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Albela Khatri

काश ! भारत के भ्रष्ट राजनेता सूरत के महमूद रिक्शा वाले से ही कुछ सबक ले लें

बात बहुत छोटी सी है, लेकिन महत्वपूर्ण है

कल सुबह-सुबह 4 बजे जब मैं ट्रेन से उतरा तो सूरत में बहुत तेज़

बारिश
हो रही थी स्टेशन परिसर में भी पानी भर गया था

यात्रियों की तकलीफ़ देखते हुए ऑटो रिक्शा वाले अन्दर तक

गये थे और मनमर्ज़ी के पैसे वसूल रहे थे मेरे घर का किराया कुल

20 रुपया ही होता है लेकिन कोई 40 से कम में आने को तैयार

नहीं था


एक बार तो मुझे बुरा लगा, गुस्सा भी आया फिर सोचा, मौके का

लाभ कौन नहीं उठाता - इत्ती बारिश में भीग रहा है तो उसका हक़

भी बनता है...मैंने रिक्शा कर लिया और रवाना हो गया घर पहुँचते

पहुँचते जब मैंने देखा कि बारिश बहुत ही तेज़ है और रिक्शा वाला

बड़ी मुश्किल से रिक्शा चला पा रहा है तो मुझे उससे थोड़ी हमदर्दी

हो गई


घर पहुँच कर मैंने उसे बीस का नोट दिया तो बोला - साहेब ! ये

क्या है ? मैं बोला - ये तुम्हारा रिक्शा भाड़ा, फिर मैंने उसे 50 का

नोट दिया और कहा ये तुम्हारा मेहनत का मुआवज़ा और फिर

100 रूपये और देकर कहा - इनसे अपने बच्चों के लिए मिठाई ले के

जाना तो वो भौचक्का रह गया - साहेब ! कमाल करते हैं आप !

लोग तो 5-5 रूपये के लिए हम से झगड़ा करते हैं और आप इत्ता पैसा

अलग से दे रहे हैं, सच कहता हूँ साब ! महमूद भाई को तेविस साल

हो गयेला है रिक्शा चलाते हुए पण आप जैसा पैसेन्जर नहीं देखा ...



मैंने कहा - महमूद भाई ! मैंने भी भगवान जैसा कोई दयालु नहीं देखा

जो मेरी दो कौड़ी की लफ्फाज़ी के लिए मुझे हज़ारों रुपया दिलाता है

वरना कोई मुझे 100 रूपये रोज़ाना पर भी काम पे रखे.......उसने

मुझे शुक्रिया कहा - मैंने उसे गले लगा लिया और दोनों अपनी

अपनी राह हो लिए वो अपनी राह निकाल लिया, मैं घर गया



घर कर सबसे पहले कम्प्यूटर ओन किया, मुँह हाथ धोया और

सोये हुए गुड्डू को चूमा तब ख्याल आया कि एक मोबाइल नहीं है

.........
मेरे होश उड़ गये ..क्योंकि वह मंहगा मोबाइल था और मुझे

प्रिय होने के अलावा सब नम्बर वगैरह भी उसी में थे...........


मैंने तुरन्त दूसरे मोबाइल से नम्बर मिलाया तो तीन घंटी के बाद

किसी ने उठाया फोन उठाने वाला वही था महमूद भाई रिक्शा

वाला ! मुझसे बोला साहेब नीचे जाओ.........मैंने जिधर आपको

उतारा था,उधर ही खड़ा हूँ...........मैं तुरन्त गया और देखा - रिक्शा

खड़ा है और महमूद भाई इन्तेज़ार कर रहा है उसने मुझे मोबाइल

दिया सो तो दिया, उसके साथ जो दिया उसने तो मेरे पसीने निकाल

दिए क्योंकि वो मेरा पर्स था और उसमे लगभग 30 हज़ार रूपये

थे कार्ड-वार्ड जैसे पोदीने अलग


मैंने अभिभूत हो कर बतौर शुकराना उसे हज़ार रूपये देने चाहे,

लेकिन उसने साफ़ मना कर दिया बोला - अब कुछ नहीं लेगा साब !

पहले आपने दिया तो मैंने अपनी मेहनत का इनाम समझ कर ले

लिया, लेकिन अभी तो बात ईमान का है और ईमान का कोई रोकड़ा

इनाम नहीं होता...........कह कर उसने रिक्शा स्टार्ट कर लिया



वो चला गया और मैं सोच रहा था कि काश ! इस देश के भ्रष्ट

राजनेता ऐसे महमूद भाइयों की तरह देश का काम करने लगे

तो देश कितना आगे बढ़ जाये

ज़िन्दाबाद महमूद भाई !

