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Albela Khatri

हाल-ए-हिन्दोस्तान अब खस्ता है बाबा !





बस से बच गये तो ट्रेन ने मारा

पुलिया से छूटे तो क्रेन ने मारा


नेता के बे-ईमानी भरे ब्रेन ने मारा

उससे बचे तो हाय हेवी रेन ने मारा


हाल-ए-हिन्दोस्तान अब खस्ता है बाबा !

है पानी मंहगा पर लोहू सस्ता है बाबा !


आग है चारों तरफ़ फैली हुई

ज़िन्दगी की आस मटमैली हुई


हर तरफ़ छाया हुआ कोहराम है

खूंआलूदा सुबह है और खूंआलूदा शाम है


शर्म है

अफ़सोस है

है दुःख बहुत पर

बस में मेरे कुछ नहीं है

बस में मेरे कुछ नहीं है

बस में मेरे कुछ नहीं है


____________
जाएँ तो जाएँ कहाँ ?

____________
चैन अब पायें कहाँ ?



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12 comments:

Manish aka Manu Majaal September 21, 2010 at 8:23 PM  

बात तो आपने सही कही है, जिंदगी बीमारी ही है, मगर मौत भी तो कोई इलाज़ नहीं, इसलिए जब तक है, तब तक है, गाडी चलने दीजिये जहां तक चली जाए ...

गजेन्द्र सिंह September 21, 2010 at 8:24 PM  

"नेता के बे-ईमानी भरे ब्रेन ने मारा
उससे बचे तो हाय हेवी रेन ने मारा"

इन सब से बचकर आगे चले तो,
कॉमनवेल्थ कि ब्लू लेन ने मारा ...

अच्छी पंक्तिया लिखी है ...

इसे भी पढ़े और कुछ कहे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/86.html

समय चक्र September 21, 2010 at 9:02 PM  

बस से बच गये तो ट्रेन ने मारा
पुलिया से छूटे तो क्रेन ने मारा

वाह क्या सटीक बात है ...बढ़िया प्रस्तुति...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' September 21, 2010 at 9:21 PM  

बस में मेरे कुछ नहीं है
____________जाएँ तो जाएँ कहाँ ?
____________चैन अब पायें कहाँ ?

--
हाँ जी!
ठीक ही कह रहे हो!
--
सब बढ़ती उमर का कमाल है!

M VERMA September 21, 2010 at 9:43 PM  

सामयिक और कड़वा सच

Anonymous September 22, 2010 at 2:51 AM  

वर्तमान की हकीकत ब्याँ करती रचना......
बढिया!!

अमिताभ मीत September 22, 2010 at 7:27 AM  

चैन नहीं है कहीं भाई ....

वैसे ये है किस चिड़िया का नाम ? कुछ अजीब सा नहीं लगता ??

निर्मला कपिला September 22, 2010 at 3:29 PM  

हाल-ए-हिन्दोस्तान अब खस्ता है बाबा !

है पानी मंहगा पर लोहू सस्ता है बाबा !
कहीं चैन नही है। बहुत खूब रचना अच्छी लगी। बधाई।

Urmi September 22, 2010 at 4:39 PM  

बस से बच गये तो ट्रेन ने मारा
पुलिया से छूटे तो क्रेन ने मारा
नेता के बे-ईमानी भरे ब्रेन ने मारा
उससे बचे तो हाय हेवी रेन ने मारा..
बिल्कुल सही बात का ज़िक्र किया है आपने! अब क्या किया जाए! इसी तरह जीना होगा और जब तक जियेंगे हँसी ख़ुशी और बिंदास रहेंगे फिर चाहे मौत क्यूँ न आ जाए उसका सामना करेंगे!

कुमार राधारमण September 22, 2010 at 7:38 PM  

अजी चैन कहां। बस थोड़ा इंतज़ार और। फिर और बेचैनी बढ़ेगी जब आप देखेंगे कि राष्ट्रमंडल को किस-किस ने मारा।

Asha Joglekar September 25, 2010 at 12:25 AM  

हाल ए हिन्दोस्तान वाकई खस्ता है । आप की रचना सुंदर पर दर्द देने वाली है ।

Asha Joglekar September 25, 2010 at 12:27 AM  

हाल-ए-हिन्दोस्तान अब खस्ता है बाबा !
सुंदर सचाई बयां करती रचना ।

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