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Albela Khatri

हिन्दी कवि-सम्मेलनों में अब कविता चोरों का बोलबाला कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया है




एक समय था जब हिन्दी कवि-सम्मेलनों में प्रस्तुति देने वाले सभी कवियों की 

अपनी एक अलग पहचान होती थी. लोग केवल अपनी  लिखी कवितायेँ ही सुनाते 

थे और  अपनी ही टिप्पणियां  बोलते थे...परन्तु  तालियों की गडगडाहट और  

नोटों की खडखडाहट के आकर्षण ने  पिछले कुछ वर्षों में ऐसे बहुत से लोगों को 

मंच पर खींच लिया जो  बेचारे ख़ुद तो लिख नहीं पाते परन्तु दूसरों की रचनाओं 

को तोड़ मरोड़ कर  अपने अंदाज़ में सुना ज़रूर देते हैं . आज  मंचीय  

कवि-सम्मेलनों की स्थिति  धीरे धीरे यहाँ तक आ गयी है  कि  मौलिक 

रचनाकार  माइक पर  अपनी  बेहतरीन रचनाएं सुनाते हुए भी डरता है  कि 

कहीं  उसकी  रचना को चुरा कर  कोई  दूसरा  अपनी आइटम न बनाले...

चुटकुले, टिप्पणियां, शे'र शायरी और  मंच संचालन  तो इतने कॉमन हो गए हैं  

कि सिर्फ चेहरे बदलते हैं, पेमेंट बदलते हैं और कवियों के नाम भर बदलते हैं . 

बाकी मसाला वही रहता है चाहे कवि-सम्मेलन कोई भी कराये और कहीं  भी 

कराये. वैसे तो मैं इसका कई बार  शिकार हुआ हूँ  लेकिन  अब तो मामला 

हद से आगे जा पहुंचा है . क्योंकि  पहले केवल हास्य-चुटकियाँ ही चोरी होती 

थीं, अब तो कवितायें और निबन्ध भी....गत दिनों सागर विश्वविद्यालय में 

सम्पन्न एक  विराट कवि-सम्मेलन में एक कवि अशोक सुन्दरानी ने जिस 

कविता पर सर्वाधिक  तालियाँ बटोरीं, उस कविता  का पूरा ताना बना  ही 

मेरे आलेख से चुराया गया है . भले ही जूते को लेकर उस कविवर सुन्दरानी 

ने कुछ और बातें जोड़  दी हों, परन्तु  जहाँ  से उसमे कविता का तत्व  मुखर 

होता है वह पूरा  आलेख मेरा है . चूँकि मैं भी उस मंच पर मौजूद था  और 

चाहता तो विरोध कर सकता था ..तमाशा  खड़ा कर सकता था  लेकिन मैंने 

ऐसा न करके  अपरोक्ष रूप से शर्मिन्दा करने के लिए  मैंने उस  कवि को  

उसकी प्रस्तुति पर  गुलदस्ता भेंट  किया ...हा हा हा 



अब मैं आपको बताता  हूँ कि  मेरे पास मेरी बात का सुबूत  क्या है. दरअसल 

बात कोई चार  साल पुरानी है.  उन दिनों  मैं  सूरत के हिन्दी दैनिक राजस्थान 

पत्रिका  और लोक तेज़ में रोज़ाना व्यंग्य आलेख  लिखता था . तब मैंने  एक 

लेख  उस दिन लिखा था जिस दिन पहली बार सभा में जूता उछाला गया था . 

वह आलेख  छपा हुआ भी मेरे पास है  इसके अलावा मैंने ब्लोगिंग की  

शुरूआत के दिनों में उसे इसी ब्लॉग पर पोस्ट किया था  तथा बाद में मेरे ही 

दूसरे ब्लॉग पर भी  लगाया था . आज वही  आलेख एक बार फिर से.....

हालाँकि आलेख कोई बहुत  धाकड़  नहीं है  लेकिन सामयिक  विषय को 

देखते हुए  ठीक ही था .  लीजिये पढ़िए....आपके लिए एक बार फिर हाज़िर है : 

