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नवरात्रि के शुभावसर पर आज से पुरस्कार राशि 500 से बढ़ा कर 900, तो भजन भेजो.....इनाम जीतो




नमस्कार ब्लोगर स्वजनों !

पिछली बार जब मोहब्बत के शे' आमंत्रित किये गये थे तो आपने

अच्छा ख़ासा रिस्पोंस दिया था और डॉ अरुणा कपूर विजयी हुई थीं


आज से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो चुके हैंइसलिए अवसर की

पवित्रता को देखते हुए आज के खेल में आपसे जगत जननी जगदम्बा

के भजन आमन्त्रित किये जा रहे हैं, यों तो आदि शक्ति नवदुर्गा के

किसी भी स्वरूप को समर्पित रचना आप भेज सकते हैं परन्तु माँ

सरस्वती की वन्दना के लिए विशेष अनुरोध है



ऐसा लग रहा है जैसे पिछली बार स्पर्धा की जानकारी सबको समय पे

नहीं मिल पाई इसलिए स्पर्धा के परिणाम घोषित होने के उपरांत भी

अभी तक मोहब्बत के शे' प्राप्त हो रहे हैंलिहाज़ा इस बार प्रविष्टि

भेजने के लिए आपको एक नहीं बल्कि पूरे तीन दिन दिए जायेंगे

साथ ही पुरस्कार राशि भी 500 रूपये से बढ़ा कर 900 रूपये की जा

रही है


यानी पहले से लगभग डबल !

तो जीत लीजिये वाह वाही के साथ 900 का नगद इनाम भी



900 रूपये का ये पुरस्कार तो केवल इस स्पर्धा के लिए होगा जबकि

सहभागियों द्वारा अर्जित पॉइंट्स उनके पंजीकृत खाते में भी जोड़े

जायेंगे जिसके आधार पर मासिक पुरस्कारों का निर्णय होगा


तो जल्दी कीजिये -

अपनी प्रविष्टि भेजिए..और अधिकाधिक पॉइंट्स प्राप्त कीजिये



नियम शर्तें वही हैं :

प्रत्येक संकलित रचना के लिए 100 पॉइंट्स और स्वरचित के लिए

200 पॉइंट्स दिए जायेंगेस्वरचित रचना के साथ स्वरचित लिखना

अनिवार्य है वरना उसे संकलित ही माना जायेगासंकलित रचना के

साथ उसका स्रोत बताना होगा जैसे- पुस्तक, कैसेट, फ़िल्म वगैरह



स्पर्धा में विजेता होने के लिए सहभागी का www.albelakhatri.com

पर पंजीकृत होना और उनके ब्लॉग पर निम्नांकित लिंक कोड होना ज़रूरी हैं


Albela Khatri, Online Talent Serach, Hindi Kavi


__________

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विशेष निवेदन :

मित्रो ! ये एक खेल मात्र नहीं है, बल्कि ये उस महती कार्य को अंजाम

तक पहुँचाने का प्रयास है जिसका सपना मैंने बहुत पहले देखा था



ऐसे कितने ही प्रतिभाशाली लोग हैं जो फ़िल्मों, टी वी और स्टेज के

अलावा म्यूजिक इंडस्ट्री में नाम और दाम कमा सकते हैं लेकिन वे

दूर दराज के क्षेत्रों में रहते हैं या उनके पास कोई प्रोपर एप्रोच नहीं

होती इसलिए उनकी कला केवल उनके घर-आँगन तक ही सीमित

रहती है www.albelakhatri.com ने पहली बार एक ऐसा मंच

तैया किया है जहाँ बिना कोई खर्च किये कोई भी कलाकार अपने को

कितना भी प्रमोट कर सकता है और बड़े प्रोडक्शन हाउसेस की

नज़रों में सकता हैयदि उसमे प्रतिभा है तो उसे अवसर मिल ही

जाये, ऐसा प्रबन्ध हम कर रहे हैं और ज़्यादा से ज़्यादा निर्माता -

निर्देशक इवेंट ओर्गेनाइज़र on line talent search के ज़रिये उन

तक पहुँच सकें इसकी व्यवस्था हम कर रहे हैं


और भी बहुत कुछ हैजैसे www.albelakhatri.com पर आप

अपना विज्ञापन ख़ुद बना कर निशुल्क लगा सकते हैंसाथ ही मित्र

समूह बना कर प्रत्येक मित्र पर 40 पॉइंट कमा सकते हैं वगैरह वगैरह



एक बार समय निकाल कर www.albelakhatri.com को पूरा देखिये ,

ध्यान से देखिये फिर बताइये कैसी लगी ये वेब साईट



जय माता दी..............

