प्यारे मित्रो !
आज से हम एक खेल शुरू कर रहे हैं । इस खेल में आप खुल कर भाग
लीजिये तथा वाह वाही के साथ साथ पॉइंट्स के आधार पर नगद
पुरस्कार भी अपने नाम कीजिये ।
खेल बहुत सरल है और सभी लोग आराम से खेल सकते हैं
करना सिर्फ़ इतना है कि "मोहब्बत" लफ़्ज़ से शुरू होने वाले कुछ
शे'र आपको याद करने हैं और भिजवाने हैं । यों तो प्रत्येक स्वीकृत
शे'र पर 100 पॉइंट्स दिए जायेंगे लेकिन स्वरचित अथवा
मौलिक शे'र पर 100 अतिरिक्त पॉइंट्स भी दिए जायेंगे । ये
पॉइंट्स www.albelakhatri.com में आपके नाम जोड़ दिए जायेंगे
जिसके आधार पर आप 2500, 2000 या 1500 रूपये के मासिक
पुरस्कारों के अधिकारी तो बनेंगे ही, रूपये 500 का विशेष पुरस्कार
तुरन्त भी प्राप्त कर सकेंगे जो सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी प्रतियोगिता के
लिए होगा ।
ऐसी स्पर्धाएं अब यहाँ चलती रहेंगी और आप उसमें भाग लेते रहेंगे,
ऐसा मुझे विश्वास है ।
शर्तें व नियम :
प्रत्येक सहभागी का www.albelakhatri.com पर पंजीकृत होना
ज़रूरी है । साथ ही सहभागी के ब्लॉग या वेब पेज पर ओन लाइन
टेलेंट सर्च का ये लिंक कोड होना भी ज़रूरी है : वोह आप को
www.albelakhatri.com की वेबसाइट पर मिल जायेंगा
तो आइये, लगाइए दिमाग, कीजिये याद और पढ़े-पढाये, सुने-सुनाये
या स्वरचित शे'र तुरन्त टिप्पणी के रूप में भेजें ।
एक सहभागी जितने चाहे उतने शे'र भेज सकता है और जितनी बार
चाहे उतनी बार भेज सकता है । हर बार हर शे'र उन्हें 100 पॉइंट्स
दिलाएगा । लेकिन अगर एक ही शे'र को एक से अधिक लोग भेजते हैं
तो जिन महानुभाव का शे'र पहले प्राप्त होगा वो स्वीकृत होगा और
बाद में प्राप्त अस्वीकृत माना जाएगा ।
शे'र के साथ शायर का नाम या नाम ज्ञात न होने पर उसका प्राप्ति
स्रोत लिखना अनिवार्य होगा ।
तो आओ करें शेरो-शायरी
और
कमायें नगद राशि के साथ साथ वाह वाही
http://albelakhari.blogspot.com/2010/10/25001500-1000.html
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
23 comments:
हमे तो भाई शेर आते नही, क्या करे ?
स्व-रचित गीत का एक अंश: (चल जायेगा क्या?? :))
मोहब्बत इबादत में ऐसा रहा है
दर्द हो किसी का, किसी ने सहा है..
ये बात तुमको पता ही कहाँ थी,
किसने किससे कब क्यूँ कहा है.
-समीर लाल ’समीर’
@आदरणीय राज भाटिया जी,
ये तो कैसे संभव है कि आप जैसे मूर्धन्य महानुभाव को मोहब्बत का कोई शे'र याद न हो......
याद करो प्रभु याद करो !
मोहब्बत लफ्ज़ से शुरू होने वाला कोई शे'र याद करो और लिख भेजो..........
उदाहरण के तौर पर...........
मोहब्बत में निगाहों से ज़ुबां का काम लेते हैं
सनम की बात करते हैं,ख़ुदा का नाम लेते हैं
एक और आपकी नज़र: (स्च-रचित कैटेगरी में)
मोहब्बत में दगा खाके, अबके हम यूँ जीते हैं
पहले शाम को पीते थे, अब सुबहु से पीते हैं...
शायर: समीर लाल ’समीर’;
@ समीरलालजी !
चलेगा क्या दौड़ेगा............
शे'र, दोहा;चौपाई, रुबाई,मुक्तक,गीत,छन्द अथवा अन्य कोई भी विधा का काव्य चलेगा...