माहौल बहुत गर्म था। गर्म क्या था, उबल रहा था। वक्ताओं द्वारा लगातार

असंसदीय भाषा का प्रयोग करने से सदन में संसद जैसा दृश्य उपस्थित

हो चुका था। सभी को बोलने की पड़ी थी, सुनने को कोई राजी नहीं था।

गाली-गलौज़ तक पहुंची बहस किसी भी क्षण हाथा-पाई में भी तब्दील

हो सकती थी। तभी अध्यक्षजी  अपनी सीट पर खड़े हो गए और माइक

को अपने मुंह में लगभग ठूंसते हुए बोले, 'देखिए.. मैं अन्तिम चेतावनी

यानी लास्ट वार्निंग दे रहा हूं कि सब शान्त हो जाएं क्योंकि हमलोग यहां

शोकसभा करने के लिए जमा हुए हैं, मेहरबानी करके इसे लोकसभा

न बनाइए। प्लीज..अनुशासन रखिए और यदि नहीं रख सकते तो

भाड़ में जाओ, मैं सभा को यहीं समाप्त कर देता हूं।



अगले ही पल सब

शान्त हो चुके थे। मानो सभी की लपर-लपर चल रही .जुबानों को

एक साथ लकवा मार गया हो। अवसर था अखिल भारतीय जूता महासंघ

के गठन का जिसकी पहली आम बैठक में भाग लेने हज़ारों जूते-जूतियां

एकत्र हुए थे।



एक सुन्दर और आकर्षक नवजूती ने खड़े होकर माइक संभाला,

'आदरणीय अध्यक्ष महोदय, मंच पर विराजमान विदेशी कंपनियों के

सेलिब्रिटी अर्थात्‌ महंगे जूते-जूतियों और सदन में उपस्थित नए-पुराने,

छोटे-बड़े, मेल-फीमेल स्वजनों.. मेरे मन में आज वैधव्य का दुःख तो

बहुत है, लेकिन ये कहते हुए गर्व भी हो रहा है कि मेरे पति तीन साल

तक लगातार अपने देश-समाज और स्वामी की सेवा करते हुए अन्ततः

शहीद हो गए। उनका साइज भले ही सात था लेकिन मजबूत इतने थे कि

दस नंबरी भी शरमा जाएं।



सज्जनो, जिस दिन उनका निर्माण हुआ, उसके अगले ही दिन एक बहादुर

फौजी के पांवों ने उन्हें अपना लिया। भारतीय सेना का वो शूरवीर सिपाही

लद्दाख और सियाचीन जैसी बर्फ़ीली जगहों पर तैनात रह कर जब तक

अपनी सीमाओं की रक्षा करता रहा तब तक मेरे पति ने जी जान से उनके

पांवों की रक्षा की। गला कर बल्कि सड़ा कर रख देने वाली बर्फ़ीली

चट्टानों और भीतर तक चीर देने वाली तेज़-तीखी शीत समीर से

जूझते हुए वे स्वयं गल गए, गल-गल कर खत्म हो गए परन्तु अपनी

आख़री सांस तक अपने स्वामी के पांवों को ठंडा नहीं होने दिया। मुझे

अभिमान है उनकी क़ुर्बानी पर और मैं कामना करती हूं कि हर जनम

में मुझे पति के रूप में वही मिले चाहे हर बार मुझे भरी जवानी में ही

विधवा क्यूं न होना पड़े, इतना कह कर वह जूती सुबकने लगी।

पूरा सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। किसी ने नारा लगाया,

जब तक सूरज चान्द रहेंगे, जूते जिन्दाबाद रहेंगे।



एक अन्य मंचासीन जूता बोला, 'भाइयो और बहनो, आदिकाल से लेकर

आज तक, मानव और जूतों का गहरा सम्बन्ध रहा है। हमने सदा

मानव की सेवा की है और बदले में मानव ने भी हमारा बहुत ख्याल

रखा है, अपने हाथों से हमें पॉलिश किया है, कपड़ा मार-मार कर

चमकाया है यहां तक कि मन्दिर में भी जाता है तो भगवान से ज्य़ादा

हमारा ध्यान रखता है कि कोई हमें चुरा न ले, उठा न ले। मित्रो, त्रेतायुग

में तो हमारे पूज्य पूर्वज खड़ाउओं ने अयोध्या के सिंहासन पर बैठकर

शासन भी किया है। लेकिन आज हमारी अस्मिता संकट में है।

हम मानवोपकार के लिए सदा अपना जीवन अर्पित करते आए हैं, लेकिन

आज घृणित राजनीति में घसीटे जा रहे हैं और सम्मान के बजाय उपहास

का पात्र बनते जा रहे हैं।  कोई असामाजिक तत्व हमारी माला बनाकर

महापुरुषों की प्रतिमा पर चढ़ा देता है तो कभी कोई हमारे तलों में हेरोइन

या ब्राउन शुगर छिपा कर तस्करी कर लेता है। आजकल तो हम हथियार

की तरह इस्तेमाल होने लगे हैं, जब और जिसके मन में आए, कोई भी

हमें किसी नेता पर फेंककर ख़ुद हीरो बन जाता है और हमारे कारण

दो दो वरिष्ठ नेताओं की राजनीतिक हत्या हो जाती है बेचारे सज्जन लोग

टिकट से ही वंचित हो जाते हैं। इतिहास साक्षी है, हम अहिंसावादी हैं।

हम न अस्त्र हैं, न शस्त्र हैं लेकिन ये हमारी प्रतिभा है कि अवसर पड़े तो

हम दोनों तरह से काम आ सकते हैं। हमारी इसी योग्यता का लोगों ने

मिसयूज किया है। हमें......शोषण और अत्याचार के विरूद्ध

आवाज़ उठानी होगी।



हां, हां, उठानी होगी, सबने एक स्वर में कहा


इसी तरह और भी अनेक मुद्दे हैं जिनपर हमें एकजुट होकर काम

करना पड़ेगा और अपने हक के लिए संगठित होकर संघर्ष करना

पड़ेगा। जय जूता, जय जूता महासंघ।



सदन में तालियों के साथ नारे भी गूंज उठे

- जूतों तुम आगे बढ़ो जूतियां तुम्हारे साथ है,

हिंसा से अछूते हैं - हम भारत के जूते हैं....इन्क़लाब-ज़िन्दाबाद ! 

