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Albela Khatri

तुम भी कभी जवान हुआ करती थी रचना !

आज तुम ढीली पड़ गई हो रचना !

इसलिए पीली पड़ गई हो रचना !

लेकिन

वो भी दिन थे ........

जब तुम भी जवान हुआ करती थी


तुम !

हाँ हाँ तुम !

तुम भी जब जवान हुआ करती थी

तो जोश का तूफ़ान हुआ करती थी


लोग

रात-रात भर आनन्द लूटते थे

सीटी बजाते थे, ताली पीटते थे

मैं जब तुम्हें गाता था

तो मज़ा जाता था



लेकिन प्रिये ! अब मैं तुम्हारी तरफ नहीं झांकता

क्योंकि आज का श्रोता तेरी कीमत नहीं आंकता

अब तुम जैसी हसीन ग़ज़लों का दौर कहाँ ?

अब तो मंचों पर टोटके चलते हैं

वही सुना रहा हूँ

जैसे तैसे अपनी

दुकान
चला रहा हूँ


ऐसा कह कर

मैंने अपनी एक पुरानी ग़ज़ल को चूमा

और सहेज कर रख दिया ऐसे

क़ब्र में

कोई मुर्दा रखा जाता है जैसे


जाने ऐसी और कितनी कोमल रचनाओं को

आलमारी की कब्र में दफ़नाना पड़ेगा

मुझ जैसे रचनाकार को कब तक यों ही

माइक पर चीखना - चिल्लाना पड़ेगा














www.albelakhatri.com

11 comments:

सलीम खान June 9, 2010 at 6:08 PM  

ohh ! ati-vedna me likhi gayee RACHNA!!!!!

संजय कुमार चौरसिया June 9, 2010 at 6:23 PM  

bahut badiya baat ki aapne

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

kunwarji's June 9, 2010 at 6:39 PM  

dard hi dard.....

kunwar ji,

आचार्य उदय June 9, 2010 at 6:47 PM  

आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।

आचार्य जी

पी.सी.गोदियाल "परचेत" June 9, 2010 at 7:12 PM  

अरे खत्री साहब ! आज तो आपकी दुकान पे चार चाँद लग गए,ज़रा बाहर ब्लोग्बानी वाली गली में तो आकर देखो !

अनामिका की सदायें ...... June 9, 2010 at 7:22 PM  

ek kavi ka dard acchhe se ukera hai aapne. sadhuwad.

Unknown June 9, 2010 at 7:29 PM  

@ अरे गोदियाल साहेब ये तो कुछ भी नहीं, जो आप को दिख रहा है वो तो केवल हरम के हिजड़ों का जूलूस है, असली चाँद देखने हों तो मेरे dashboard पर मिलेंगे जो मैंने सहेज कर रखे हैं, प्रकाशित नहीं किये......

लोगों ने ( जिन बेनामियों के माता पिता अज्ञात हैं ) ऐसे ऐसे प्रयोग किये हैं गालियों के कि मन करता है ताबीज बनाकर अपनी तमाम रचनाओं यानी कविताओं को पहना दूँ........

कुल मिला कर stat counter बुलन्दियों पर है...हा हा हा हा .बधाई हिन्दी ब्लॉग जगत को इतने पाठक मिलने के लिए !

ब्लॉ.ललित शर्मा June 9, 2010 at 7:56 PM  

सारे चांद रौशन होकर चमक रहे हैं।
अपनी आभा चहुं ओर बिखेर रहे हैं।

:):)

अमिताभ मीत June 9, 2010 at 8:09 PM  

अच्छा है भाई ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' June 9, 2010 at 8:45 PM  

वाह क्या पोल खोली है?
--
दिल की जुबाम होठों पर आ ही गई!

दिलीप June 9, 2010 at 8:49 PM  

ek kavi ka dard bade kareene se dikhaya sir...par itne napasand ke chatke kyun...

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