10 comments:

संगीता पुरी October 22, 2010 at 11:31 AM  

काश ! इस देश के भ्रष्ट

राजनेता ऐसे महमूद भाइयों की तरह देश का काम करने लगे

तो देश कितना आगे बढ़ जाये ।

ज़िन्दाबाद महमूद भाई !

इस तरह के वाकये प्रत्‍येक शहर और मुहल्‍ले मुहल्‍ले में देखने को मिल जाएंगे .. मेरे मोबाइल में एक ऑटो रिक्‍शा और एक टैक्‍सी ड्राइवर के मो नं सेव रहा करते है .. संयोग की ही बात है कि दोनो ही मुस्लिम हैं , पर जब भी कहीं अकेले जाने के वक्‍त इनमें से किसी की जरूरत पडती है .. पूरे विश्‍वास से इन्‍हें बुलाकर इनके साथ चली जाती हूं .. बच्‍चों तक को अकेले इनके साथ घर या कहीं और भेज दिया है .. उनकी ईमानदारी पर कभी शक नहीं हुआ .. ऐसे वाकयों से तो नेताओं को सीख लेनी ही चाहिए .. जो कुछ वोटों के लालच में दोनो के मध्‍य तकरार पैदा करते हैं .. मुस्लिमों को भी अपने वोटों का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" October 22, 2010 at 11:36 AM  

नेतावों के लिए पहले एक ईमान की खेती उगानी पड़ेगी !

Patali-The-Village October 22, 2010 at 11:50 AM  

ऐसे ही इमानदार लोगों के भरोसे दुनियां चल रही है|

RAJENDRA October 22, 2010 at 12:17 PM  

भैया खत्रीजी आप केसे भूल गये ऐसे महमूद भाई का फोटो लेना आपके महंगे मोबाइल में इतनी सुविधा तो होगी - आपकी खबर को इससे एक अच्छा आयाम मिलता

Unknown October 22, 2010 at 12:44 PM  

@राजेन्द्रजी !

आपने ठीक कहा, महमूद भाई का फोटो लेने की सुविधा तो मोबाइल में होगी ही...........

मज़े की बात ये है कि मैंने उसके फोटो लिए भी हैं लेकिन मोबाइल में से निकाल कर कम्प्यूटर में डालने की कला मैं नहीं जानता इसलिए लगा नहीं पाया ...हा हा हा हा

इसे कहते हैं अंधे के हाथ बटेर लगना ...हा हा हा

उस्ताद जी October 22, 2010 at 1:22 PM  

7.5/10

बहुत सुन्दर पोस्ट
विलुप्त प्रजाति के इंसान से मुलाक़ात बेहद पसंद आई.
ऐसे वाक्यात इंसानियत व ईमान पे भरोसा और ज्यादा पुख्ता करते हैं.

M VERMA October 22, 2010 at 5:14 PM  

बहुत प्रेरक प्रसंग है...
कमी नहीं है ईमानदारी की .. पर बेईमान भी बहुत हैं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 22, 2010 at 6:33 PM  

बहुत सुन्दर पोस्ट!
प्रशंसा के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं!

ब्लॉ.ललित शर्मा October 22, 2010 at 6:40 PM  

वाह भाई जी, आपने सुरत स्टेशन की याद दिला दी। एक बार मैं 24 घंटे फ़ंसा रहा हूँ बरसात में।:)
महमूद जैसे लोग बिरले ही मिलते हैं जिनके दम पर दुनिया कायम है।
और आप जैसे दिलदार भी। नहीं तो रिक्शे वाले की चमड़ी खींचने वाले लोग भी हैं इसी दुनिया में हैं।
(चोखो होवतों मोबाईल चलो ही जातो तो, बैंयां भी थारो फ़ोन कोई काम को कोनी म्हारे लिए तो।)

राम राम

राजीव तनेजा October 22, 2010 at 9:35 PM  

ये सच है कि हमारा देश भ्रष्टाचारियों से...दुराचारियों से...लम्पटों से भरा पड़ा है..ऐसे माहौल में भी ये जान के फख्र महसूस होता है कि हमारे यहाँ कुछ लोगों का ईमान अभी भी ज़िंदा है...

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