http://hindihasyakavisammelan.blogspot.com/2011/06/blog-post_07.html

लायंस क्लब ऑफ़ मालेगांव  के वृक्षारोपण अभियान में  मुख्य अतिथि  अलबेला खत्री  अन्य  समाजसेवियों के साथ पौधे  रोपते हुए 





बिफ़रने के बाद तो मेरा बाप मुझे काबू न कर सके, चैनल वालों की तो बिसात ही क्या ? मैंने वहां रौला पा दिया




बहुत से दर्शकों को याद है  कि  एक टीवी प्रोग्राम में  मेरा और राखी सावंत का 

ज़बरदस्त झगड़ा हुआ था और अंततः  राखी  के षड़यंत्र को कुचलते हुए मैंने  

वह मुक़ाबला  जीता था . हालांकि बात पुरानी हो चुकी है  परन्तु अनेक लोग  

उसके बारे में कुछ न कुछ पूछते रहते हैं . इसलिए आज  मैं  स्वयं  बताता हूँ 

कि सोनी टीवी पर एक प्रोग्राम आता था  "कॉमेडी का बादशाह-हसेगा इण्डिया" 

जिसके सूत्रधार और निर्णायक थे  राजू श्रीवास्तव और राखी सावंत  जबकि 

एक निर्णायक अतिथि कलाकार होता था .  प्रोग्राम का फोर्मेट  ऐसा था  कि  

दो कलाकार  दो-दो बार  अपनी हास्य प्रस्तुति देते थे  जिसके दृष्टिगत  तीनों 

निर्णायक  दोनों चरणों में  अंक देते थे . अंत में जिस प्रतियोगी  के अंक ज्यादा 

होते थे वह खेल में बना रहता  और  दूसरा खेल से बाहर हो जाता .  प्रस्तुति  

नॉन स्टॉप होती थी  जिसमे रिटेक  के चांस नहीं थे . प्रत्येक कलाकार  को 

प्रत्येक चरण में कम से कम 20  मिनट की  प्रस्तुति देनी होती थी. 



यह प्रोग्राम पूरी तरह से भारतीय था  और भारतीय कलाकारों के बीच  ही 

स्पर्धा होती थी . जितने वाले को  कॉमेडी का बादशाह की पगड़ी  पहनाई जाती . 

प्रोग्राम बनाने वालों ने मुझे भी बुलाया था सो अपन  भी चले गए . अब चले 

गए तो चले गए ...यार  कोई पाप थोड़े कर लिया !  लोग तो मशहूर होने  के 

लिए किसी भी  हद तक चले जाते हैं, मैं तो सिर्फ़  कॉमेडी शो में ही गया था 

...हा हा हा हा खैर.....उन दिनों मेरे पुराने मित्र वी आई पी का जलवा था उस 

प्रोग्राम में........वह  तीन-चार  मुक़ाबले लगातार  जीत चुका था  परन्तु  

अंततः कलकत्ता के कृष्ण सोनी से  पराजित  हो गया . इसी कृष्ण सोनी के

साथ मेरा पहला एपिसोड था  जिसे मैंने  सहज ही जीत लिया था . लेकिन 

हार-जीत को हम दोनों ने ही  खेल का हिस्सा मान कर  बस प्रस्तुति का 

मज़ा लिया . इसके बाद एक मुकाबला  और मैंने फ़तेह किया जिसके बाद  

अचानक  चैनल वालों का मूड बदल गया और उनहोंने  इस भारतीय प्रोग्राम 

को  इंडो-पाक  मुकाबला बनाते हुए  पाकिस्तानी कलाकार बुला लिए  व  

एक निर्णायक भी पाकिस्तानी  काशिफ़ आरिफ़ को नियुक्त कर दिया तथा  

मेरा मुकाबला  वहां के  विख्यात  सुल्तान से करा दिया . उसदिन  राखी 

सावंत पहले ही मन बना चुकी थी  पाकिस्तानियों को जिताने का . 



अब मज़े की  बात ये है कि  मैंने तो  नॉन स्टॉप  प्रस्तुति दी, भारत - पाक  

रिश्तों को बढाने वाली  बातों को लेकर प्रस्तुति दी  और  सारी स्क्रिप्ट मेरी 

ख़ुद की  थी  जबकि  सुलतान साहब  ने  चैनल द्वारा दी गयी स्क्रिप्ट  को 

परफ़ॉर्म किया  और वह भी अटक अटक कर.....खास बात ये कि  उन्होंने 

अपने ही देश के उन बड़े कलाकारों का उपहास किया जिनका हम  यहाँ बहुत 

सम्मान करते हैं  जैसे कि गुलाम अली, मेहँदी हसन, रेशमा  और  अदनान 

शामी . परन्तु  इस पर  राखी ने  मुझे दस में से चार दिया  और उसे नौ, राजू 

भाई ने हमें आठ - आठ दिया  और काशिफ़ ने उसे आठ मुझे सात अंक दिए. 

इस प्रकार मैं  पहले चक्र में छ : अंक पिछड़ गया . मैं समझ गया कि निर्णय 

गलत है लेकिन हौसला था कि अभी एक राउण्ड बाकी है ..इस बार फट्टे चक 

दयांगे........


