प्यारे मित्रो !
ओपन बुक ऑन लाइन के तरही मुशायरे में मैंने भी तीन ग़ज़लें पेश की थीं. उन्हीं में से एक आज आपकी खिदमत में रख रहा हूँ ........अगर उचित समझें तो अपनी राय से अवगत कराएं
धन्यवाद - जय हिन्द !
ओपन बुक ऑन लाइन के तरही मुशायरे में मैंने भी तीन ग़ज़लें पेश की थीं. उन्हीं में से एक आज आपकी खिदमत में रख रहा हूँ ........अगर उचित समझें तो अपनी राय से अवगत कराएं
धन्यवाद - जय हिन्द !
माना कि सर पे धारते दस्तार हम नहीं
पर ये न समझना कि सरदार हम नहीं
पीहर पहुँच के पत्नी ने पतिदेव से कहा
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
क्यों मारते हैं हमको ये शहरों के शिकारी
जंगल में जी रहे हैं पर खूंख्वार हम नहीं
डाक्टर की फीस सुनके, एक रोगी रो पड़ा
बोला कि मिलने आ गये, बीमार हम नहीं
तारीफ़ कर रहे हैं तो झिड़की भी झाड़ेंगे
अहबाब हैं तुम्हारे, चाटुकार हम नहीं
मुमकिन है प्यार दे दें व दिल से दुलार दें
मुफ़लिस को दे सकेंगे फटकार हम नहीं
माँ बाप से छिपा, घर अपने नाम कर लें
इतने सयाने, इतने हुशियार हम नहीं
1 comments:
बहुत सुन्दर रचना! आभार...!
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