शुभ नव रात्रि !




19 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 8, 2010 at 12:58 PM  

प्रियवर अलबेला खत्री जी!
आपकी सेवा में अपनी स्वरचित यह वन्दना प्रेषित कर रहा हूँ-
--
मेरी गंगा भी तुम, और यमुना भी तुम,
तुम ही मेरे सकल काव्य की धार हो।
जिन्दगी भी हो तुम, बन्दगी भी हो तुम,
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।

मुझको जब से मिला आपका साथ है,
शह मिली हैं बहुत, बच गईं मात है,
तुम ही मझधार हो, तुम ही पतवार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

बिन तुम्हारे था जीवन बड़ा अटपटा,
पेड़ आँगन का जैसे कोई हो कटा,
तुम हो अमृत घटा तुम ही बौछार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

तुम महकता हुआ शान्ति का कुंज हो,
जड़-जगत के लिए ज्ञान का पुंज हो,
मेरे जीवन का सुन्दर सा संसार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

तुम ही हो वन्दना, तुम ही आराधना,
दीन साधक की तुम ही तो हो साधना,
तुम निराकार हो, तुम ही साकार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

आस में हो रची साँस में हो बसी,
गात में हो रची, साथ में हो बसी,
विश्व में ज्ञान का तुम ही भण्डार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 8, 2010 at 1:01 PM  

प्रियवर अलबेला खत्री जी!
आपकी सेवा में अपनी स्वरचित यह वन्दना भी प्रेषित कर रहा हूँ-
--
रोज-रोज सपनों में आकर,
छवि अपनी दिखलाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

कभी हँस पर, कभी मोर पर,
जीवन के हर एक मोड़ पर,
भटके राही का माता तुम,
पथ प्रशस्त कर जाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

मैं हूँ मूढ़, निपट अज्ञानी,
नही जानता काव्य-कहानी,
प्रतिदिन मेरे लिए मातु तुम,
नव्य विषय को लाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

नही जानता पूजन-वन्दन,
नही जानता हूँ आराधन,
वर्णों की माला में माता,
तुम मनके गुँथवाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

संगीता पुरी October 8, 2010 at 1:31 PM  

बहुत बढिया प्रयास है आपका .. हम जैसे ज्‍योतिषियों की प्रतिभा की परीक्षा लेने के लिए भी कुछ कीजिए .. आपके मंच के माध्‍यम से हमारे लिए भी कुछ काम होना चाहिए !!

Unknown October 8, 2010 at 1:47 PM  

@ संगीता पुरी

जी दीदी ! आपका सुझाव बहुत बढ़िया है ...

जल्द ही ज्योतिष और ज्योतिष के साथ साथ, लघु कथा, फोटोग्राफी और कार्टून विधा के लिए भी ऐसी स्पर्धा की जाएगी

आपका हार्दिक आभार

जुड़े रहिये और रोज़ाना कम से कम एक बार ज़रूर विज़िट कीजिये तथा आपने मित्रों को आमंत्रित करें या आपने आलेखों पर या अपने आगामी कार्यक्रमों की सूचना दे कर हर अप डेट पर पॉइंट्स अर्जित कीजिये..........

ये काम आपका पूर्ण सहयोग व आशीर्वाद चाहता है

धन्यवाद

शुभ नवरात्रि

www.albelakhatri.com

Aruna Kapoor October 8, 2010 at 1:52 PM  

नवरात्री के पावन अव्सर पर माता का गुणगान...याने कि भजन, मैने प्रस्तुत किया है!..यह 'गरबा' गीत की धुन पर है!...इसे दांडिया नृत्य के साथ भी पेश किया जा सकता है!....यह मेरा स्वरचित भजन है!



