प्यारे मित्रो, बन्धुओ, स्वजनों और समस्त परिचितों/अपरिचितो !
विनम्र प्रणाम
मुझे यह स्वीकार करते हुए अत्यन्त खेद और लज्जा के साथ साथ गहरे
दुःख का अनुभव हो रहा है परन्तु सच कहने से पीछे नहीं हटूंगा कि अपनी
तार्किक क्षमता अथवा अपरोक्ष अहंकार के चलते मैंने ब्लॉग्गिंग के इस
मंच पर बहुत से ऐसे आलेख लिखे जो मुझे नहीं करने चाहिए थे. परन्तु इन्सान
कितना भी चतुर क्यों न हो, भूल करता ही है . मुझसे भी भूलें हुईं और बहुतायत
में हुईं. भले ही उनके पीछे मेरा मक़सद केवल सच का साथ देना था लेकिन
विनम्रता के अभाव में वे सब आलेख मेरे लेखन पर काले धब्बों की भान्ति
अंकित हो गये और इसके लिए मेरा मन पश्चाताप कर रहा है .
सबसे ज़्यादा दुःख तो इस बात का है कि बाहर के इस फोकटिये चक्कर में
भीतर की यात्रा बन्द हो चुकी थी. आज से मैं एक नई शुरूआत करना चाहता हूँ .
भीतर की दुनिया बाहर की दुनिया से ज़्यादा चमकदार और सच्ची होने के
बावजूद अहम के अन्धेरे में मैंने उसे छिपा दिया था . आज सब परदे उतार कर
पुनः उजाले में आना चाहता हूँ .
अत्यन्त हार्दिक भाव से मैं यह कहना चाहता हूँ कि आप में से जिस किसी
ने भी मेरा दिल दुखाया हो, मुझे उत्तेजित करके अनर्गल लेखन के लिए प्रेरित
किया हो या वाद-विवाद में धकेला हो, मैं उन सबको हृदय से क्षमा करता हूँ
साथ ही जिन लोगों को मेरे द्वारा दुःख अथवा कष्ट पहुंचा हो, जिनके लिए मैंने
अपमानपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया हो, उन सबसे कर बद्ध हो कर क्षमा चाहता हूँ .
भविष्य में आप में से किसी को कोई तकलीफ़ मेरे द्वारा न पहुंचे, इसका मैं पूरा
प्रयास करूँगा और इस क्रम में सबसे पहले मैं उन सब आलेखों को अथवा पोस्ट्स
को डिलीट कर रहा हूँ ताकि आज के बाद मेरे ब्लॉग पर उनका नाम-ओ-निशाँ न
रहे . अभी इतना ही......क्योंकि जिस शरीर पर मुझे अभिमान था वो अब ज़्यादा
दिन चलने वाला नहीं है और वैमनस्य अथवा रंजिश का बोझ लेकर मैं इस
जहान से जाना नहीं चाहता . अतः. क्षमाप्रार्थना के लिए ही आज यह पोस्ट लिखी है
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
हास्यकवि अलबेला खत्री मुंबई के एक समारोह में प्रेस को संबोधित करते हुए |
22 comments:
मैं समझता हूं कि इतना कहने के बाद इस बात पर अविश्वास का कोई कारण नहीं है कि जो आप कह रहे हैं,वह किसी आवेश में नहीं कह रहे। हममें से हर कोई चूक करता है। क्षमायाचना न की जाए,तो भी आगे उन भूलों को दुहराने से बचकर अपनी छवि बदली जा सकती है। मुख्य बात यह है कि किसी और ने चाहे जो समझा हो,स्वयं आपको क्या अनुभव हुआ। यदि आपका अंतस किसी अपराध-बोध से ग्रस्त है,तो निर्मल भाव से उसकी अभिव्यक्ति मात्र से गलती मिट गई समझिए।
ब्लॉग जगत में अपनी रचनात्मक सक्रियता बनाए रखें।
@कुमार राधारमण जी,
मुझे याद आ रहा है कि चार साल पहले जब मैंने अपना पहला ब्लॉग बनाया, तब यह सोच कर नहीं आया था कि झंडा गाड़ दूं........उखाड़ दूँ या पछाड़ दूँ. तब मेरे मन में केवल यह बात थी कि मेरे भीतर जो शब्द का थोड़ा बहुत प्रकाश है, उसे सब लोगों के साथ सांझा करते हुए हिन्दी व हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में अपनी सहभागिता दूँ . परन्तु न जाने कब, कैसे मन:स्थिति में परिवर्तन होता गया और अपनी तमाम विनम्रता व शिष्टता भूल कर, अपनी तार्किक शक्ति आज़माने पर तुल गया . खैर......अब ऐसा नहीं होगा . क्योंकि मैं जान गया हूँ कि दुनिया के काँटे मैं नहीं हटा सकता, हाँ अपने पाँव में चप्पल पहन लूँगा तो इन काँटों से स्वयं को बचा सकूँगा .
