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"मेरे भीतर की बस्ती में मुक़द्दस धाम है उसका" मुक्तक स्पर्धा -२






नमस्कार  मित्रो !  

कल मैंने  आपसे अपने एक  मुक्तक  के जवाब में कुछ   लिखने का  

अनुरोध किया था  परन्तु कुछ ख़ास  रिस्पोंस  नहीं मिला . अतः  कौल  के 

मुताबिक  मैं उसका जवाब छाप रहा हूँ . ये रहा जवाबी मुक्तक..इसी के नीचे 

वह भी है  जिसके जवाब में ये लिखा गया .  अब आप  चाहें तो  इसके 

जवाब में एक मुक्तक लिख भेजें.........मेरा  जवाब कल प्रकाशित होगा .

जय हिन्द ! 




उसी ने फिर बनाया है, बनाना काम है उसका

बनाने में कुशल है वो, बड़ा ही नाम है उसका

मेरी हस्ती उसी से है, मेरी मस्ती उसी से है

मेरे भीतर की बस्ती में मुक़द्दस धाम है उसका

_________________________





वो तन में भी समाया है, वो मन में भी समाया है

जिधर देखूं उधर जलवा, उसी का ही नुमाया है


मेरा मुझमे नहीं कुछ भी, जो कुछ भी है उसी का है


मिटाया था कभी जिसने, उसी ने फिर बनाया है


अग्रवाल विकास ट्रस्ट  मुंबई के आयोजन  में काव्यपाठ करते अलबेला खत्री  और मंच पर उपस्थित  हैं सर्वश्री शैल चतुर्वेदी, डॉ उर्मिलेश शंखधर, हुल्लड़ मुरादाबादी,  लता हया  और महेश  दुबे 

2 comments:

Anonymous May 21, 2012 at 1:45 PM  

accha hai ,bahut achha hai
http://blondmedia.blogspot.in/

रविकर May 21, 2012 at 7:35 PM  

बहुत बढ़िया भाव -
समर्पण
हट के

सादर

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