एक आलेख दुखी मन से.............
लोग कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है ।
मैं कहता हूँ दोहराता क्या, तिहराता और चौहराता भी है ।
हिन्दी ब्लोगिंग में इसका प्रमाण भी मिल रहा है ।
पहले इतिहास में चलते हैं । भक्त सुदामा जब अपनी पत्नी की
प्रेरणा अथवा जिद्द के कारण जब द्वारका पहुंचे अपने बालसखा
श्रीकृष्ण के पास, इस आशा में कि द्वारकाधीश उनकी सारी
दरिद्रता को अपने वैभव के एक कण मात्र के सहयोग से दूर कर
देंगे तो कृष्ण ने उनकी ख़ूब सेवा की, खिलाया-पिलाया, कीमती
पलंग पर सुलाया, यहाँ तक कि अपनी अश्रुधार से उनके मैले
चरण भी पखारे । लेकिन तीन दिन तक सेवा ही सेवा की, नकद
नारायण देकर उस गरीब की मदद करने का कोई उपक्रम नहीं
किया ।
जानते हो क्यों ?
क्योंकि सुदामा ने अपने दोस्त को वो नहीं दिया जो उसकी भाभी
ने भिजवाया था । सुदामा की पत्नी समझदार थी, वह जानती थी
किसी राजा और रिश्तेदार के यहाँ खाली हाथ नहीं जाना चाहिए,
इसलिए वह मांग-तांग के कुछ चावल लाई और एक पोटली बना
कर दे दी थी सुदामा को कि ये मेरे देवर और तुम्हारे सखा कृष्ण
को दे देना, लेकिन सुदामा द्वारकाधीश का वैभव देख कर
भौंचक्का रह गया और लघुग्रंथी का शिकार हो गया। उसने वो
पोटली शर्म के मारे इसलिए नहीं दी कि इत्ते बड़े राजा को
ये क्या दूँ ?
कृष्ण ने माँगा भी कि ला मेरी भाभी ने क्या भेजा,
मुझे दे...........लेकिन सुदामा ने नहीं दी । तीन दिन बाद जब
सुदामा ने देखा कि यहाँ खाली बातें ही बातें हैं मिलने-जुलने
वाला कुछ नहीं । तब उन्होंने उठाया अपना झोली - डंडा और
घर वापिस लौटने की तैयारी करने लगे । लेकिन मन में बड़ी
उदासी थी कि पत्नी को क्या जवाब दूंगा कि इत्ते बड़े सांवरे सेठ
के यहाँ से खाली हाथ आ गये ?
तब श्री कृष्ण ने कहा :
देता, उसको देत हूँ , सुनो सुदामा दास !
बिन दिए देऊं नहीं, चाहे फेरा फिरो पचास !!
अर्थात जो देता है , मैं उसीको देता हूँ । जो नहीं देता उसे मैं कुछ
नहीं देता, चाहे वो एक नहीं पचास चक्कर मार ले........फिर ख़ुद
ही छीन-छान कर वो पोटली खोली, चावल खाए और सुदामा
को मालामाल किया ।
ये प्रसंग सब जानते हैं । मैंने केवल इसलिए कहा कि हिन्दी
ब्लोगिंग में भी सब लोग कृष्णनुमा ही हैं । आप अगर ये वहम
पाल लो कि मेरा आलेख, मेरा विषय और मेरा अन्दाज़ उम्दा
है, लोग पढेंगे तो झख मार कर टिप्पणी और पसन्द देंगे....तो
भूल जाइए..........इसी में समझदारी है ।
आप कितना भी उम्दा लिखो, टिप्पणी उन्हीं से मिलेगी जिन
को आपने दी होगी । अगर आपने फलां फलां को उसकी पोस्ट
पर टिप्पणी नहीं दी है तो वो भी आपका आलेख मुफ़्त में पढ़
कर चला जाएगा ।
यानी ये टिप्पणियां एक प्रकार का व्यवहार है - आदान प्रदान है ।
इसके अलावा कुछ नहीं । जो व्यवहार कुशल है वो लिखता
कम और पोस्ट भी कम करता है, लेकिन टिप्पणियाँ
अन्धाधुन्ध करता है जिस कारण वो जब पोस्ट करता है तो लोग
भी दौड़े चले जाते हैं क़र्ज़ उतारने के लिए और उसकी पोस्ट को
हिट करने के लिए ।
होना भी ऐसा ही चाहिए........लिखिए कम, औरों को पढ़िए ज़्यादा -
लेकिन मेरी मजबूरी ये है कि मैं लिक्खाड़ ज़्यादा हूँ..........और ये
मानता हूँ कि जो समय मुझे सृजन के लिए मिला है, उसमे अगर
मैं लिखूंगा नहीं तो मेरी कमज़ोरी होगी ।
मैं तो आखिर तक लिखने का ही प्रयास करूँगा मेरे भाई ! हाँ
पढता भी हूँ और टिप्पणियां भी करता हूँ तथा सही टिप्पणियां
करता हूँ, इसके बावजूद पता नहीं मेरे आलेख पर नापसंद के
इत्ते चटके क्यों हैं ?