मेरी बातों से आपको जो तकलीफ हुई उसके लिए मैं भी आप से क्षमा चाहता हूँ और अंतर्यात्रा की सफलता की कामना भी कर रहा हूँ|
@sanjay ji
आपके उदार व्यवहार के लिए आभारी हूँ संजय जी, भविष्य में मृदुता बनी रहे, ऐसा प्रयास करेंगे.
.
यह क्या अलबेला जी !
भाईजी, स्वास्थ्य का ध्यान रखा करें …
हार्दिक शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
एक निर्मल पोस्ट! दिल की बात को इस तरह पहचानना, कहना और करना सब के बस की बात नहीं है। राष्ट्रीय पहचान वाले कविहृदय के अनुरूप उद्गार! आपके उत्तम स्वास्थ्य के लिये शुभकामनायें!
आपका फ़ैसला बहुत अच्छा है।
ग़लतियां हो जाती हैं लेकिन उनका जायज़ा लेकर उनसे बचना ज़रूरी है।
आपने सही कहा है कि
अन्दर की दुनिया बाहर की दुनिया से ज़्यादा रौशन है।
आपके अंतस से क्षमा भाव का उदय हुआ है। ऐसी ही अन्तर प्रेरणा से मन शुद्ध सात्विक होता है। किसी का दिल दुखाने के पश्चाताप से अधिक कोई गंगास्नान नहीं है। आपने सही कहा-"बाहर के इस फोकटिये चक्कर में भीतर की यात्रा बन्द हो चुकी थी."
अक्सर हम अपने बौद्धिक प्रदर्शन के प्रलोभन में भीतर की आत्मिक शान्ति को दरकिनार कर देते है। आपके इस आत्मचिंतन के प्रकाशन पर आपके प्रति सम्मान बढ़ गया है ऐसा चिंतन स्तुत्य है। और इस विचार के सार्वजनिक प्रकट्न पर आभार व्यक्त करता हूँ क्योंकि ऐसे अनुभवों से सद्विचार प्रसार पाते है।
कमाल हैं सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली
झूठ के सिर और पैर दोनों होते हैं
क़ोई पोस्ट डिलीट नहीं की हैं
साधू बनने की बेकार कोशिश हैं ताकि ब्लॉगर सम्मान मिले
aaj aap man dravit kar gaye.....aap gyani hain....tabhi to vinamra hain.......hum balak
aapke liye hardik subh:kamnayen chahte hain..
pranam.
@Anonymous
आदरणीय गुमनामी जी, मैं शाकाहारी हूँ, चूहे वगैरह नहीं खाता परन्तु साधु बनने का भी मेरा कोई प्लान नहीं है . मैंने तो सिर्फ़ अपनी उन भूलों के लिए क्षमायाचना की है जो अन्तर में मुझे कचोट रही थी.......आपको पूरी छूट है, आप चाहें जितना उकसा सकते हैं लेकिन अब मैं आपकी बातों से तैश में आने वाला नहीं.........रही बात पोस्ट डिलीट करने की, तो कल रात से वही काम चालू है ..........अब तक 38 पोस्ट मिटा चुका हूँ . अगर आप समझते हैं कि ये काम पल भर में हो जाएगा तो आप भूल रहे हैं कि 1200 से ज़्यादा पोस्ट चैक करनी है...........
