घबरा कर लहंगा नहीं फेंकती, बल्कि

लहंगे को ख़ूब गरम पानी में उकाल कर जूँ मारती हैयही तरीका सही है

वरना कितनी बार लहंगा फेंकेगी इस मंहगाई में ?


खुशदीप जी ! ख़ुश होइए प्रभु की इस अनुकम्पा पर कि उसने आपको

बहुत बड़ी नियामत बख्शी हैकृपया उसका सम्मान करें और हम जैसे

अपने प्रशंसकों-पाठकों का ध्यान रखते हुए लेखन - ब्लॉग लेखन

हिन्दी में जारी रखिये अनवरत............आप मेरी पोस्ट पढ़ें पढ़ें, कभी

टिप्पणी दें दें कोई फ़र्क नहीं पड़तापरन्तु हिन्दी ब्लॉग पर असर

अवश्य पड़ेगा यदि आप इस समय ब्लॉग छोड़ कर गये


पता नहीं...बेख़ुदी में क्या क्या लिखे जा रहा हूँ.क्योंकि चिकन गुनिया ने

मुझे भी चिकन जैसा ही बना दिया है परन्तु रहा नहीं गया ..........तो भाई

कोई कहो जा कर अविनाश वाचस्पति से कि अलबेला ने याद फरमाया है

हा हा हा हा हा


चलते चलते चन्द शे' मार देता हूँ :


आग से आग बुझाने का हुनर रखते हैं

हम सितमगर को सताने का हुनर रखते हैं


मौत क्या हमको डराएगी अपनी आँखों से

मौत को आंख दिखाने का हुनर रखते हैं


कोई आँखों से पिलाता है तो कोई ओंठों से

हम तो बातों से पिलाने का हुनर रखते हैं


पाई है हमने विरासत में कबीरी यारो !

जो भी है पास, लुटाने का हुनर रखते हैं


_____पाठकजन से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी


-अलबेला खत्री


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