अरे यार ! कल और आज सुबह दो अलग अलग ब्लॉग पर जिन
दो पोस्ट में मैंने यह महत्वपूर्ण सूचना दी थी कि जिस
कवि/शायर को टी वी के बड़े प्रोग्राम का हिस्सा बनना हो, वह
अमुक व्यक्ति से अमुक नम्बर पर बात कर ले..........उस पोस्ट
ने किसी का क्या बिगाड़ा था जिसे नापसन्द के चटके लगा लगा
कर हॉट लिस्ट से बाहर कर दिया ।
कोई पढता तो ज़रूर किसी ना किसी का भला होता ।
आगे आपकी मर्ज़ी ।
हंसवाहिनी माँ हिंगलाज सबको सदबुद्धि दे ।
जय हिन्दी !
जय हिन्द !
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hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
9 comments:
"जो व्यवहार कुशल है वो लिखता कम और पोस्ट भी कम करता है, लेकिन टिप्पणियाँ अन्धाधुन्ध करता है जिस कारण वो जब पोस्ट करता है तो लोग भी दौड़े चले जाते हैं क़र्ज़ उतारने के लिए और उसकी पोस्ट को हिट करने के लिए।"
आप तो पोल खोल रहे हैं।
कृष्ण सुदामा की कथा पढ़कर बरबस याद आ गईं ये पंक्तियाँ
द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जू, आठहु जाम यहै जक तेरे।
जौ न कहौ करिहों तो बड़ौ दुख, जैहे कहाँ अपनी गति हेरे॥
द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँ, भूपति जान न पावत नेरे।
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कै, भेंट को चारि न चाउँर मेरे॥
यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसिन पास।
पाव सेर चाउँर लिये, आई सहित हुलास॥
सिद्धि सिरी गनपति सुमिरि, बाँधि दुपटिया खूँट।
माँगत खात चले तहाँ, मारग वाली बूट॥
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देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैंनन के जल सौं पग धोये॥
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कछु भाभी हमकौ दियो, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहौ केहि हेत॥
आगे चना गुरु-मात दये ते, लये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसकाय सुदामा सों, चोरि की बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने।
पाछिली बानि अजौं न तजी तुम, तैसेइ भाभी के तंदुल कीने॥
सुदामाचरित से
हा-हा, मैं भी आप ही की तरह व्यवहार कुशल नहीं हूँ खत्री साहब , यूँ समझिये कि आपसे भी गया गुजरा हूँ ! मैं तो इस रेटिंग-फेटिंग को ही ज्यादा महत्व नहीं देता था मगर अभी कुछ अरसे से मैंने नोट किया कि कुछ "खान" भाई लोग जबरदस्ती माइनस मार्किंग करके जा रहे है तब इस और ज्यादा ध्यान गया ! काल तो आपके माइनस में -१० पॉइंट दिख रहे थे जब मैंने एक प्लस लगाया तो -८ हो गया ! समझ में नहीं आया वह किस्सा !
खान शब्द ,मैंने इसलिए इस्तेमाल किया क्योंकि ऐसे ही एक खान को परसों मैंने रंगे हाथों पकड़ा था जब वह माइनस मार्किंग करने के बाद मेरे लेख पर टिपण्णी भी दे गया वह भी दुसरे कि टिपण्णी में से कुछ हिस्सा कट-पेस्ट करके !
फिलहाल लगता तो है कि यही है ब्लोगिंग का मर्म.. लेकिन देखिये मै आपको खोजता चला आया हूँ ... बिना आपके टिपण्णी किये हुए ... आपने कर्ज भी नहीं दिया था मुझे ... चलिए फिर पक्का रहा न मित्र ?? भूलना नहीं :)
पूरे लेख में एक ही शब्द 'मालामाल' ऐसा है जिसका कि फ़ांट छोटा है...कोई ख़ास वजह ?
@ dhnyavaad kaajal ji !
apne bhool ki taraf dhyan dilaaya...
vaastav me ye edit karte vakt kuchh gadbad ho gayi thi jiska mujhe pata nahin chala.......
ab sudhaar diya gaya.....
vaise ek baat kahoon,,,,kahna mat kisi se...
maala aur maal ko jitna kam karke dikhaao utne hi surakshit rahte hain ..ha ha ha ha
अलबेला सच... स्वार्थ के चाटने... यथार्थ की टिप्पणी और सुदामा के सखा.... बहुत खूब..!
बहुत बहुत साधुवाद ! प्रणाम !
आज आपने जो मेरी मदद करी है मैं तहे दिल से आपका आभारी हूँ ! बड़े भाई, आप अपना लेखन करते रहे यह + और - आपके लिए नहीं है !
इक बात तो कहनी पड़ेगी कि आप बहुत अच्छा लिखते है जिसे पढ़ने मे ब बहुत मजा आ जाता है, फिर पता नहीं क्यों कुछ लोगों को आपका लेख पसंद नहीं आता। ब्लॉग पढ़ने का मेरा शौक कुछ एक साल पहले ही पैदा हुआ है, और अब तो आदत हो गयी है, बड़ा आनंद आता है और बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। अभी तो छुट्टियाँ चल रही हैं इसलिए ज्यादा वक्त मिल जाता है पढ़ने के लिए, जब कॉलेज शुरू होंगे तो पता नहीं। क्या मैंने कुछ ज्यादा बोल दिया,,,
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