हे...मैया!..तेरे नाम है हजार.....किस नाम से पुकारु!

हे...अंबे!..तेरे नाम है हजार.....किस नाम से पुकारु!

शेर पे सवारी करें..तू शेरावाली...(२)

पहाडों मे जा बसी...तू पहाडा वाली...(२)

फूल-माला कंठ धरे ...तू सेहरा वाली...(२)

भक्तों पे बडी मेहर करें...तू मेहरा वाली...(२)

तेरी महिमा तो है अपरंपार...किस नाम से पुकारु!...हे मैया, तेरे नाम है ...(२)..हे अंबे तेरे नाम है..(२)

कोल्हापूर की महारानी...'अंबे भवानी'...(२)

'वैष्णोदेवी' कहलाई मैया..जम्मू की पटरानी...(२)

कलकत्ता वासियों को..... 'दुर्गा' लागे भली...(२)

'जगदंबा' भी तू मैया...तू ही महाकाली...(२)

तेरा रुप मैया...कैसे हो साकार...किस नाम से पुकारु!...हे मैया!..तेरे नाम...(२)...हे दाति तेरे...(२)

धन की वर्षा तू ने की मैया..'महालक्ष्मी' कहलाई..(२)

विद्या जब बक्षि हमें ...'सरस्वति' कहलाई...(२)

संतोष धन प्रदान किया...'माता संतोषी' कहलाई..(२)

सब कुछ जब दिया तूने ...मेरी मां 'दाति' कहलाई...(२)

फिर भी मै सोचू बार, बार..किस नाम से पुकारु!..हे मैया!..तेरे नाम है...(२) ..हे दाति तेरे नाम..(२)...हे अंबे तेरे नाम..(२)...जगदंबे तेरे नाम..(२)

Unknown October 8, 2010 at 2:52 PM  

बहुत ही सराहनीय प्रयास है आपका!

अपने स्वर्गीय पिताजी की एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ

जय दुर्गे मैया

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)


जय अम्बे मैया,
जय दुर्गे मैया,
जय काली,
जय खप्पर वाली।

वरदान यही दे दो माता,
शक्ति-भक्ति से भर जावें;
जीवन में कुछ कर पावें,
तुझको ही शीश झुकावें।

तू ही नाव खेवइया,
जै अम्बे मैया।

सिंह वाहिनी माता,
दुष्ट संहारिणि माता;
जो तेरे गुण गाता,
पल में भव तर जाता।

तू ही लाज रखैया,
जय अम्बे मैया।

महिषासुर मर्दिनि,
सुख-सम्पति वर्द्धिनि;
जगदम्बा तू न्यारी,
तेरी महिमा भारी।

तू ही कष्ट हरैया,
जय अम्बे मैया।

(रचना तिथिः रविवार 12-10-1980)

कविता रावत October 8, 2010 at 6:37 PM  

बहुत बढिया प्रयास...
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं

राज भाटिय़ा October 8, 2010 at 9:21 PM  

बहुत सुंदर रचना,अजी भजन सिहं को केसे भेजू, उस की टिकट के पेसे कोन देगा? फ़िर रहने का खर्च कोन देगा? इस लिये मै भजन को नही भेज सकता, आप खुद ही बुला ले :) आप सब को नवरात्रो की शुभकामनायें,

दीपक 'मशाल' October 9, 2010 at 12:31 AM  

नवजीवन नवसृजन की
देना हमें तुम प्रेरणा
हम जड़बुद्धि हों कृतकृतार्थ
माँ तान ऐसी छेड़ना

हम बुद्धिप्रसून कर प्रस्फुटित
शिव-शक्ति को करें सृजित
कर के सुगन्धित जग सकल को
करें प्रफुल्लित हर विकल को

हर अँधेरी जग गुफा में
ज्ञान का प्रकाश भर दें
चल रहे भीषण समर को
अनंत तक अवरुद्ध कर दें

प्राणिमात्र को समझा सकें
हम समर्थ भाषा प्रेम की
देना शक्ति ऐसी अलौकिक
जिसका मिले कोई मेल ना

नवजीवन नवसृजन की
देना हमें तुम प्रेरणा
हम जड़बुद्धि हों कृतकृतार्थ
माँ तान ऐसी छेड़ना
दीपक मशाल

Unknown October 9, 2010 at 11:18 AM  

@ डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी !
@ डॉ अरुणा कपूर जी !
@ जी के अवधिया जी !
@ दीपक मशाल जी !