दूसरे राउण्ड में सुलतान की प्रस्तुति पर  तीनों ने आठ-आठ अंक दिए जिससे  

उसका कुल योग होगया उनचास  जबकि मेरा कुल  जमा अंक था उन्नीस, 

यानी दूसरे दौर  में मैं  तीनों  निर्णायकों से  दस में से  दस अंक लेकर तीस के 

तीस  हथिया लूँ  तब भी  मैं विजयी नहीं हो सकता था . दोनों के बीच मैच टाई 

ही होता था .


अब मेरा माथा ठनका  और मुझे पूरा षड़यंत्र समझ में आ गया .  देखते ही 

देखते मेरे भीतर का राजस्थान जाग गया  और मैं पूरी तरह से गंगानगरी  

हो गया . अब तो मैं बिफ़र गया..और बिफ़रने के बाद  तो  मेरा बाप मुझे  

काबू न कर सके, चैनल वालों की तो बिसात ही क्या ?  मैंने वहां रौला  पा 

दिया ...और  मिडिया वालों से भी कह दिया कि यहाँ  गड़बड़ हो रही है.......

.....इसके बाद तो बहुत कुछ हुआ..........राखी सावंत  को उस दिन मैंने जो 

झाड़ा  है  वह ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी......हालाँकि  उसे  मैंने जो कुछ कहा 

और उसके  तर्कों के जो परखच्चे उड़ाये वो न तो पूरी तरह टीवी  पर दिखाए 

गए और न ही मैं यहाँ बयाँ कर सकता हूँ  क्योंकि  मुझे यहाँ भाषागत मर्यादा 

रखनी है . लेकिन मैंने कोई कसर नहीं  छोड़ी..वह नागिन सी फुफकारती रही  

और मैं सपेरे की  भांति  पुंगी बजाता रहा .



इसके अलावा  दर्शकों को भी ज़बरदस्त लताड़ लगाते हुए  मैंने   प्रोग्राम वहीँ 

छोड़ दिया  और दूसरे चक्र में प्रस्तुति देने से साफ़ मना कर दिया . तब  राजू 

भाई ने मुझे समझा बुझा कर  यह कह के  जोश दिला दिला दिया कि अलबेला 

यार........अभी भी  खेल में रोमांच बाकी है........आज तेरे सामने  चुनौती है,  

ऐसी धाकड़ प्रस्तुति दे  कि तीनों जज  दस में दस देने को मजबूर हो जाएँ.

...........इस प्रकार  टाई होने के चांस हैं और अगले  एपिसोड में  विजयी होने के 

भी  जबकि  खेल बीच में  छोड़ दिया तो  हमारी भी  इज्ज़त जाएगी और चैनल 

के साथ साथ तेरी भी जायेगी.............इसके बाद कोई चैनल वाला तुम्हें 

बुलाएगा भी नहीं. फिर क्या था.......अपन फिर से बन गए सांड और टूट पड़े 

खेत चरने..........ऐसा धमाल किया कि  राखी समेत तीनों  ने दस दस ही दिए

...और खेल बराबरी पर ख़त्म हुआ. अगले एपिसोड में  मैंने सुल्तान को हरा 

दिया और  राखी  के चंगुल से निकाल कर  विजेता वाली पगड़ी  मैंने पहन ही 

ली............बोल बजरंग बली की जय ! 

कॉमेडी का बादशाह में  पहली प्रस्तुति देता  अलबेला खत्री
पहली जीत  के बाद दीपक राजा,  कृष्ण सोनी,  राजू श्रीवास्तव और राखी सावंत के साथ अलबेला खत्री

इन्डो-पाक मुक़ाबले में  पहली मुठभेड़ सुल्तान और अलबेला खत्री के बीच  राखी के साथ गरमा-गरम विवाद पर पूरी हुई

पाकिस्तानी को धूल चटाने के बाद  काशिफ़ आरिफ़  से विजयी पगड़ी पहनते हुए अलबेला खत्री

इस फोटो को देख कर ही आप समझ जायेंगे  कि राखी सावंत कि हवाइयां उड़ी हुई हैं,  सुल्तान  की सल्तनत  खिसकी हुई है,  राजू श्रीवास्तव  हतप्रभ और काशिफ़ आरिफ़ या अल्लाह !  ये क्या हो गया ? की  मुद्रा में  उन्हीं हाथों को घूर रहे हैं जिन हाथों से  मुझे  दस अंक दिए ....मज़े तो सिर्फ़ अपने हैं ........जेब में हाथ डाल कर चौड़े हो कर खड़े हैं पाकिस्तान के सामने     



जय हिन्द !









अनिल पुसदकर और ललित शर्मा जी ! क्षमा करना ..रायपुर में मैंने जो देखा वो द्रवित करने वाला तो था ही क्रोधित भी कर गया




दर्द के मारे वह तड़प रही थी. आँखों से  लगातार  आंसू बह रहे  थे  

और चीत्कार  ऐसे कर रही थी मानो...आसमान फाड़ डालेगी . उसकी 

वह पीड़ा व  करुण क्रन्दन मुझसे  नहीं देखे जा रहे थे तो वह स्वयं 

कैसे बर्दाश्त कर रही होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है . 