यहाँ कोई भेद नहीं है एकात्मता हमारे में हो न हो, साहित्य में तो रहनी ही चाहिए
फिर स्वरचित की तो बात ही अलग है _ और भी भिजवायें, जितनी ज़्यादा रचनाएं भेजेंगे उतना अधिक सक्रिय ये वातावरण होगा और स्पर्धा का आनन्द आएगा - मज़ा तो तब है जब हर साथी आज विजयी होने का प्रयास करे ताकि कल और ज़्यादा मज़ा आये.........
शुभ कामनाएं
बहुत बहुत शुभ कामनाएं
स्व रचित कैटेगरी में समर्पित:
मोहब्बत में दिवानी का, दिखा जब बाप तब जागे.
उधर से वो निकल भागी, इधर से हम निकल भागे.
-समीर लाल ’समीर’
badhiya cheej laaye hai aap .
badhiya chalega .
आज का अंतिम:
स्व रचित कैटेगरी में समर्पित:
मोहब्बत में जहाँ खुशियाँ, वहीं पर गम भी जीते हैं..
नहीं व्हिस्की ही बस च्वाईस, कभी हम रम भी पीते हैं.
-समीर लाल ’समीर’
कोई हास्य कवि ही मोहब्बत की प्रतियोगिता करवा सकता था!
मोहब्बत चीज़ क्या है हमने ये जाना नही
मिली महबूबा लेकिन उसने पहचाना नही ।
स्व रचित कैटेगरी में समर्पित:
मोहब्बत में बुरा लगता है, कुछ इस तरह से चोट का खाना,
पहले वो महबूबा थी हमारी, आज बच्चे उसके कहते हैं मामा
-समीर लाल ’समीर’
अल्बेला जी, शेरो शायरी की कोई बढिया सी किताब तो बताईये...ताकि हम भी पढ कर अपनी ओर से कुछ योगदान दे सकें :)
ये तो बताया नही कितने दिनो तक चलेगी ये प्रतियोगिता और कब तक भिजवाने हैं।
स्वरचित--------
मोह्ब्बत मोहब्बत करता रहा
गीत यही गुनगुनाता रहा
जब मोहब्बत हुयी तो जाना
मोहब्बत करना बच्चों का खेल नही
जब भी चली मोहब्बत की पुरवाई
हर बीते लम्हे के साथ तेरी याद आई
चलिए 'बिस्मिल' जी का एक शेर हम भी सुनाए देते हैं......
"नतीजा जीने मरने का मिला क्या
न था दुनिया में कुछ दुनिया में था क्या
बजा करती है दोनो हाथ ताली
बनावट में मोहब्ब्त का मजा क्या
तडपते हैं गमे उल्फत में हर पल
नहीं मालूम हमको हो गया क्या !!"
आदाब अर्ज है :)
Jai ho.
यह मेरा मौलिक अर्थात स्वरचित शेर है....
अर्ज किया है.....
मोहब्ब्त को खुदा कहते है लोग....
क्यों कि खुदा ही की तरहा....
न मिलती है, न दिखती है कभी...
फिर भी इबादत होती है इसकी....
हाथ कभी न आती....
सिर्फ उसके होने का अहसास ही.....
मन में लिए, जीए जाते है लोग!
बने हैं प्रीत के क्रेता,
जमाने भर के सौदागर।
मुहब्बत है नही सौदा,
सितम होता नहीं उन पर।
--
यह मेरा स्वरचित शेर है!
मुहब्बत की डोरी को ज्यादा न खींचो,
ये धागा है कोई रबड़ तो नही है!
इसे प्यार और नेह से रोज सींचो,
ये जिन्दा है दिल कोई जड़ तो नही है!
अभी जो शेर भेजा है वह भी मेरा ही स्वरचित है!
महोब्बत रहे महोब्बत, तो बेहतर 'मजाल',
क्यों कीमत लगाकर, उसकी कीमत घटाइए ?
बधाई सभी टिप्पेदारों को ! लीजिए एक कोशिश मेरी तरफ से भी ..
अर्ज है .........
मोहोब्बत दो दिलों के बीच इक जंजीर जैसी है
सम्हल कर चल मोहोब्बत दोमुही शमशीर जैसी है
मोहोब्बत जात-ओ-मज़हब से कहीं ऊंची खुदाई है
दिलों के शहंशाहों के लिए तकदीर जैसी है ...
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मैं शेर और शायरी का शौकीन हूं और कुछ संग्रह कर रखता भी हूं।
सुनील चिंचोलकर
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