मुझे ख़ुशी है कि आपने इस स्पर्धा के लिए बहुत ही उम्दा सरस्वती वन्दनाएँ भेजीं........आपका हार्दिक धन्यवादी हूँ . और भी रचनाएं आप भेज सकते हैं, जितनी ज़्यादा रचनाएं भेजेंगे उतने ही ज़्यादा पॉइंट्स आपके खाते में जमा होंगे

@ अन्य सभी मित्रों से भी मेरा अनुरोध

कृपया आप भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराएं, रचना भेजें

Unknown October 9, 2010 at 11:39 AM  

अरे हाँ, अपनी टिप्पणी में तो मैं डॉ अरुणा कपूर जी को बधाई देना भूल ही गया था, विजेता होने के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई!

Unknown October 9, 2010 at 11:48 AM  

माँ सरस्वती की वन्दना!

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्दैवै:सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा॥


कुन्द, चन्द्र, तुषार के हार के समान गौरवपूर्ण शुभ्र वस्त्र धारण करने वाली, वीणा के सुन्दर दण्ड से सुशोभित हाथों वाली, श्वेत कमल पर विराजित, ब्रहा, विष्णु महेश आदि सभी देवों के द्वारा सर्वदा स्तुत्य, समस्त अज्ञान और जड़ता की विनाशनी देवी सरस्वती मेरी रक्षा करे।

Aruna Kapoor October 9, 2010 at 12:59 PM  

नवराते नव दिनों तक मनाए जाते है....हर रोज मैया नए रूप में सामने आती है....प्रथम दिन शैलपुत्री और द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में दर्शन देती है!


प्रथम नौराते शैल पुत्री कहलाती,जगत जननी अम्बा...
कथा सुनो मेरी मैया की...बोलो जय जय जय जगदंबा!
नव दुर्गा का दूजा नाम, ब्रह्मचारिणी माता...
दूजे नवराते पर गाओ...इस मैया कि गाथा!
सच्चिदानंद ब्रह्मस्वरूप प्राप्त कराए जननी...
चार-अचर जगत की विद्याओं की स्वामिनी!
स्वेत वस्त्र में लिपटी कन्या...तेजस्वी मुख मंडल..
एक हस्त अष्टदल माला..दूजे हस्त कमंडल !
अक्षयमाला, कमंडल धारिणी, दुर्गा ब्रह्मचारिणी...
ब्रह्मशक्ति, तंत्र-मंत्र कारिणी, तेजस्विनी तपश्चारिणी!
मैया नवरात्री में पधारे....नया रूप, नई मूर्ति..
देती दर्शन भक्तों को...करती मनो कामना पूर्ति!

Aruna Kapoor October 9, 2010 at 1:01 PM  

नवराते नव दिनों तक मनाए जाते है....हर रोज मैया नए रूप में सामने आती है....प्रथम दिन शैलपुत्री और द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में दर्शन देती है!
प्रथम नौराते शैल पुत्री कहलाती,जगत जननी अम्बा...
कथा सुनो मेरी मैया की...बोलो जय जय जय जगदंबा!
नव दुर्गा का दूजा नाम, ब्रह्मचारिणी माता...
दूजे नवराते पर गाओ...इस मैया कि गाथा!
सच्चिदानंद ब्रह्मस्वरूप प्राप्त कराए जननी...
चार-अचर जगत की विद्याओं की स्वामिनी!
स्वेत वस्त्र में लिपटी कन्या...तेजस्वी मुख मंडल..
एक हस्त अष्टदल माला..दूजे हस्त कमंडल !
अक्षयमाला, कमंडल धारिणी, दुर्गा ब्रह्मचारिणी...
ब्रह्मशक्ति, तंत्र-मंत्र कारिणी, तेजस्विनी तपश्चारिणी!
मैया नवरात्री में पधारे....नया रूप, नई मूर्ति..
देती दर्शन भक्तों को...करती मनो कामना पूर्ति!