पहली बार  मैंने  उस दिन भगवान  को कोसा कि  हे भगवान ! तू ऐसे 

बेघर, भूखे-प्यासे  और  समाज के ठुकराए हुए, पहले से ही महादुखी  

इन मासूम गरीबों को इतना दुःख क्यों देता है  कि देखने वालों की  

आँखों से भी लोहू टपक पड़े...........



बात रायपुर रेलवे स्टेशन की  है जहाँ कुछ दिन पहले  बंधुवर अनिल 

पुसदकर  और ललित शर्मा जी मुझे छोड़ गए थे  परन्तु मेरी ट्रेन चार 

घंटे लेट होने की  वजह से मैं टाइमपासू  प्रक्रिया में स्टेशन के मुख्य 

द्वार के पास ही  बाहर एक ऐसी जगह खड़ा सिगरेट फूंक रहा था  जहाँ 

बहुत से  यात्री, भिखारी, कुली, पुलिस वाले इत्यादि  जमा थे . यह 

चिल्लाने और रोने वाली महिला  लगभग 30  वर्षीय फटेहाल भिखारन 

थी  जिसके  पाँव  का एक पंजा  ज़ख़्मी था  बल्कि पूरी तरह से सडा 

हुआ था   यों लग रहा था मानो उसके ऊपर से कोई  वाहन गुज़र गया 

हो . वह बार बार  अपने पंजे को हाथ में लेती  और रोती ......फिर इधर

उधर देखती कि शायद  कोई  मदद कर दे.....मेरा मन किया  कि उसे 

किसी  डाक्टर के पास  ले जाऊं.......लेकिन संभव नहीं था क्योंकि मेरे 

पास बहुत सा लगेज  था ..फिर सोचा  मेरे पास जित्ती दर्द निवारक है  

दे दूँ...मगर अगर कोई गोली  उसे  रिएक्शन कर गयी तो ?  खैर  मैंने  

सबसे सही तरीका अपनाया  और जेब से पाँच पाँच सौ  के दो नोट 

निकाल कर  देने लगा . तभी  मैंने देखा कि  एक और मैला कुचैला  सा 

गरीब भिखारी  उसके पास आ कर बैठ गया और बतियाने लगा . वह 

नशे में लग रहा था . उसने अपने थैले में से  एक  बोतल निकाली और 

एक घूँट भरके उस  रोती हुई महिला को दे दी...महिला एक ही सांस  

में पूरी बोतल खाली कर गयी .........फिर उसने अपने झोले में हाथ  

डाल कर कुछ निकाला  जिनमे  कुछ वेफर थे, दो पैकेट नमकीन 

काजू के थे  एक पार्ले जी  था और एक आलू वडा था . मैं कौतुहल 

से देखने लगा . पुरुष भिखारी ने दो बीड़ियाँ एक साथ सुलगायीं 

जिनमे से  एक महिला को थमा दी . महिला ने हाहाकारी सुट्टा 

लगाया  और चार - पाँच " वो वाली गालियाँ " दे कर  शांत हो गयी . 

हालांकि पाँव से उसकी पीड़ा अब भी कम नहीं हुई थी  ये उसका 

चेहरा बता रहा था . 


तभी वहां एक और भिखारीनुमा  शख्स आया  जिसे देख कर दोनों 

की  आँखें चमक उठीं .  उनहोंने जल्दी जल्दी अपने झोलों में  हाथ 

डाला और  ये सब सामान निकाला -  एक नयी लुंगी, एक तौलिया,  

एक प्लेट पीतल की,  चार पाँच ब्लाउज पीस, एक साड़ी और  एक 

जोड़ी नयी हवाई चप्पल ..........नए भिखारी ने  सब सामान देखा 

और उन्हें इशारा किया ...थोडा मोल भाव जैसा कुछ हुआ  और 

अंततः  महिला ने  अपने झोले में से एक पीतल का बड़ा सा  गिलास 

निकाला  और नए भिखारी ने  अपने झोले में से  एक लीटर वाली 

थम्सअप  की बोतल निकाली  जिसमे  कच्ची शराब भरी हुई थी......

...ऐसा मैं इसलिए कह सकता हूँ कि कोई भी शराब इत्ती बदबू नहीं 

मारती..जित्ती वो मार रही थी...........ऐन उसी वक्त एक पुलिस सब 

इन्स्पेक्टर  और कुछ सिपाही  वहां  से गुज़रे और उन्होंने  सब देखा 

भी...........परन्तु   चुपचाप निकल लिए .........



फिर सारे सामान देकर शराब खरीदी गयी, पी गयी,  उबले अंडे मंगा 

कर खाए गए यानि कि  पार्टी हो गयी...ये देख कर  मेरा मन वितृष्णा 

से भर गया ......और मैंने  अपने रूपये  वापिस में पर्स में रख कर 

भगवान से माफ़ी मांगी उसे कोसने के लिए और  नयी सिगरेट सुलगा

कर  वहां से  दूर हट गया  तो देखा दो कम उम्र के लड़के, एक बूढ़ा 

और एक जवान महिला  बैठे ब्राउन  सुगर  पी रहे थे ......हे राम !  

