आज एक परिचित कन्या के लिए स्क्रिप्ट लिखते समय मैं भी
भावुक हो गया और लिखते लिखते ही रो पड़ा . उसके माता-पिता
की वैवाहिक वर्षगाँठ के अवसर पर उसके द्वारा बोलने के लिए
जो मैंने लिखा तो यह एहसास उमड़ आया कि बेटी कितनी
कोमलकांत, कितनी नाज़ुक और कितनी मासूम होते हुए भी
कितनी गहरी होती हैं
बेटी को जन्म देने से पहले कोख में मार देने वालो......लाहनत है
तुम पर...रब कभी माफ़ नहीं करेगा तुम्हारे पाप को.........
जय हिन्द
5 comments:
sach kahate hai aap Albelaji बेटी को जन्म देने से पहले कोख में मार देने वालो......लाहनत है
तुम पर...रब कभी माफ़ नहीं करेगा तुम्हारे पाप को.........
बेटियां मन-मोहिनी होती हैं। उनकी चहचाहट से मईके और ससुराल दोनों का घर-आँगन महकता है। " Save girl child, they also want to live".
बेटियाँ घर की जान हैं ....
शुभकामनायें आपको !
‘बिटिया’ मेरे जीवन की नन्हीं – सी आशा
वात्सल्य - गोरस में डूबा हुआ बताशा.
तुतली बोली , डगमग चलना और शरारत
नया -नया नित दिखलाती है खेल-तमाशा.
पल में रूठे – माने, पल में रोये – हँस दे
बिटिया का गुस्सा है ,रत्ती- तोला- माशा.
दिनभर दफ्तर में थककर जब घर मैं आऊँ
देख मुझे मुस्काकर कर दे दूर हताशा.
सुख -दु:ख दोनों धूप -छाँव से आते –जाते
ठहर न पाई इस आंगन में कभी निराशा.
जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
अपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा.
लानत मेरी ओर से भी
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