.....यह रचना मेरी स्वरचित है!

Prem Farukhabadi October 9, 2010 at 9:00 PM  

यह मेरी स्वरचित रचना है.

जय अम्बे जगदम्बे कर दो हम सब का उद्धार

जय अम्बे जगदम्बे, कर दो हम सब का उद्धार।
हम सब आये तेरे द्वार, हम सब आये तेरे द्वार।
जय अम्बे जगदम्बे, कर दो हम सब का उद्धार।

अपनी भक्ति के रस में हम को रसमय कर दो
जीवन सारा सफल हो जाये ऐसा कोई वर दो
हम याद रखेंगे उपकार, हम याद रखेंगे उपकार
जय अम्बे जगदम्बे, कर दो हम सब का उद्धार।

देख लिया जीवन जी के तुझको बिन याद किये
पल भर भी सुख पाया नहीं है वाद-विवाद किये
खुद में उलझे रहे बेकार,खुद में उलझे रहे बेकार
जय अम्बे जगदम्बे, कर दो हम सब का उद्धार।

इस जीवन का मतलब क्या हम जान नहीं पाए
अपने हित में ही डूबे रहे हम परहित न कर पाए
पाया न जीवन आधार, पाया न जीवन आधार।
जय अम्बे जगदम्बे, कर दो हम सब का उद्धार।

बड़ी-बड़ी आशाएँ लेकर हम तेरी शरण में आये
तेरी शरण में रहने वालों के देखे चेहरे मुसकाये
मैया अनुपम तेरा प्यार,मैया अनुपम तेरा प्यार।
जय अम्बे जगदम्बे, कर दो हम सब का उद्धार।

-प्रेम फर्रुखाबादी

Prem Farukhabadi October 9, 2010 at 9:09 PM  

अलबेला जी,
अरुणा जी को दिल से बधाई!!

आपका यह प्रयास एक दिन रंग जरूर दिखायेगा। सभी में एक नया जोश भरने के लिए आप का धन्यवाद।

नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 10, 2010 at 9:48 PM  

स्वरचित सरस्वती वन्दना

रात-दिन मैं प्राण की वीणा बजाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।

मैं सुमन बिन गन्ध का हूँ वाटिका में,
किस तरह यह पुष्प मन्दिर में चढ़ाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।

मैं निबल हूँ आपका ही है सहारा,
थाम लो माँ हाथ मैं अपना बढ़ाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।

दो मुझे वरदान तुम हे शारदे माँ!
आरती को अर्चना में गुन-गुनाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।

साधना में मातु तुम विज्ञान भर दो,
विश्व में मैं ज्ञान का दीपक जलाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 10, 2010 at 9:50 PM  

स्वरचित सरस्वती वन्दना

शारदे माँ! आज मेरी वन्दना स्वीकार कर लो।

छा रहा अज्ञान का मन में अन्धेरा,
तम हरो कर दो उजाले का सवेरा,
दास की आराधना को मातु अंगीकार कर लो।

शब्द के आयाम में साहित्य दे दो,
भाव में मेरे सुखद लालित्य दे दो,
मैं बहुत नादान हूँ माता मुझे भी प्यार कर लो।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 10, 2010 at 9:54 PM  

स्वरचित सरस्वती वन्दना

बन्द ना हो जायें माँ के द्वार!
वन्दना करता हूँ मैं शत् बार!!

मन में मेरे ज्ञान का प्रकाश कर दो,
हृदय में मेरे नवल विश्वास भर दो,
पुष्प-अक्षत माँ करो स्वीकार!
वन्दना करता हूँ मैं शत् बार!!

लेखनी में रम रहा माता तुम्हारा नाम है,
शब्द-रचना और सर्जन माता तुम्हारा काम है,
गीत में भर दो विमल रसधार!
वन्दना करता हूँ मैं शत् बार!!

विश्व से अज्ञान, जड़ता दूर हो,
मन्दिरों में रौशनी भरपूर हो,
शारदे जग का करो उद्धार!
वन्दना करता हूँ मैं शत् बार!!

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