क्या यही छत्तीसगढ़ का रायपुर  स्टेशन है  जहाँ  यात्री  धूम्रपान 

नहीं कर सकता और  भिखारी ड्रग्स ले रहे हैं  ...क्यों अनिल पुसदकर 

जी...क्यों ललित शर्मा जी ?  कभी ध्यान दो भाई इस बुराई पर भी.....

क्षमा करना ..रायपुर में मैंने जो देखा वो द्रवित करने वाला तो था ही 

क्रोधित भी कर गया 


श्रीगंगानगर में जगजीतसिंह नाईट के अवसर पर अलबेला खत्री का सम्मान करते हुए राष्ट्रीय कला मंदिर के आयोजकश्री, इस समारोह में जगजीतसिंह, फिल्मकार योगेश छाबड़ा  और अलबेला खत्री  तीनों को उनकी जन्मभूमि  पर सम्मानित किया गया था .












अभी तक ज़िन्दा है कसाब मेरे देश में...........



आदमी की ज़िन्दगी का 

हाल काहे पूछते हो,

हो चुका है ख़ाना ही ख़राब मेरे देश में


भेडि़ए-सियार-गिद्ध-

चील-कौव्वे घूमते हैं

आदमी का ओढ़ के नक़ाब मेरे देश में


धरमों के नाम पे 

बहाते हैं ये लोग देखो

अपनों के ख़ून का चनाब मेरे देश में



शरम की बात है ये 

देशवासियों के लिए
 
अभी तक ज़िन्दा है कसाब मेरे देश में

kavi albela khatri surat me gujarati deshbhakton ke beech  kavita paath karte hue - is avsar par shaheedon  ke parivarjanon ko samman aur aarthik  sahyog kiya gaya
 

धर्म सम्बन्धी झगड़े सदैव खोखली और असार बातों पर ही होते हैं - स्वामी विवेकानंद



धर्म को लेकर कभी विवाद न करो ।
धर्म सम्बन्धी
सारे विवाद और झगड़े
केवल यही दर्शाते हैं
कि वहां आध्यात्मिकता का अभाव है ।
धर्म सम्बन्धी झगड़े
सदैव
खोखली और असार
बातों
पर ही होते हैं

- स्वामी विवेकानंद

एक मोची,
जो कम से कम समय में
बढ़िया और मजबूत
जूतों की जोड़ी
तैयार कर सकता है,
अपने व्यवसाय में
वह
उस प्राध्यापक की अपेक्षा
कहीं अधिक श्रेष्ठ है
जो दिन भर
थोथी बकवास
ही करता रहता है

- स्वामी विवेकानंद




रोज़ तुम फोटो न बदलो लिबास की तरह, फेस बुक पे मिलो फ़क़त एहसास की तरह




 

तुम्हारी हार में मुझको मेरी ही हार लगती है

तुम्हारे जाने की बातें तेज़ तलवार लगती है


मोहब्बत में  कोई भी गेम निर्णायक नहीं होगा


धड़कने धड़कनों से वस्ल को तैयार लगती है 





ये एहसास-ए-मोहब्बत है, जो दिल वालों को होता है


ये वायरस लग गया जिसको, वो हँसने में भी रोता है


मुझे जाना पड़ेगा पर, मैं जल्दी  लौट आऊंगा


तुम्हारी आँख का आँसू, मेरा दामन भिगोता है






कुछ लोग मिस करेंगे


कुछ लोग किस करेंगे


हम तो चले सफ़र पर


अपना बिजनिस करेंगे



रोज़ तुम फोटो न बदलो लिबास की  तरह


फेस बुक पे मिलो फ़क़त एहसास की तरह


गुलाबों की  तरह मत रंग  दिखलाया करो


ज़िन्दगी में  काम आओ  कपास की तरह 



ख़ुशियाँ मोहताज़ नहीं होतीं किसी हासिल की


तुमने मस्ती नहीं देखी क्या किसी गाफिल की


हम तो सर भी कलम करालें अपना तो क्या है ?


बस तबस्सुम  एक मिल जाये मुझे क़ातिल की



अब तो मैं हद से गुज़र जाऊं तो भी तम नहीं


चाहे जितना दर्द हो, पर आँख होगी नम नहीं


तुमने जब इकरार कर लिया है मोहब्बत का


सफ़र में मर भी गया, तो अब होगा ग़म नहीं



8 को अहमदाबाद, 9  को  धार, 
11 को  जयपुर  और  14 को सागर  विश्व विद्यालय 
के  प्रोग्राम  करने जा रहा हूँ  पर जाते जाते आपके 
लिए  आज की  तुकबन्दियाँ छोड़ के जा रहा हूँ...........
L.P.S. of USA ke sammelan 1999  me sh. c.m.patel,albela khatri, naranji patel aur d.v.patel  san jose cl.USA me albela khatri ki pustak ka lokarpan karte hue


ख़बरदार ! आज की तुकबन्दियाँ केवल वयस्कों के लिए हैं फेसबुकिया मूड में रचित इन मुक्तकों को कच्ची उम्र के लोग न पढ़ें