और हाँ मुझे आपका प्रमाण-पत्र नहीं चाहिए, मैं जो कर रहा हूँ वो दिल की आवाज़ पर कर रहा हूँ, किसी और के दबाव अथवा भय से नहीं....
पुरस्कार तो मैं दिया करता हूँ प्यारे, लेता कहाँ हूँ ? अभी 12 मई को ही सूरत के श्री नरेश कापड़िया को सारस्वत सम्मान से नवाज़ा है जिसके तहत उन्हें सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह, शाल-श्री फल तथा 11000 /- रूपये नगद भेन्ट किये गये . कृपया अब ठंडी ठंडी बात करो....ये आग लगाऊ हरकतें मत करो........जय हिन्द !
अलबेला जी !...ऐसा कुछ भी नहीं है..मनुष्य के अंदर भूलने की आदत जो कुदरत ने फीट की हुई है...वह एक वरदान है!..आपने जिसके लिए कुछ गलत कहा या लिखा वह सामने वाला समय के साथ भूल जाएगा और किसीने आपके साथ कुछ गलत किया है तो आप भी वह जल्दी ही भूल जाएंगे!..जमीन पर गिरा हुआ पानी कब तक जमीन को गीला रखेगा?...वह कुछ समय बाद सूख ही जाता है!
...क्या आप बीमार है?...धीरज रखे!..आपको जल्दी ही स्वास्थ्य लाभ हो जाएगा और आप पहले की तरह ही सबको हास्य के रंग से होली खिलाते रहेंगे!
आप ठीक कह रही हैं डॉ अरुणा जी, मैंने आपकी बात को आत्मसात कर लिया है
आपने जो सोचा है अच्छा सोचा है। आप अपने स्वास्थ्य का खयाल रखिये बस। मेरे ख्याल से आपने सिग्रेट पीना बंद कर दिया होगा। वरना आरती जी से शिकायत करनी होगी।
जो कभी गलती नही करता वो भगवान हो जाता है। हम मात्र इंसान हैं इसीलिये गलती करके मान भी जाते हैं। जब-जब जो-जो होता है इश्वर की मर्जी होती है। सब कुछ भूल कर जुट जाईये कुछ अच्छा लिखने में। बजरंग बली आपकी रक्षा करेंगे।
सादर-नमस्कार
चलिए क्षमा किया!!!!!
अच्छा फैसला है... वैसे मैं तो यही मानता हूँ कि आपने पहल करके तो कभी किसी का दिल नहीं दुखाया होगा...
फिर भी "जल्दी आये, दुरुस्त आये"
:-)
क्या हुआ मित्र ? ऐसी दिल तोड़ने वाली बातें क्यों कर रहे हैं ?
डॉ टी एस दराल has left a new comment on your post "बहुत होगया अलबेला खत्री !!!....अब केवल क्षमा याचन...":
क्या हुआ मित्र ? ऐसी दिल तोड़ने वाली बातें क्यों कर रहे हैं ?
@dr.T.S.Daral
aapka comment spam me kyon jata hai ji....mujhe mail me se utha kar yahan lagana padta hai ....beemar aadmi se itni mehnat karate ho ?
aap dr. ho to kya hum se p t karwaaoge..ha ha ha ha
हम सभी में हज़ारों कमियां हैं, जब जागे तभी सवेरा.
ढेरों शुभकामनाएं.
ठहाका लगाया --आधे ठीक हो गए ।
पी टी की -- बाकि आधे ठीक हो गए ।
ये लो आप बिल्कुल भले चंगे हो गए ।
वैसे स्पैम में नॉट स्पैम को क्लिक करने से अपने आप प्रकाशित हो जाता है ।
देर आमद दुरुस्त आमद !मेरी हार्दिक शुभकामनायें आपके साथ है !
ईश्वर करे आप कुशल और स्वस्थ रहें, मेरी यही मनोकामना है। बाकी अंतरात्मा जो कहती है वे करें। साधुवाद
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