एक उम्र का साथ नहीं, ये जनम - जनम का साथ है

हम और तुम जो मिले हैं इसमें भी कुदरत का हाथ है


ये अनुपम सम्बन्ध हमारा दुनिया में मिसाल बनेगा


अपनी मोहब्बत, अपनी चाहत, ईश्वर  की  सौगात है 




ये बिन्दू बिन्दू  दीप सजाये लगते हैं


मुझको ये  सब तेरे ही साये लगते हैं


लफ्ज़ जहाँ पर चुप्पी साध लिया करते


वहाँ आपने  अधर हिलाये लगते हैं


ये तड़प स्वयं बतलाती है, तुम  उतर चुकी हो सागर में


तुम मीरा से कान्हा बन कर आई हो नेह  की गागर में


तुम देह नहीं हो देह्तर हो, तुम नाद हो बंशी वाले का 



दुनिया उसकी दीवानी है, जो दीवाना  उस ग्वाले का 




काम भले कितना  मुश्किल हो, किन्तु सरल हो जाएगा


तुम चाहो तो शाम को मिलना भी पोसिबल  हो जायेगा


तुम कहती धूप - छाँव  तक मुँह से कुछ  नहीं  कहती है


मैं कहता हूँ, कह कर देखो, हर लफ़्ज़  ग़ज़ल हो जायेगा



ख्याले यार में गुम वो जानेमन रहता  क्यों नहीं है


मेरी तरह  मस्ती के दरिया  में बहता क्यों नहीं है


हया कैसी मोहब्बत में उसे, डर कैसा बदनामी का


वो मुझसे प्यार करता है तो फिर कहता क्यों नहीं है 




नख से ले शिख तक तुम  प्रेम में पगी हो


इसलिए हे नेहवती ! तुम सबकी  सगी हो


कृष्ण तुम्हारे, तुम कृष्णा की जग जाहिर है 



जब भी देखा मैंने तुमको मीरा सी ही लगी हो 




ह्रदय समर्पित कर तुमको  मैंने नन्हा  उपहार दिया


भला करे भगवान आपका, तुमने इसे स्वीकार किया


कौन पूछता है जग में, किसने किसको कितना चाहा


पर एक बात तो पक्की है कि मैंने तुम से प्यार किया


_____सुप्रभात


_____उर्जस्वित दिवस .......


जय हिन्द !



Rajkot me albela khatri ke audio NAMAN MAHIMA  ka lokarpan samaroh


मैं सभी से ऊब जाना चाहता हूँ, और तुझमे डूब जाना चाहता हूँ, जिस जगह सब जा नहीं सकते, मैं वहाँ पर ख़ूब जाना चाहता हूँ





 कल मैंने एक पोस्ट लगाई थी जिसमे फेसबुक पर की गई चैटिंग 
के दौरान  जो तुकबन्दियाँ  बनी, उन्हें जस का तस  दे दिया था . 
कमाल ये हुआ कि उन्हें प्यारे  दोस्तों ने ख़ूब पढ़ा  और पसन्द भी किया 
इसलिए आज फिर मैं  वही कर रहा  हूँ - कल फेसबुक  पर chat के दौरा 
जो पंक्तियाँ बनी...आज उनका आनन्द लीजिये.........



ख्वाब तुम्हारा पूरा होगा,  मै ये वादा करता हूँ 

तुम पे भरोसा  मैं ख़ुद से भी ज़्यादा  करता हूँ 


जब भी फ़ुर्सत मिले, मुझे मेरे चुम्बन लौटा देना  


जल्दी  क्या है, मैं कब, कहाँ तकादा  करता हूँ ?



मोहब्बत में अन्धेरे  और उजाले का  हिसाब रखा नहीं  जाता 


ये  मन्दिर है, मुक़द्दस है, यहाँ जूता -जुराब   रखा नहीं  जाता  


काँटे भी आयें राह में तो कबूल कर लिए  जाते  हैं हँसते हँसते 


खार हटा कर, निज आँचल में  केवल गुलाब रखा नहीं  जाता 



ख़ुशियाँ  सारे जहान  की  मैं ला सकता हूँ 


गीत  ऐसा भी मैं गा कर  सुना सकता हूँ 


इतनी हिम्मत है  मुझमे  मेरी जान  कि मैं 


तुम्हारे लिए  इक नई  दुनिया बसा सकता हूँ 




धडकनें  अब धडकनों से मिल रही हैं 


कलियाँ मोहब्बत की यों खिल रही हैं 


जुदा होने का इलज़ाम मुझपे झूठा है 


मेरी तो साँसें तेरी साँसों से चल रही हैं 



उम्मीद तो रखनी ही होगी और साथ भी चलना ही होगा 


हिम्मत  बनाए तुम रक्खो, मौसम को बदलना ही होगा 


चाँदनी चाँद की  बेगम है, अम्बर  है शौहर  धरती का 


तन्हाई  का गर आलम है तो  यार से  मिलना ही होगा 




मैं सभी से ऊब जाना चाहता हूँ 


और तुझमे डूब जाना चाहता हूँ 


जिस जगह सब जा नहीं सकते 


मैं वहाँ पर ख़ूब जाना चाहता हूँ 



माना कि फ़ुर्सत नहीं होगी  मुलाकात के लिए


कुछ लम्हे तो निकाल सकते हो बात के लिए 


डूबना आँखों में  सबकी तकदीर में नहीं होता 


इक पल ही लुटा दो, बयाने-जज़्बात के लिए  



फासलों से भी गुज़र कर देखेंगे 


प्यार को भी समझ कर  देखेंगे 


देखें चाहे इक नज़र या उम्रभर 


पर तुझे हम  जी भर कर देखेंगे 



ये अलग बात है कि राख में आग दिखाई नहीं देती 


ताप तो  उसमें भी  लेकिन  भरपूर  होता है 


कोई कितना ही बचाना चाहे दामन  मगर याद रखो 


आशिक की  दुआ का  असर ज़रूर होता है





मुस्कुराना क्या होता है, मैं सिखलाऊंगा

तुमको कोई सब्जबाग नहीं दिखलाऊंगा 


दूरियां भी दूरियां  सी न लगेंगी  आपको 


हुनर मोहब्बत का ऐसा मैं देकर जाऊँगा 




मानस खत्री से मेरा तो बस इतना  लिंक  जुड़ा है 


वो भी मेरी तरह फेस बुक पर रचना लिए खड़ा है 


मानस है तो भला ही होगा, चाहे मेरा सगा नहीं है 


लेकिन  मेरी नज़रों में  वो मुझ से  बहुत बड़ा है 

     


आशु होना अलग बात, पर धांसू लगता प्यारा 


जो धांसू कवि होते हैं, उनका ही होता  पौ बारा 


सरस्वती की अनुकम्पा से मैं भी कोशिश कर लेता 


कभी कभी जब बह जाती है आँखों से अमृतधारा 



शुरूआत में ही कद है जिसका इतना ऊँचा 


वक्त आते आते तो  क़ुतुब मीनार हो जाएगा 


मेरी दुआ है  तुम्हारा  यश फैले चारों तरफ़ 


नाम तुम्हारा एक दिन  शाहकार हो जायेगा 



बात का मौका मिला है तो आँचल में भर ही लेना 


ग़ज़लों पर  अपनी  कुछ और शबाब  धर  ही लेना 


ये अलग बात है कि   टी वी पर भी दिख जाते हैं 


दीदार मगर  fb पर हो तो दोस्त मेरे कर ही लेना 



albela khatri ki pstak SAGAR ME BHI SOOKHA HAI MAN ke lokarpan samaroh me sh. Anand Rathi, kripashankar singh, mahavir adhikari, R.N.G.saraf aur Albela khatri aadi












तुरन्त फुरन्त में रची वे फुटकर तुकबन्दियाँ ...जो विभिन्न ब्लोग्स पर की गईं आज उनकी ही पोस्ट लगा देता हूँ ताकि ब्लॉग अपडेट रहे हा हा हा



तुम गुल बनके आओगे तो गुलाब दूंगा 

गिन गिन के नहीं दूंगा,  बेहिसाब दूंगा 


तुम ताल में आओ तो मैं सुर बन जाऊं 


पर सवाल करते रहोगे तो  जवाब दूंगा 






मैं तो चाहता  हूँ कि कोई  मुझ पर भारी पड़े 


पर जब भी पड़े भारी  तो  नर नहीं नारी पड़े 




बेताबी इधर भी है मगर फरियाद  नहीं करेंगे


मुन्तज़िर  तो हम भी हैं  पर  याद नहीं करेंगे 


_अरे भई क्यों करें ? 


भुलाया ही कब था ?




जो बात छुपा कर रखी है,  वो बात न मुझसे पूछो तुम.........


कितनी आहें कितने आंसू,  हालात न मुझसे पूछो तुम..........




नाम काटना क्या ज़रूरी है ? 


आखिर... क्या मज़बूरी है ?


दिल तो दिल से जुड़ा हुआ है 


बस कहने की दूरी है 



singer dilip pandey, kavi albela khatri, musician shekhar desh pande & singer pronita deshpande in finix  arizona USA



एक कविता उस महबूब यार के लिए, उस जानेजिगर के लिए ...जिसने अपनी मोहब्बत में बाँध कर मेरी रातों की नींद और दिन का चैन उजाड़ रखा है लेकिन बावजूद इसके मुझे उससे बेपनाह इश्क़ है ......


आज की रात जीना चाहता हूँ

आबे - हयात पीना चाहता हूँ




इससे पहले


कि मैं तुम्हारे हुस्न के झूले में झूल जाऊं


इससे पहले


कि मैं अपने मुर्शिद की दरगाह भूल जाऊं


हटालो निगाह मुझसे.................



ज़ख्म पहले ही बहुत गहरे है ज़िन्दगानी में


आज एक घाव सीना चाहता हूँ


आज की रात जीना चाहता हूँ




सिलवटें बिस्तर की पड़ी रहने दो..........


दुनियादारी की खाट खड़ी रहने दो


क्या ख़ाक मोहब्बत है, क्या राख जवानी है


लम्हों की कहानी है,  हर शै यहाँ फ़ानी है


फ़ानी को पाना क्या


फ़ानी को खोना क्या


फ़ानी पर हँसना क्या


फ़ानी पर रोना क्या


जो चढ़के न उतरे


वो जाम मयस्सर है


महबूब ने जो भेजा


पैग़ाम मयस्सर है


न सुराही, न मीना चाहता हूँ



आज की रात जीना चाहता हूँ

      
आज की रात जीना चाहता हूँ


hasyakavi albela khatri  in portu rico  ice land usa  at house  of mr.sunil lula
 

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